क्या खामोशियाँ वास्तव में खामोश होती हैं ?
खामोशियाँ बहुत कुछ बिन बोले सब कुछ कहती है । फिर भी खामोश कहलाती है । यहीं तो खामोशी की परिभाषा है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
एक कहावत है कि 'एक चुप्पी (खामोशी) सौ को हरा सकती है' तो सोचिये कि खामोशियां वास्तव में कैसे खामोश हो सकती हैं। जरूरी केवल यह है कि खामोशी सशक्त हो।
खामोशी कभी अपनी गलती को स्वीकार करने के लिए भी होती है। कभी सवालों का उत्तर ना देने के लिए भी होती है। लेकिन इस तरह खामोश रहकर भी व्यक्ति स्वयं के गलत होने या स्वयं के कमजोर होने की ओर इशारा कर देते हैं।
कभी-कभी खामोश होने का अर्थ स्थिति को स्वीकारना होता है परन्तु कभी यही खामोशी स्थिति को समझने के लिए भी होती है और स्थिति को समझकर उसे तोड़ना जरूरी हो जाता है।
तभी मैं कहता हूं कि....
खामोश होना.... एक आवश्यक कला है.....
परन्तु कब खामोश होना है और कब खामोश नहीं होना है.....एक अति आवश्यक कला है।
खामोश रहकर बात कहने की कला सबमें नहीं होती। इसी प्रकार खामोशियों का शोर सुनने की योग्यता हर किसी में नहीं होती। परन्तु यह निश्चित है कि खामोशियां बोलती तो हैं।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
जी नहीं। खामोशियां खामोश नहीं होती हैं?वह हमसे बहुत कुछ कहती हैं। मेरी दो पंक्तियाँ देखिये __
"तुम्हारी खामोशी ने,परेशां कर दिया मुझे।
क्या सुनूं और समझूं ,समझ नहीं आता मुझे। ।"
किसी की खामोशी अपना सब कुछ, बयाँ कर देती है, खामोश रहकर ही। कभी खामोशी हलाकान भी कर देती है। हम खामोश रहने वाले ,शख्स से घबराने भी लगते हैं।
पहले चलचित्र की नायिका या नायक ,खामोश रहकर भी सभी कुछ कह देते थे।ऐसे अभिनेताओं में संजीव कुमार, जया भादुड़ी, मधुबाला का नाम बिंदास लिया जा सकता है। ये सभी खामोश रहकर भी, खामोश नहीं रहते थे।
खामोशी कभी-कभी बड़े लाभ का सौदा भी ,बन जाता है। खामोशी फलदायी और गुणकारक भी हो जाती है। खामोशी जैसे हथियार का इस्तेमाल, कर समझदार पत्नियाँ अपने पति और परिवार के, लोगों से अपनी बात आसानी से मनवा लेती है।
इस प्रकार खामोशी आजकल ,मानवीय गुणों में शामिल हो चुकी है। खामोशी एक कला (आर्ट)भी है जो,अपना काम आसानी से निकलवा लेती है।
- डॉ. मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
कहा गया है, 'जैसी मीठी कछु नहीं, जैसी मीठी चूप। '
चुप रहना, कायरता नहीं, बल्कि समझदारी भी होती है। ये बात अलग है कि चुप रहने अर्थात खामोशी को तत्समय की स्थिति पर भी उचित और अनुचित ठहराया जा सकता है। द्रौपदी के चीरहरण के समय पांडवों ,भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र की खामोशी के अलग - अलग रूप थे। इसे समझदारी में भले ही नहीं स्वीकारा गया है। पर इन खामोशियों में जो पीड़ा और क्रोध निहित था वह महाभारत बनकर निकला और सबकी खामोशी के अनुसार उनके परिणाम भी सबको अलग-अलग मिले।
इसीलिए खामोशियाँ वास्तव में खामोशी लिए नहीं होतै। उनमें मजबूरी, पीड़ा, क्रोध, तिलमिलाहट, वेदना में से कोई भरा होता है जो अवसर आने पर प्रगट होकर विराट रूप लेता है, जिसके परिणाम भी भयावह या व्यथित करने वाले होते हैं।इन्हीं खामोशियों में से एक विरह, बिछोह, तनहाई, दूरियां, इंतजार जैसी प्रेम और आसक्ति वाली भी होती हैं, इन खामोशी में नीरसता निहित होती है।
सार ये कि खामोशियाँ वास्तव में खामोश नहीं होतीं, उनमें कोई न कोई विशेष प्रकार का नाद ( आर्तनाद ) छुपा होता है। शोर या गूँज भी कहें तो गलत ना होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कौन कहता है," खामोशियॉ खामोश होती हैं, कभी खामोशियों को खामोशी से सुनों खामोशियॉ वो कह देंगी
जिनकी लफ्जों को तालाश होती है।"
खामोश रहना भी एक अदभुत गुण है, यह सभी में नहीं पाया जाता, ज्यादातर खामोशी लाभदायक होती है किन्तु इतना भी खामोश मत हो जाओ कि कोई आपकी शराफत का न्यजायज फायदा लेने लगे, फिर भी खामोशी को तोडंते बक्त यह जरूर सोच लें की मैं इतना वोलूं जिससे दुसरे को जबाब भी मिल जाए और कठोर भी न लगे।
