क्या शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल होनी चाहिए ?

शराब ऐसी वस्तु बन गई है । जो सरकार व जनता की पहली पंसद में शामिल है । सरकार की बहुत बडी आय का साधन है । वहीं शराब पीने वालों की सख्या दिनों दिन बढती जा रही है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय रखा गया है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
शराब को आवश्यक वस्तुओं में  गिनना न केवल हास्यास्पद है,बल्कि असंगत भी है. हालाँकि सदियों  से ही "सुरा,सुंदरी और संगीत" का तारतम्य चला आ रहा है,समुद्र-मंथन में भी सुरा का उद्भव हुआ यह सत्य है,लेकिन जरूरी तो नहीं,कि इस त्याज्य द्रव्य को आवश्यक या मूलभूत वस्तुओं में  सम्मिलित किया जाए.पानी,भोजन,नमक की तरह इसका महत्वांकन तो अनुचित ही होगा.  हाँ,यह बात जरूर है,कि ठंड से बचाव,बीमारी में  सुरक्षा हेतु संतुलित और तय मात्रा में  इसके मिश्रण का उपभोग किया जा सकता है. मद्यपान का विकृत रूप सर्वथा त्याज्य है.घरेलू हिंसाऔर व्यभिचार तक पियक्कड़ की पकड़ गलत है.                                 
 - डा.अंजु लता सिंह
 दिल्ली
कभी भी नही । ये सच है कि सरकार को सबसे ज़्यादा टैक्स यहीं से मिलता है । शराब की फ़ैक्टरियाँ बड़े बड़े औदधयोगिक घरानों की है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनेताओं के सरंक्षण मे रहते है और चुनाव के समय दिल खोलकर लोगों को पिलाते है ताकि वोट ख़रीदें जा सकें । शराब पिलाकर ही दंगे करवाए जाते है । जितने लोग अपराध करते है , जितने लड़ाई झगड़े होते है , सड़क हादसे होते है सब के लिए शराब पीए हुए लोग ही ज़िम्मेदार होते है । शराब पीकर घर मे झगड़ा मार पिटाई आम बात है । जिस घर में शराब पीने वाला व्यक्ति रहता है वह तो जीते जी ही नर्क में रह रहा होता है । इसको तो ख़त्म करने के प्रयास किए जाने चाहिए ना कि आवश्यक वस्तु मे शामिल किया जाना चाहिए ।
    -  नीलम नारंग
 हिसार - हरियाणा
 इस बात के लिए 'हां' तो सिर्फ वही करेंगे जिनको इसकी आवश्यकता है। शेष सभी जानते हैं कि शराब एक व्यक्ति के लिए लाभदायक है या हानिकारक है। यह एक ऐसा नशीला जहरीला तत्व है जो व्यक्ति को तन मन धन तीनों चीजों को समाप्त कर देता है  और साथ- साथ रिश्ते नाते, भाई- बंधु सबकी नजरों में गिरा देती है। इसी के कारण  औरतों पर अत्याचार होते हैं  आत्म हत्याएं होती हैं। 
बच्चों के पिता शराब पर ही अपनी सारी कमाई लुटा देते हैं  और उनके बच्चे पढ़ नहीं पाते, खेल नहीं पाते।  घुट-घुट कर जीते हैं और एक शराबी के बच्चे कहलाते हैं। 
मारपीट, दंगे- फसाद इसी शराब के कारण होते हैं। जिनका बच्चा शराब पीने लग जाता है  मात-पिता यही सोचते हैं  इससे अच्छा तो हम इस बच्चे को जन्म न देते। शराब एक ऐसा नशा है जिस नशे में कई बार अपने- पराये की पहचान भूल जाती है। अश्लील हरकतें भयानक अपराधों को जन्म देती हैं। इसका सेवन करने वाला व्यक्ति स्वयं को ही क्षमा नहीं कर पाता। एक बार जिसे इस नशे की लत पड़ जाती है फिर इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है तो किसी भी कारण से यह आवश्यक वस्तु नहीं है। ऐसे पदार्थ पर तो बैन लग जाना चाहिए।
-  संतोष गर्ग
 मोहाली - चंडीगढ़
जहाँ तक आज की चर्चा में यह प्रश्न है कि क्या शराब को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए तो इस पर मेरा यह विचार है कि यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है और ऐसा भी नहीं है कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ संकल्प लिया जाए तो इसे छोड़ा ही नहीं जा सकता इसे छोड़ा जा सकता है बस संकल्प की आवश्यकता है और इसे छोड़ने से व्यक्ति को न केवल अपने आप को बल्कि पारिवारिक रूप से और सामाजिक रूप से भी लाभ ही है कोई नुकसान नहीं है तो मैं कहना चाहूंगा कि इसे आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में शामिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है शराब पीने स्वास्थ्य पर जहां एक और बुरा प्रभाव पड़ता है वही पीने के बाद अक्सर आदमी अपने होशो हवास खो बैठता है और उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता अधिकतर दुर्घटनाएं शराब पीने के बाद ही गाड़ी चलाने के कारण होती लेकिन इस बात पर ध्यान न देते हुए शराब के शौकीन व्यक्ति निरंतर इसका सेवन कर रहे हैं बच्चो पर भी बुरा प्रभाव पडता है और वह गलत आदतो का शिकार हो जाते हैआचरण की मर्यादा खे बैठते है कभी-कभी इसके कारण परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है और लोगों की मौत तक हो जाती कुछ लोग  संकटों में घिर जाने के कारण आत्महत्या तक करते देखे गए है इससे जितना बचा जाए वह बेहतर है और यह कोई बहुत आवश्यक चीज नहीं है जिसे आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रखा जाए
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
नहीं,कतई नहीं।शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं की जानी चाहिए। नाम कुछ भी दो इसको, लेकिन यह आवश्यक वस्तु नहीं हो सकती। 
शराब को मदिरा भी कहा जाता है। यह समुद्र मंथन में निकले, चौदह रत्नों में से एक रत्न है। कथा है कि वारुणि नाम की मदिरा कदंब के फूलों से बनी थी। इस रत्न को राक्षसों ने ले लिया था। अब समझ लीजिए कि इसको राक्षसों ने पसंद किया और देवताओं ने नहीं। यदि यह आवश्यक वस्तु होती तो दोनों ही स्वीकारते। 
शराब,एक ऐसा उत्पाद है जिससे सरकार को भारी राजस्व की प्राप्ति होती है। सरकार के 
