सुनो इतना मत रखना कुछ घर पर भी बचाकर रख लिया करो।सोहन बाहर निकलते वक्त अपनी पत्नी से कह रहा था।उसकी पत्नी रोज वही आवाज देती। अरे कौन आ रहा है भला आप ले जाया करो वरना काम में आपको भूख लगेगी।पर तो थोड़ा बहुत बचाकर रखा करती थी।आज काम पर जाने को जरा देरी हो गई।पर उसका खाना रख दिया गया था।
इतने में दरवाजे पर कोई आया और आवाज दी, " कुछ खाने को दे दो चार दिन से भूखा हूं बड़ा उपकार होगा मुझ पर आपका।"सोहन चुप रहा।उसकी पत्नी की भी आवाज नहीं आई।थोड़ी देर बाद बाहर की भी आवाज बंद हो गई।वो तैयार होकर निकलने लगा पर मन में एक भी बात आ रही थी।आज किसी ने कहा कि एक छोटा सा उपकार कर दो और हम वो भी ना कर पाए।ऐसा सोचता हुआ निकल ही रहा था कि सामने उसकी नजर गई तो देखा उसकी पत्नी उसे बड़े प्यार से खाना खिला रही थी।उसकी मुस्कुराहट बड़ने लगी।अपनी पत्नी को बिना आवाज दिए हुए काम पर चले गया।
जाते जाते यही सोच रहा था कि अपना पेट भर जाए ठीक है पर किसी और पर जरा सा उपकार करने लायक बचा रहे तो इंसानियत जिन्दा रहती है।शायद मन ही मन अपनी पत्नी को धन्यवाद दे रहा था और चेहरे पर सुकून की मुस्कुराहट लिए आगे बढ़ता जा रहा था।
जमींदार दीनानाथ अपनी पालकी में बैठ गांव का भ्रमण कर रहे थे !रास्ते में जो भी व्यक्ति मिलता सिर झुकाकर अभिवादन करता है आखिर हर खेतीहार स्वयं को उनके एहसान और उपकार तले दबा महसूस करते थे ! दुकाल में मालिक का हम पर बहुत बड़ा "उपकार " है वरना हम भूखे ही मर जाते !
तभी हरिया जो खेत में मजदूरी करता है खुश होते हुए अपनी धुन में बिना अभिवादन किए आगे निकल जाता है जमींदार अपने आप को अपमानित समझते हुए क्रोधित होते हुए अपने मातहत से हरिया को हवेली में आने को कहा .... सभी गांव वालों में कानाफूसी होने लगी .... हरिया ने क्या गुस्ताखी की होगी ! जमींदार उसे कैसी सजा फटकारेंगे वगैरह वगैरह ....
सभी गांव वालों के सामने जमींदार ने हरिया से कहा ! एहसान फरामोश ..... तुझे ऐसा कौन सा खजाना मिल गया था जो तू मुझे अनदेखा कर सलाम किए बिना निकल गया .... तुझे इसकी सजा मालूम नहीं है ? मालिक मुझे सुख का अनमोल खजाना मिल गया है !
आज मैंने मंदिर में एक साहूकार को जो शायद अपनी शरीर की पीड़ा से पीड़ित होने की वजह से दूसरे पर निर्भर थे ! घर के सभी भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के अंदर गए थे.... वह बाहर चबूतरे पर धूप में बैठे थे .... उन्होंने हरिया से पीने को पानी मांगा ! डरते हुए हरियाने पानी दिया .... व्यक्ति के कपड़े देख हरिया की नजर अपनी फटी धोती पर पड़ी तभी उस व्यक्ति ने कहा ! धन्यवाद भाई तुम्हारा "उपकार " मुझ पर कर्ज बन हमेशा रहेगा !तुम कितने सुखी हो .... किसी पर निर्भर तो नहीं हो... मैं धन-दौलत होकर भी कितना गरीब हूं .... पराश्रित हूं !
हरिया समझ गया "पराधीन सपनेहु सुख नाही " मेरे हाथ पैर मेरे शरीर तो मेरे साथ है! मैं स्वयं करोड़ों की दौलत का मालिक हूं ....... हमारी मेहनत किसी की मोहताज और अधीन नहीं है!
हरिया ने जमींदार से कहा आप हम पर आश्रित हैं हम नहीं ....!कर्ज देकर आप हम पर "उपकार "नहीं करते.... मालिक ! एहसान फरामोश हम नहीं हैं ! हमारी मेहनत का फल आप खाते हैं अतः आप हम पर आश्रित हैं गरीब हम नहीं आप हैं .... यह कहते हुए निडरता के साथ हरिया के कदम गांव वालों के साथ अपने खेत की ओर बढ़ने लगे आखिर उसे अनमोल सुख का खजाना जो मिल गया था !
आग
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निक्की एक छोटा सा बच्चा, लेकिन होंसले बुलंद, शैतान इतना कि सबके नाकों दम कर रखा था।
पढ़ाई में तो अव्वल था ही पर क्रिकेट में भी उस्ताद, लेकिन घर वाले क्रिकेट के खिलाफ, पर क्रिकेट के लिए जुजून दिल में एक आग क्रिकेट के लिए ।
सबके खिलाफ जा कर पढ़ाई के साथ साथ क्रिकेट मैच भी खेलता रहा , ऐसे में सर्वोच्च खिलाड़ी का खिताब अपने नाम करते हुए राज्य की टीम में शामिल हो कर अपना और सबका नाम रोशन किया ।
आगे राष्ट्रीय टीम में शामिल होने के सपने के साथ आगे बढ़ते हुए निक्की काफी उत्साहित नजर आ रहा था लेकिन उसका सपना यहीं तक का था घर वाले उसे वापिस ले आए तथा उसे घर के व्यापार का कार्यभार सौंप दिया।
निक्की अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए क्रिकेट को काफी पीछे छोड़ आया पर दिल में एक अधूरे सपने की आग ने उसे आधा अधूरा सा बना दिया था । अब तो वह दूसरों के सपने पूरे करने में सबकी मदद करता सिवाय क्रिकेट के ।
बस सबको अपनी कहानियां सुनाता उनके सपने को पूरा होते देख खुश होता और खुद अपने अधूरे सपने को याद कर उसकी की आग में अंदर ही अंदर जलता रहता।
- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 45
विखरते स्वप्न
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घंसू की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।उसकी आंखों में अंधेरा सा छा रहा था क्योंकि आज उसके सारे स्वप्न बिखर गये थे । उसका इकलौता बड़ा पुत्र शादी के बाद अपनी पत्नी को लेकर अपनी नौकरी बाले शहर के लिए प्रस्थान कर रहा था।जाते समय उसने मुढकर अपने माँ-बाप से अपनेपन के दो शब्द नहीं बोले और दोनों छोटी बहनो की ओर भी नहीं देखा । घंसू को याद आ रहा था कि अपनी ज़िन्दगी में हमेशा कठिनाईयों का सामना करते रहने के बावजूद उसने बड़े लड़के अमन की पढाई पर कोई प्रभाव नहीं पढने दिया था ।अपनी मजदूरी और पत्नी की सिलाई की अधिकांश आय अमन की पढाई पर इस आशा में खर्च करता रहा कि पढ-लिखकर वह नौकरी करेगा,उसका सहारा बनेगा और अपनी दोनों छोटी बहिनों को संभाल लेगा।वृद्धावस्था में हुआ उसका उल्टा ही। विद्यार्थी जीवन में शहर की हवा का प्रभाव तथा शादी के बाद ससुराल पक्ष द्वारा हृदय परिवर्तन ने अमन को मां-बाप, बहिनों के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील व निष्ठुर कर दिया था।सहारा तो दूर उसने अच्छी तरह बात करना भी उचित नहीं समझा ।
इसी को कहा जाता है कि पुत्र के विवाह के पश्चात जब उसकी "आंखें दो से चार होती हैं तो जिन्दगी माँ-बाप से बेज़ार होती है ।"
दोनों मासूम बहिनें माता-पिता से लिपटकर फफक-फफककर रो रही थी ।
- डाॅ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 46
अब मेरी बारी
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बाबूजी ।आ जाईये थाली लग गई है
अपनी ही तंद्रा में उब- डूब हो रहे रमाकांत बाबू झटके से उठ खड़े हुए लेकिन कानों में वे ही स्वर गूँज रहे थे। "सुन रहे हैं गोलू के पप्पा आ जाईये थाली लग गई है" और अनायास वे बोल पड़े "आ रहा हूँ भाई।क्या मुसीबत है।
लहजे की जानी-पहचानी कशिश से बड़ी बहू चौंक गई अरे - - अम्माजी की पुकार को दी जाने वाली प्रतिक्रिया है यह तो - - - और वह असहज होने के साथ-साथ दुखी भी हो गई।
बाबूजी पीढ़े पर बैठते बैठते सकुचा गए। सारा
अधिकार भाव लुप्त हो गया।
हाँ मैं स्वामी था मैं इस घर का तुम्हारी पुकारों में - - तुम्हारी शिकायतों में - - - तुम्हारी मनुहारों हिदायतों में मधु। अब तो इस देह में एक अस्तित्व हीन प्राण बसते हैं जिसकी कोई पहचान नहीं है। बच्चों पर निर्भर एक अनजान।
खाना खाकर बाबूजी बैठकर मन ही मन अपनी मधु से बातें करने लगे "नहीं मधु मैं तुम्हें अपनी दुनिया से इतनी आसानी से जाने नहीं दूँगा। मैं तुम्हें वापस लाउंगा--मैं पागलखाने में नहीं रहने दूँगा तुम्हें। डाॅ ने कहा भी तो था कि अपनों के साथ रहकर ये जल्दी ठीक हो जाएँगी।ज्यादा ठीक रहेंगी।
मधु को पिछले कुछ सालों से विस्मृति रोग हो गया था। वे किसी को नहीं पहचानतीं। कहीं भी उठकर चल देतीं। अडोसी-पडोसी जान-पहचान वाले हाथ पकड कर वापस ले आते। एक दिन तो पुलिस वाले ले आए। जिस मानसिक रुग्णालय में उनका इलाज चल रहा था वहां से पता लेकर पहुंचा गये अनेकानेक हिदायतों के साथ--कि अजी साहेब ध्यान रखा करो। एक्सीडेंट वेक्सीडेंट हो गया तो बाद में रोते बैठेंगे - - कि किसी गुँडे बदमाश के हाथ लग गई तो भिखारियों के साथ बैठा देंगे वो निष्ठुर लोग माताजी के हाथ-पैर तोड़ के।
ऐसी बातो से घबरा कर सबने मिल कर निर्णय लिया कि मानसिक रुग्णालय में रख देते हैं अम्माजी को जहाँ इलाज के साथ-साथ पूरी सुरक्षा होती है। कोई भी मरीज मानसिक रोगी बाहर नहीं निकल सकते।
बच्चों के निर्णय के आगे बाबूजी असहाय हो गए। बच्चे अम्मा को भरती करवा कर आ गए।
लेकिन आज खाने की थाली की पुकार के साथ बाबूजी के भीतर का सुप्त दबंग और शासक गृहस्वामी जाग उठा अर्धांगिनी के अर्थों को समेट कर ।
नहीं नहीं मैं अपनी मधु को इस तरह असहाय अंधेरों मे मौत का इंतजार करने के लिए नहीं छोड़ सकता। उसने मुझे चालीस बरस सँभाला है मेरी सारी शासक वृत्तियों के साथ । अब मेरी बारी है-उसे सँभालने की - - - -एकदम से उठ खड़े हुए बाबूजी और चल दिए मानसिक रुग्णालय की ओर बड़बड़ाते हुए---अब मेरी बारी है - - हाँ अब मेरी बारी है।
- हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 47
दिलासा
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पति को पोती की फ़ोटो के सामने आँसू बहाते देख सुरेखा बिफर उठी,"सौ बार समझा चुकी, लेकिन आप तो औरतों से भी गये-बीते हैं। हे भगवान! पोती विदेश ही तो गयी है। साल भर बाद वापस भी तो आयेगी न। आप को कितनी बार कहा कि सब्र रखिये।"
सकपका कर विनोद जी ने फोटो मेज पर रख दिया और आँखें पोंछने लगे।
सुरेखा फ़ोटो को लेकर बैठक-कक्ष में रखने चली।
विनोद जी ने अपने आपको संयत किया। दो बरस की गुड्डो ने क्या हाल कर दिया है उनका। बार-बार उसका गोलमटोल चेहरा, तुतलाती बातें याद आती हैं।
इस से पहले कि फिर ध्यान भटके, विनोद जी अख़बार लेने बैठक-कक्ष की ओर लपके।
परंतु, दरवाजे पर ही उनके कदम ठिठक गये। काँच की अलमारी में गुड्डो की तस्वीर रख कर फुसफुसाती आवाज़ में सुरेखा बोल रही थी,"जादूगरनी। दादू को चुप न कराऊँ तो क्या करूँ? तू मुझे भी तो अकेली कर गई रे बिट्टो। कब साल बीतेगा, कब तू आएगी? तब तक हमें भूल तो न जायेगी!"