"जज्बात कहते हैंखामोशी से बसर हो जाॅए, दर्द की जिद्द है कि दुनिया को खबर हो जाए।"
कई वार घरेलु झगड़ों में खामोश रहना ही अच्छा होता है, ताकि होनी टल जाए और उस खामोशी का जबाब कहीं वेहतरीन समय पर ही ठीक होता है, वोलना तो सभी को आता है लेकिन कई वार खामोश रहना ही बेहतर रहता है, किसी ने सही कहा है।
"खामोश शहर की चीखती रातें, सब चुप हैं पर कहने को हैं हजार बातें।"
इसलिए खामोशियां वास्तव में खामोश नहीं होती लेकिन हालात खामोश वना
देते हैं। नहीं तो,
"दिल की धड़कने हमेशा कुछ न कुछ कहली हैं, कोई सुने या ना सुने, यह खामोश नहीं रहती हैं।"
अच्छे इन्सान कम वोलते हैं लेकिन लोग उनकी तारिफ तो क्या उनको अन्जान समझ कर नकारते हैं लेकिन उनकी खामोशी कुछ अलग ही रंग दिखाती है, यह सच है,
इन्सान की अच्छाई पर सब खामोश रहते हैं, चर्चा जव उसकी बुराई की हो तो गुंगे भी बोल पड़ते हैं।
इसलिए खामोशी वास्तव में खामोशी नही होती, यह सव कुछ बता देती है, लेकिन कई वार हलात ऐसे वन जाते हैं कि नेक इन्सान सोचने पर मजबूर हो जाता है की मेरे साथ ऐसा क्यों और यही सोच कर खामोश रहने लगता है,
"खामोश फिजा थी कोई साया ना था, इस शहर में मुझसे कोई आया न था किस जुल्म ने छीन ली हमसे मुहब्वत हमने तो किसी का दिल दुखाया न था।"
कहने का मतलब इन्सान की जिन्दगी मे कुछ ऐसे मोड़ आ जाते हैं जिन के कारण वो खामोश रहने पर मजबूर हो जाता है, यह भी सच है,
"जब कोई ख्याल दिल से टकराता है, दिल ना चाह कर भी खामोश रह जाता है," या
युं कह लिजि़ए जब इन्सान अन्दर से टूट जाता है तो अक्सर वाहर से खामोश हो जाता है, इससे यह जाहिर होता है कि खामोशियां वास्तव में खामोश नहीं होतीं अपितु इन्हें हालात जन्म देते हें।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
खामोशियां, वास्तव में खामोश नहीं होती।इस खामोशी में छिपा होता है एक भयंकर शोर करता तूफान,वो जब भी प्रकट होता है,भारी नुकसान कर देता है। ख़ामोशी में छिपा वैचारिक
तूफान किस दिशा में बढ़ जाए? किस तरह का नुक़सान कर दे? कुछ नहीं कहा जा सकता।ख़ामोशी यानि विचारों और क्रोध को मन में दबा लेना,यह कितना घातक होता है इसका सहज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि खामोश होकर अपनी अभिव्यक्ति, क्रोध,हर्ष, विषाद को न प्रकट करना मानसिक और शारीरिक विकार पैदा कर देता है। किसी हादसे के बाद जब कोई खामोश हो जाता है तो उसे थपककर रुलाने का, बुलवाने का प्रयास किया जाता है, जिससे उसका दुख बाहर आ जाए। किसी के प्रति क्रोध बाहर आ जाए।ख़ामोशी कभी खामोश हो ही नहीं सकती,वह साइलेंट किलर की तरह हमेशा नुकसान देने वाली होती है। ख़ामोशी को मौन मानने की भूल न की जाए। मौन एक साधना है, जबकि खामोशी,अंतर्द्वंद।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
नहीं! खामोशियाँ वास्तव में खामोश नहीं होती हैं।वह खामोश रहकर ही बहुत कुछ कह देती हैं। आदमी बोलकर भी जो नहीं कह पाता है वह खामोश रहकर सब कुछ कह देता है।
बच्चा, जानवर,गूंगे बोल नहीं पाते हैं। वे खामोश रहकर ही सबकुछ कहते हैं।प्यार करने वाले भी पहले खामोश रहकर ही प्यार का इजहार करते हैं। आँखों ही आँखों में बिलकुल खामोश रहकर सारी बातें हो जाती है।
माँ कभी-कभी खामोश रहकर ही बच्चे को सबकुछ कह देती है। कहीं किसी के आने पर या कहीं जाने पर खामोश रह कर ही बच्चे सबकुछ समझा देती है।
किसी बात पर किसी को राजी करने के लिए जब कुछ कहा जाता है और वो चुपचाप रह जाता है तो समझा जाता है वो राजी है सबकुछ कह दिया है। यानी वह खामोश रहकर ही सबकुछ कह देता है।
जब कोई दबंग किसी गरीब किसी असहाय पर अत्याचार करता है और वो चुपचाप सह लेता है, तो वह खामोशी की अवस्था में पूरी बात कह देता है कि इस बात का फैसला ऊपर वाला करेगा या इसका दंड ऊपर वाला देगा। खामोशी की मार बड़ी तगड़ी होती है।खामोश रहने वाला बहुत कुछ कहता है। कहा जाता है सौ वक्ताओं को एक खामोश व्यक्ति हरा देता है।