लिए इसकी  बिक्री कराना आवश्यकता हो सकती है। इसके दुष्प्रभाव से सब परिचित हैं।निर्माता,विक्रेता,क्रेता और उपभोक्ता भी सब जानते है कि यह नुकसानदायक है, लेकिन फिर भी सब अपने काम में लगे हुए हैं। इसे न तो कभी सामाजिक दृष्टिकोण से अच्छा माना गया,न धार्मिक दृष्टिकोण से।शरीर के लिए तो हानिकारक रही ही है,यह अलग बात है कि कुछ औषधियों में इसका प्रयोग होता है।लेकिन फिर भी शराब आवश्यक वस्तु नहीं हो सकती।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
       शराब को मदिरा भी कहते हैं। जो अहंकार एवं नशे से भरे हुए हैं। मनचले शराबी इसे सोमरस भी कहते हैं। क्योंकि सोमरस देवताओं का प्रिय पेय तरल पदार्थ है।
       यह युगों-युगों से घर-परिवार एवं राजदरबारों की बर्बादी का प्रतीक माना जाता है। क्योंकि शराब शराबी को बहका देता है और बहकने उपरांत वह जुआ खेलने व कोठे पर जाने से नहीं चूकता। जिसके कारण सब कुछ तबाह हो जाता है। इसलिए इसके सेवन को राक्षस वृत्तियों में से एक वृत्ति माना गया है।
       किन्तु देखा यह गया है कि कोरोना धन संकटकाल में सरकारों के लिए राष्ट्रीय कोष भरने हेतु यह रामबाण सिद्ध हुआ है। इसलिए धन संकट से उबरने के लिए सर्वप्रथम शराब की दुकानों को खोला गया। शराब का सेवन करने वालों ने भी सरकार से का समर्थन करते हुए कहा था कि अन्य खाद्य पदार्थों की भांति शराब भी उपलब्ध कराई जाए। उन्होंनेे स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यदि उन्हें शराब न मिली तो वह कोरोना की बीमारी से पहले ही शराब ना मिलने के कारण मर जाएंगे। 
       उल्लेखनीय यह भी है कि लाॅकडाउन में अत्याथिक युवा वर्ग मानसिक तनाव से गुजरते हुए आत्महत्या करने पर उतारू हो गया था। जिसका एक कारण शराब न मिलना भी था। इसलिए इसकी कालाबाजारी भी जोरों पर है।
       अतः यदि शराब को आवश्यक वस्तुओं में शामिल कर लिया जाए तो कोई हानि नहीं है बल्कि कालाबाजारी पर अंकुश लग जाएगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
     प्राचीन काल से चली आ रही शराब, शराब के कारण विचारधारा को रोचक बनाने प्रयत्नशील हैं। जिसके कारण जनजीवन के साथ ही साथ जीवन यापन में आव भगत, मेहमान 
नवाजी में, विशेष पर्वों, गाँव की चौपाल से लेकर आलीशान बारों में, रोड़ों और महफ़िलों में समय की महत्ता का अलग-अलग आनंद ही आनंद हैं। जिसे देखा नहीं जाता मान सम्मान? जिसके कारण एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण आय का साधन हैं। केरल राज्य ने तो शराब को आवश्यक श्रेणी में विभक्त कर दिया हैं,  जिसे देखते हुए अन्य राज्य भी योजनाओं को जामा पहनाने कटिबद्ध हैं।  कोरोना महामारी के दौरान, लाँकडाऊन में शिथिलता बरतने कैसे शराब के शौकीन टुट पड़े, जिन्होंने एक एकता और अखंडता का इतिहास भी रच दिया। यह तो सच हैं नशीली दवाओं का सेवन करने से शरीर को दूसरे दिन फुर्तिला तो जरूर बनाता हैं, लेकिन भविष्य में दुष्परिणाम गंभीर होते हैं, जिसे ऊपर वाला और साथ ही कलयुगी ड़ाँक्टर भी कुछ नहीं कर सकता? शराब के कारण वर्तमान समय में कुछों ने दूरीया बनाकर रखी, लेकिन शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल किया जाता हैं, तो परिवार जनों को अनेकों बृजपात सहन करने पड़ सकते हैं? जब आज आवश्यक वस्तुओं में नहीं हैं, अगर गरीब के परिवार  की ओर ध्यानाकर्षण किया जायें, सही आंकलन समझने आ जाता हैं, वस्तुस्थिति क्या निरूपित हो रही हैं, आज वर्तमान परिदृश्य में गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
'शराब' आनन्द और मजे के लिए ली जाने वाली वस्तु है। साधारण जीवन शैली में शराब के लिए कोई जगह नहीं है और न ही समय। वे तो रोज की आवश्यकता की पूर्ति की जद्दोजहद में लगे रह जाते हैं । कोरोना काल ने तो सभी के संघर्ष को और भी मुश्किलों के दौर में बदल दिया है। 
 हाँ, जो इसके आदी थे उन्होंने इसके लिए हर कीमत चुकाई। भले ही उसकी मात्रा कम थी। इसलिए यह आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल नहीं हो सकता है।
  दूसरी नजर से देखें तो यह समाज का स्तर गिराने का ही काम करती है। इसके शिकार व्यक्ति किसी भी गलत काम के लिए तैयार हो जाते हैं । मानसिकता की गिरावट भी उसी का परिणाम है। इसीलिए इसे आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
 लॉकडाउन के दौरान  ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो गई थी  कि लोग इस विषय पर सोचने के लिए मजबूर हो गए |  कोरोना संकट के समय  देश के विभिन्न नेताओं ने भी शराब को लेकर   तरह-तरह के बयान दिए| पहले कभी ऐसा नहीं सोचा गया था  कि समाज में शराब को लेकर   वाद विवाद  भी हो सकते हैं|   उस दौरान कई नेता शराब को लेकर  इस प्रकार के बयान दे रहे थे कि शराब को आवश्यक वस्तुओं में शामिल किया जाना चाहिए | लेकिन केंद्र सरकार ने इस पक्ष में निर्णय नहीं दिया और कहा  कि  शराब आवश्यक वस्तुओं के अंतर्गत नहीं आती | हैरानी की बात तो यह थी  कि इस  देश के सभी राज्य शराब की दुकानों को खोलने के पक्ष में थे|  वे पक्ष में इसलिए भी  थे क्योंकि अवैध शराब का कारोबार लॉकडाउन के कारण बढ़ गया था  ।इसलिए  इसे आवश्यक वस्तुओं में शामिल कर लिया गया और दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी| 
 लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है  कि शराब   को  आवश्यक वस्तुओं में शामिल किया जाए|  रोजमर्रा की जिंदगी में तो  किसी को इस बात का एहसास  ही  नहीं हुआ था  कि शराब आवश्यक वस्तु है अथवा नहीं|  लेकिन। लॉकडाउन के बाद  यह प्रश्न उभर कर सामने आया|  तो भी इसका यह अर्थ कदापि नहीं है  कि यह मनुष्य के लिए आवश्यक है| उतनी ही आवश्यक  जितनी और वस्तुएं जिन  पर हमारा जीवन निर्भर करता है |  कारण साफ है   और   हम इस सच्चाई से  मुंह नहीं मोड़  सकते  कि  शराब मनुष्य को  उसे  उसके जीवन में  आगे बढ़ने के लिए कोई सहायता  करती है  | हां व्यक्तिगत स्तर पर  कोई व्यक्ति  थोड़ी देर के लिए   अपना अतीत,  अपना भविष्य , अपनी चिंताएं व्   अपनी जिम्मेदारियां  सब भूल सकता है  और उसे वह  अपनी जरूरत  कहता है|   लेकिन यहां यह समझना आवश्यक है कि थोड़ी देर के लिए कुछ भी भूल जाने को भूल जाना नहीं कहते|
 और न ही यह समाधान है  हमारी समस्याओं का |  शराब पीकर व्यक्ति  अपने स्तर से नीचे ही गिरता है |इससे उसकी सोच  कुंठित होती है| आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त नहीं होता| धीरे-धीरे उसे  शराब की आदत हो जाती है  जिससे  वह फिर कभी नहीं उबर सकता | हां  कभी कभार इसे   औषधि के रूप में लिया जा सकता है | फिर भी हम इसे  आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं कर सकते |
 - चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल नही होनी चाहिए।ईस मादक पदार्थ से बेहद हानि होती है।समाज की समस्या और अग्रसर होते हैं।जिनको इसकी लत होती है उनका घर परिवार सब बिखर जाते है।मनुष्य शराब का आदि होने के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है।और कलहंस का वातावरण को जन्म देता है।जीवनशैली की शांतिपूर्ण सुखद अनुभव सब विरान हो जाता है।आवश्यक वस्तुओं मे रोटी, कपड़ा, मकान मूलभूत आवश्यकताओं मे शामिल होतें है।शराब का आवश्यक होना जरूरी नही ।यह जहर ही है जो मानव हृदय को रोग ग्रसित करती है।हाँ समाजिकता के समारोह मे अगर इसका सेवन प्रचलनों कि व्यवाधान है।और कम मात्रा मे इसे सिर्फ खुशी को प्रकटीकरण के लिए किया जाये तो इससे उतना हानिकारक प्रभाव नही पडते है।पंरपरा और सभ्यता का उल्लंघन ना किया जाये।पंरतु शराबी ये भुल जाता है कि इसके दुष्परिणाम क्या होते हैं।शराब पीने का आशय भिन्नता को प्रकटीकरण करता है।गम्भीर और उदास पलों मे बेशुमार बेशक इसका साथ मनभावन हो पंरतु समकालीन सुविधाओं से दूर अलग तनहाइयों का वातावरण को उत्पन्न करता है।शराब के रूप मे यह जहर रगों में फैलता है।और घातक सिद्ध होता है।शराबबंदी लागू होने से कूछ लोगों की जान भी गई ।क्योंकि वो खूद को शराब मे घोल चूके है।उन्हें लत आदत हो गई है शराब सेवन की।मंदिरा का महत्व विशेष राजे राजाओं के समयानुसार हुआ करता था।मयखाने में तातें लगे होते थे जहां ग़जलों और शायरों के फुलों का बाग खिलता था।तौर ही रूहानी तरीकों से गुजराती थी।पंरतु अब तो लोगों को नशीली दवाओं का सेवन के साथ शराब पीने का शौक उसके अंतमुर्खी आत्मा और शरीर को खोखला कर चुका है।शराब आवश्यक वस्तुओं का हिस्सा नही होनी चाहिए क्योंकि आजकल लोग पीकर अपने ही अभिमान,अपने मानसिकता को घायलावस्था मे लाते है।
जाम हाथों मे लेकर डुबी रही तेरी यादों में
होश में ना आऊं,ताउम्र बित जायें तेरी यादों में।।
शराब इंसान को कुछ पल के लिये राहत जरूर दे सकती पर जीवन भर साथ नही दे सकती।जीवनशैली की गतिविधियों को मंजिल नही दिला सकती।शराब का जहर बेहद खतरनाक साबित होती है।ये दीमकों की तरह मन मस्तिष्क को खोखला करने मे कोई कसर नही छोड़ती है।शराब का आवश्यक वस्तुओं मे शामिल होनी कतई जरूरी नही है।
- अंकिता सिंन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
      जी नहीं, शराब कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होनी चाहिये। हम सभी जानते हैं कि शराब बहुत बुरी चीज है। और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।शराब सबको अच्छा भी नहीं लगता है। इसलिए इसे आवश्यक वस्तुओं में शामिल करने का कोई पश्न ही नहीं उठता।आवश्यक वस्तुओं में वही चीजें शामिल होती है जिसकी जरूरत सबको पड़ती है।जहाँ शराब बहुत से लोग छूना भी पसंद नहीं करते वहाँ आवश्यक वस्तुओं में शामिल करने के लिए सोचा भी नहीं जा सकता है।
           शराब एक धीमा जहर के समान है, जो पीने वाले को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। शराब से परिवार के परिवार  को बर्बाद होते देखा गया है। आये दिन तो प्रायः ही  सुनने को मिलता है की अमुक जगह जहरीली शराब पीने से इतने लोगों की मृत्यु हुई। पीने वाले व्यक्ति तो पीकर मर जाते हैं पर उसका परिणाम उनके परिवार वालों को भुगतना पड़ता है।बीवी विधवा और बच्चे अनाथ हो जाते हैं। तो जो चीज इतनी बुरी है उसे आवश्यक वस्तुओं में कैसे शामिल किया जा सकता है।
         शराबी आदमी शराब के नशे ने अपनी बहन बेटी को भी नहीं बकसत्ता उसके साथ भी नशे की हालत में गलत कार्य करता है और होश आने पर एटीएम हत्या करता है।ऐसी चीज को आवश्यक वस्तुओं में शामिल करने के लिए सोचना भी पाप है। 
               देश में बिहार राज्य में पूर्ण शराब बंदी है।ये बात सत्य है कि इससे राजस्व में आमदनी बढ़ती है।लेकिन आमदनी बढ़ाने के लिए लोगोंको मारा नहीं जा सकता। शराब पीने वालों का घर द्वार सारी संपत्ति बिक्री हो जाती वह दर दर की ठोकरे खाता है। अगर शराब को आवश्यक वस्तुओं में शामिल कर दिया जाय तो देश में व्यभिचार, बलात्कार चोरी डकैती लूट मार की घटनाएं और बढ़ जाएंगी। इसलिए शराब को कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं किया जा सकता है।
            तो मत पीजिए शराब
              ये होता बहुत खराब
चेहरा हो जाता है मराब
जो पहले रहता है गुलाब