विनोद ने जा कर सुरेखा के कंधे पर हाथ रखा और मोबाइल से लाइव-कॉल का नम्बर डायल करने लगे।
- राजेन्द्र पुरोहित
जोधपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 48
भावों की फसल
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" माँ..! आप समझो जरा.! महानगर में अकेले बुजुर्ग का घर में रहना कितना ख़तरनाक हो सकता है। कोई भी बाहरी व्यक्ति कुछ भी बहाना बना कर अंदर आकर आपको नुकसान पहुंचा सकता है, और फिर अकेले आप की तबीयत ख़राब हो गई तो...? बहु आगे बढ़कर बेटे के साथ खड़ी थी" ये आपका गाँव नहीं है मां..! यहां तो आस पड़ोस को भी एक दूसरे की खबर नहीं रहती। फिर हम आपके लिए नौकरी छोड़कर घर पर तो नहीं न बैठ सकते...!
..........
"वृद्धाश्रम में आपको साथी मिलेंगे,समय पर खाना,दवा, सेवा आदि सभी सुविधाएं मिलेंगी..!
"अच्छा..! आपको देवर जी की शादी की चिंता है न..! चलो वादा रहा। शादी में कुछ दिनों के लिए आपको घर ले आएंगे।
भावों की सूखी फसल को माँ के आँसू हरा नहीं कर पाए।आज वृद्धाश्रम के कमरे ने माँ जी का स्वागत किया। द्वार पर मुस्कराहट मिली परन्तु अपनापन नहीं दिखा। कभी न बंद होने वाली प्रतीक्षा की खिड़की पर खड़ी हो कर माँ जी प्रतिदिन दूर- दूर तक भावों की फसल को निहारने की नाकाम कोशिशें करतीं।
"माँ जी..! देखिए आपसे कोई मिलने आया है..."
" मुझसे...? इतने महीनों बाद...?"
"चरण स्पर्श माँ जी..!"
"मैं हूं आपकी छोटी बहु। अपनी शादी में आपको नहीं देखा तो मिलने चली आई"
"सदा सुहागन रहो बहु। अच्छा हुआ जो तू मिलने आ गई। तुझे देखने की बहुत इच्छा थी।"
" मैं सिर्फ मिलने नहीं, आपको ले जाने के लिए आई हूं माँ जी...!"
"आज से आप हमेशा हम दोनों के साथ ही घर पर रहेंगी।"
"आज खुशी के आँसुओं से लहलहा उठी भावों की फसल"
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 49
बदलाव
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कामतानाथ आज अपनी नौकरी से रिटायर हो गए। बेटा बहू ने बहुत बढ़िया पार्टी का आयोजन किया हुआ था । बेटा बहू पोता पोती सब खुश थे कि अब सब मिलकर रहेंगे । हालाँकि कामतानाथ डर रहे थे उन्हें इसका कड़वा अनुभव था । अपने पिताजी की रिटायर्मेंट पर वो भी बहुत खुश होकर अपने पिताजी को साथ रहने के लिए गांव से शहर लाए थे । पिताजी के अंहकार और टोका टाकी की आदत से पत्नी और बच्चे उनकी इज्जत नहीं करते थे ।घर का सारा माहौल ही खराब हो गया था। अब पिताजी को वापिस भी नही भेज सकते थे । कूढन और चिड़चिड़ापन पत्नी के जीवन का हिस्सा बन गए थे ।इसलिए वह बीमार रहने लगी और उसे छोड़कर चल बसी । वह बहू के बारे मे सोचने लगे आज सबसे ज्यादा खुश वही हो रही है और बड़ी खुशी से सारा जरूरत का सामान पैक कर रही है । इतने में बड़ी बेटी आई और समझाने लगी ," पिताजी आप पूर्वाग्रह छोड़कर जाने के लिए तैयार हो । आप दूसरों को बदलने की बात ना करके स्वयं में बदलाव लाना । अब वो आपमें खुशियाँ नही ढूँढगे आप उनमें खुशियाँ ढूँढना। भाभी बहुत अच्छी है बस आप भी उन्हे प्यार और सम्मान देना उसकी इच्छानुसार थोड़ा बदलाव अपने अंदर ले आना । फिर देखना कैसे घर में रौनक बनी रहती है ।" बेटी की बात सुन मन ही मन एक नया संकल्प ले मुस्कुराते हुए जीवन की नई पारी के लिए तैयार होने चल दिए।
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
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क्रमांक - 50
मेरे पापा
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सुबह नौ बजते ही नरेंद्र ड्यूटी पर निकल जाता है। उसकी माँ सारा दिन घर के काम में जुटी रहती हैं । सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त पिता रोज़ घर में उसकी माँ के साथ छोटे-मोटे कामों में हाथ बँटाते हुए अक्सर एक ही बात कहते हैं 'मैं तो कुछ भी नहीं करता।'
नरेंद्र को पिता की यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती । वह सोचता है..'पापा ने अपनी प्रत्येक जिम्मेदारी को अच्छे से निभाया है और निभा रहे हैं । मुझे कमाने योग्य बनाया । थोड़ी सी तनख्वाह में छोटी बहन को पढ़ा -लिखा कर डाक्टर बना दिया। इससे भी बढ़कर उनकी स्वयं की आवश्यकताएँ ना-मात्र हैं । सर्वसम्पन्न घर में.... कड़कती ठंड में उन्हें ब्लोयर नहीं चाहिए..।
न ही उन्हें गीजर का गर्म पानी चाहिए...नल के पानी से ही नहा लेते हैं और ऊपर से कहते हैं कि ऐसे नहाने से शरीर बीमारियों से बचा रहता है।
गर्म कपड़े भी कई-कई दिन तक पहन लेते हैं ...कहते हैं रोज़-रोज़ धोने से कपड़े खराब हो जाते हैं और फिर पानी भी ज्यादा लगता है... कितने गिनाऊँ मैं उनके काम.. ।
घर में कोई टूटी खुली देखते हैं तो तुरंत कसकर बंद कर देते हैं।
गर्मी में बैठे रहते हैं पेड़ की ठंडी-ठंडी छाँव में... घर के छोटे-मोटे काम साइकिल पर ही निपटा आते हैं .. कितना करते हैं मेरे पापा..।
बिजली, पानी,पैट्रोल....हर छोटी- छोटी बात का ध्यान रखते हैं और फिर भी कहते हैं कि मैं कुछ नहीं करता । आप ही बताइए - क्या ठीक कहते हैं मेरे पापा ?' ****
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ
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क्रमांक - 51
दमदार व्यक्तित्व
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मेरे ससुर का व्यक्तित्व एक दमदार है आज 80 की उम्र होकर भी हर कार्य को करने की क्षमता रखते हैं।निधि के ससुर घर का सारा खर्चा आज भी चलाते हैं क्योंकि उसके पति की आय कम होने के कारण घर खर्च पूरी तरह से वहन नही कर पाते थे ।ससुर बहुत ही सुलझे विचारो के व्यक्ति हैं इसलिये घर मे हमेशा ख़ुशीहाली का वातावरण बना रहता हैं ,।घर मे शांति का माहौल रहता है।क्योंकि जिस घर के मुखिया सकारात्मक सोच के होंगे वहाँ 24 घंटे हस्ठ पुस्ठ माहौल बना रहेगा।
प्रभु से यही प्रार्थना करते हैं कि हर बुजुर्ग का आशीर्वाद हमेशा हम सभी पर बना रहे। बुजुर्ग के घर रहने से सुरक्षित महसूस करते हैं।
आज मुझे खुशी इस बात की होती हैं जहाँ जहाँ बो जाते हैं बाद में सब उनके बारे मे पूछते हैं कि कितना निखरता हुआ व्यक्तित्व है ,क्योंकि निधि के ससुर सबको खुश रखने की चेष्टा करते हैं बहुत ही सोच समझकर बात करते हैं।उनकी सकारात्मक सोच ही ने इतनी उम्र होने के बाबजूद उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगा दिए हैं
हम उनकी छत्र छाया में यूँही खुशहाली बनी रहे ।
- सुनीता गुप्ता
,कानपुर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 52
अधिकार
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कई दिनों से पोता जिद्द कर रहा था की पानी की टंकी के साथ मोटर लगवा दी जाए तांकि पानी पूरे दबाव से बाथरूम में लगे शावर में आये |यह भी जिद्द थी की वह नहायेगा तभी जब पानी पूरे प्रेशर से आएगा |
छोटा बेटा फर्स्ट फ्लोर पर रहता था और टंकी भी वहीँ थी |
प्लम्बर को बुलाया |वह अभी लगा ही रहा था कि बेटे ने पैर से उसे धकेलते हुए कहा कि यहाँ मोटर नहीं लगेगी |
........और कहाँ लगेगी ?अगर टंकी यहां है तो मोटर भी यहीं लगेगी |पिता ने कहा |
.......नहीं लगेगी |
पिता लडखडाते कदमों से नीचे आ गए |खुद को शक्तिहीन अनुभव कर रहे थे
उनको लगा अब उनका कोई अधिकार नहीं रहा | ****
- चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
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क्रमांक - 53
रिटायर्ड
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क्या बात है अंकल आप हर रोज सुबह सुबह मेरी रेहड़ी पर चाय पीने के लिए आ जाते हो,आप मुझे एक बड़े व्यक्ति लगते हो, अच्छे घर से दिखते हो फिर ऐसा क्यों ? अरे भाई यहां मेरे बेटे के पास रहता हूं । मेरी मजबूरी ये है कि पोता, पोती के मोह के चक्कर में मुझे इनके पास आना पड़ता है, रिटायर्ड हूं, पेंशन भी आती है, फिर भी बहू समय पर चाय बनाकर देती, इसलिए सुबह तुम्हारे पास तो शाम को किसी और रेहड़ी वाले के पास पी लेता हूं क्या करूं रिटायर्ड जो ठहरा।
- शुभकरण गौड
हिसार - हरियाणा
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क्रमांक - 54
पेट की आग
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तिनका -तिनका जोड़कर यहां हम सब की झोपड़ियां बनी थीं। हाय रे ! आफत वाली आंधी ने हम सब को पुन: बेघर कर दिया। ना जाने कहाँ से उड़कर आई एक छोटी सी चिंगारी ने आग का विशाल रूप ले लिया। सब कुछ जल कर राख हो गया । जली राख में बड़ी आशा से गोलूआ कुछ खोज रहा था कि शायद कुछ तो अधजले समानों में खाने को कुछ मिल जाए।
वो तो ऊपर वाले की मेहरबानी थी, कि शाम का समय था । सब खेल -कूद कर रहे थे। कुछ तो अभी काम से वापस भी नहीं आए थे, कि अचानक ऐसी विपदा आ कर सब स्वाहा कर गई।
चलो जान बच गई हम सब की। समान भले ना बचा हो।
वैसे भी हमारी झोपड़ी में कौन सा कुबेर का खजाना पड़ा था?
हाँ ,भाई बात तो सही है , लेकिन अब हम बिन छत रात कहाँ?
बाबा ---मैंने सुना है सरकार मुआवजा देती है ऐसे पीड़ितों को,,,अरे नहीं बिटिया ये सिर्फ कहने की बात है, वर्ना कौन हम गरीबों की सुनता है।
नहीं-- बाबा हमें एक बार प्रयास तो करनी चाहिए ना।
गोलूआ भूख से बेचैन, बेहाल अपनी माँ को झकझोरते हुए माँ झोपड़ी की आग तो बुझ गई, मगर हमारे पेट में लगी आग कैसे बुझेगी?
माँ आशान्वित नजरों से अभी- अभी मैट्रिक अच्छे नम्बरों से पास बिटिया की कही बाते सुन बोल उठी- ' हाँ ! बेटा कोशिश करने में बुराई हीं क्या है --बताओ आगे क्या करना है।
माँ-- मैंने जिलाधिकारी को अपनी आपातकालीन स्थिती बताते हुए फोन कर दिया है । उन्होंने कहा है वो आ रहे है अपनी टीम लेकर ।
बिटिया तुम्हारे पास उनका न0 ?
हाँ -माँ मैंने नेट पर खोज लिया।
आज अपनी योग्य और पढ़ाई में अव्वल बिटिया पर माँ को गर्व हो रहा था और शिक्षा की महत्ता का आज विशेष महत्व समझ आ रहा था सभी को रौशनी की बातें सुनकर।
तभी आवाज लगाती गाड़ियो का काफिला आ गया। डीएम साहब खुद भी जायजा लेने आ गए।
आप सब आज से सामने वाले सरकारी स्कूल में रहें, जब तक यहां उचित व्यवस्था न हो जाए रहने की, और आपके भोजन की भी व्यवस्था की गई है।
जिस लड़की ने मुझे फोन पर इसकी सूचना दी थी, वो कहाँ है ?
सारी बस्ती वाले एक साथ खुशी से चिल्लाते हुए ---हमारी बस्ती की सबसे होनहार बिटिया रौशनी ने।
आज रौशनी की सूझ बुझ से हमारी चिंता की आग शांत हो गई।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद डीएम साहब सबने एक साथ खुशी से सर झुका लिया।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
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क्रमांक - 55
व्यवहार
क्लास 10th का प्रथम श्रेणी का रिजल्ट पाकर सलिल और सरल बहुत खुश थे। व्यापारी का बेटा सलिल तथा श्रमिक का बेटा सरल दोनों सहपाठी थे। समय बीतता गया। क्लास फर्स्ट ईयर के छमाही के एग्जाम में ट्यूशन न लगने के कारण सरल के नंबर सलिल से काफी कम आए। सरल अन मना रहने लगा।
एक दिन सलिल ट्यूशन नोट्स की फोटो कॉपी लेकर सरल से बोला-" ले यार ! उदास ना हो। मैं रोज ही ऐसे नोट्स तुझे देता रहूंगा। तू समझ ले; तेरी ट्यूशन ही लगी है"। सरल सलिल को ऐसे देख खिल उठा और भाव विभोर होकर उसके गले लग गया।
- डॉ. रेखा सक्सेना
उपकार
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विचारों में गुमसुम माधुरी को मालकिन ,की कर्कश आवाज सुनाई दी "ऐसा बर्तन मांजती हो।कपड़े भी साफ धुले नहीं है। तुम्हें औरतों के भी काम नहीं आते क्या?"