इन सब बातों से जाहिर होता है कि खामोशियाँ खामोश रहकर ही सब कुछ कह देती हैं।
खामोश रहिये शान्त रहिये आनंद कीजिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - प. बंगाल
खामोशियां अत्यंत गूढ़ रहस्य होती हैं। जो अणुबम एवं ज्वालामुखी से कहीं अधिक विस्फोटक होती हैं।इतिहास साक्षी है कि माता सीता ने धरती फाड़ उसमें समा कर खामोशी का प्रर्दशन किया था और द्रौपदी चीरहरण के उपरांत छाई पांडवों की खामोशी ने महाभारत युद्ध का विकराल रूप धारण किया था।
विज्ञान भी मानता है कि तुफान आने से पहले हवा तक खामोश हो जाती है और युद्ध से पहले शांति का अनुभव होता है। सत्य यह भी है कि प्राण त्यागने से पहले रोग शरीर को छोड़ देता है।
खामोशी वह ऊर्जा है जो बोलने वालों की बोलती बंद कर देती है। अतः खामोशियां वास्तव में कभी खामोश नहीं होती हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
खामोशियाँ जीवन को जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नदियों का पानी खामोश ही रहता हैं, लेकिन इसी ख़ामोशियों में सभी को अभिवादन करती हैं। खामोशी रहने वाला प्राणी बोलता कम हैं, लेकिन निर्णायक भूमिका में हमेंशा रहता हैं, जिसके एक-एक शब्द हथौड़े की तरह पड़ता रहता हैं। खामोशी रहने वाले लोगों को पहचाना बहुत ही मुश्किल का काम हैं। खामोशी से संबंधित अनेकानेक फिल्में, उपन्यास प्रदर्शित हुई हैं, जिसके कारण वस्तु स्थिति से अवगत कराया जाता रहा हैं, उसके उपरान्त भी खामोश ही रहना पसन्द करते हैं। शांति खामोश रहने की अवस्था, चुप्पी, खामोशी के ही चक्कर में कई प्रकार के तथ्य सामने घटित होते हैं। न्यायालय में न्यायधीश की चुप्पी से ही आक्रमक रुप पहल करनी होती हैं। जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक तथ्यों का पता करना पड़ता हैं। तपस्वियों की भूमिका में कर्म प्रधान को वृहद स्तर पर विभिन्न श्रेणियों में ही देखा जाता हैं। ड़ाँक्टरों का चिंतन-मनन, प्रबुद्ध धारा सतत सकारात्मकता को जन्म देती हैं। एक प्रवाह को आगे बढ़ाने की कला हैं, वास्तव में खोमोशी, खामोशियां ही होती हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी नहीं ! ख़ामोशियाँ वस्तुत: ज्वालामुखी की तरह विस्फ़ोटक होती हैं।वे या तो स्वयं को जला कर राख कर देती हैं या फिर सारे जहाँ का विध्वंस करने का प्रयास करती हैं।
ख़ामोशियाँ अंतर्मन की
उदासी है,पीड़ा,दु:ख-दर्द,
कष्ट का चरम है अथवा विरोध और प्रतिकार न कर पाने की क्षमता का मलाल है, जो शक्ति के दुरुपयोग और नकारात्मकता की पराकाष्ठा के रूप में प्रस्फ़ुटित होती है।
ख़ामोशियाँ ख़ामोश तो कभी भी नहीं होतीं , वे अन्दर ही अन्दर, भीतर ही भीतर सुलगती रहती हैं,
ज्वालामुखी की तरह ।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
फ़रीदाबाद - हरियाणा
खामोशियाँ बहुत कुछ कहती है
बस सामने वाले को पढना आना चाहिए ...खामोशियों की अपनी एक ज़बान होती है , कभी शिकायत करती है , कभी नाराज़गी ज़ाहिर करती ,
खोमोशियां यू नहीं होती कुछ राज होता है , कही दिल दुखता है , कहीं दर्द सिने मे दबा होता है । खमोँशी के पीछे बहुत गहरा तूफ़ान होता है !
खामोशियाँ दर्द की माँ सरीखी होती है सब काम करती है पालती पोसती हो , अलग होकर भी अलग है हम बहार से खामोश है पर अंदर तो लगातार कुछ रिसता है जो हम देखना नहीं चाहते सुनना नहीं चाहते !
यदि खामोशी को आप स्वंयम नहीं सुनेंगे तो दूसरा क्यो सुनेगा
आप अपनी खामोशी से बात करे वह क्या चाहती है जाने
खामोशीयों को अल्फ़ाज़ दे वो चिखेगी चिल्लाएगी , चिल्लाने दे जब वह शांत हो तब उनके दर्द को जाने ,
खामोशी बहुत कुछ अनकहां कह जायेगी ।
खामोशीयां कभी खामोश नहीं होती , अंदर होता है कोलाहल
भंयकर तूफ़ान .
