क्या अंहकार का त्याग सम्भव होता है ?
अहंकार का त्याग तो रावण के लिए भी सम्भव नहीं हो पाया । फिर आप और हम तो बहुत दूर की चीज है । मैंने स्वयं देखा है । जो सन्त बहुत कुछ बोलते हैं फिर भी अंहकार पर फेल होते हैं । ऐसा एक नहीं अनेक बार बहुत नजदीक से देखा है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
अहंकार का त्याग जीवन में संभव होता है। क्योंकि अहंकार मनुष्य को गलत रास्ते में जाता है। अहंकार की रूचि दिखाने में होती है। प्रतिभा का प्रदर्शन भी होना चाहिए लेकिन यदि प्रतिभा में जुनून हो तो अहंकार पैदा होगा और यदि सूर्य प्रकाश हो तो प्रतिभा का निरंहकारी सुरक्षा में आएगा। इस तथ्य को हम श्री राम और रावण के व्यक्तित्व से भी समझ सकते हैं। रावण के अनुचित प्रस्ताव पर सीता माता ने कटु वचन में कहा था अपितु श्रीराम सूर्य के समान है और रावण जुगनू है। श्रीराम भी जुगनू पर टिप्पणी कर उसे दंश का प्रतीक करा चुके हैं। जुगनू की सारी सत्यता अंधकार भरी रात में होती है। श्री राम को सूर्य और रावण को जुगनू क्यों कहा गया है दोनों में अंतर है लेकिन अंतर उद्देश्य और उपयोग का है। जुगनू अपनी चमक से अपने ही व्यक्ति को चमकाता है। उसके प्रकाश से किसी को लाभ नहीं होता। सूर्य का प्रकाश सबके लिए है। बुद्धि के क्षेत्र में तर्क है ही देख के स्थल में प्रेम और करुणा है। अहंकार यहीं से गलत शुरू होता है। अपनी प्रतिभा के बल पर आपके कितने ही लोकप्रिय क्यों ना हो पर अहंकार के रहते आगे नहीं बढ़ पाएंगे। अहंकार छोड़ने का एक आसान तरीका है मुस्कुराना और अहंकार का त्याग करके मनुष्य उचाई को प्राप्त कर सकता है इसलिए मुस्कुराइए सबको खुशी पहुंचाया और अहंकार को भूल जाइए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
अहंकार एक बिमारी है जो कोढ से भी खतरनाक है ।
अहंकार कई प्रकार का होता है-
पैसे का अहंकार
बेटों का अहंकार
जमीन का अहंकार
हुनर का अहंकार
पदवी का अहंकार
और भी कई प्रकार हैं
अहंकार से प्रभावित व्यक्ति को नुक्सान होना तो स्वाभविक है ही किन्तू अहंकार करने वाले को भी शारीरिक,मानसिक रुप से कमजोर करता है ।
अहंकारी व्यक्ति की ये वृत्ति बन जाती है और आदत सी हो जाती है ।
अहंकार का त्याग करना किसी भी व्यक्ति के लिये कठिन जरुर है किन्तू असम्भव नहीं ।
मनुष्य को एक चीज दिमाग में जरुर बिठा लेनी चाहिये कि अहंकार की जाने वाली बात या वस्तु क्षणिक है ।और अहंकारी व्यक्ति भी मृत्यु के बाद कुच्छ साथ नहीं ले जा सकता ।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अहम का नकारात्मक विशेषता अहंकार है सामान्य जीवन में कुछ इंसान ऐसे मिल जाते हैं जो अहंकार से प्रभावित रहते हैं किन्ही को अपने तेज दिमाग का हंकार किन्ही को पैसे का अहंकार किन्ही को पदवी का हंकार किन्ही को अपने घर आने का अहंकार किन्ही को सौंदर्य का अहंकार । और अहंकार में ही वह खुशियां तलाश लेते हैं अब यहां पर यह प्रश्न है क्या अहंकार का त्याग संभव है हमारे विचार से कोई ऐसा चीज नहीं है सिर्फ ईश्वर को छोड़कर जो असंभव है अगर मन में विश्वास संकल्प कर ले तो अहंकार को भी त्याग