माधुरी"आंटी जी,दो दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है। बुखार से शरीर तप रहा है। अब काम में गलती नहीं होगी।"
मालकिन"तबीयत ठीक नहीं तो आयी क्यों?तुम लोग बहाना बनाने में उस्ताद होती हो।चल निकल,हमें ऐसी काम वाली नहीं चाहिए। "
अपंग पति को दवा देने का समय हो चुका था।सो,माधुरी सोचते हुए चल पड़ी। अब उसे दूसरा काम जल्दी ही तलाशना होगा।
उसे याद आने लगा कि एक माह पहले ही उसका विवाह हुआ था।राज मिस्त्री से।और एक हफ्ते पहले ही उसका पति सड़क दुर्घटना में अपने पैर गंवा चुका है।
मजबूरी और गरीबी दोनों साथ ही उसके पास आयी थी।जिम्मेदारी ने भरी जवानी में बुढ़ापा दे दिया था। परंतु माधुरी ने हिम्मत नहीं हारी। घर पहुंचते ही उसका पति रोता हुआ दिखा।
कहने लगा"माधुरी तुम कितना काम करती हो।अब तो मैं तुम पर बोझ सा हो गया हूँ। अब बर्दाश्त नहीं होता।मैं फांसी लगा लूंगा,यही उचित होगा। हम दोनों के लिए।"
माधुरी "ऐसी कायरों वाली बात मत बोलो।हमें परेशानी से हारना नहीं, जीतना है। "
सौभाग्य से माधुरी को एक डाक्टर के यहाँ काम भी मिला और उचित सम्मान भी।डाक्टर सज्जन व्यक्ति थे।माधुरी की दशा देखकर उसने पति के पैरों को देखाऔर कहा "इनका इलाज हो जायेगा।हम नकली पैर लगा देंगे । ये चल फिर सकेंगे।।
माधुरी "आप देवता हैं सर।मैं आपका उपकार कैसे चुकाऊंगी।"
- डाॅ. मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 57
सच्ची सलाह
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रामनिवास अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों सहित कानपुर में निवास करता है। एक बार उसका अपनी पत्नी कमला के साथ विवाद सीमा लांघ गया और उसकी पत्नी अपने बच्चों सहित पुलिस स्टेशन जाने लगी। रात के लगभग ग्यारह बजे कमला सुनसान सड़क पर अकेली जा रही थी, तभी एक बुजुर्ग पुरुष ने बच्चों सहित अकेली महिला को देखकर अपने अनुभव से जान लिया कि दाल में कुछ काला है। उनके पूछने पर कमला ने उन्हें सारी बातें बताईं और पुलिस के पास जाने की बात भी कही।
तब उन भद्र पुरुष ने उससे कहा "बेटी बात इतनी सी है कि तुम पति-पत्नी ने अपरिपक्वता दिखाई है। तुम्हारा गृहस्थी का बंधन और तुम दोनों की समझदारी ही समस्या को हल करेगी जबकि तुम्हारी गृहस्थी में पुलिस के प्रवेश से पति-पत्नी के बीच में अविश्वास की एक दीवार खड़ी हो जाएगी और पवित्र रिश्ते की डोरी में एक गाँठ सदा-सदा के लिए पड़ जायेगी।
इस प्रकार उन्होंने कमला को समझाकर घर वापस भेजा। उनके अनुभव के अनुसार एक-दो दिन में रामनिवास और कमला का गुस्सा ठंडा हो गया और दोनों ही अपनी-अपनी गलती स्वीकारने लगे। तब कमला ने ये सारी बातें अपने पति को बतायीं।
आज भी रामनिवास और कमला उन बुजुर्ग महानुभाव के 'उपकार' को मन ही मन नमन करते है, जिन्होंने उन्हें 'सच्ची सलाह' देकर उनकी गृहस्थी पर महान उपकार किया।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
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क्रमांक - 58
उपकार
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विशाखा प्यार मे धोखा खाने के बाद बहुत हताश और उदास थी उसने आत्महत्या करने का निर्णय कर लिया था और वह नदी के पुल कूदने ही वाली थी उधर से गुजर रहे नंदू नाम के अधेड़ अन्जान रिक्शा चालक ने नदी मे कूदने से उसे बचा लिया उसने उसे समझाया कि पढ लिखकर माँ बाप का नाम रौशन करो विशाखा ने कठिन परिश्रम से आई. पी. एस. की परीक्षा पास कर ली थी उसकी पोस्टिंग मद्रास मे ही थी जहाँ वह पढती थी वह अपने माँ बाप की अकेली सन्तान थी ...........
पिता काफी समय पहले गुजर चुके थे एक दिन सडक से गाडी मे गुजरते समय उसकी नजर एक बूढे व्यक्ति पर पड़ी जो जून की गर्मी मे रिक्शा पर बेहोश पडा था गाडी से उतर कर नजदीक जाने पर विशाखा ने नंदू को पहचान लिया उसे पानी पिलाने पर होश आ गया तो विशाखा ने कहा बाबा मै आपकी वही बेटी जिस पर आपने बहुत बडा उपकार किया था जिसे आपने नदी में डूबने से बचाया था दोनो की आँखो नम हो गई...
विशाखा ने नंदू को अपने घर लाकर खूब सेवा की और कहा मेरे बाबा को अब कुछ करने की जरूरत नही काश मै तब आपका नाम पता पूछ लेती मैने आपको बहुत तलाश किया भगवान की दया से आप मुझे मिल गये ।
- डा. प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 59
विरहाग्नि
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सीमा और राजू की शादी को तीन महीने हुए कि राजू को जीविकोपार्जन हेतु बाहर जाना पड़ा l सीमा परिवार में ख़ुशी ख़ुशी काम करने के बाद भी अपनेआप को अकेली महसूस करती l रात को नींद नहीं आ रही थी, वह चाँद से बतिया रही थी और उसकी आँख से झर झर पानी बहने लगा l
ए चाँद, तुम मन ही मन मेरी दशा देख क्यों इतरा रहे हो l मुझे लगता है इस संसार ने तुम्हारे विषय में झूँठ ही कहा है कि तुम शीतलता देते हो पर सच्चाई कुछ और ही है l तुम मुझ जैसी कितनी विरहा की तड़पन पर मुस्करा रहे हो तुमने कितनों के जग जीवन में आग लगाई है l मत इतराओ मन में और उसे नींद आ गई l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 60
तमाशबीन
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सड़क पर खड़ा सूरदास कब से पुकार रहा था, मुझे सड़क पार करा दो कोई।
लोग आते, उसकी ओर देखते, आगे बढ़ जाते।
कुछ लोग ऐसे तमाशबीन बने थे, मानों वह स्वयं दिव्यांग हो,चक्षु से ही नहीं, कानों से भी।
अब सड़क पर वाहनों की आवाजाही भी बढ़ने लगी थी।
"चलिए, मैं आपको सड़क पार कराता हूं।" आठ वर्ष का राहुल,उस सूरदास का हाथ पकड़कर,चल दिया।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 61
हुनर
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चम्पा मालकिन से कहती - मेडम चमेली का जनरल प्रमोशन हो गया । दसवी बोर्ड की तैयारी करेगी ,आपकी बेटी की तरह घर रह पढ़ाई करूँगी कहती है ? कोरोना की वजह स्कूल बंद है । आगे क्या करूँ बताइये ?
मेडम ने कहा - उसे काम में लगा दे ।
अब बड़ी हो गई हैं ।तेरी कुछ मदद हो जायेगी ।
चम्पा कहती - एक बात कहूँ , मेडम आप बुरा ना मानना , आप इतने पढ़े लिखे हो ?
आप अपनी बेटी के लिए ऐसा सोचती हो क्या ?
आप की बेटी के बराबर ही हैं ?
मेडम कहती - तभी तो अब तक सारे कपड़े ड्रेस जूते पुस्तक कापी खिलौने टिफ़िन सब उसे ही तो दिया करती हूँ ।
चम्पा कहती - यही तो हम ग़रीबों पर बड़ा उपकार हैं ! आगे भी मेरी मुनिया के लिये ऐसे मदद करेगी ना , वह भी आपकी बेबी की तरह अपने पैरों पर खड़ी हो आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं ।
मेडम कहती - मेरी बेबी का अभी रिज़ल्ट नहीं आया है ! प्राइवेट स्कूल के रिज़ल्ट देर से आते !
चम्पा कहती - मेडम बेबी का रिज़ल्ट कब तक आयेगा ?
मेडम कहती - २महीने तो लग जाएँगे ? फिर सोचते हैं !
चम्पा कहती - तब तक क्या करूँ ? इसे अकेले झोपड़पट्टी में अकेले छोड़ नहीं सकती ? हम ग़रीबों के पास तन ढकने के लिए कपड़े , दो जून की रूख़ी सुखी रोटी के अलावा क्या हैं !
मेडम ने कहा -ऐसा कर उसे मेरी शाप पास मिट्टी के बर्तन पेण्टिंग का काम खिलौने बनते हैं ! वहाँ दो महीने स्कूल की छुट्टी है । भेज देना ? तेरी कुछ मदद हो जाएगी !
दो महीने बाद चम्पा मेडम से पुछती - कैसा है मेरी बेटी काम नानी के घर गाँव में बहुत सीखा है ।
मेडम ने कहा - चम्पा तुम्हारी चमेली के हाँथों में ग़ज़ब का हुनर हैं !
मेरी दुकान तो चल पड़ीं ! उसके हाँथों में कमाल का जादू है ! उसकी और तुम्हारी दोनो की सेलरी डब्बल कर देती हुँ । या आगे पढ़ाई में मदद करना हैं । सोच कर बता देना ?
चमेली को बढ़ते कदम आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा दे , हुनर सीख आगे बढ़ना हैं ?
या अवाक् चम्पा पशोपेश परोपकार कैसे भूले ?
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 62
बुढापे की लाचारी
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“बाबा,चलो सोने। बहुत रात हो गई। घर में सभी सो गये हैं | देखिए, घूर का आग भी बुझ गया |” तगार में घंटों से जल रहे घूर के सफेद राख को लकड़ी से हिलाते हुए रोशन ने आहिस्ते से कहा ।
“ थोड़ा रूको, पहले इस राख को बाहर बरामदे के छज्जे के नीचे फैला देता हूँ ..|”
“ इतनी रात को...ठंड में.. बाहर ? बाबा, आपको अगर ठंड लग गयी ना तो पापा से डांट सुनना पड़ेगा ।”
“अरे, गुस्साता क्यूँ..है? तुरंत हो जाएगा | लोहे की बाल्टी में राख उठा कर देता हूँ , जरा वहाँ पहुंचा दे| अपने बूढ़े बाबा को मदद कर।” बाबा ने पुचकारते हुए कहा ।
“ओह! इसी फ़ालतू काम के चलते आपको पापा से दो बातें सुननी पड़ती है ! ”
“पिद्दी भर का है और गुरु-घंटाल जैसी बातें करता है।चल, पकड़ बाल्टी |” बाबा ने उसके हाथ में राख भरा बाल्टी थमाया ।
“ पहले बताइए, राख का होगा क्या ?”
“ रे...गद्दा बनेगा |”
“हा..हा..हा...राख का गद्दा...?” पोते ने ठहाका लगाते हुए कहा ।
“ सुनो, हमलोग अभी बिस्तरे पर जाकर रजाई ओढ़कर सो जायेंगे । लेकिन जरा बाहर देखो, बूढी गाय छज्जे के नीचे कैसे खड़ी है ! रात भर ठंड में वो कठुआती रहेगी ! अब तू ही बता , हमें क्या करना चाहिए ? “
“लेकिन ..ये तो पड़ोस वाले शर्मा अंकल की गाय है ?फिर आप इतने परेशान क्यों हो रहे हैं ?” रोशन ने चिढ़ते हुए बाबा से जवाब मांगा |
“हाँ..हाँ..उन्हीं की गाय है | बूढी हो गई..अब दूध नहीं देती ! इसलिए बेचारी मारी फिरती रहती है ! ”
“ बाबा, मुझे पता है जानवर को अधिक ठंड नहीं लगती ! अब जल्दी से सोने चलिए... सबेरे स्कूल जाना है मुझे । ”
“ बाहर शीतलहर चल रहा है।कोहरे से हाथ का हाथ नहीं सुझ रहा है! देखो, हमलोग देह पर कितना कपड़ा लादे हैं...| फिर भी ठंड के कारण घंटों से घूर ताप रहे हैं और ये...बेचारी, ठंड में बाहर ...!
पहले जब यह दूध देती थी तो इसके देह पर बोरा बंधा रहता था । अब दूध नहीं देती है, तो ठिठुर रही है! मालिक को इसका कोई परवाह ही नहीं है , कहाँ गयी!