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कहत,नटत,रीझत,खिझत- मिलत,खिलत, लजियात। भरे भौन में करत हैं, नैनन ही सों बात।।
बिहारी का यह दोहा बखूबी इस बात को सुस्पष्ट कर रहा है.आश्चर्य है ,कि मूक नयन सब कह डालते हैं. "गिरा अनयन,नयन बिनु बानी" की दशा भी यही बताती है. आंखों को जुबान और जुबान को आंख मिलने का अनुमान...वाह
"एक चुप सौ बोलतों को हरा देता है"अजब सी बात है न,लेकिन सचमुच गजब की बात है.ऐसा ही होता है.
खामोश व्यक्ति के दिल में दबे हुए तूफान का अनुमान भला कौन लगा पाया है?लेकिन ज्वालामुखी के सीने में बरसों तक दबा हुआ सन्नाटा लावे के रूप में फूटता तो सबने देखा ही है.
इसलिये मेरा यही मानना है,कि खामोशियां हमेशा मुखर होकर भी सांकेतिक ही होती हैं.
जलचर, थलचर और नभचर जीव-जंतुओं (मानव जाति से इतर)के मौनालाप को आज तक तो सभी ने संकेतों में जाना समझा है.
खामोशी खतरनाक है, बेबाक मुखरता ग्राह्य है.
- डा.अंजु लता सिंह
दिल्ली
, आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या खामोशियां हो वास्तव में खामोश होती हैं तो इस विषय पर मेरा यह विचार है ऐसा नहीं है कभी-कभी खामोश रहकर भी आदमी बहुत कुछ कह जाता है खामोशी कभी-कभी आदमी की नाराजगी को व्यक्त करती है तो कभी-कभी खामोश रहने वाले के चेहरे के हाव-भाव उसके मन की बात को स्पष्ट कर देते हैं कभी-कभी हम उस व्यक्ति की आंँखें भी बहुत कुछ कहती है और इस प्रकार यह बहुत स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि खामोशी वास्तव में बहुत कुछ कह जाती है जिसे हम महसूस नहीं कर सकते यह समय की बात है कभी-कभी खामोश रहने वाला व्यक्ति खामोश रहकर अपने दुख दर्द और शोक व्यक्त करता है इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि खामोशी बहुत कुछ कह जाती है बस महसूस करने की आवश्यकता है
- प्रमोद कुमार प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
"संदेह मुसीबत के पहाड़ों का निर्माण करता है ।और विश्वास पहाड़ों से भी रास्ते का निर्माण करता है"यानी हजारों जवाबों से अच्छी है खामोशी।
मैं एक वाक्या का वर्णन करता हूं:- भारतीय संसद में कई दिनों से हंगामे और शोर-शराबे के कारण संसद के काम बुरी तरह से प्रभावित किया।
*कोलगेट कांड*में मुख्य अभियुक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बन गये चूँकि यह मंत्रालय उन्हीं के अधीन था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सफाई देने में पसीना छूटने लगा। मनमोहन सिंह कई बार बात करने की कोशिश की पर विपक्ष है कि मानता नहीं।
मनमोहन सिंह को मौका मिला तो उन्होंने यही कहा:-" मेरी खामोशी न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली है"।
इनके बाक्य से स्पष्ट हो गया खामोशियां वास्तव में खामोश होती है।
लेखक का विचार:- उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित फैसला है कि कोई भी अभियुक्त को खामोश ही रहने का हक है अभी अदालत के जटिल फैसला को नहीं समझता है उसके अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।
- विजेयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
खामोशियाँ जिंदगी का शांत रूप होती है ।वास्तविकता खामोशियाँ खामोश होकर बेहद कुछ बयां करती है ।जब र्दद टीस हद से ज्यादा हो तो अधरों पर खामोशियाँ अपना घर बना लेती है।इंसान के अभिलाषी रूप को भी खामोशियों ने अपने भावनाओं का चोला पहनाया है।अंतमुर्खी भावनाओं का तंरगों के साथ मतभिन्नता हो पंरतु खामोशियों की जूबां निगाहों की परत हो जाती है।खामोश होकर सिले हूयें अधर खामोशियों की बात समझाने की जिद्द करते है।वास्तव रूप से खामोश होकर भी र्दद के नज्मों को बयां करती है ये खामोशियाँ।
परतों पर टीस की मेहंदी रचकर
घावों को लेपित कर खामोशियाँ बिनकहें अल्फाज को जन्म देती हैं।जीवन चक्र की महिमा भी अद्भुत दृश्य देखने को मजबूर करती है।दिल काँच की तरह बिखर जायें पंरतु नियमित रूप से जिंदगी जीने को सिखा जाती है खामोशियाँ।