कर सकते हैं अहंकार एक मनोवृति है झूठी मनोवृति इस मनोवृति के निर्माण में परिवेश वातावरण का बहुत ज्यादा योगदान होता है जब इस मनोवृति के झूठ होने का एहसास हो जाता है तो वह अहंकार धीरे-धीरे टूटने लगता है और खत्म हो जाता है तो अहंकार को त्यागने से ही आत्मा बल मिलता है इसके लिए आत्मनिरीक्षण करना होगा बहुत आसानी से तो नहीं लेकिन अहंकार को त्याग नाही सर्वोत्तम जीवन के लिए है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
"बावरा मन बिखरे विचारों में खोता रहा,
अनवरत जागृत अवस्था में सोता रहा।
अहंकार की बेड़ियाँ तोड़ न पाया मनुज,
निकृष्ट कर्मों का बोझ आयु भर ढोता रहा।।"
मनुष्य के लिए असम्भव तो कुछ भी नहीं परन्तु अहंकार का त्याग करने हेतु जिस सहृदयता और सदाशयता की आवश्यकता होती है, अहंकार ऐसी सद्भावनाओं को मन-मस्तिष्क में प्रवेश करने से भी रोकता है।
मैं अक्सर सोचता हूँ कि जब मनुष्य को इस बात का ज्ञान होता है कि मानव जीवन सहित प्रकृति में सब कुछ परिवर्तनशील है तो फिर सत्ता, शक्ति, धन, बुद्धि अथवा अन्य किसी भी चीज के कारण उत्पन्न अहंकार मनुष्य को अपनी जकड़ में करता ही क्यों है?
मैं समझता हूँ कि यदि मनुष्य के पास कोई भी ऐसी शक्ति है, जो अहंकार की उत्पत्ति का कारण बन सकती है तो इसके साथ ही मनुष्य सजग मस्तिष्क का भी स्वामी होता है, जिससे वह अहंकार का त्याग करने में सक्षम हो सकता है।
अहंकार की उत्पत्ति मानवीय दुर्बलता है जिसके उत्पन्न होना एक स्वाभाविक बात है परन्तु अपने मन-मस्तिष्क की प्रबलता से उस अहंकार का त्याग करना सम्भव है परन्तु शर्त यह है कि मनुष्य में ऐसी इच्छा जागृत तो हो, जब इच्छा होगी तभी इच्छाशक्ति में वृद्धि होगी और तभी अहंकार का त्याग सम्भव होगा।
इसीलिए कहता हूँ कि.......
"उत्कृष्ट साधन सभी मिल जायेंगे साधना से कोशिश तो कर,
सुन्दर द्वार सारे मन के खुल जायेंगे सद्भावना से कोशिश तो कर।
मोह, लोभ, अहंकार की बेड़ियाँ बड़ी क्षीण होती हैं मन के अन्दर,
स्वयं पर विजय मिलेगी दृढ़ संकल्प कामना से कोशिश तो कर।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कठिन हो सकता है अंहकार का त्याग पर असंभव नही । चूँकि अहंकार की जड़ों को सत्ता धन पद प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ माना जाता है तो स्वभाविक है मानवीय स्वभाव अहंकार का वरण किए बिना कैसे रह सकता है परन्तु जब त्याग की बात आती है तो अहंकार केवल तब तक ही परिलक्षित होता है जब तक मनुष्य पूर्णता को उपलब्ध नहीं होता । अक्सर ऐसी भी देखा जा सकता है जो बहुत कुछ ही नही सब कुछ पा चुके हैं उनमें अहंकार का लेश मात्र भी भान नहीं होता है । ये तो आम जनमानस के अनुभव व विद्वान कहते हैं जो वृक्ष फलों से लद जाते हैं वो झुक जाते हैं । अतः पूर्णता को उपलब्ध कोई भी हो अहंकार से रीत जाता है इसके समकक्ष ये भी कहा जा सकता है कि *अधजल गगरी छलकत जाए* वाली कहावत है कि अधूरा व्यक्ति चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो थोड़ी सी सफलता को प्राप्त कर अहंकार की भावना से भर सकता है ।