खैर! अब चलो, राख को वहाँ फैला देते हैं..और इसके ऊपर से बोरा बिछा देंगे, बन जाएगा गद्दा । तब हमारी तरह यह भी गद्दे पर सो जाएगी ।” वहीं पड़े कुछ पुराने बोरे को समेटते हुए दोनों बाहर बरामदे के पास पहुँच गये |
रोशन जैसे ही राख भरी बाल्टी को छज्जे के नीचे उड़ेलने लगा, उसकी नजर कंपकपाती बूढी गाय पर पड़ी । वह तुरंत भागता हुआ अपने कमरे में पहुँचा । वहाँ बिस्तर पर बिछे कंबल को झटके से खींच कर बाहर खड़ी गाय के ऊपर लाकर ओढ़ा दिया |
बूढी गाय की आँखें डबडबा गईं। मानो वो बाबा से कह रही थीं ... ” फ़िक्र मत करो, " तुम्हारे बुढापे की लाचारी को तुम्हारा पोता भली-भाँती समझेगा |”
- मिन्नी मिश्रा
पटना - बिहार
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क्रमांक - 63
उपकार
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भयंकर आग लगी हुई थी। झोपड़ी धू धूकर जल गई। पशु बाड़े से पशुओं को किसी प्रकार निकाल दिया गया किंतु यह क्या? एक बच्चा आग में फंस गया और रोने की आवाज आ रही थी। तभी एक शेर सिंह नामक व्यक्ति आया और पानी लेकर आग में कूद गया। देखते ही देखते बच्चे को उठाकर बाहर तक दौड़ कर ले आया किंतु आग ने उसे पूरी तरह से लपेट लिया था। कपड़े जल गए परंतु वह बच्चे को
अपने हाथों में इस प्रकार उठाकर ले जा रहा था जैसे उसका अपना कोई बच्चा हो। कपड़ों में लगी आग को बुझा दिया परंतु यह क्या वो तो अधिकांश झुलस चुका था। तुरंत दोनों को बच्चे और शेर सिंह को अस्पताल पहुंचाया। डाक्टरों ने बड़ा दुख जाहिर करते हुए कहा कि इसका 80 प्रतिशत शरीर जल चुका है। अब इसका बचना नामुमकिन है किंतु सुरक्षित बच्चे की मां राक्षसों आंसुओं का सैलाब बहा रही थी और शेर सिंह के उपकार पर शत-शत नमन कर रही थी। परंतु वह बार-बार चिल्ला रही थी कि कोई शेर सिंह को बचा दे मैं अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दूंगी परंतु शेर सिंह ने एक बार आंखें खोली, बच्चे को आशीर्वाद दिया और अनंत राह पर चल दिया। आज भी उसके उपकार की कथाएं माई जा जा रही है।
- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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क्रमांक - 64
उपकार
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“इंगलिश पढ़ने आता है?”होने वाले ससुर जी कि कड़कती आवाज से काँप गई थी ,”साँवली और साधारण रूप रंग की ,कांता।”
बाबूजी,का हकलाना और ससुर जी की बात का गोल मोल जवाब देना।ठीक है ,ठीक है!उसकी ज़रूरत नहीं,”जतिन ने परिस्थिति को सँभाल लिया था।”
विधी विधान ,रस्मों और सात वचनों को पल्लू में बांध कांता जतिन की हो गई।
मुँह दिखाई के वक्त बुआ सास के कहे शब्द -हे !भगवान “हमार हीरे जैसे भतीजा को कोयला मिल गया! “पिघलते शीशे की तरह कानों को चीर गए थे।जतिन ने पहली बार जेठ की तपती धूप की तरह आग बरसाया था और सभी चुप।जतिन का चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहना ठंडी फुहार की तरह मेरे अंतर्मन को भिगो दिया था।
वक्त के साथ ही साथ ,बदलते मौसम की तरह मेरे जीवन में भी बदलाव आने लगे।
जतिन ने ना सिर्फ़ मुझे पढ़ाया,लिखाया बल्कि एक कामयाब डॉक्टर बना दिया।
बीमार बुआ सास ,पंद्रह दिनों से मेरे घर पर आकर इलाज करवा रही थी।मुझे खीरा ,ककड़ी खाते देखा तो बोल पड़ी -अरे! “सेब ,अंगूर खाओ इतना कमाती हो!”तब उन्हें मैंने मौसमी फलों और सब्ज़ियों के गुण बताया।बुआ जी ने कहा-बताओ तो !”हमको तो ज़रा भी नहीं सोहाता है ।हम समझते थे इ सब गरीबन सब का फल है।”
कांता ने,बुआ जी के इलाज में जी जान लगा दिया था।ठीक होकर वापस अपने घर जाते वक्त बुआ जी ने कहा -अरे!”मेरी बहू तो हीरा है !हीरा !”तेरा यह उपकार मैं कैसे उतारूँ?
बुआ जी के गालों पर लुढ़कते आँसुओं के सैलाब को पोंछने के लिए जब कांता ने रूमाल बढ़ाया तो बुआ जी ने कहा “बेटा बहने दो यह शर्मिंदगी के आँसू है...।”
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 65
इन्साफ
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"अपना बदला पूरा करो, तोड़ दो इसका गर्दन। कोई साबित नहीं कर पायेगा कि हत्या के इरादे से तुमने इसका गर्दन तोड़ा है। तुम मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट धारी विशेषज्ञ बनी ही इसलिए थी।" मन ने सचेत किया।
"तुम इसकी बातों को नजरअंदाज कर दो। यह मत भूलो कि बदला में किये हत्या से तुम्हें सुकून नहीं मिल जाएगा। तुम्हारे साथ जो हुआ वो गलत था तो यह गुनाह हो जाएगा।"आत्मा मन की बातों का पुरजोर विरोध कर रही थी।
"आत्मा की आवाज सही है। इसकी हत्या होने से इसके बच्चे अनाथ हो जाएंगे, जिनसे मित्रता कर इसके विरुद्ध सफल जासूसी हुआ।"समझाती बुद्धि आत्मा की पक्षधर थी।
"इसके बच्चे आज भी बिन बाप के पल रहे हैं। खुद डॉक्टर बना पत्नी डॉक्टर है। खूबसूरत है । घर के कामों में दक्ष है। यह घर के बाहर की औरतों के संग..।" मन बदला ले लेने के ही पक्ष में था।
"ना तो तुम जज हो और ना भगवान/ख़ुदा।"आत्मा-बुद्धि का पलड़ा भारी था।
तब कक्षा प्रथम की विद्यार्थी थी। एक दिन तितलियों का पीछा करती मनीषा लड़कों के शौचालय की तरफ बढ़ गयी थी और वहीं उसके साथ दुर्घटना घट गयी थी। जिसका जिक्र वो किसी से नहीं कर पायी। मगर वह सामान्य बच्ची नहीं रह गयी। आक्रोशित मनीषा आज खुश हो रही थी, जब वर्षों बाद उसे बदला लेने का मौका मिल गया। दिमाग यादों में उलझा हुआ था। मनीषा अपने दुश्मन को जिन्दा छोड़ने का निर्णय ले चुकी थी।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
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क्रमांक - 66
सुबह हो गई
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जब भी राम बाबू एम.डी.डी ए. की पार्किंग में अपनी कार खड़ी करते तुरंत एक छह-सात का बच्चा हाथ में कपड़ा लिए कार के शीशे साफ करने आ जाता। उसे पूरी तन्मयता से काम करते देख उनके हृदय में एक हूक सी उठती। खेलने-कूदने और पढ़ने के दिनों में यह इस तरह भटक रहा है।
आज जब कार खड़ी की तो वह उसके आते ही बोले..” तेरा नाम क्या है रे बच्चे और कहाँ रहता है?
“ माँ-बाप ने जो नाम रखा वह तो उनके जाने पर उन्हीं के साथ चला गया। अब तो सब मुझे ठलुआ कह कर बुलाते हैं। एक घर में बहुत से बच्चे रहते हैं। वहीं मैं भी रहता हूँ। रखने वाला जो काम करवाता है करता हूँ, ना करूँ तो बेरहमी से पिटता हूँ।”
सुन कर राम बाबू के आगे अपना अतीत आ गया। अगर उस दिन वह अम्मा न मिलती तो क्या आज राम बाबू की कोई पहचान होती। वह इसे ठलुआ नहीं रहने देंगे। इसकी पहचान बनेंगे।
“ चल यह कपड़ा फेंक और गाड़ी में बैठ।”
कल अपने डी.आई. जी मित्र से इसे गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया पता करूँगा”...सोच कर घर की ओर चल दिए।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 67
कैसे चुकाऊंगा
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लॉकडाउन में परदेस में फँसे राजू रिक्शा वाले के पास घर वापसी के पैसे भी ना थे ऊपर से उसका घर वहां से पूरे 400 किलोमीटर दूर था ।
बेचारा भूखा प्यासा राजू अपने रिक्शे को ही हमसफर बना घर की राह वापस हो लिया । रिक्शे पर उसने कुछ सामान रख लिया था जो उसकी जो परदेस में कमाई कुल पूंजी से लिया गया था।
रास्ते में मई की दोपहरी के वक्त तेज धूप से हाँफते हुए प्यास से विह्वल हो उठा । वह पानी की तलाश करता आगे बढ़ रहा था कि एक गांव में कुछ दूर पर नल दिखाई दिया । राजू नल के पास पानी पीने के लिए ज्यों आगे बढ़ा ही था कि उसी गांव के बुजुर्ग शंभू नाथ ने उसकी दशा को भाँपते हुए कहा ,कि बेटा धूप से चलकर खाली पेट पानी पियोगे तो नुकसान करेगा ,आओ कुछ खा लो। रिक्शा वाले पर तो मानो भगवान को ही दया गई , वह तुरंत बूढ़े शंभू नाथ के आमंत्रण पर उनकी झोपड़ी की तरफ चल दिया क्योंकि वह बहुत भूखा भी था । वहां शंभू नाथ ने उसे भरपेट खिचड़ी खिलाई और चलते वक्त अस्सी रुपये भी यह कह कर दिए कि ,रख ले बेटा तेरे रास्ते में काम आएंगे ।
राजू आश्चर्य से उनकी ओर देखता हुआ बोला ,बाबा आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा !! मैं कैसे चुकाऊंगा यह आपका प्यार !!
उसकी आँखों मे चलते वक्त अनायस ही कुछ आँसू छलक पड़े।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 68
उदारता
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हरीराम अपनी पत्नी की दवाई लेने के लिए एक मेडिकल स्टोर में घबराए हुए पहुंचे।
हरीराम ने मेडिकल स्टोर वाले से कहा-"भैया मेरी पत्नी को बहुत तेज बुखार है। "
मेडिकल स्टोर वाले रतन ने कहा- तो मैं क्या करूं?
जाने कहां से चले आते हैं सुबह-सुबह।
मेडिकल स्टोर वाले के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।
हृदय में गहरी चोट की तरह चुभ गए। उनके मन में ताकि गरीब और गरीबी का हर कोई मजाक बनाता है। थोड़ी हिम्मत जुटा कर हरीराम ने कहा -"बेटा बुखार की कोई दवाई दे दो।"
रतन ने कहा -"थोड़ी देर रुकने के बाद ही दवाई मिलेगी ,अभी मैं हिसाब करने में व्यस्त हूं।"
हरिराम कहा -"बेटा मुझे जल्दी है।"
रतन चिल्लाकर कहा- हर कोई घोड़े पर सवार होकर आता है।
उसने दवाई निकाल कर दी ।
बिल बना कर कहा ₹500 दो।
हरीराम ने कहा-
" भैया मेरे पास तो इतने पैसे नहीं है तुम १०० रुपया ही ले लो।"
रतन ने कहा- देखो पैसे तो पूरे देने पड़ेंगे नहीं तो दवाई मत लेकर जाओ।जब पैसे नहीं थे तो दवाई लेने क्यों आ गए और सुबह सुबह मुझे काम भी नहीं करने दिया।
हरिराम चेहरा एकदम पीला हो गया ।
दवाई को लालच भरी नजरों से देख रहा था।
उस मेडिकल स्टोर में काम करने वाले नौकर को उसके ऊपर दया आ गई और उसने कहा सेठ जी इनको दवाई दे दो।
रतन ने कहा -ठीक है तुम्हें इतनी दया आ रही है तो तुम ही दे दो।
श्यामलाल ने कहा -मेरी तनखा में से काट लेना आप।
रतन ने कहा- फिर मत कहना कि मुझे कम पैसे दिए हैं।
हरिराम ने लपक कर दवाई उठा ली ।
हरिराम ने कहा- "बेटा तुम सदा सुखी रहो भगवान तुम्हारी सारी इच्छा पूरी करें बेटा तुम्हारा नाम क्या है।"
उसने कहा- "मेरा नाम श्याम लाल है।"
हरीराम ने कहा -"बेटा मैं तुम्हें पैसे अवश्य लौटा दूंगा।"
दोनों बात ही कर रहे थे तभी अचानक रतन जमीन पर गिर पड़ा।
हरिराम ने कहा-अरे !इसे क्या हो गया?