र्दद को कम करने मे सार्थक तत्व है।गम अंदर ही दफ़न करने की कला सिखाती है खामोशियाँ।हाँ वास्तविक स्वरूप मे खामोश ही रहती किसी से बिना कहे मन की टीस को आसूं से भिगोकर कर दिल हल्का करती है खामोशियाँ।तनहाइयों मे मरहम बन जख्मों को कम करने की इसकी अदा पुरानी है।जीवन के हर रूप धारण कर परिस्थितियों को जीने की कल्पना और सृजन करती है।मन के बोल को अधरों और निगाहों से खामोश होकर जाहिर करने की औजारों मे शामिल है खामोशियाँ।औषधि केंद्र मे धडकन को राहत देती है पंरतु अंदर ही अंदर खामोश होकर दर्दनाक हादसा को भी जन्म देती है।वास्तव मे खामोश होकर हरकतों को उत्पन्न करती है खामोशियाँ।
जो अधरों ने बयां नही किया
जो लोगों ने नही समझा
बिनकहें शब्दों की जूबां बन जाती है।
वास्तव मे खामोश है पंरतु र्दर्दो की दास्तां लिख जाती है ।ये खामोशियाँ कलम पन्नों पर अपनी व्यथा लिखती खामोश होकर
दिल खामोशियों की चौखट पर दम तोडऩे की सिफारिश करता।अजीब इसकी सैलाब है।आये तो राज बह जाते है।और टुट जाये तो कदमों के रूख बदल जाते है।
वास्तविक स्थिति मे खामोशियों को खामोश पोशाक पंसद आते है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
दुनिया में ख़ामोश कुछ भी नहीं रहता हैं जो ख़ामोश है वह परिस्थितियों के कारण ख़ामोश है । किसी अज्ञात के शब्द है - ‘कहता है की खामोशियाँ खामोश होती हैं कभी ख़ामोशियों को खामोशी से सुनो, शायद खामोशियाँ वो कह दें जिनकी लफ़्ज़ों में तलाश होती है’ । सच यही है कि खामोशियों को सुनने के लिए ख़ामोश होना ज़रूरी है । एक उदाहरण और देखिए- हकीकत में खामोशी कभी भी चुप नहीं रहती, कभी तुम ग़ौर से सुनना बहुत किस्से सुनाती है । कोई यूँ ही ख़ामोश नहीं रहता जो ख़ामोश है उसे किसी की तलाश जारी है । देखने वालों को लग सकता है कि वह ख़ामोश है तो कुछ नहीं चाहता है पर वह चाहता है । उसने इसलिए अपनी गतिविधियों को विराम दे दिया है कि वह जो नहीं पा सका है उसे प्राप्त करने के लिए बल इकट्ठा कर सके । कहते हैं जब तूफ़ान आने वाला होता है तो देर पहले हवाएँ ख़ामोश हो जाती हैं । जब समुद्र में ज्वार आने वाला होता है तो कुछ देर पहले समुद्र में खामोशी छा जाती है। इससे साफ़ है कि खामोशियाँ कुछ तलाश करने के लिए ख़ामोश हैं वरना तो बोलना सबको आता है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
खामोशियां-- कहते हैं कि खामोश जुबांऔर भी अधिक बोलती है।
जब खामोश होते हैं हमारी दृश्य श्रवण
अवलोकन शक्ति की क्षमता और भी अधिक हो जाती है और हम अपने आसपास की छोटी बड़ी गतिविधियों को अधिक गहनता से महसूस करते हैं
किसी भी प्रसंग के परिपेक्ष में विश्लेषण करने की क्षमताओं में
अधिक वृद्धि हो जाती है और समय पर हम उचित और सही निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।
खामोशी की अपनी जुबान होती है
पर जहां अत्यधिक आवश्यक हो वहां खामोश नहीं रहना चाहिए ।
ईमानदार व्यक्ति के खामोश होने से
कभी-कभी सत्य बात खामोश हो जाती है। खामोशियां वास्तव में खामोश हो जाती है। परंतु मन में
अंतर्द्वंद चलता रहता है जुबा खामोश है लेकिन अंतर्मन का संवाद जारी रहता है।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
सब से पहला जो वाक्य मन में आता है वो है युद्ध के पहले की शांति। शांत नदी में एक कंकड़ भी लहरों का अनंत घेरा बना सकता है। अंटार्कटिका में ठोस बर्फ के नीचे पानी का विशाल बहाव , गहरे दुख में सूनी खुशक आँखे सब उदाहरण हैं कि खमोशियाँ वास्तव में खामोश नहीं होती हैं । यह मानव प्रकृति है कि वह अपने गहनतम दुख को निजी पूँजी की तरह मन में सुरक्षित रखता है ।