कुछ भी हो अहंकार व्यक्ति को आगे नहीं बढ़ने देता यह जीवन की प्रत्येक गतिविधि में बाधक ही है साधक नही । जितना संभव हो अहंकार का त्याग करना चाहिए ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।7.5।।
अर्थात
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान॥7.4
यह कथन सिद्ध करता है कि-
अहंकार जीवन पर्यंत (शरीर में रहते हुए) कभी समाप्त नहीं होता। यह मन,बुद्धि की तरह अनिवार्य तत्व है। अहंकार यानि अपने अस्तित्व का बोध। यह न रहे,यह तो जीवन रहते संभव ही नहीं।मेरा तो ऐसा ही मानना है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अहंकार होना मनुष्य का स्वभाविक स्वभाव है। धर्म, आध्यात्म, महापुरुषों, ज्ञानियों, विद्वानों, संतों, गुरुजनों आदि सभी ने इसे अत्यंत बुरा बतलाया है और है भी। रावण और दुर्योधन का अहंकार इसके बहुत बड़े उदाहरण हैं , जिन्होंने अपने अहंकार से पूरे परिवार का सर्वनाश करवाया।
अहंकार में सबसे पहले जो क्षति होती है वह उसकी बौद्धिक क्षति होती है। उसके मन में एक धारणा ऐसी पैर पसारकर बैठ जाती है कि फिर वह उसकी उस सोच के अलावा आगे-पीछे कुछ समझ नहीं पाता। न उसे किसी की सीख और समझाइश समझ में आती है और न भावी दुष्प्रभाव के परिणाम।
ऐसा नहीं कि अहंकार की भावना को त्यागा नहीं जा सकता। संभव है, कठिन अवश्य है। कोई सच्चा हितैषी, आत्मीय जी जान से प्रयास करे, विशेषकर वह जिसे अहंकारी अपना विशेष याने खास मानता हो तो एक संभावना रहती है कि उसकी अथक और सतत समझाइश से अहंकार की भावना से छुटकारा मिल सके।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अंहकार प्रेम का घोतक हैं, जो विनाश लीला को तवाह की ओर अग्रेषित करती हैं। महाभारत में दुर्योधन का वह पंसग इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया हैं। वहीं श्रृंखला वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः अपराधित्व प्रवृत्तियों, समसामयिक, राजनैतिक विसंगतियों से परिपूर्णता के साथ ही साथ जीवन यापन कर जीवित अवस्था में पहुँचानें में खुलेआम करोड़ों की सम्पत्ति, आपसी प्रेम और लगाव को वृहद स्तर पर नष्ट करने में समय व्यतीत कर रहे हैं। जिस दिन मानव, मानवता को समझ जायेगा, उस दिन अंहकार का त्याग कर संकल्प लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और अनन्त समय तक चलता रहेगा।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
अहंकार का आना प्रत्येक जीवमात्र का स्वाभाविक स्वभाव और गुण है! अपने आप को अलग मान "मैं " जब कार्यशील हो जाता है वहीं से अहंकार की उत्पत्ति शुरु हो जाती है!
अहंकार मानव का सबसे बड़ा दुश्मन है! अहंकार तो ज्ञानी, शिव के परम भक्त अमृत धारण करने वाले राजा रावण का भी नहीं रहा! जिन लोगों ने अहंकार को अपनी शक्ति बनाया उनका पतन हुआ!
ऐसा नहीं है कि अहंकार के चक्रव्यूह से बाहर आने का मार्ग नहीं है.... अहंकार का त्याग संभव है ..... यदि कोई हमारे कार्य की प्रशंसा करे तो हमें विनम्र होकर उसका आभार करना चाहिए साथ ही कहें कि आपकी कृपा से यहां तक पहुंचा हूं कहने मात्र से ही हमें अहंकार छू नहीं पाता चूंकि दूसरे के प्रति विनम्र हैं!