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
कभी भी शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होनी चाहिए। जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं रोटी, कपड़ा और मकान।इन आवश्यकताओं की पूर्ति धन द्वारा ही हो सकती है और धन कमाने के लिए ज्ञान के साथ तन मन का स्वस्थ होना भी जरूरी है। शराब तो तन मन का सत्यानाश कर देती है।धन की भी बर्बादी है।क्षणिक मजे के लिए घर परिवार तहस नहस हो जाते हैं।आए दिन घर में झगड़े फसाद होते रहते हैं। घर की बरकत खत्म हो जाती है। पीने वाले को भी गंभीर रोग हो जाते हैं।एक बार लत लग जाने पर फिर यह छूटती नहीं है।वह व्यक्ति किसी भी तरह पीना चाहता है पीने के लिए पैसों के जुगाड़ में वह अपराधी भी बन जाता है।चोरी डकैती भी करने में नहीं हिचकता।सस्ती शराब पीने वाले कई बार जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में चले जाते हैं।पति शराबी हो तो उसका खामियाजा पत्नी और बच्चों को भुगतना पड़ता है।कहा भी गया है कि पहले आदमी शराब पीता है फिर शराब आदमी को पीती है।
आजकल बेटियों के साथ जो दुर्व्यवहार और शर्मनाक घटनाएं हो रही हैं उसके पीछे शराब एक बहुत बड़ी वजह है।शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले एक्सीडेंट भी कर जाते हैं। सरकार को शराब से भले फायदा हो लेकिन शरीर के लिए और घर परिवार की सुख-शांति के लिए यह बहुत ही घातक है।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
कदापि नहीं शराब आवश्यक नहीं है जीवन के लिए ,  शराब पर तो प्रतिबंध लगना चाहिए आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं हो सकती क्यो की वह आवश्यक नहीं है !
अल्कोहल एक मनोसक्रिय ड्रग है, जिसमें अवसादकीय का प्रभाव होता है। एक उच्च रक्त अल्कोहल सामग्री को सामान्यतः क़ानूनी मादकता माना जाता है, क्योंकि यह ध्यान लगाने की क्षमता कम कर देता है और प्रतिक्रिया देने की गति को धीमा कर देता है। अल्कोहल के नशे की लत लग सकती है और अल्कोहल के नशे की लत लगने की अवस्था को मादकता कहते है।
हमारे देश में बीस करोड़ लोग रात को भूखे सोते हैं उनकी चिंता क्यों नहीं। जहां बच्चे नशों में और अनैतिकता,  अश्लीलता में भटक रहे हैं उनकी ओर ध्यान देना चाहिए ! शराब हर तरह से घातक है , 
शराब को दूध, सब्ज़ी, दवा जितना ज़रूरीनहीं है फिर भी शराब बिकती है , पिय्यकड तो उसका समर्थन करेंगे ही पर सोचना यह है की , शराब से पेट नहीं भरा जा सकता , शराब से बच्चों को पाला पोसा नहीं जा सकता दूध चाहिए उन्हें ! रोटी चाहिए ,,
शराब पेट नहीं भर सकती , पेट भरने के लिए खाना चाहिए ,
खाना आवश्यक है , आवश्कता शराब की नही हो सकती , कभी नहीं , सरकार राजस्व के जलते शराब को जरुरी बता सकती है शराब ज़हर है , जो घरों को तबाह कर सकती है ! 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
मानव जीवन की मूलभूत आवश्यक आवश्यकता रोटी कपड़ा और मकान है अतः इन आवश्यकताओं से जुड़ी प्रयोग में आने वाली वस्तुएं सबके लिए आवश्यक है जो सभी के लिए जीवन दायक सच्चे सुख की अनुभूति के उपादान हैं।
     इसके अतिरिक्त शराब, सुरा, मादक द्रव्य मात्र विलासिता के जीवन जीने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण वस्तु हो सकती है पर यह भी नहीं है कि बिना रोटी के मात्र शराब के सेवन से ही व्यक्ति सुचारू जीवन जी पाएगा। विभिन्न दुष्चक्रों की जननी अंगूर की बेटी शराब सर्वथा त्याज्य है।
     भले ही सरकार के लिए राजस्व का स्रोत हो यदि इसको आवश्यक बना दिया गया तो हम एक सभ्य, जागरूक, संपन्न, समुन्नत समाज एवं राष्ट्र की परिकल्पना भी नहीं कर सकते ।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन  की  मूलभूत  आवश्यकताएं  हैं-रोटी, कपड़ा  और  मकान  ।  शराब  कहीं  भी  किसी  भी  रुप  में  मूलभूल  आवश्यकता  की  श्रेणी  मे  नहीं  आती । इसका  उपयोग  ही  वर्तमान  में  अवांछनीय  घटनाओं  का  मुख्य  कारण  है  ।  ये  एक  ऐसी  लत  है  जो  व्यक्ति  के  तन-मन-धन,  मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य  सभी  को  बर्बाद  कर  देती  है  । 
         शराबी  लोगों  को  समाज  में  हेय  दृष्टि  से  देखा  जाता  है  ।  उनके  बच्चे  कुंठाग्रस्त  होकर  कई  बार  अपनी  इहलीला  समाप्त  कर  देते  हैं  ।  इनके  घर  की  महिलाएं  नारकीय  जीवन  जीने  के  लिए  मजबूर  हो  जाती  हैं । 
       लड़कियों  के  साथ  व्यभिचार  भी  ऐसे  ही  लोग  करते  हैं, यहां  तक  कि  रिश्ते  भी  तार-तार  करने  ये  लोग  नहीं  चूकते । 
        मार-पीट, हत्याएं, चोरी-डकेती,  ऐयाशी  आदि  के   लिए  बहुत  हद  तक  यह  शराब  ही  जिम्मेदार  है  । यदि  इस  पर  पूर्ण  प्रतिबंध  लग  जाए  तो  अनेक  समस्याओं  का  समाधान  हो  सकता  है  । 
         -- बसन्ती  पंवार 
          जोधपुर  - राजस्थान 
 शराब को आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होनी चाहिए ।
 कोरोनावायरस  के मद्देनजर लॉकडाउन जो किया गया  उस समय सरकार भी इसे आवश्यक वस्तु में शामिल नहीं की । लेकिन कुछ राज्य पंजाब  केरल  महाराष्ट्र का तर्क है जैसे पेट्रोल डीजल को आवश्यक बस्तु में न शामिल करके शशर्त खोलने की इजाजत दी गई है उसी प्रकार
शराब की दुकान खोलने की इजाजत दी गई जिससे राजस्व पर कोई असर न पड़े।
मादक पेय आमतौर पर अल्कोहल को कहा जाता है युक्त एक पेय है। इस पेय को सामान्यता तीन वर्गों में विभाजित किया गया है ।बियर ,वाइन और स्प्रिट्स इसका का पेय विश्व के अधिकांश देशों में  बिक्री और खपत है। पर नियंत्रित करने के लिए कानून भी है। किसी भी देश में आवश्यक वस्तु में शामिल नहीं किया गया है।