खामोशियों की अपनी कहानी, अपनी भाषा और अपने संवेग होते हैं। खामोशी के भीतर एक ज्वालामुखी, एक जलजला एक ना रूकने वाला तूफान होता है । अक्सर तो यह स्थिति दुख,अवसाद और आत्मिक आघात के कारण होती है। जब मन का विश्वास हर ओर से चोटिल हो जाता है तब मानव कोशिश शब्द से भी कोसों दूर हो जाता है ।उसकी खामोशी अनकही महागाथा है जो कही नहीं गयी। इस बात को मनोविज्ञान भी मानता है कि मन की परतों को पढ़ना मुश्किल है। हम लोग अनेक बार शांत ,गंभीर और खामोश व्यक्ति को तंग ना करने की सलाह देते हैं क्योंकि उसकी खामोशी जलजला है जो सब को स्वाह कर सकता है ।
खामोशी बोले सूखे आँसुओं की शब्दातीत कहानी।
मौलिक और स्वरचित है।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
खामोशी का पर्यायवाची है चुप,शांति। बड़े-बुढ़े अक्सर यह बात कहते हैं "एक चुप सौ सुख "। इस के पीछे खामोशी की महानता छुपी हुई है। खामोशियां कभी भी खामोश नहीं होती हैं। उन की भी एक भाषा होती है जो दिलो-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। जो बात हम शोर गुल ,लड़ाई झगड़े से नहीं सुलझा सकते वो ही बात खामोश रह कर आसानी से सुलझाई जा सकती है। आजादी के पहले और बाद में भी महात्मा गांधी जी और नेता अपनी मांगे मनवाने के लिए मौन-व्रत रख लेते थे।इस लिए हम कह सकते हैं कि खामोशियां वास्तव में खामोश नहीं होती हैं। किसी ने सही कहा है कि चुप की लाठी सब से गहरी चोट करती है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
'खामोशी' हमेशा से कुछ अनकहा कहती है। अक्सर दो ही वक्तव्य होते हैं - राज़ी या नाराज़ी। कुछ लोग अपनी बात कहने में मुखर होते हैं , परन्तु कोई झिझक या संकोच के कारण अपना पहलू व्यक्त नहीं कर पाता।
'खामोशी' का मतलब सामने वाले को समझना आसान नहीं होता। वह तो अपनी विचार धारा के अनुसार ही मतलब
निकाल सकता है। लेकिन खामोश रहने वाले या तो दृढ़ संकल्प हैं और किसी को कोई सफाई नहीं देना चाहते या फिर उनके लिए अभी परिस्थिति पर विचार करना बाकि है।
खामोशी बहुत बड़ा समंदर दबाए होती है। इसलिए उसको समझना जरूरी है। खास कर बच्चों के संदर्भ में यह खतरनाक मोड़ अख्तियार कर सकती है। बड़ों में भी यह कई बार अपराध के रूप मेंसामने आती है। इसलिए खामोश व्यक्ति के आचरण पर ध्यान देने की जरूरत होती है। हर व्यक्ति को अपना एक अंतरंग साथी जरूर बनाना चाहिए, जिसे वह अपनी मानसिक स्थिति बयान कर सके और सलाह ले सके।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
खामोशियां वास्तव में खामोश नहीं बल्कि अंदरूनी तूफान लिए होती हैं। अंतर्मन में द्वंद होने के कारण खामोशी का आवरण ओढ़ना पड़ता है। कभी कभी कहीं मजबूरन अभियुक्त को डरा धमका कर खामोश कर दिया जाता है पर वह भी मौका मिलते हीं सच्चाई उगल देता है।
पारिवारिक स्तर पर सामंजस्य बनाने हेतु खामोशी अख्तियार करनी पड़ती है। सामाजिक स्तर पर खामोशियों के विभिन्न पहलू होते हैं।
कभी-कभी दबे-कुचले हुए लोगों की आवाजें नहीं सुनी जाती इसलिए वे कुंठित भाव से खामोश हो जाते हैं पर उनके हृदय में विद्रोह की ज्वाला धधकती रहती है। ऊपर से खामोश दिखते हैंपर अंदर से खामोश नहीं रहते।
सरकारी स्तर पर उच्च पद पर बैठे अधिकारी या उच्च पद पर बैठे मंत्री गण जब ज्वलंत मुद्दों पर सही जवाब नहीं दे पाते तब खामोशी धारण कर लेते हैं। बिल्कुल चुप्पी साध लेना शंका उत्पन्न कर देता है कि दाल में काला है। खामोश हैं पर अंदरूनी माथापच्ची चल रही है।
इसी तरह जनता की भी जब सरकार नहीं सुनती। उनके समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता तब जनता भी आवाज उठाते उठाते धीरे-धीरे खामोशी अख्तियार करने लगती है पर वह अंदर ही अंदर सरकार के खिलाफ होते चली जाती है और वो खामोशी धीरे-धीरे आंधी का रूप ले लेती है और विद्रोह के स्वर में तख्तापलट हो जाता है।
इस तरह विभिन्न बिंदुओं पर गौर करें तो आप देखेंगे कि साधारण रूप से खामोशी कोई मायने नहीं रखती पर कभी ज्यादा बोलने वाला व्यक्ति बिल्कुल खामोश हो जाए या उच्च पदस्थ अधिकारी ज्वलंत मुद्दों पर ज्यादा देर तक खामोशी धारण कर लें तो समझ जाना चाहिए कि सब कुछ ठीक नहीं है, कोई बड़ा तूफान आने वाला है। खामोशियां वास्तव में खामोश नहीं होती ।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