त्याग की भावना होनी चाहिए! त्याग से शांति मिलती है! गरीबों की मदद करना, दान देना, अस्पताल, मंदिर बना हम अपना नाम बनाना चाहते हैं तो वह त्याग नहीं अहंकार है! जिस त्याग से अभिमान जागे वह त्याग नहीं अहंकार है! सच्चा त्याग तो अभिमान का त्याग है!
स्वयं को अधिक महत्व देने से भी हमने अहंकार की भावना जागृत होती है! अहंकार पर नियंत्रण करना है तो घमंड से दूर रहना चाहिए! जहां मैं है वहां अहंकार का वास है! सर्वशक्तिमान ईश्वर को पाना है तो अहंकार का त्याग करना होगा और यह संभव है!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जब असम्भव कुछ भी नहीं होता तो अहंकार का त्याग करना कौन सी बड़ी बात है? बस कर्त्तव्यनिष्ठा का दृढ़ संकल्प होना चाहिए।
यूं भी अहंकार कुलनाशक होता है। जिसने महापंडित रावण के सम्पूर्ण कुल का सर्वनाश कर दिया था।
उल्लेखनीय है कि अहंकार से बड़ा कोई शत्रु नहीं होता। यह प्रत्येक उस मानव को समाप्त कर देता है जो इसके प्रभाव में आता है।
इसलिए अहंकार को दूर करने के लिए आत्मनिर्भर बनें और अपने सुकर्मों से राष्ट्र के विकास में सहयोग करें। जिससे अहंकार स्वयं ही दूर भाग जाएगा। क्योंकि राष्ट्र के चहेते एक से बढ़कर एक हुए हैं। जिन्होंने राष्ट्रभक्ति के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया हुआ है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सिर्फ विवेकशील प्राणी से ही अहंकार के त्याग की उम्मीद रख सकते हैं। 'अधजल गगरी छलकत जाए' या कहें 'छछूंदर के सर पर चमेली के तेल' ऐसे अहंकारी लोगों से अहंकार के त्याग की उम्मीद निरर्थक है।
जिसे अपने धन संपत्ति का अहंकार हो, पुरुष होने का अहंकार हो, ज्ञान का अभिमान हो ऐसे अज्ञानी इंसान से अहंकार के त्याग की उम्मीद नहीं कर सकते।
जब साधु संत अहंकार से निर्लिप्त नहीं हो पाते तो आम इंसान की औकात ही क्या है? थोड़ी सी बात पर गुस्सा आना और गुस्से में अपने अहंकार को प्रदर्शित करना आम बात हो गई है। अहंकारवश गरिमामय पद पर बैठे हुए व्यक्ति भी क्या से क्या बोल जाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि उपदेश तो सभी देते हैं अहंकार को त्यागने का पर हकीकत में अहंकार का त्याग संभव नहीं होता।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
जी बिल्कुल अहंकार का त्याग करना सम्भव है ।
जब मन मे प्रेम का समर्पण प्रस्फुटित हो जाता है तो अहंकार ऐसे दूर हो जाता है जैसे सूरज को देखकर अंधकार ।
जब तक इंसान अहंकार में पड़ा रहता है तब तक उसे कुछ प्राप्त नहीं होता, या यूं कहें कि अहंकारी के अंदर प्रेम नहीं रह जाता। उसका विवेक भी नष्ट हो जाता है।
दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अहंकार का अर्थ होता है अपनी सत्ता को महसूस करना।
अहंकार नकारात्मक तब हो जाता है जब नकारात्मक दिशा में चला जाए, जिसे हम घमंड कहते हैं ।और यह मिथ्या अहंकार तब पैदा होता है जब हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं अपने को श्रेष्ठ साबित करते हैं ।
जबकि यह सत्य है कि प्रकृति में कोई भी चीज एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है ।
प्रकृति में सब का अपना महत्व है, एक छोटे से तिनके का भी और पत्थर के टुकड़े का भी।
मनुष्य में अहंकार आने के कई कारण हो सकते हैं धन ,रूप, ज्ञान और कई गुण जो कि सामान्य लोगों से अधिकता होने पर मनुष्य में अहंकार आ जाता है ।