श्यामलाल ने कहा -बगल में अस्पताल है।
आप यहां रुको मैं डॉक्टर साहब को बुला कर लाता हूं।
डॉक्टर ने कहा - कमजोरी के कारण चक्कर आ गया है, थोड़ी देर बाद ठीक हो जाएगा।
यह सुनकर हरिराम ने गहरी सांस ली ।
श्यामलाल से कहा -"बेटा मेरी पत्नी बीमार है अब मैं घर जाता हूं।
तुम मेरा नंबर लिख लो और मुझे फोन करना और बताना कि तुम्हारे सेठ की तबीयत कैसी है।
मेरे मन में चिंता लगी रहेगी बेटा मैं तुम्हारे फोन का इंतजार करूंगा।
बेटा तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद तुम्हारे जैसे उदार बेटे भगवान सबको दे।
श्यामलाल की निगाहें हरिराम को देखतेरहती है ।
कुछ क्षण बाद उसकी आंखों से ओझल हो जाता है।श्यामलाल सोचता है कि जीवन के कितने रंग हैं प्रभु........।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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क्रमांक - 69
उपकार
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"आइए हाथ दीजिए मांझी मैं आपको सड़क पार करवा देती हूं"। नेहा जो की स्कूटी से कहीं से आ रही थी ने जब एक बुजुर्ग महिला को सड़क के दूसरी ओर जाने में संघर्ष करते पाया तो, स्कूटी को सड़क के किनारे पार्क कर उन बुजुर्ग महिला की मदद के लिए तुरंत ही आ गई। जैसे ही मांझी को सड़क पार करवाई और वापस स्कूटी की ओर आने के लिए मुड़ी तो देखा ट्रैफिक पुलिस नेहा की स्कूटी लेकर जा रही थी। वह दौड़ी ताकि स्पष्टीकरण दे सके, लेकिन तब तक ट्रैफिक पुलिस की गाड़ी पास के ट्रैफिक पुलिस स्टेशन के लिए निकल चुकी थी। स्नेहा ने तुरंत ही ऑटो किया और पुलिस स्टेशन पहुंचकर अपना स्पष्टीकरण दिया तब ट्रैफिक पुलिस ने पुष्टि करने के लिए सीसीटीवी कैमरे में देखकर सच्चाई जानकर स्नेहा की सराहना करते हुए बिना किसी पेनाल्टी के गाड़ी लौटा दी और ऐसे ही लोगों की मदद करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा कि, अगली बार से गाड़ी को ध्यान से पार्किंग में ही लगाना।
- डाॅ शैलजा एन भट्टड़
बैंगलोर - कर्नाटक
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क्रमांक - 70
जुगाली
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सुखवंती अपने कमरे मे अकेली बैठी थी।भरापूरा परिवार है उस का।पर पति के स्वर्गवास के बाद कुछ अकेली पड गई थी।यूँ तो उसका अपना एक कमरा है,जिस मे पलंग, रेडियो अलमारी पूजा घर है।बच्चों ने पढने के लिए अखबार भी लगवा दी है।मानव और मानसी उसके पोता पोती हैं उसपर जान झिडकते हैं। वो प्रातः काल उनके बस्तो को उठा कर स्कूल बस पर बिठा कर आती है ।फिर बहू केआफिस जाने के बाद निचले कमरो की सफाई करती,बच्चों के वापस आने पर खाना, फल देना ,गृह कार्य के लिए बिठा देती
बहू की हिदायत है कि बच्चो के मामले मे कोताही नही।
नया जमाना है माँ जैसा मैं कहूं वैसा ही करना आप।शाम को बेटा बहू के आते ही चाय बना कर अपने कमरे मे चली जाती है।बेटा आकर बिस्किट. वगैरह दे जाता है।यह संकेत था कि अब बाहर उसकी जरूरत नही है।
पर आज उसका पोता दौडता आया, दादी की गोद मे बैठ कर बार बार उसका मुँह गौर से देख रहा था।फिर भोलेपन से पूछा, दादी आप गाय हो क्या। मानव थोड़ी देर चुप बैठा फिर बोला.,अभी माँ पापा से कह रही थी कि थोड़ी देर बाद ही माजी नीचे आकर जुगाली शुरू कर देगी। वही घिसी पिट्टी आप बीती बातें पुरानी कहानियां।आफिस मे सिर खपा कर आओ फिर घर पर इनकी जुगाली सहो।
. मानव तो यह कह कर नीचे चला गया और सुखवंती सोच रही थी हाँ वो दिनभर जुगाली करती है खाली कमरों से,कपड़ों से,बर्तनों से, झींकते बच्चों से। पास के कमरे से बहू की तेज आवाज आ रही थी।वह अमन को अपने आफिस के अक्षय के किस्से सुना रही थी। ****
- डा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 71
कुर्सी
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"मम्मी,आज मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा.!"
सात वर्षीय यश ने कुर्सी पर बैठते हुये अपनी मां से कहा
"नहीं बेटा,इस कुर्सी पर तुम्हारे पापा बैठगें, यह कुर्सी हेड ऑफ द फैमिली का है,जो घर का बडा होता है,वह इस पर बैठता है.!"
"अच्छा,यह बात है ठीक है.!"
बोलते हुए यश अपने दादाजी के कमरे की ओर भागा,यश के दादाजी अपने पलंग के सामने रखे स्टूल पर खाना आने का इंतजार कर रहे थे।
"दादाजी-दादाजी..चलिये आज से आप यहाँ नहीं वहाँ बैठ कर खायेगें.!"
"नहीं बेटा.. रहने दो.. मैं रोज यही बैठ कर खाता हूँ..!"
"नहीं दादाजी..आज से आप यहाँ नहीं खायेगें, उठिये न..चलिये.!"
वह जिद करने लगा,उसने दादाजी का हाथ पकडा और ले जाकर उस कुर्सी पर बिठा दिया और बोला,
"दादाजी,यह कुर्सी हेड ऑफ द फैमिली की है..इस घर के हेड ऑफ द फैमिली तो आप है.. आज से आप इस कुर्सी पर बैठ कर खायेगें..है न मम्मा.!"
यह देख कर यश के माता-पिता का सर लज्जा से झुक गया.. दादाजी के आँखों से आँसूँ बरस रहे थे........।
- डॉ.विभा रजंन (कनक)
नई दिल्ली
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क्रमांक - 72
आंह - वाह
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शांतिदेवी ने आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वृद्धाश्रम की महिलाओं के साथ खूब धूमधाम से मनाया खाना खजाना, गाना बजाना ,भजन कीर्तन और भी बहुत कुछ, वहां निवासरत महिलाएं भूल चुकी थी कि वे वृद्धाश्रम में रह रही हैं एक खुशनुमा माहौल, सभी के मध्य प्रसन्नता की बयार शाम पांच बजने पता तब चला जब बाहर कार का हार्न बजा , हार्न सुन शांति देवी सभी से पुनः आने का वादा कर सस्नेह हाथ जोड़ विदा लेते हुए जैसे ही बाहर जाने को मुड़ी तभी एक वृद्ध महिला की व्यथा जुबान पर आ ही गई -
' दीदी ! आप बहुत किस्मत वाली हैं जो आप को ऐसा बेटा मिला काश ! हमारे बेटे भी ऐसे ही होते तो हमें भी आश्रम का मुंह नहीं देखना पड़ता '
जवाब में सांत्वना भरे शब्दों में शांति देवी बोली -
' बहन जी ! आप निराश मत होइये यह मेरा बेटा नहीं दामाद है' ****
- मीरा जैन
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 73
स्पष्टीकरण
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"आज क्या खाया?"
"आज तो सूखी सब्जी थी,आलू प्याज की,और वही दाल रोटी और थोड़े से चावल!"
"ओह ,थोड़े से चावल!तुम्हे तो ज्यादा चावल खाने की आदत थी न,खैर ।"
"और आपने?आपने क्या खाया?"
"आज तो मज़ा आ गया खाने में!बहुत दिनों बाद चटखारे लेकर खाया,"बोलते मुख में पानी भर आया,"रस मलाई,मटर पनीर की सब्जी ,फ्राइड राईस, मसालेदार दाल, और टेस्टी पूड़ियाँ!वाह"फिर बोलता स्वर एकाएक उदास हो उठा,"शायद कोई मेहमान आए हुए थे आज।"
उक्त वार्तालाप ,उपेक्षित हालात के मारे बुजुर्ग दंपती का है जो किसी होटल या पार्टी में नही , घर से दूर रोज़ ,अपने दो जवान बेटों के घर, खाना खाने जाते हैं।अलग-अलग घरों में ,एक अलिखित अनुबंध के तहत! ****
- संतोष सुपेकर
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 74
बर्फी की मिठास
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"ये तिल लाया हूँ। बर्फी बना लेना।" अरविंद ने तिल का पैकेट रखते हुए कहा।
"मुझे कहाँ आती है बर्फी बनाना। प्रसाद के लिए बाजार से बनी बनाई ले आते, झंझट खत्म।" मीरा खीज कर बोली।
"क्या करूँ दुकानदार ने जबरन पकड़ा दिए। इंटरनेट पर देख लेना बहुत सी विधियाँ मिल जाएँगी बर्फी बनाने की। इंटरनेट सबका गुरु है।" अरविंद बोला और ऑफिस के लिए निकल गया।
मीरा ने तीन-चार विधियाँ देख लीं लेकिन कुछ समझ नहीं आया। ठीक नहीं बनी या बिगड़ गई तो तिल बेकार हो जाएंगे। तभी पड़ोस की काकी का ध्यान आया। काकी से पूछकर बनाउंगी तो बिगड़ने पर पूछ तो पाऊँगी कि अब क्या करूँ। पर आज तक तो कभी उनके पास जाकर बैठी नहीं अब अपने काम के लिए जाना क्या अच्छा लगेगा। लेकिन कोई चारा नहीं था तो पहुँच गयी।
"अरी बिटिया आओ-आओ।" काकी उसे देखते ही खिल उठी।
"वो काकी मुझे तिल की बर्फी बनानी थी। क्या आपके पास समय होगा जरा सा" मीरा ने संकोच से पूछा।
"हाँ क्यों नहीं बिटिया अभई चलकर बनवा देत हैं। उ मा कौन बड़ी बात है।"
काकी सर पर पल्लू देती हुई तुरंत चली आयी मीरा के साथ। तिल की बर्फी बनाते हुए तिल के और भी न जाने कितने व्यंजन और यादें सुना दी काकी ने। मीरा देख रही थी कि काकी अनुभव और ज्ञान का जैसे खजाना है और वो अब तक पड़ोस में रहते हुए भी इस खजाने से वंचित रही। काकी से बात करते हुए कितना कुछ सीख सकती थी वो अब तक।
जरा सा अपनापन और मान देते ही स्नेह का झरना फूट पड़ा उनके हृदय से। आभासी गुरु में यह स्नेह, यह आत्मीयता, जीवंतता कहाँ मिलती है भला।
"ये लो बिटिया। बन गई तोहार तिल की बर्फी।" उनके पोपले मुँह पर प्रसन्नता और संतुष्टि थी।
मीरा चकित थी दूसरे की मदद करके इतनी खुशी भी हो सकती है किसी को।
"अब आप आराम से बैठिए काकी। मैं चाय बनाती हूँ। कितना कुछ सीखना है आपसे अभी।"
काकी के पोपले मुख पर छाए स्नेह के भावों की मिठास ने मीरा को तृप्त कर दिया। अब जो भी सीखना है, इसी जीती जागती गुरु से ही सीखूंगी। ****
- डॉ विनीता राहुरीकर
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 75
कचरा
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प्रतिदिन गली में आने वाली स्वीपर प्रत्येक घर के सामने झाड़ू लगाते हुए अपना निर्धारित वाक्य दोहराती- " आंटीजी, कचरा" तथा प्रत्येक घर उसका आशय जान उसकी हाथ-ट्राली में कचरा डाल देते, परन्तु मेरे पड़ोस में जब भी वह आती तब उसके वाक्य में परिवर्तन हो जाता-" दादाजी, कचरा" क्योंकि दादाजी प्रतिदिन उसी समय अपने घर के आंगन तथा आसपास की सफाई कर कचरा डस्टबिन में डालते, फिर उस स्वीपर की हाथ-ट्राली में ।
आज भी दादाजी व्यस्त थे तथा उनकी बहू दरोगा की माफिक बरामदे में खड़ी अपने ससुरजी की गतिविधियों को देख रही थी । जैसे ही स्वीपर ने "दादाजी कचरा" कहा वैसे ही उन्होंने उससे प्रश्न किया -" तुम मुझे इस ट्राली में कहां डालोगी ?"
स्वीपर ने कहा- " क्यों मजाक करते हैं दादाजी....।"
"तुम ही तो रोज कहती हो दादाजी कचरा ।"
"वो तो दादाजी .... मैं कचरा मांगती हूं ।"
"नहीं बेटा, मैं तो अब रोज कचरा होता जा रहा हूं...।"
दादाजी की बात को वह तो हंसी-ठिठोली समझ आगे बढ़ गई । और बहू उनके आशय को समझ नाराजगी प्रकट करती, घर के अन्दर । ****
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 76
सांझ की व्यथा
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राधा उठना चाह रही थी पर शरीर साथ नहीं दे रहा था। श्यामा से मिलने को मन बैचेन था। अपने आप को इतना असहाय तो कभी महसूस नहीं किया था।
श्यामा का जन्म उसके ही सामने तो हुआ था श्यामवर्ण माथे पर सफेद तिलक बड़ी-बड़ी मोहक आंखों ने सचमुच मन मोह लिया था। राधा ने श्यामा को कभी भी गाय नहीं माना था,राधा तो श्यामा की मां थी और श्यामा राधा बच्चों की मां। श्यामा का खाना पीना और दुलार राधा की दिनचर्या का अभिन्न अंग था। बच्चे भी राधा की हिदायत के कारण आज भी उसे श्यामा न कहकर श्यामा मां ही कहते हैं। नाती पोतों ने भी श्यामा का दूध चखा है।
पर अब श्यामा दूध नहीं देती बेटे को उसको खिलाना अखरने लगा है। पहले तो राधा वाॅकर की सहायता से आंगन तक पहुंच जाती थी और श्यामा की पीठ सहलाकर दोनों ही खुश हो लेती थी। अब आंगन में किसी और का कब्जा है। पोता गोलू कह रहा था "दादी पापा श्यामा मां को कहीं भेजने वाले हैं।" सुनते ही मन चीत्कार उठा "कहीं कसाई को...."
"नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"
"बेटा, गोलू जो कह रहा क्या वह सच है।"
"हां मां।"
"बेटा अब तो उसकी खुराक भी कम हो गई है रहने दो न उसे यहीं।" मिन्नत भरे स्वर में
"जगह ख़ाली होगी तभी तो दूसरी गाय आ पाएगी।"
"लेकिन बेटा तुम उसका दूध पीकर ही बड़े हुए हो।" मनाने की एक और कोशिश करते हुए
"उसी दूध के कर्ज के कारण कसाई को नहीं दे रहा हूं, गौशाला भेज रहा हूं। वहां इसकी अच्छे से देखभाल हो सकेगी और खाना भी भरपेट मिलेगा।"
मां को उदास देख
"अरे! मां मैं कभी कभी उसे देख भी आया करुंगा।"
बुढ़ापे का ऐसा हश्र सोचते ही मृतप्राय अंग में भी सिरहन दौड़ उठी।
"श्यामा ने तो दस साल दूध पिलाया है और मैंने तो सिर्फ एक साल।" सोचते ही मन अनजानी आशंका से घिर उठा।"
- मधु जैन
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 77
मुक्ति
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'नहीं मनाऊँगी विवाहव की पचासवीं वर्षगांठ।' दृढ़ निश्चय किया सुलभा ने।
घर में तैयारी चल रही थी। मेहमानों की लिस्ट बनाई जा रही थी। आखिर सुलभा ने पति से पूछ ही लिया,"यह सब किसलिए?"
"हमारे विवाह की स्वर्ण-जयंती।"श्रीकांत ने कहा।
"यानि,आधी सदी से मैं आपकी हर नाजायज़ बातें झेलते-झेलते बूढ़ी हो गई।इसे सेलिब्रेट करना चाहते हैं आप?"सुलभा माथे पर झूलती बालों की सफेद लट को दिखाते हुए बोली।
"बूढ़ा नहीं हुआ मैं। कुछ हसरतें बाकी हैं।लोग आयेंगे, खुशी मिलेगी।"श्रीकांत निमंत्रण पत्र पर नाम लिखते हुए बोले।
"अठारह बरस की उम्र में ब्याह कर लाते थे आप मुझे।तब से लेकर अब तक आपने मेरी भावनाओं के साथ खेला, मुझे शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी। मैं खामोशी से सब कुछ सहते हुए रिश्ता निभाती रही।अब खुशी किस बात की?"सुलभा ने पूछा।
"अब भूल भी जाओ उन बीती बातों को।"
श्रीकांत की बात सुनकर सुलभा बिफ़र गई।"अपनी हसरतें पूरी करने के लिए आप मुझे भावनात्मक रूप से जो झिंझोड़ते रहे, उनकी सिलवटें बाकी हैं मेरे मन में। क्या उन यादों से मुक्ति मिल सकेगी मुझे इस स्वर्ण जयंती समारोह में?"
श्रीकांत क्या कहते? पत्नी को अर्धांगिनी माना ही नहीं कभी।
- शील निगम
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 78
घोंसला
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एक चिड़िया ने प्रियांश जी के घर के कोने में रखी अलमारी पर अपना घोंसला बना लिया, उसमे दो अंडे दिये। कुछ समय बाद अंडों में से दो प्यारे बच्चों का आगमन हुआ।
रविवार को प्रियांश जी के दोस्त संतोष जी आये। बात करते हुए उनकी नजर घोंसले में खेल रहे चिड़िया के दोनों बच्चों पर गयी। खेलते हुए दोनों जोर जोर से चीं चीं करने लगे, शायद वे झगड़ रहे थे। अपने बच्चों का शोर सुन चिड़िया आयी, उन्हें दाने खिलाये, बच्चे शोर मचाने को छोड़ खाने लगे।
संतोष जी ने प्रियांश जी से कहा," यार, इस घोंसले को अपने यहाँ से हटवाते क्यों नहीं, क्या इस शोर से तुम्हे सिरदर्द नहीं होता?" प्रियांश जी ने कहा," कैसे हटा दूँ संतोष? जब से इस चिड़िया ने यहाँ बच्चों को जन्म दिया, मेरा सूना घर एक बार फिर आबाद हो गया। इन्होंने मुझे चीनू व मीनू का बचपन याद दिला दिया, वे भी ऐसे ही शोर मचाया करते थे, तब तुम्हारी भाभी विमला भी इस चिड़िया के जैसे ही उन्हें चुप कराती थी। अब वे पढ़ लिखकर काम के सिलसिले में अलग अलग जगह जाकर बस गये। कहते कहते प्रियांश जी के चेहरे पर उदासी के बादल छा गये, आँसुओं की बूँदाबाँदी भी होने लगी, जब बादल कुछ छँटे तो उन्होंने दोस्त से दु:ख साझा करते हुए कहा कि और एक वजह है जिससे मैं घोंसला नहीं हटा रहा। संतोष जी ने पूछा कि क्या वजह है? प्रियांश जी ने कहा," एक दिन यह चिड़िया भी बूढ़ी हो जायेगी, उसके बच्चे भी बड़े होकर अपनी राह चल देंगे। तब चिड़िया और मैं अपने घर में रहकर अकेलेपन में एक दूसरे का सहारा बनेंगे।"
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 79
बुजुर्ग जीवन
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बाबूलाल काफी दिनो से घर से निकलनही रहा है। क्या बात है, विचारा अकेले है।आगे पीछे कोई होता तो शायद इसकी देखभाल करता।ऐसे ही बाते चौराहे में कुछ बुजुर्ग लोग आपस में चर्चा कर ही रहे तभी किसी ने आकर कहा बाबूलाल नही रहा। सभी लोग बाबूलाल के घर पहुचे और कहने लगें अच्छा हुआ कि चला गया।कब तक ऐसे ही जीवन यापन करता।पूरी जिंदगी इधर उधर करके काट लिया।बीमार भी था काफी दिनों से चलो अब दाह संस्कार की तैयारी करते है। और तैयारी करने तभी बूढ़े लाश को देखकर एक बुजुर्ग बात बात में कह ही डाला कि ये बुजुर्ग जीवन ही कुछ इस प्रकार का है। *****
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 80
बेटी
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अरी बहु !फिर तेरे लड़की हुई है । दो लडकियाँ तो पहले से ही हैं । ये हमारे लिए दहेज का बोझ है , इसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती हूँ।
माँ जी ! हम और आप भी तो किसी की लड़की हैं। तुमने भी घर बसाया है और मैंने भी । यह भी हमारे तरह किसी वंश की लाली है। इसे मैं पढ़ा - लिखा के पैरों पर खड़ा कर दूँगी। किसी पर बोझ नहीं बनेगी
यह तो तब करेगी , जब यह जिंदा रहेगी।
माँ जी , यह क्या कह रही हो ?
हा , मैं इसे कचरे की कुंडी में फेंक दूँगी ।
नहीं , माँ ऐसा पाप नहीं करना। मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगी । मैंने इसे खून से नौ माह गर्भ में सींचा है।
जा निकल घर से कलमुँही ...
मेरे पति कहेंगे तो निकल जाऊँगी।
हमें बेटी नहीं बेटा चाहिए , बेटी समाज में सुरक्षित नहीं है पति ने कहा
यह लो मंगलसूत्र
चलो , बेटी नानी के घर .... ।
हा मम्मी ! नानी तो प्यार करती है।
माँ ! मेरे मंगलसूत्र के मोती बिखर गए । अब तुम मुझे सहारा देकर उपकार करो ।
हाँ बेटी ! तू मेरा स्वाभिमान है।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 81
उपकार
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चतुर्वेदी साहब शहर के एक नामांकित और प्रतिष्ठित वकील थे। उन्होंने वकालत के सम्मानजनक व्यवसाय द्वारा खूब धन -दौलत और शोहरत कमाई थी और वकालत शुरू करने के दस -बारह वर्ष में ही उनका नाम इस शहर के सबसे बड़े, विख्यात और प्रतिष्ठित वकील के रूप में लिया जाने लगा था। एक अच्छे वकील होने के साथ -साथ चतुर्वेदी साहब की समाज में इज़्जत एक सहृदय और दिलदार व्यक्ति के रूप में भी थी। एक मर्तबा उनकी अपार धन -दौलत से आकर्षित हो एक चोर ने रात्रि के अंधकार में, चोरी करने के उद्देश्य से चतुर्वेदी साहब के घर में प्रवेश किया। जब वह घर के एक तरफ़ के दरवाजे को तोड़ने का और घर में सेंध लगाने का प्रयास कर रहा था, तभी चौकीदार ने उसको देख लिया और उस चौकीदार की सतर्कता से वह चोर पकड़ा गया। जब चौकीदार ने उस चोर को पकड़ कर चतुर्वेदी साहब के हवाले किया तो चोर को पक्का यकीन था कि चतुर्वेदी साहब उसे मार -पीट कर अवश्य ही पुलिस के हवाले कर देंगे। मगर चतुर्वेदी साहब ने उसे अपने सामने बैठाकर चोरी करने का कारण पूछा। चोर ने रोते हुए बताया कि उसकी पत्नि बहुत बीमार है मगर घर में अत्यधिक गरीबी होने की वज़ह से वह उसका ईलाज नहीं करवा सकता। यह सुन कर चतुर्वेदी साहब का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने चोर को उसकी पत्नि के ईलाज के लिए समुचित धन प्रदान किया और उससे यह वचन लिया कि भविष्य में वह कभी भी चोरी नहीं करेगा। चतुर्वेदी साहब के अपने प्रति किए गए इस उपकार को चोर कभी नहीं भूला और उसने चोरी करना छोड़, मेहनत से अपनी रोज़ी रोटी कमाने का दृढ़ संकल्प कर लिया।
- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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क्रमांक - 82
उपकार
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मधु की शादी मंडप में दहेज की लेन-देन के कारण टूट चुकी थी। बारात के लौटते हीं लोग तरह-तरह के बातें बनाना शुरू कर दिए थे। मधु निर्जीव-सी ठगी-सी खड़ी थी। उसके माता-पिता सिर पकड़ कर एक कोने में बैठे थे।
तभी मधु के भाई का दोस्त राजीव ने उसके पिता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। ऐसी विकट घड़ी में किसी का आगे आ कर प्रस्ताव रखना उनके हृदय के बुझते दीये में रोशनी भर दी थी। उन्होंने मधु की इजाजत लिए बगैर हामी भर दी।
मधु शादी के बाद राजीव के साथ ससुराल चली गई। राजीव का व्यवहार समय-समय पर बदलता। किसी भी बात पर भड़क जाता, गलत व्यवहार करता, मानो भावावेश में लिए गए निर्णय पर पछतावा हो पर मधु खुशी- खुशी सब झेल लेती क्योंकि उसके उपकार का भाड़ भारी पड़ जाता। विकट घड़ी में समाज के बीच किये गये उपकार के तले वह दबी रहती।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 83
नेहिल बूंदे
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सुबह से कितनी बारिश हो रही है, आज तो सूरज देवता के दर्शन भी नहीं हुए, खिड़की से बाहर की ओर देखते हुए रमन ने कहा ।
अनु आज बेसन की सब्जी बनाओ , इतनी बारिश में कोई सब्जी बेचने नहीं आयेगा ।
तभी उसे सब्जी वाले की आवाज सुनाई दी ।
अनु देखो तो इस बारिश में भी ये सब्जी वाला आया है ।
अनु छाता लेकर बाहर गयी, उसने उससे पूछा , भैया चारों ओर तो पानी - पानी है ; फिर तुम कैसे आए?
अरे ये क्या...? पूरा भींग गये हो, इतनी तेज बारिश में मत आया करो ।
क्या करूँ दीदी , ऐसे समय जब कोई नहीं निकलता; तब ज्यादा दाम मिल जाता है । आज कोई ग्राहक मोल- तोल भी नहीं कर रहा है , पूरी कालोनी में मेरा ही राज है ।
कोरोना के समय बहुत से लोग इस धंधे में आ गए थे जिससे बिक्री कम हो गयी थी ।
हाँ, ये तो है, धीरे से अनु ने कहा ।
रमन ने अंदर से कहा अनु इसे कपड़े दे दो ये बदल लेगा । और हाँ गर्म चाय भी जरूर देना ।
आसमान की बारिश तो थम चुकी थी किन्तु सब्जी वाले की आँखों से अभी भी नेहिल बूंदे बहती जा रहीं थीं जो उसके गीले कपड़ों को और गीला कर रहीं थी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 84
अब मेरी मजदूरी का क्या होगा...?