लेखक का विचार :-अल्कोहल मनोसक्रिय ड्रग है। यह पेय को लेने से अवसादकीय का प्रभाव होता है। सामान्यता कानूनी मान्यता माना गया है क्योंकि ध्यान लगाने की क्षमता कम कर देती है अल्कोहल के नशे की लत लग सकती है ।
इसलिए आवश्यक वस्तु में शामिल नहीं होनी चाहिए।
- विजेंयद्रे मोहन
बोकारो - झारखण्ड
जी बिल्कुल नहीं, शराब आवश्यक वस्तुओं में कभी भी शामिल नहीं होनी चाहिए। शराब तो सिर्फ राज्य के राजस्व के आमदनी का एक बेहतरीन स्रोत है। शराब से सबसे अधिक टैक्स मिलता है इसलिए इसकी बिक्री पर ज्यादा रोक नहीं लगाई जाती है। फिर भी शराब से बहुत बार बहुत बुरे परिणाम आते हैैं। शराब तो कुछ- कुछ राज्य में प्रतिबंधित भी है जैसे गुजरात और हमारे बिहार राज्य में भी प्रतिबंधित है। शराब की बिक्री पूर्णतः बंद है। इसलिए शराब कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल हो हीं नहीं सकती। शराब तो एक बुरी लत है जो जब जिसको लग जाती है तब उस व्यक्ति से जल्दी छुटती नहीं है और व्यक्ति इस का इस कदर हावी हो जाता है कि वह कभी -कभी अपना सब कुछ इसके पीछे बर्बाद कर लेता है। शराब स्वास्थ्य और धन दोनों का नुक़सान हीं करता है। इसलिए शराब कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होनी चाहिए।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
शराब विलासिता का एक प्रकार है इसलिए आवश्यक वस्तुओं में इसे शामिल करना उचित नहीं होगा
यद्यपि की कभी-कभी शराब का या कुछ विभागों में जैसे सेना आर्मी इत्यादि में इसे आवश्यक बनाया गया है लेकिन आम जनता के लिए यह आवश्यक नहीं है कभी-कभी दवा के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है जो सीमित अंश में रहता है
शराब जहां तक मुझे जानकारी है इसकी लत या तो घर बर्बाद करती है या शरीर बर्बाद करती है समाज परिवार में होने वाले दुष्कर्म इसी शराब का परिणाम होता है
चुकी इससे सरकार को रेवेन्यू अधिक मिलता है इसलिए वह चाहती होगी या यह मंशा है कि इसे आवश्यक में शामिल किया जाए पर आम जनता के हित में यह उचित नहीं है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955, नागरिकों की अनिवार्य जरूरत के सामानों के अवैध भण्डारण (जमाखोरी) एवं कालाबाजारी को रोकने के लिए बनाया गया है।
शराब कोई आवश्यक जरूरत की वस्तुओं के अंतर्गत नहीं आती थी और न ही इसकी जमाखोरी से समाज पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ता इसलिए इसे इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था।
परन्तु नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव हेतु अल्कोहल बेस्ड सेनेटाइजर ने अल्कोहल को भी महत्वपूर्ण बना दिया है। इसलिए सैनेटाइजर की मांग के मुताबिक अल्कोहल की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके ऐसे कानून तो अवश्य बनाये जाने चाहिए परन्तु  शराब को आवश्यक वस्तुओं में शामिल करना एक भंयकर भूल होगी, भले ही इससे सरकारों को बेतहाशा राजस्व मिलता है परन्तु आवश्यक वस्तुओं को मिली छूट के प्राविधान यदि शराब पर भी लागू होने लगे तो सामाजिक रूप से यह अत्यन्त दुष्प्रभावी होगा।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
  आजकल की पीढ़ी में बभिन्न प्रकार के नशे धड़ल्ले से  चल रहे हैं, जिनमें  शराब
भी एक है, इसका  युवा बूढ़े यहां तक की  औरतें  भी  शौकनी से इस्तेमाल कर  रहे हैं जो एक वहुत बूरी लत है, जो इसके नशे में डूब जाता है फिर इससे बाहर नहीं निकल सकता, जिससे अपनी सेहत के साथ साथ  अपने घर की हालत भी बद से बदतर कर बैठता है और आखिरकार पछताबे के सिवाय कुछ नहीं रहता ओर अपनी अन्तिम सांस  इसी के नशे में गवा देता है। 
यह ऐसा नशा है जिस में अपनी इज्जत ईमान सब चला जाता है। 
सच कहा है, 
"शराब पीने से काफिर हुआ मैं क्युं, क्या  डेढ चुल्लु पानी में ईमान बह गया"। 
यह सब समझते हुए भी लोग इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं, हलांकि इसके नुक्सान ही नुक्सान हैं। 
यही नही घर में कोई भी शुभ कार्य या शादी हो इसको बड़े शौकीन से परोसा जाता है, जिस घर में इसे  नहीं परोसा जाता उनके फंक्शन को लौग वेकार की तर्जी देते है़, जबकि शराब  किसी आवश्यक ऋेणी में नही आता। 
इसका असर पीने वाले की औलाद पर भी बहुत पडंता है, 
सच कहा है, 
" आमाल मुझे अपने उस वक्त नजर आए जिस वक्त मेरा बेटा घर पी के शराब आया"। 
 इस गन्दी आदत ने कई घर बर्वाद  कर दिए जवकि  इस के विना भी जिया जा सकता है, लेकिन लोग इसके पीछे घर की कीमती बस्तुएं सस्ते में वेच डालते हैं  और खुद  कंगाल हो जाते हैं, 
साफ जाहिर है, 
"शराब के भी अनेक रंग हैं साकी, कोई पीता है आबाद होकर, तो कोई पीता है बर्बाद होकर"। 
गौर से देखा जाए  यह एक   वहुत वूरी आदत है जो समाज को दीमक की भांती चाटे जा रही  है, शराब को समाज से दूर भगाने के प्रयास करने  चाहिए  ताकि हमारा समाज हमारा देश तरक्की कर सके, अता शराब  कोई आवश्यक बस्तुओं में  नहीं आती  इसलिए इस पर तरुंत रोक लगानी  चाहिए जिससे केई घर आवाद होंगे यही नहीं औरतों की खुदकशी करने की तदाद कम होगी और आने वाली पीढ़ी भी नशामुक्त होगी, यह आवश्यक बस्तुओं में शामिल नहीं होनी चाहिए। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 शराब पीना एक प्रकार का व्यसन है ।यह एक नशीला पदार्थ है ।जिसके पीने से मानसिक अवस्था धीरे -धीरे कुछ देर के लिए शिथिल हो जाती है ।शराब पीने वाला हर मर्यादा को भूल जाता है ।ज्यादातर दुःखी लोग या असफल लोग इसके आदत के शिकार हो जाते हैं जिसकी वजहसे पूरा परिवार प्रभावित होता है ।कितनी ही सड़क दुर्घटनायें घटित होती हैं ।लम्बे समय तक पीने से शरीर के अंग हृद्य और लीवर खराब हो जाते हैं ।जिसमें इतना  दुर्गुण हों उसे हम अपनी दिनचर्या में कैसे शामिल कर सकते हैं ।हाँ हमारी यह सामाजिक जिम्मेंदारी है कि यदि कोई इस दुर्गुण का शिकार हो तो अपना प्रेम देकर उसे दूर करने का प्रयास करें ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