अहंकार आने का स्वाभाविक कारण सफलता होती है।
बहुत से लोग उसी सफलता को श्रेष्ठ मानकर औरों को तुच्छ समझते हैं ।
अहंकार एक नकारात्मक मनोभाव है ,जो इंसान को क्षणिक सुख तो दे सकता है लेकिन भविष्य में यह आपसे आपके खूबसूरत रिश्ते छीन लेता है।
अहंकार आने का मुख्य कारण ये है , मैं ,मुझसे ,मेरे द्वारा ,आदि है।
अगर हम सोचे कि सब ईश्वर द्वारा ही है तो हममें से ,मैं , यानि अहंकार निकल जाएगा और तब हम प्रेममय में हो जाएंगे सम्पूर्ण विश्व को प्रेम की दृष्टि से देखेंगे।
तब हम स्वयं को सर्वश्रेष्ठ नहीं समझेंगे ।
हम कह सकते हैं कि अहंकार में प्रेम की अनुपस्थिति हो जाती है। या यूँ कहें कि अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति के परिणाम स्वरुप होता है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
दुनिया में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिसका हम त्याग न कर सकें।अहंकार का भी त्याग हम कर सकते हैं लेकिन ये सब किसी से सम्भव नहीं है। जिसने अहंकार को त्याग दिया उसे महान बनने में देर नहीं लगेगी। और जिसने अहंकार को नहीं त्याग उसका सर्वनाश भी निश्चित है। अहंकार त्यागना इस कलयुगी दुनिया में बहुत ही कठिन काम है। जो नहीं त्यागते वो ये नहीं समझते हैं कि जो काम नम्र बनने से हो जाता है वो अहंकारी बनने से नहीं होता है। इतिहास गवाह हैं सभी अहंकारी राजा अपने राज्य के साथ पतन को पा गए। रावण, कंस, दुर्योधन जैसे बहुत से राजा हुए हैं जो अपनी अहंकार वश राज्य सहित विनाश को प्राप्त हुए। आज भी जो अहंकारी हैं उनका घमंड भी एक न एक दिन टूट ही जाता है या टूटना ही है। अहंकार आज मानव मानव में समा गया है। अहंकार के कारण ही आज परिवार टूट रहे हैं। समाज बिखर रहा है। देश दुनिया की हालत भी वैसे ही है। कोई अपना अहंकार छोड़ना ही नहीं चाहता। सब अपने को बुद्धिमान और बड़ा समझ रहे हैं ऐसे में अहंकार छोड़ना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।
अपने को साधु, संत, समाजसुधारक,नेता कहलानेवाले सब अहंकार से भरे हुये हैं। इन लोगों से अहंकार का त्याग शायद ही सम्भव हो। साधारण लोगों की तो बात ही और है। कुछ मतलबी लोग भी हैं जो किसी से फायदा लेने के लिए अहंकार त्याग देते हैं फिर काम निकल जाने के बाद अहंकारी हो जाते हैं। मनुष्य जरा सा भी कुछ अच्छा कर देता है तो उसके अंदर अंहकार आ जाता है। इसलिए अहंकार त्यागना मुश्किल है पर असम्भव नहीं।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
अहंकार का त्याग संभव है, जब मनुष्य दिमाग में यह बात हर पल याद रखे कि यह जीवन क्षण भुंगर है। मनुष्य तो हर पल मृत्यु के साये में रहता है। खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ जाना है। सिकंदर जैसे खाली हाथ गए हैं।
अहंकार मनुष्य को गर्त में ले जाता है। अहंकार की रूचि दिखावे में होती है। अहंकार के त्याग के लिए बुद्धि से नहीं,ह्रदय से काम लेना चाहिए। बुद्धि के क्षेत्र में तर्क और वाद विवाद हैऔर ह्रदय में प्रेम और करूणा है। इसी में अहंकार गलना शुरू होता है अहंकार का त्याग करके ही मनुष्य ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है। सभी के साथ मुस्कुराहट और खुशियाँ बांटिए, अहंकार भाग जाएगा। कण कण में भगवान का वास है। इस लिए ईश्वर को पाने के लिए भी अहंकार का त्याग जरूरी है। मनुष्य को ज्ञान, बल,यश और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए। साथ कुछ भी नहीं जाएगा। अहंकार के त्याग से उन्नति का मार्ग तो प्रशस्त होता है साथ में निरहंकार स्थिति शांति दायक होती है