मनुष्य सभी जीवो में श्रेष्ठ माना गया है वाणी के कारण। यानी मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने आचार -विचारों और भावों को अपनी भाषा में बोलकर और लिखकर व्यक्त कर सकता है।
दुर्भाग्यवश जो प्राणी बोल कर नहीं बता सकते वे इशारों में सब समझाते हैं।
मनुष्य की भाषा तो जानवर भी समझ जाते हैं ,परंतु जानवरों की भाषा ।
जानवरों की भाषा विचारों को उनके विचारों को कोई नहीं समझ पाता।
खामोश या गुमसुम रहने वाले इंसान के मन में तूफान भरा होता है और जिस दिन यह तूफान उफान पर निकलता है उस दिन वह वह व्यक्ति अपना ही नहीं घर में तोड़फोड़ या दूसरे व्यक्ति का भी नुकसान करता है।
अब मैं इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करने की कोशिश करूंगी।
बचपन में हमें समझाया गया कि अपने जीवन में कभी भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जो किसी से छुपा ना पड़े ।और यह बात मैं आने वाले बच्चों को भी स्कूल में समझाने कि कोशिश करती हूं।
कि जो इंसान अपने क्रियाकलापों को खामोशियों के साथ करता है वह इसलिए करता है कि किसी को पता ही नहीं चले। वह कार्य समाज के विरुद्ध होता है ,और ऐसा क्या हुआ कार्य कभी एक दिन चीख चीख कर कहता है।
जिसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में सुशांत सिंह राजपूत की हत्या का है सभी ने कितनी खामोशी के साथ यह कार्य करने की कोशिश की, पर यही खामोशी आज चीख -चीखकर कर सारे बयान दे रही है।
इसलिए खामोशियां वास्तव में खामोश ही नहीं होती। खतरनाक भी होती है। इसलिए हम सभी को ऐसी खामोशियों से बचना चाहिए।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
बाहर से खामोश प्रतीत होने वाली खामोशी अंदर एक अपना व्यापक स्वरूप समेटे हुए रखती है। वह एक भयावह तूफान को एक अदृश्य बांध द्वारा संयमित किए रखती है ।तूफान के आने से पहले और तूफान के जाने के बाद वाली खामोशी से हर कोई चिर परिचित है । मेरे ख्याल से शांति और खामोशी में बहुत अंतर होता है। शांति एक सकारात्मक सोच, आत्मज्ञान ,आत्म संतुष्टि का प्रतीत है। वही खामोशी एक रहस्यमई असंतोष पूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण प्रतीत होती है। इसका अंजाम सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही हो सकता है ।उदाहरण स्वरूप किसी निरंकुश अत्याचारी राजा के राज्य में शासन शांतिपूर्ण एवं सारी जनता खामोशी के साथ उसके अत्याचार को सहन करती रहती है ।जब उसकी सहनशक्ति चरमसीमा को लांघती है तो यह खामोशी चित्कार कर उठती है। इस तूफान का सैलाब इतना भयावह होता है कि वह पूरे राजतंत्र को बहाकर ले जाता है ।दिखने में खामोश मगर खामोशियां वास्तव में जीवंत चिंतन ,विचारोत्तेजक विस्फोटक को अपने में समेटे हुए रखती है।
- रंजना वर्मा 'उन्मुक्त '
रांची - झारखण्ड
कभी कभी हम बोले हैं कि न बोलने में नो गुण यानीकि बात को बढा़एंगे तो बात बढ़ सकती है! जरुरी नहीं किसी भी बात का जवाब तुरंत दिया जाए खासकर जब हम गुस्से में होते हैं!
वो कहते हैं ना कि खामोशी सबसे अच्छी दोस्त होती है जो कभी धोखा नहीं देती! रिश्तों को बखुबी निभाती है किंतु इसका दूसरा पहलू भी है लंबी खामोशी किसी खतरे की घंटी भी हो सकती है! खामोशी प्रलय को आमंत्रण देणे का संकेत है! यह कुटनीति में आता है!
राजनीति में यही दावंपेंच खेले जाते हैं! इसके भयानक परिणाम भी हो सकते हैं!
महिलाओं ने भी अपने अधिकार न मिलने पर खामोश थी !खामोशी से अत्याचार सहन करती था किंतु उसी चुप्पी में ही उसने अपने आप को सशक्त बना लिया है!
अन्याय सहन कर खामोश रहना महाभारत को जन्म देती है!
अतः शत्रुपक्ष यदि खामोश है तो हमे सावधान हो जाना चाहिए!
फिर भी मेरा मत है याद खामोशी अन्याय सहन करना है तो उसे तोड़ देना चाहिए और यदि क्षणिक आवेश में बात बिगड़ती है तो जिह्या को खामोश होकर विराम देना बुद्धिमानी है!
-चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
खामोशियाँ वास्तव में खामोश होती हैं l खामोश रहकर न जाने कितने रहस्य और दर्द अपने साथ छिपा लेती है ताकि किसी को उससे कष्ट नहीं हो l ऐसी खामोशियाँ अपने दर्द को जग जाहिर नहीं करती l उनका दिल रोता है और होंठ मुस्कराते हैं l दिल में न जाने कितने ग़म छिपाये संसार से चली जाती हैं l उनके जाने के बाद हम उनकी ख़ामोशी का अंदाजा लगाते हैं l ऐसे व्यक्ति अंतर्मुखी हो जाते हैं l उनकी आँखों में खालीपन आ जाता है l वह दीन दुनियाँ से बेखबर से हो जाते हैं l
अंतर्मुखी व्यक्तित्व का एक अपना साथी, मित्र होना चाहिए ताकि वह अपने मन की बात किसी को कह सके l अपने दुःख को बाँट दिल हल्का कर सके l
-----चलते चलते
आनंद फ़िल्म के कुछ डायलॉग इसी प्रकार हैं -ये रंगमंच पर हम सब कठपुतली हैं, कौन कब जायेगा डोर उसके हाथ है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
नहीं, खामोशियां वास्तव में खामोश नहीं होती है जिस तरह से विशालकाय सागर देखने में शांत दिखाई देता है किंतु उसके अंदर जाने कितनी हलचल मची रहती है। ठीक उसी तरह खामोश दिखने वाली हर चीज शांत नहीं होती। शांत जल में एक छोटा सा कंकर फेंक कर देखें कितनी हलचल मच जाती है। ठीक उसी तरह इंसानी मस्तिष्क भी होता है जो कि लगातार कल्पनाशील बना रहता है। बिना बोले भी वह अपनी गतिविधियां चालू रख सकता है। एक कहावत है कि खामोशी तूफान से आने का पहले का संदेश है पता नहीं कब आ सकता है? बोलने वाले व्यक्ति का तो बोलने से पता लग जाता है किंतु खामोश रहने वाले का अंदाज नहीं लगा सकते वह तो खामोशी टूटने पर ही पता चलता है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
खामोशी एक बहुत सुंदर शब्द है ।यह सबके मन में अलग - अलग तरह से प्रति ध्वनित होता है ।सबके मन के स्तर भी विभिन्न हैं । यह व्यक्ति के भीतर किस स्तर पर किन परिस्थितियों में घटती है ?यह वही व्यक्ति जानता है । जिसे खामोशी का संस्पर्श मिला हो वही जान सकता है । खामोशियाँ हमेशा खामोश नहीं होतीं।
जब कोई व्यक्ति परिस्थिति वश खामोश रहता है उसे भी हम खामोशी ही कहते हैं।क्योंकि प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण वह कोई उत्तर नही दे पाता ।पर मन तो चुप नहीं होता ।भीतर का शोर उसे ही सुनाई देता है ।
लेकिन जब कोई व्यक्ति उगते हुए सूरज को देखता है ,बादलों से भरे आकाश को देखता है ,चटकती कलियों को देखता है ,खिले हुए सुन्दर फूल को देखता है तो अनायास ठिठक जाता है ।खामोश हो जाता है ।भीतर शून्यता छाने लगती है ।आनंद बरसने लगता है ।
और अगर कोई अपने बिछड़े मित्र से वर्षों बाद मिलता है ;जिसे वह बहुत प्यार करता है और जिसे देखकर आँखों से आंसू बहने लगे ।तो कुछ भी कहने में अपने को असमर्थ पाता है ।उसे गले लगाकर ही अपने भावों को संप्रेषित करता है ।शब्द मिलते नहीं।भाषा गूंगी हो जाती है । यह खामोशी जो बोलती है लेकिन शोर नहीं करती।
इसलिए खामोशियाँ कभी बोलती हैं तो कभी खामोश रहती हैं ।
चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
जी नही। खामोशियां कभी भी खामोश होती ही नहीं है, क्योंकि व्यक्ति खामोश होता है उसका मन तो चंचल और चलायमान होता है।
यदि व्यक्ति खामोश हो कर विचार मंथन कर रहा है तो इसका मतलब यह हुआ की मन कही और अन्यत्र विशेष परिकल्पना में उड़ा हुआ भ्रमण कर रहा है जो कल्पना से परे होता है कहा गया है कि-
"जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।"
और यही खामोशी में डूबा हुआ चंचल मन खामोश होठों से मधुर गीत मंगल गीत प्यार के तराने गुनगुनाता रहता है। वह मन ही मन कहता है कि- मैं तेरी हूं प्रभु ,तू मेरा है मेरे दिल से यही आवाज आ रही है।--जो हृदय को स्पर्श करती हुई अंतर्मन को खुरेदती हुई खामोशी को व्यक्त करती है, लेकिन खामोश होती नहीं है!
निष्कर्ष यह निकलता है कि- यदि व्यक्ति खामोश है, अपने विचारो को किसी से व्यक्त नहीं कहता है तो यह समझा जा सकता है की उसका दिल ,दिमाग, हृदय और मन सभी चलायमान चिंतन मनन में तल्लीन है, खामोश होते हुए भी वह खामोश नहीं है।
- अन्नपूर्णा मालवीया सुभाषिनी
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " खामोशी का अपना ही अर्थ होता है ।जिस को समझना बहुत ही मुश्किल होता है । बाकी तो समय बताते हैं । जीवन में खामोश रहना भी बहुत महत्वपूर्ण है ।जो जीवन को जीने का एक रास्ता कहतें हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान
नहीं ,खामोशियां खामोश नहीं रहतींं। हर खामोशी का अपना एक कारण होता है। वह परिस्थिति वश भी हो सकता है, दबाव वश में हो सकता है या कुछ चिंतन करने हेतु भी हो सकता है। मुख के द्वारा संवाद नहीं होता किंतु मानव मस्तिष्क तो जागृत रहता है एवं क्रियाशील रहता है। जब अभिव्यक्ति की जरूरत होती है तो खामोशी टूट जाती है। उसका टूटना एवं अभिव्यक्ति का अंदाज उस समय की तात्कालिक परिस्थिति पर निर्भर करता है। खामोशी खामोश रहकर भी अपनी उपस्थिति का आभास करा देती है। उसे शब्दों की जरूरत नहीं रहती। कहते हैं इंसान खामोश है किंतु मुख से ना बोलने पर भी अंदर तो अंतर्द्वंद चलता रहता है। वह किसी भी तरह का हो सकता है सकारात्मक ,नकारात्मक , क्रियाशील ,कलात्मक, चिंतनमय।
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