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बसंत बैठा_बैठा सोच रहा था, अब क्या होगा?
महामारी ने फिर से सारे शहर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था । आज शाम को तय हो जाना था कि फेक्ट्री चलती रहेगी या उसे फिर से बंद करना पड़ेगा ।बसंत बारबार विचार कर रहा था कि हमें वापस गाँव चले जाना चाहिए या नहीं वह निर्णय नहीं कर पा रहा...... वहाँ भी तो कोई काम नहीं है.. किस के घर मजदूरी करने मिलेगी!
" अगर फैक्ट्री बंद करने की बात हो गई तो तय था कि मालिक सारे मजदूरों को फिर से घर बिठा देगा । और फिर से भूखों मरने की नौबत भी आ जाएगी । पिछली बार तो उसके साथ " रधिया"अकेली थी ।किसी तरह फांकों के बीच मारते - मारते दो महीने बीता लिए थे , घर बैठकर और उसके बाद जब गांव के लिए पैदल ही तीन सौ मील का रास्ता तय किया था तो इतने लम्बे रास्ते में न जाने कितनी बार मौत से सामना हुआ था ।
अगर इस बार फिर वही नौबत आ गई तो मौत तय है क्योंकि इस बार "रधिया"अकेली"ही नहीं , नन्हीं सी जान " गंगो "(नन्ही पुत्री) को कैसे संभालेंगे ? बिना काम के , बिना मजदूरी के उसकी भूख प्यास कैसे मिटेगी ?
अभी तो रेल बंद नहीं हुई है तो क्यों न अभी ही जल्दी लाकडाउनसे पहले ही गांव की टिकट करवा लूं ? वक्त रहते गाँव तो पहुँच जायेंगें। लाकडाउन हो गई तब तो यहां मौत पक्की ही समझो । "
बसंत ने अपना इरादा रधिया को बता दिया ।
पति की बात को सुनते ही रधिया सुन्न सी हो गई ।
" कछु बोल क्यों नहीं रही ? हम तय किए हैं कि बखत रहते गांव चल पड़त हैं । या दफे पैदल नाहीं चल सके। "(सकते)
रधिया अब भी चुप थी।
" कछु तो बोल । हम जात हैं टिकट करिईबे। " बसंत नेझल्लाया कर कहा__
"का बोलत हो्् का कहत हो । गांव में तुम्हरे बदे भंडारे होत हैं का..,. या होटल खुले हैं का..... जोन उते खों जैहो । किस्मत भली रही जे फेक्ट्री मालिक तुम्खों बुलालेहैं .....बतावा हमका , तुमई बताओं कै जब हम ऊ बैर गाँव खो गया रहैं तो कोन_ कोन खों खुस भउतो? रोजई तो दार- भात चावल के लाने झगड़ा - टंटा होत रहों....बो तो किस्मत जोर मार गयी जोन मालिक के बुला लओ नईं तो तुम्हरे भइयन संग हिसाब बाटको चक्कर में एकद -खों खून भओं जात रहों......सुन लेओ , मरे चाहे जिये.....ना हम जे हैं ओर ना तुमहै जान दें हैं..अब हम एई सहर में आसा( आशा) कि जोत जगाने रहैं...., हम ई सहर छोड़ कै नै जैहैं| इतई रहैवैऔ...। जो कहूं हूहैं उसे काम चलालैहैं.... जोकि हुईहैंओई से काम चला लैहैं तुम्है सोच फिकर कर बैंक की जुरूरत नईकरबैं....देख लेब , , हम खुदई देख लेब। " रधिया ने अपना निर्णय ,बसंत को आत्मनिर्भरता और स्वभिमान के साथ सुनाने अपना दिया।
बसंत को लगा रधिया ने परिस्थितियों महामारी के जीना आशा वादी बन कर सीख लिया है..ठीक कह रही है। घर से बाहर नहीं जाना है....मास्क लगा कर.... महामारी से बचाव निर्देशों का पालन करना है अब उसकी जिंदगी का हर दुःख , हर सुख इसी शहर के साथ है। आशा के दीप जलाए...वो किसी नए काम के बारे में सोचने लगा। ..
हम मजदूर है मजबूत नहीं...स्वभिमान का काम करेगें....कहीं भी ****
- कुमारी चन्दा देवी स्वर्णकार
जबलपुर मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 85
राजनीति का गणित
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विधायक के मंत्री बनते ही प्रधान रौणकी राम ने पत्नी से सलाह की कि-- क्यों न मंत्री महोदय को घर में बुलाया जाये और नुवाले [शिव पूजन] का आयोजन उनके हाथों संपन्न करवाया जाए | ‘परन्तु इससे हमें क्या मिलेगा?’ पत्नी ने चेताया | रौणकी राम बोले- तू भी बड़ी भोली है | तुझे राजनीति का गणित नहीं आता | हम भी बिना लाभ के कोई काम नहीं करते | रौणकी राम ने शेखी बघारी | पत्नी चुप हो गयी | प्रधान ने निर्धारित तिथि पर मंत्री जी को नुआले में पधारने के लिए निमन्त्रण दे दिया और साथ में यह भी बता दिया कि मैंने आपके मंत्री बनने के लिए भगवान शिव से मन्नत की थी कि आप जीत कर मंत्री बन गये तो मैं अपने घर में नुआला [शिव पूजन] करवाऊंगा | इसलिए नुआले की सारी रस्म-पूजा आप ही के कर कमलों से सम्पन्न होगी | मंत्री महोदय ने ख़ुशी- ख़ुशी निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और निर्धारित तिथि को अपने लाव- लश्कर के साथ प्रधान के घर पहुँच भी गये | कई विभागों के अधिकारी भी मंत्री जी के साथ थे | उत्सव सम्पन्न हुआ | प्रधान की पहुँच की चर्चा दफ्तर - दफ्तर पहुँच गई | अब उसके सारे काम बिना रुकावट के होने लगे | उसकी रुकी हुई ठेकेदारी चल निकली | घर का कायाकल्प देख अब पत्नी को भी राजनीति का गणित समझ आने लगा था |
- अशोक दर्द
चम्बा - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 86
सहारा
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कामिनी आज सुबह से ही उस कमरे में बैठी थी। जहाँ उनके पति घंटों समय बिताया करते थे। रिटायर होने के बाद उनका ज्यादा समय पढ़ने-लिखने में ही व्यतीत होता था। सतीश हमेशा उनसे कहते - "आओ मेरे साथ इस कमरे में बैठो। बहुत सुकून मिलेगा।"... "शाम को घर पर साहित्यिक चर्चा भी रख ली है, फिर चाय - नाश्ता का इंतजाम करना। ये सब क्या इतना आसान है।..." अच्छा ठीक है, कामिनी सहाय जी, आप मुझे गाजर का हलवा ही खिला दीजिए।" सतीश मुस्कुराते हुए कहकर कमरे में चले जाते।
कामिनी सोचने लगी, जब तक सतीश का साथ था। कितना व्यस्त रहती थी। उनके जाने के बाद जिंदगी जैसे रूक सी गयी है । चारों तरफ एक खालीपन पसर गया है । बेटी ब्याह के बाद विदेश में ही बस गयी। अभी दो महीना बेटा के पास रह कर आयी थी। इससे ज्यादा दखलअंदाजी बहू को पसंद नहीं था।
तभी खुशी की दादी हाँफते हुए आयी - " मालकिन, आज खुशी काम करने नहीं आएगी। मुन्ना का एक्सीडेंट हो गया है। फटफटिया चला रहा था। आज सुबह उठते ही मुन्ना ने उस मनहूस का मुँह देख लिया था। हो गया सत्यानाश। हे भगवान! न जाने क्या होगा, इस बिन माँ - बाप की बच्ची का"। कहते हुए चली गई।
शाम को कामिनी दरवाजा बंद करने गयी, तो देखा कि खुशी सीढ़ी पर बैठकर रो रही थी। उसके हाथ - पैर और चेहरे पर कई जगह चोट के निशान थे। कामिनी ने पूछा - "क्या हुआ।"... " मुन्ना फटफटिया से गिर गया। बहुत तेज चला रहा था। छोटी माँ ने बहुत मारा, और घर से निकाल दिया। बोली कि तू मनहूस है। घर में रहती है। इसलिए ये सब हुआ।"
कामिनी उसे अंदर लेकर आयी। जख्मों को गरम पानी से पोंछकर दवाई लगायी, और पट्टी बाँध दी। फिर कामिनी ने खुशी का चेहरा अपने हाथ में लेते हुए कहा - " मेरी बेटी बनोगी। मैं बहुत अकेली हूँ। मुझे सहारा चाहिए।" इतना सुनते ही खुशी फफफ कर रोने लगी। कामिनी के अश्रू भी अविरल बह रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे नियति ने स्वयं ही दोनों को मिला दिया था।
- कल्याणी झा 'कनक'
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 87
बुढापे की तैयारी
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“ पिताजी, आपकी बहू चाहती है कि अब हम अपनी गृहस्थी अलग कर लें तो अच्छा रहेगा !”
अंशु ने कहा तो सतपाल ने भी मानो सामान्य होकर पूछा –“तुम कहां रहोगे ?”
“ पिताजी, हम लोग नीचे रह लेंगे और आप के लिए ऊपर वाला कमरा ठीक रहेगा ! एक रसोईघर भी बनवा दूंगा ! “अंशु ने कहा तो उसकी मां बोल उठी –“ वो मधु के बेटे भी उसे रखने को तैयार नही है ! मेरी सहेली कृष्णा भी बेटे के होते हुए बेटी के घर रहती है और मेरी बहन मीना -----------“! अच्छा ये बता कि कितने दिन तू एक साथ रह सकता है ! “
“ बेटे ने भी खुशी छिपाकर कहा – “ मां, इस इतवार को हम अपना सामान अलग-अलग रख लेंगे! “
“ठीक है ! मैं मधु, मीना और कृष्णा से कह देती हूं कि वे अपना सामान बांध कर इतवार तक यहीं आ जाएंगे तब तक तू अपने रहने का इंतजाम कर !” मां ने कहा तो अंशु तो मानो आसमान से गिर पड़ा व असमंजस से बोला –“ मां, तुम ये क्या कह रही हो! वे आंटियां और मौसी यहां आएंगे और हम अपना इंतजाम करे !”
मां ने भी दृढ होकर कहा कि – “हम उनकी तरह नादान नही थे जो अपने जीते-जी अपना मकान तेरे नाम कर देते और आज बेघर हो जाते ! आज हम यहां अपने ही घर में रह रहे हैं फिर बुढापे में ऊपर जा कर कैसे रहें! तुझे जहां रहना है जा कर रह, हमने अपने बुढापे का इंतजाम कर रखा है साथ ही किसी दूसरे बेघर हुए नादानों को भी संभाल सकते हैं ! “
बेटा अंशु हक्का-बक्का अपने पिता को देख रहा था लेकिन वे भी मानो अपनी पत्नी की बात का मौन समर्थन कर रहे थे !
- नीरू तनेजा
समालखा - हरियाणा
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क्रमांक - 88
झाँकी
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"बेटा ! इस बार जाड़ा बहुत तेज है "
"कहाँ माँ हर बार जैसा तो है।"
" शायद तू ठीक कहता है , बूढी हड्डी है इसलिए ...."
"माँ तुम भी न भली चंगी तो हो।"
"नहीं बेटा सुबह जागती हूँ तो बिस्तर से उठा नहीं जाता अकड़ जाती हूँ।"
" इस उम्र में ये छोटी -मोटी परेशानी तो चलती ही हैं ,तुम्हें न आदत हो गई है रोना रोने की।"
कहता हुआ बेटा अपने कमरे में चला गया।
निर्मला चाहकर भी बेटे से नहीं कह पाई कि इस घिसे कम्बल में उसकी देह को गर्मास नहीं मिल पाती एक मोटा सा कम्बल मिल जाये तो जाड़ा कट जाये।
सुबह देर तक निर्मला न जागी तो बेटे ने आवाज लगाई
“माँ !” ...