आवश्यक वस्तुओं से हमारा तात्पर्य है वे वस्तुएं जो जीवन के लिए आवश्यक हैं।  शराब सामान्यतः इस श्रेणी में नहीं आती।  हम इसके अपवादों की बात नहीं करते।  हम सामान्य जीवन शैली की चर्चा कर रहे हैं।  शराब सामान्य जीवन शैली के अनुसार आवश्यक वस्तु नहीं है अतः इसके आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल होने का कोई औचित्य ही नहीं है।  कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन में शराब का सेवन करने वालों के लिए मुश्किल समय पैदा हुआ क्योंकि शराब आवश्यक वस्तु न होकर एक नशा है और यह नशा नाश का कारण बनता है।  इस तथ्य से सभी परिचित हैं।  यह भी कटु सत्य है कि एक तरफ मद्यपान को जीवन की बर्बादी बताने वाली सरकारों को शराब की बिक्री से ही राजस्व का एक बड़ा भाग प्राप्त होता है।  शराब के बिना जीवन की गाड़ी रुक जाए यह सम्भव नहीं।  किन्तु रोटी, पानी के बिना जीवन की गाड़ी एक दिन रुक सकती है। अतः वे आवश्यक हैं। मद्यपान है धीमा जहर, आगे चल बरपाता कहर, नालियों में गिर कीचड़ में लोटता, अपने हाल पर खुद ही रोता, फिर भी पीता फिर भी पीता, पीकर खुद को शेर समझता, एक थप्पड़ में नशा उतरता, परिजन भी होते परेशान, माथा पीट होते हैरान, एक घूँट में ही दोस्ती करता, दोस्ती के चोले में दुश्मनी करता, न जाने कैसा सम्मोहन, सम्भलो सम्भलो प्यारे मोहन, हर घूँट कर रहा तुम्हारा दोहन, इससे भी तुम बना लो दूरी, अपनों की होगी इच्छा पूरी।  अतः शराब आवश्यक वस्तुओं में बिल्कुल भी शामिल नहीं होनी चाहिए। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
" शराब" एक ऐसी वस्तु है जिसके सेवन से मनुष्य अपना विवेक, बुद्धी खो देता है।
शराब से किसी का भला नहीं हो सकता।
शराब से आर्थिक, सामाजिक, शारिरिक, मानसिक हानि होती है।
तो जिस से वस्तु मात्र  हानि ही हानि हो उसे आवश्यक वस्तु में कैसे शामिल किया जा सकता है?
महात्मा गांधी ने कहा था कि भले मेरा देश गरीब हो शराबी नहीं होना चाहिए।
बहुत दु:ख का विषय है कि भारत जैसे विकासशील देश में अधिकांश लोग शराब के कारण अपनी प्रगती नहीं कर पाते।
चाहे व्यक्ति खुश हो या दु:की अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शराब का सहारा लेता है जो बहुत ग़लत है।
शराब पीने से कौन सा नशा होता है ?
क्या आनंद आता है? नशा करना ही है प्रेम का नशा करना चाहिए,
काम का नशा करना चाहिए।
राम नाम का नशा करना चाहिए जिसमें डूब कर जीवन के हर कष्ट का निवारण हो जाता है।
और किसने कहा कि नशा शराब में होती है,वो गाना है न,,," नशा शराब में होती तो नाचती बोतल"।
शराब से बस नुकसान है,पतन है, अवनति हैं अतः: मेरे दृष्टिकोण से शराब को कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होनी चाहिए।
     - सुधा कर्ण
       रांची - झारखंड
     शराब आवश्यक वस्तुओं मे कभी शामिल नहीं किया जाना चाहिए। शराब एक नशीला पेय पदार्थ है जिसको पीने से मनुष्य नशा मे आ जाता है और अपना संतुलन खो बैठता है। वह सही और गलत का आकलन नही कर पाता है। अधिकाशतः अपराधिक कार्य नशे से  धुत होकर ही किया जाता है। शराब इतना खराब चीज है कि जब इसकी लत लग जाती है तब मनुष्य को घुन की तरह वह खोखला कर देता है। इस नशा के लिए  ब्यक्ति अपना घर परिवार सब तबाह कर डालता है।
     सब के बावजूद भी हमारे देश मे बड़े बडे पूँजीपतियों के द्वारा शराब की भठियाँ खोली गई है वो भी सरकार के संरक्षण मे। सरकार शराब को कमाई का जरिया बनाती है क्योंकि यह टैक्स वसूल करने का सबसे सस्ता एवं सुगम रास्ता है। इसका अंदाज़ा लाकडाउन के दौरान देखा गया जब दिल्ली सरकार ने शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लिया। शराब खरीदने के लिए अफरा तफरी मच गई।  सोशल डिसटेनसींग  की धज्जियाँ उड़ गई। लोग पेटी भर भर कर शराब घर ले जाने लगे और सरकार को भी टैक्स के पैसे आने लगे।
     शराब पीना शरीर के लिए हानिकारक है। यह कई तरह की जानलेवा बीमारी पैदा करती है। टैक्स से जितनी कमाई सरकार को नही होती है उससे ज्यादा शराब से होनेवाली बीमारी के इलाज पर खर्च हो जाता है। दवा और हास्पिटल के खर्च के अतिरिक्त शराब के नशे के दुष्प्रभाव से  समाज मे एक विशेष प्रकार की  विकृति पैदा होती है । 
महात्मा गाँधी  ने कहा है-" शराब पीने से शरीर  और आत्मा दोनों नष्ट हो जाते है ।"
   -  रंजना सिंह
   पटना - बिहार
वैसे शराब को हम भोग विलासिता की श्रेणी में रखते हैं !साधारण जनमानस के लिए तो यह आक्रामक व्यसन  और जहर भी कह सकते हैं है! इसके व्यसन का भुगतान शराबी के साथ उसके परिवार एवं स्वजनों को भी भोगना पड़ता है!  आवश्यक वस्तु तो रोटी ,कपड़ा और मकान है जो    शराब की आदत पड़ जाने से व्यक्ति अपने परिवार को नहीं दे पाता! हिंसा, बलात्कार जैसे जाने कितने अपराध पनपते हैं! यहां तक नशे में तो वह रिश्तों तक को भूल अपराध कर बैठता है! बच्चों  का भविष्य अंधकार के गर्त में डूब जाता है! 
हां आर्मी में हमारे सैनिक बर्फानी ठण्ड से बचने के लिए लेते हैं तब यह दवा का काम करती है ! लंबे समय तक परिवार से दूरी, चिंता से मानसिक तनाव रहता है, सीमा पर तैनात होने से थकान, निंद का न आना इस समय शराब कुछ हद्द तक दवा का काम करती है एवं सैनिकों के सामान की आवश्यक वस्तु की लिस्ट में शराब भी आती है जो उन सैनिकों को बर्फीले चट्टानों में गर्मी देने के साथ नया जीवन देती है! किंतु अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती! 
- चंद्रिका व्यास 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जहाँ  शैतानस्वयं नहीं पहुँच सकता, वहाँ शराब को भेज देता है l शराब सभी व्यसनों की जड़ है l यह हमारे सारे संस्कार, विचार,  सद्भाव  और संवेदना शक्ति को नष्ट कर देती है l शराब पीकर व्यक्ति पशु समान आचरण
करता  है l 
ग्लैडस्टन महोदय लिखते हैं -"युद्ध, दुर्भिक्ष तथा महामारी --इन तीनों ने मिलकर मनुष्य जाति को इतनी हानि नहीं पहुंचाई जितनी की अकेली शराब ने पहुंचाई है l"
हाँ, ठंडे देशों में इसकी आवश्यकता महसूस होती है l 
हाँ, कभी कभी दवा के रूप में इसका सेवन लाभदायक है l 
        चलते चलते ---
मुश्किल से किये थे काबू भीतर के भेड़िये l 
दो घूंठ क्या भीतर गई, आज़ाद हो गये l
       -डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
मनुष्य की सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर जनता को सभी आवश्यक वस्तुएं उचित मूल्य पर उपलब्ध कराएं तथा कालाबाजारी चोर बाजारी पर नियंत्रण रखें ।
अभी हाल में कोरोना काल में देखने को मिला कि सबसे पहले सरकार ने शराब  बिक्री की परमिशन दी तथा काफी संख्या में महंगी -महंगी शराब खरीदने वालों की लाइन लग गई, उस टाइम जिसके पास खाने को भी नहीं था। वह भी  खरिदने के लिए लाइन में लगे हुए थे । 
कई तो शराब की पेटी  तक ही खरीद कर ले जा रहे थे ।उस समय पर बहुत ज्यादा कालाबाजारी हुई तथा उचित दर से कई गुना दामों में शराब खरीदते पाए गए। 
         अत :  देखने को मिला कि शराब ,सरकार और जनता की पसंद में शामिल है।
 क्योंकि पीने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है ।
              और यही कारण है कि शराब सरकार की  बहुत बड़ी आय का साधन है।
 आवश्यक  वस्तु अधिनियम 1955 के अनुसार
 उत्पादन, विक्रय आपूर्ति ,वितरण और व्यापार एवं वाणिज्य को नियंत्रित और विनियमित रखने के लिए शराब जनता को उचित मूल्य पर   एवं समान मात्रा वितरण हो ,शराब की जमाखोरी और कालाबाजारी बंद हो। इसलिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार शराब को आवश्यक वस्तु में शामिल करना आवश्यक समझा।
 आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में शामिल में कर के शराब के व्यापार ,वाणिज्य, वितरण आदि के नियंत्रण हेतु कानून बना सकती है ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955  में   कालाबाजारी, चोर बाजारी निवारण हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत 6 माह से 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। 
मेरी राय में तो शराब के उत्पादन पर ही रोक लग जानी चाहिए क्योंकि इस शराब के कारण ही कई परिवार बरबाद  होते देखे गए हैं ।शराब के कारण ही कितने रोजाना एक्सीडेंट होते हैं।
                तथा दूसरी ओर कच्ची शराब पीकर गांव के सारे पुरुष ही जहरीली शराब से मौत के घाट पहुंच गए  हैं।
 जी शराब तो खराब ही होती है।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर ही शराब को आवश्यक वस्तु में शामिल करके व्यापार, वाणिज्य एवं वितरण के नियंत्रण हेतु कानून बना सकती है । अतः शराब आवश्यक वस्तु में शामिल होनी चाहिए जिससे जनता को उचित मूल्य पर शराब प्राप्त हो सके।
- रंजना हरित              
बिजनौर -उत्तर प्रदेश
नहीं !
कदापि नहीं!!!