मगर माँ पूरी तरह से अकड़ चुकी थी।
निर्मला की अर्थी को गुलाब के फूलों से सजाया । अगरबत्ती और इत्र की खुश्बू से महकती अर्थी पर माँ को लिटाया ऊपर से महंगी शॉल ओढ़कर निर्मला की शव यात्रा निकल रही थी।
लोग कह रहे थे -
"भगवान ऐसा लायक बेटा सबको दे।" ****
- डॉ. लता अग्रवाल
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 89
बुजुर्ग का एहसास
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प्रोफ़ेसर समर वर्मा विश्वविद्यालय के प्रख्यात प्रोफ़ेसर माने जाते थे और दिलचस्प इंसान भी ऐसा लगता था उनके व्यक्तित्व पर उम्र की कोई छाप बड़ी ही नहीं देखने सुंदर में सुडौल आकर्षक व्यक्तित्व अचानक एक सभा का आयोजन हुआ सभी विद्यार्थी पूछने लगे क्या है तो मालूम हुआ प्रो साहेब का आज रिटायरमेंट।
उन्होंने अपने रिटायरमेंट के भाषण में कहा आज लोगों ने मुझे यह एहसास दिला दिया है कि अब मैं बुजुर्ग हो गया हूं।
प्रोफेसर साहब घर आ गए घर में पत्नी के साथ कुछ दिनों तक उन्हें बड़ा जिंदगी आसान लगा जिंदगी का रूटीन ही बदल गया लेकिन कुछ दिनों के बाद दुखी मन से कहने लगे बच्चे सब उनके दो थे दोनों विदेश में नौकरी करते थे उनके पास घूमने के उद्देश्य से गए वहां का रहन सहन उन्हें पसंद नहीं आया और पुनः वापस इंडिया उनकी उम्र 80 की हो चुकी है मानसिक तौर पर बिल्कुल स्वस्थ है लेकिन एक अनोखी चिंता से ग्रसित है और अपने अनुभव में इस बात की चर्चा करते रहते हैं एक समय रहता है जब बड़ी शान से कहते हैं कि मेरे बच्चे विदेश में पढ़ने गए हैं नौकरी करने का और हम लोग यहां आराम से पर आज यह महसूस हो रहा है मैंने गलत निर्णय लिया मैंने ही बच्चों को प्रोत्साहित किया था विदेश जाने आज हम उनकी उपस्थिति से बहुत दूर हो गए अब महसूस होता है कि मेरे बच्चे अगर इंडिया में रहते तो हमारे लिए और उनके यह भी एक अच्छा परिवार साबित होते।
इसी चिंता में वह परेशान होकर बहुत बीमार हो गए पहले तो साल में एक बार आ जाता था अब उसकी भी बड़ी के हस्ती हो गई है जिम्मेदारियां बढ़ गई तो आने में थोड़ी मुश्किल होती है और यही चिंता उन्हें सताए जा रही है उन्होंने अपने आने वाली पीढ़ी को यह संदेश दिया कोशिश करना कि जहां माता-पिता हो जिस देश में हो बच्चों को भी उसी देश में रखना विदेश भेजने की आशा कभी न करना आज जो मेरा है कल उसका भी होगा इसलिए मैं आज की पीढ़ी को यह संदेश दे रहा हूं । *****
- कुमकुम वेद सेन
पटना - बिहार
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क्रमांक - 90
सुहानी साँझ
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खाँसी के कारण नींद नहीं आ रही थी, तो बिस्तर से उठ कर लीविंग रूम में चहल-कदमी करने
लगे। महानगर में वो खुले खुले दालान, सेहन कहाँ मिलते है। फ्लैट में तो बरांड़ा, हाल -रूम,
ड्राईंग-रूम सबका काम ये लीविंग-रूम ही देता है। दीनानाथ जी को कुछ सुकून था तो बस यही
कि वो अपने बेटा बहु के साथ थे। आज खांसीं कुछ ज्यादा ही परेशान कर रही थी। चहल-कदमी करते करते उन्हें बेटा नितिन व बहु नीरा के कमरे से दोनों की बात करने की आवाज सुनाई दी। अपना नाम सुन कर बरबस ही उनका ध्यान उधर चला गया। नितिन नीरा को कह रहा
था ---" बाऊ जी को सुबह वृद्ध आश्रम ले के जाना है। अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो जाना। मैं वहीं से आफिस चला जाऊँगा।" दीनानाथ जी के मन में जैसे कुछ दरक सा
गया था। सोचा बेटा-बहु के कहने पर वो अपना छोटा शहर छोड़ कर यहां क्यों चले आये ?
उन्हें अपना यहां आना ठीक नहीं लग रहा था।
क्या इसी दिन के लिये इंसान सारी उम्र मेहनत करता है। सन्तान की इच्छानुसार े उन्हें कामयाब करने को धनोपार्जन के लिये जी तोड़ मेहनत करते करते कब जीवन की साँझ आ घेरती है पता भी नहीं चलता। बच्चे मनचाही मंजिल वजीवन साथी पा दूर बसेरा कर लेते हैं। अकेलापन, उदासी व वृद्धावस्था की बीमारियां आ घेरती है। रिटायर्मैंट के कुछ बर्ष बाद ही पत्नी का देहावसान होने से दीनानाथ जी नितांत अकेले हो गये थे। अकेलापन दुस्सह हो गया था।
इन्हीं विचारों में खोये हुये रात बीत गई। थक कर वो बिस्तर पर लेट गये।
नितिन बाऊ जी के लिए चाय रख कर जल्दी तैयार होने को कह खुद भी तैयार होने चला गया। बाऊ जी तैयार होकर आए तो बहु नीरा नेपाली नौकर से गाड़ी में सामान रखवा रही
रही थी। दीनानाथ जी ने सोच लिया था कि वो उनका कुछ सामान नहीं लेंगे उनके अपने दो-चार जोड़े पुराने कपड़े ही बहुत हैं।सभी गाड़ी में बैठ चुके थे। रास्ते में पड़ने वाले मंदिर के बाहर सभी उतरने लगे तो वो भी अनमने मन से उतर गए।मन ही मन बुदबुदाय -- हुंह्ह्....मंदिर....।
एक फीकी सी मुस्कराहट उनके चेहरे पर फैल गई। थोड़ी देर में सभी फिर गाड़ी में आ बैठे।
वृद्ध-आश्रम आ गया था। सभी उतरे, नीरा सामान उतरवाने लगी, नितिन मैनेजर के रूम की तरफ बढ़ गया। उदास मन बाऊ जी नितिन के पीछे पीछे चल पड़े। हृदय के दर्द ने बुढापे की चाल को और मंदा कर दिया था। उनके पंहुचते ही मैंनेजर ने खड़े होकर उनका स्वागत कर नमस्कार किया " जन्म दिन मुबारक हो दीनानाथ जी।" वो जब तक कुछ समझ पाते बहु व बेटे नितिन ने एक साथ आकर बाऊ जी के चरण स्पर्श किये-" जन्म दिन मुबारक हो बाऊ जी, आपकी छत्रछाया सदैव हम पर बनी रहे।" बूढ़ी आखों में जल भर आया। इस अप्रत्याशित खुशी से लड़खड़ा से गए वो गिर ही जाते यदि नितिन व नीरा स्फुर्ति से उन्हें सहारा
देकर कुर्सी पर न बिठाते।
मैंनेजर ने पानी का गिलास थमाया। पानी पीकर कुछ राहत सी मिली। कुछ देर पहले का दुखी मन फूल सा खिल गया था। उन्हें अब सुहानी सांझ का अहसास होने लगा था।
थोड़ी देर बाद वो अपने बेटा-बहु के साथ मिलकर साथ लाया सामान कपड़े, शॉल, फल व बुजुर्गों की जरूरत की दवाईयां बाँट रहे थे। ****
- राजश्री गौड़
सोनीपत - हरियाणा
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क्रमांक - 91
वृद्ध माँ का मृत्यु भोज
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दो भाई एक ही शहर में एक ही सोसायटी में रहते थे, पिताजी बहुत समय पहले दुनिया छोड़ गए थे, माँ बड़े लड़के के साथ रहती थी, किंतु समय के चलते माँ को छोटे भाई के घर एक मास रहने के लिए समझौता हुआ था, दूसरे मास बड़े भाई के साथ रहने के लिए बात तय हुई थी, एक बार बड़े भाई का पूरा परिवार घर पर नहीं थे, कुछ सामाजिक काम से सभी को एक साथ बहार गांव जाना हुआ, छोटे भाई के यहा माँ रहती थी एक मास पूरा हो गया था किंतु बड़े भाई का परिवार दो दिन बाद घर पहुचा, इस समय छोटे भाई ने अपनी माँ को दो दिन पहले बड़े भाई के घर जाने के लिए मजबूर किया गया था, किन्तु बड़े भाई का घर बंध था, छोटे भाई ने अपनी माँ को बिना बताये बाहर जाने का बहाना बनाकर घर में ताला लगा दिया और माँ को लोगों के घर सहारा लेना पड़ा, अपनी तकलीफ बड़े भाई को बताई गई, किन्तु वो भी क्या करे
कुछ समय बाद माँ की मृत्यु हुई, दौनों भाई अपनी माँ के लिए सामाजिक रीति रिवाज के लिए अपने गांव चले गए, माँ के मृत्यु के पीछे मृत्यु भोज का आयोजन किया गया, लोग बाते करने लगे कि जिंदा माँ को खिलाया नहीं और उसकी मृत्यु के बाद लोगों को खिलाने के लिए खर्चा कर रहे हैं, केसे पुत्र हे?
- डॉ गुलाब चंद पटेल
गांधीनगर - गुजरात
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क्रमांक - 92
सासु माँ
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कोरोनाग्रस्त होकर दहशत ,कष्ट और मर्मांतक पीड़ा का अहसास रागिनी के कमजोर तन-मन को बुरी तरह से झकझोर गया था।
एहतियातन उसकी पूरी देखभाल घर पर ही होने से सुकून और सुविधाएं आसपास ही रहीं।
सासु मां ने खाने-पीने और निजी मदद का ध्यान रखकर बहू को बेटी से भी ज्यादा स्नेह देकर निरोगी कर लिया था।
रमेश भी मां के सहयोग से उसे दवाएं , इंजेक्शन और ऑक्सीजन दिलवाते रहे।
बेटी न्यूजीलैंड में सुरक्षित थी,इसलिये मन को राहत थी।
कमजोरी के कारण अब भी रागिनी के कदम कांपते थे। सासु जी की बेंत पकड़कर ही वह बाथरूम तक जा पाती थी।
आज 'मदर्स डे' है। फेस बुक पर अपनी मम्मी के साथ-साथ उसने सासु मां के साथ यदा-कदा ली गईं चयनित तस्वीरें पोस्ट कीं,तो ढेर सारे कमेंट्स और लाइक देखकर भावविभोर हो गई। अपनी विधवा सासु मां को बोझ समझने वाली,उन्हें उनके छोटे से कमरे में एकाकी रखकर मौनालाप करते हुए क्वारंटीन सी रखने वाली बहू की आंखों से झर-झर आंसू बह निकले ।आज उसे लगा,कि सचमुच मां तो मां ही है,बस संतति को उस 'मां' में ही अपना संसार ढूंढ लेना चाहिये। ***
- डा. अंजु लता सिंह
दिल्ली
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क्रमांक - 93
दो पल का साथ
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विवेक की माँ चुपचाप अपने कमरे में पड़ी रहतीं। शरीर गिरता जा रहा था,खाने की इक्षा भी नहीं होती।विवेक परेशान था किसी डॉक्टर की दवा असर नहीं कर रही थी।विवेक की पत्नी भी सास की इस हालत से परेशान थी।डॉक्टर कहते "इन्हें खुश रखिए।"इतना सब तो करती हूं इनके लिए अब भगवान जाने और क्या करूँ जो तुम्हारी माँ खुश रहें"रंजना ने खीज कर कहा। मां जी ये रसगुल्ले और साड़ी भाभी जी आपके लिए लाई है,भैया ने कहा आपको दे दूं",लीला(काम वाली)ने कहा।माँ ने ये साड़ी किनारे रख दी।जब लीला ने ये बात विवेक को बताई तो विवेक चिढ़ कर मां के कमरे में गया"उफ्फ माँ अब मैं ऐसा क्या करूँ कि आप खुश रहें,आपके पसंद की मिठाई मंगवाता हूँ,आपके सेवा के लिए बाई रखी है,मन लगा रहे इसलिए कमरे में टी वी लगा रखा है आखिर अब और क्या चाहिए?"मां ने धीरे से कहा "दो घड़ी का साथ और दो बोल प्यार के"मतलब?बेटा मुझे अगर सांसारिक चीजों से प्यार होता तो ये घर तेरे नाम न करती,बहु को अपना हीरों का हार न देती।मुझे तो बस तुम दोनों का थोड़ा सा समय चाहिए,मुझसे थोड़ी सी बातें करो दो घड़ी ही सही पास बैठ लिया करो,बस और कुछ नहीं चाहिए" विवेक की आंखों से आंसू ढलक गए सच वो सांसारिक सुख साधन जुटाने में इस कदर व्यस्त हो गया था कि मां से बातें करना तो दूर मां के पास बैठे कितने दिन हो गए थे उसे ये भी याद नहीं।अब विवेक और उसकी पत्नी रोज़ मां के पास बैठते,रात का खाना साथ खाते।एक दिन..."अरे मां तुमने दवाइयां क्यों फेक दी?"मां ने मुस्कुराते हुए कहा "जब तक मेरे बेटे बहु के पास दो घड़ी हैं मुझे किसी दवा की ज़रूरत है"।
- संगीता सहाय
राँची - झारखंड
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बीजेन्द्र जैमिनी
जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
फिल्म पत्रकारिता कोर्स
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
जैमिनी अकादमी , पानीपत
( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )
मौलिक :-
मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001
सम्पादन :-
चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003
ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018 (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019 ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन ) मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन ) मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) -
2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार (ई लघुकथा संकलन ) - 2021
बुजुर्ग ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-
1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल
1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल
1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल
2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल
2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल
2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल
2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल
सम्मान / पुरस्कार
15 अक्टूबर 1995 को विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।
13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।
14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित
14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित
14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित
14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।
18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित
अभिनन्दन प्रकाशित :-
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)
विशेष उल्लेख :-
1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन
2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।
3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित
4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
" आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. भारतीय लघुकथा विकास मंच के माध्यम से लघुकथा मैराथन - 2020 का आयोजन
10. #SixWorldStories की एक सौ एक किस्तों के रचनाकार ( फेसबुक व blog पर आज भी सुरक्षित )
पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
पानीपत - 132103 हरियाणा
ईमेल : bijender1965@gmail.com
WhatsApp Mobile No. 9355003609
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