शराब अथवा मदिरा तंबाकू बीड़ी सिगरेट आदि की आदत व्यसन कहलाती हैं 
शराब ऐसा मादक पदार्थ होता है कि इसका सेवन करने वाले व्यक्ति का मानसिक एवं शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है । 
 किसी व्यक्ति को जीवन में यदि मदिरा पीने की लत लग जाये तो वह अपनी इस लत को पूरा करने के लिए धन का अभाव होने पर घर की वस्तुओं को बेचने में भी गुरेज़ नहीं करता । 
शराब पीने वाला व्यसनी व्यक्ति का शरीर धीरे धीरे खोखला होता जाता है । वह मस्तिष्क से स्मृति भ्रम का शिकार हो जाते हैं । लीवर किडनी जैसे जानलेवा संक्रमण से उसे मृत्यु घेर लेती है । और वह व्यक्ति शारीरिक मानसिक व्याधियों का शिकार होकर अपने परिवार को रोता बिलखता छोड़कर असमय काल के गाल में समा जाते है।
जिस दिन शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल हो जायेगी । उस दिन निम्न स्तर के परिवारों के साथ ही मध्यम वर्ग के परिवारों में भी कलह क्लेश भुखमरी अवश्य ही छा जायेगी ।
यह कटु सत्य किसी से छिपा नहीं है कि रिक्शा रेहड़ी टैम्पो चलाने वाले जितने भी श्रमिक मजबूर मजदूर होते हैं इनमें से अधिकांशतया जनता शराब जैसी मृत्यु पिशाच की पकड में रहते है।
भले ही घर में खाने के लाले पड़े हो नन्हे दुधमुंहे शिशु भूख से कुलबुलाते माँ की सूखी छाती निचोड़ते है । किंतु घर गृहस्थी सुचारू चलाने के स्थान पर उनका बापू पूरे दिन की मेहनत की कमाई मदिरा की भेंट चढ़ा कर झूमता हुआ घर में घुसता है । गाली-गलौज मारपीट के साथ ही घर में रहने वाले लोगों का जीवन नारकीय बना देता है ।
मैं तो यह कहूँगी कि सामाजिक संगठनों और स्वयं सेवी संस्थाओं के सत्प्रयासों द्वारा समाज में प्रगति और खुशहाली लाने के लिए निश्चित ही शराबबंदी की ओर कदम बढ़ाने चाहिए।
-  सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
 आवश्यक वस्तु अधिनियम के अनुसार आवश्यक वस्तुओं में शामिल होने पर विक्रेता अपनी मर्जी के अनुसार दाम नहीं बढ़ा सकता। मनमर्जी दाम बढ़ाने पर सजा का भी प्रावधान है। उस वस्तु के दाम पर सरकार का नियंत्रण होता है। 
   मेरे विचार से शराब कोई ऐसी अनिवार्य वस्तु नहीं है जिसे आवश्यक वस्तुओं में शामिल किया जाए। शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसका दुष्प्रभाव व्यक्ति के मन मस्तिष्क और हमारे समाज पर पड़ता है। अगर इसका दाम बढ़ भी रहा हो तो अच्छी बात है लोग कम इस्तेमाल करेंगे। 
   केंद्र सरकार को बिहार और गुजरात राज्य की तरह शराब का पूर्ण निषेध कर देना चाहिए ताकि लोग इसका इस्तेमाल ही न करें। शराब के कारण ही गृह कलह होते हैं। घरेलू हिंसा बढ़ने का मुख्य कारण शराब है। गरीब व्यक्ति शराब का आदी होकर अपने मेहनत का पैसा पानी की तरह बहा देता है। उसका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। शराब पीने के बाद व्यक्ति अपने विवेक बुद्धि से कोई काम नहीं कर पाता। न हीं वह अपने परिवार के हित का ध्यान रखता है न ही अपने समाज का।
   इस कारण सरकार अगर शराब को पूर्ण निषेध कर दे तो ज्यादा ही उत्तम होगा।
                - सुनीता रानी राठौर
               ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
हमारी भारतीय संस्कृति में किसी भी
प्रकार के व्यसन को समाज परिवार के लिए हानि प्रद बताया गया। आज पूरे देश में हर जगह राज्य में नशा मुक्ति अभियान आयोजित किया जा रहा है
इस नशा के कारण कई घर तबाह हो गए परिवार तबाह हो गया है।
शराब पीकर कई तरह की बीमारियों को आमंत्रण देते हैं इसमें लीवर खराब होने की सबसे ज्यादा समस्या है
और इसमें व्यक्ति के ठीक होने की भी कम संभावना होती है शराब को जीवन में उपयोग करना मैं कभी भी इसकी पक्षधर नहीं हूं। 
आए दिन अखबार न्यूज़ में हम देखते हैं शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले
कई हादसे का शिकार हो जाते हैं स्वयं भी और दूसरे को भी इसकी चपेट में ले लेते हैं जहरीली शराब पीने के कारण
एक साथ कई लोगों की जान चली गई
कई गरीब परिवार  शराब सेवन के कारण जीवन से हाथ धो बैठते हैं शराब को कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं किया जाना चाहिए भारत की यह संस्कृति नहीं है
योग अध्यात्म की नगरी में किस सभ्यता को हम बढ़ावा दे रहे हैं
यह एक विचारणीय विषय है
या हम कह सकते हैं की हर नागरिक को  स्वयं आत्ममंथन की आवश्यकता है फिर कोई निर्णय बनाएं  मैं इसको
आवश्यक वस्तुओं में शामिल  नहीं करना चाहिए कहूंगी बल्कि इसका पूर्ण विरोध होना चाहिए । 
*जिससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके वरना व्यसन  वृत्ति से‌ हम सब बीमार और नशाखोरी को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देंगे।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
          बिल्कुल नहीं शराब को कभी भी आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होना चाहिए। वह समाज को अर्थात पीने वाले व्यक्तियों को गर्त में गिराती है जिससे पूरे समाज और देश का माहौल खराब होता है। परिवार उजड़ जाते हैं और अमन चैन खत्म होता है। पैसे वाले महंगी विदेशी शराब पीते हैं और गरीब तबके के लोग देसी ठर्रा पीकर अपना पारिवारिक एवं सामाजिक माहौल खराब करते हैं  साथ ही स्वयं का शरीर भी नष्ट करते  हैं। शराब तो बिल्कुल प्रतिबंधित होनी चाहिए। राजस्व के चक्कर में  सरकारें शराब दुकानों को छूट दे देती है जिसका परिणाम आए दिन देखने को मिलता है।
 श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मेरे मतानुसार शराब आवश्यक वस्तुओं में शामिल नहीं होनी  चाहिए ,  जवाब न में है । शराब का चस्का जिस इंसान को एक बार लग जाता है । उसका नशा जिंदगी से उतरता नहीं है । शराब पीने को मैं एक बीमारी कहूँगी ।
स्वास्थ  को रोगयुक्त कर देती है । इसके सेवन से शरीर 
तरह -तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है । केंसर   जैसी प्राण लेवा बीमारी की जनक है ।
सभी वर्ग अमीर हो या गरीब  इसका सेवन करता है ।
परिणाम इसके नकारात्मक  समाज , परिवार के समान हैं ।  
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में "  शराब के ऊपर सबसे अधिक टैक्स हैं । फिर भी सबसे अधिक शराब की मांग है । कहते है शराब के मामले में बड़े - बड़े अर्थशास्त्री फेल है । जगंल में भी शराब का ठेका चलता है । शराब के लिए विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती है । ये ऐसा कारोबार है ।
                                              - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. शराब प्रतिबंधित होना चाहिए। उसको आवश्यक चीजों की गणना में रखना ही हास्यास्पद है। घरों को उजाड़ने वाली एवं समाज तथा देश का वातावरण खराब करने वाली चीज को केबल आमदनी की वजह से आवश्यक वस्तुओं के साथ गणना करने के लिए रखा जाए यह बिल्कुल गलत है।

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