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
अहंकार अज्ञानता की जननी है।अज्ञानी मनुष्य के लिए अहंकार का त्याग संभव नहीं है। अगर अहंकार को त्यागना चाहे कोई भी व्यक्ति तो उसे ज्ञान सम्पन्न होना आवश्यक है। ज्ञान संपन्न होने से ज्ञान की रोशनी में अहंकार त्यागना संभव है। चौकीदार की परंपरा नहीं है कोई भी व्यक्ति का स्वीकार कार नहीं करता। अहंकार अज्ञानता बस होता है ज्ञान होने सेअहंकार नहीं विश्वास होता है। जो जीने का आधार होता है। विश्वास मूल्य के बिना जीना संभव नहीं है जिंदा रहना पड़ता है। जबकि मनुष्य जीना चाहता है। अतः है जीने के लिए अहंकार त्यागना जरूरी है। अहंकार संबंध तोड़ता है ।विश्वास संबंध जोड़ता है। मनुष्य को अहंकार त्यागना ही होगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अहंकार का त्याग करने के लिए कठोर तपस्या चाहिए। समाज में अपनी शान को बरकरार बनाए रखने के लिए मन में अहंकार आ ही जाता है। यहां तक कि तपस्वी को भी अहंकार हो जाता है कि उसने अहंकार का त्याग कर दिया। गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र की एक कथा भी इसी पर आधारित है।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
अहंकार का सीधा सा अर्थ..घमंड अथवा गुरुर तथा अपनी सत्ता को सर्वोपरि समझना । सकारात्मक अहंकार (गर्व)पालना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन जब उसमें नकारात्मक भाव पैदा हो जाता है,तब वैसा अहंकार घमंड का आवरण ओढ़ लेता है । समाज में ऐसे अनेकों लोग मिल जाएंगे जो अपनी मान, प्रतिष्ठा को सर्वोपरि मानते हैं यह मानसिक विकृति पूर्ण अहं भाव हैं । इस भाव में 'मैं' का स्वर ध्वनित होता है । अपनी शक्ति और सत्ता के लिए हमें ईश्वर का धन्यवादी होना चाहिए लेकिन अहंकारी व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति कृतज्ञ भाव नहीं होता। अहंकार ईश्वर के प्रति अनास्था का भाव पैदा करता है । राम और रावण में यही भिन्नता थी रावण सर्वोपरि अहंकार में चूर था जबकि राम के हृदय में ईश्वर के प्रति आस्था का भाव था अंततः विजय प्राप्त हुई। जीवन में अहंकार का त्याग बहुत ही जरूरी है क्योंकि अहंकार के गर्त में डूबे हुए व्यक्ति की विनाश में परिणति अवश्य होती है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अहंकारी होना अर्थात मैं की भावना बलवती होना जैसे जो कुछ हूं बस मैं ही हूं.......सबसे सर्वोपरि हूं ......अन्य सभी मेरे आगे कुछ भी नहीं हैं......... मैं सर्वगुण संपन्न हूं इत्यादि भाव जब व्यक्ति में घर कर जाते हैं तो वह अहंकारी हो जाता है । बात बात पर किसी का अपमान करना उसकी आदत बन जाती है ।
पैसा, पद-प्रतिष्ठा, मान- सम्मान आदि इस प्रवृत्ति में इजाफा करते हैं । ऐसे लोग सीधे मुंह किसी से बात तक नहीं करते, उनके व्यवहार से अहंकार झलकता है, इसका परिणाम यह होता है कि अपने-पराए सभी धीरे धीरे उससे दूरी बनाने लगते हैं ।
संसार में जो कुछ भी है अथवा हमें मिला है, कुछ भी स्थाई नहीं है और जब इस सच्चाई का भान अहंकारी व्यक्ति को होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।
दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है लेकिन मुश्किल जरूरत है । अहंकार का त्याग भी व्यक्ति कर सकता है अगर वह चिंतन- मनन, स्वाध्याय तथा उस विषय में सोचे जिसे लेकर उसमें अहंकार की भावना जागृत हुई है तथा उसके भावी परिणाम के विषय में........ अन्य अहंकारी लोगों के विषय में, जिनको अपने अहंकार के कारण पराजय का सामना करना पड़ा हो,सोचे तो धीरे-धीरे इस अवगुण का त्याग किया जा सकता है ।
हमें दूसरों को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारना चाहिए । हम दुनिया तो नहीं बदल सकते परंतु स्वयं को अवश्य बदल सकते हैं ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
इंसान चाहे तो कुछ भी असंभव नहीं है, अहंकार की तो बात ही क्या। तीव्र इच्छा शक्ति का होना बहुत जरूरी है। साधारण तौर पर अहंकार का त्यागना इतना आसान नहीं होता किंतु इंसान यदि दृढ़ निश्चय कर ले कि मुझे अपना यह अवगुण छोड़ना है अपने अहम को कम करना है या उसको बिल्कुल ही छोड़ देना है। तब वह अपने अहंकार पर काबू पा सकता है किंतु यदि उसको अपना अहम अत्यधिक प्रिय है वह विसारना ही नहीं चाहता तब उसके अहंकार को कोई दूर नहीं कर सकता। रावण को समझाने के कितने प्रयास किए गए किंतु वह अपना अहंकार नहीं छोड़ पाया क्योंकि वह उसको छोड़ना ही नहीं चाहता था। यह केवल व्यक्ति विशेष के हाथ में होता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
"अंहकार और पेट जब दोनों बढ़ जाते हैं,
तो इंसान चाह कर भी किसी को गले नहीं लगा सकता"।
अंहकार आज के समय में ऐसी प्रक्रिया है जो की मानसिक रूप से इन्सान के मन में विकसित होती है, यह कई वजहों से जन्म लेता है, किसी को अपनी खूूबसूरती पर अंहकार आ जाता है किसी को अमीरी पर किसी को कोई ओहदा मिलने पर या जब हम किसी को ज्यादा महत्व देते हैं तब भी उसे घमंड होने लगता है, लेकिन कहते भी हैं धमंडी का सिर नीचा क्योंकी घमंड इन्सान के अंदर के ज्ञान को एक पल में अंहकार के कारण खो देता है,
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या अंहकार को त्यागना संभव है?
मेरा मानना है कि जब त्याग की बात हो तो इंसान अगर अपना मन बना ले कि मैंने किसी भी चीज को त्यागना है तो फिर उसके लिए कोई भी बात असंभव नहीं,
सच कहा है,
मन के हारे हार है मन के जीते जीत, पार व्रहम् को पाईये मन के ही प्रतीत,
कहने का भाव की ं मन के कहने पर हम कुछ भी त्याग सकते हैं बैसे भी तो अंहकार को त्यागना ही चाहिए क्यो्की जिस प्रकार निंबू की बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है उसी प्रकार मनुष्य का अंहकार भी अच्छे से अच्छे संबधों को बर्बाद कर देता है इसलिए इसे अपने अन्दर पनपने नहीं देना चाहिए,
रावण के कुल की बर्बादी का कारण उसका अंहकार ही था नहीं तो वो एक बहुत बड़ा ज्ञानी था,
अंहकार का त्याग बहुत अनिवार्य है क्योंकी इसके त्यागने से उन्नति का मार्ग तो प्रशस्त होता ही है साथ में इसके त्यागने से मन में शान्ति व संतोष की वृदि भी होती है,
इसलिए ज्ञान हो, यश हो, धन हो इस पर जरा भी घमण्ड न करें,
लोक परलोक का कोई भीश्रेय प्राप्त करने के लिए अंहकार मनुष्य का सबसे विरोधी तत्व है और लौकीक प्रगति पाने के लिए अंहकार का त्याग सबसे जरूरी है,
इसके त्यागने से ही ईश्वर की कृपा सदैव बनी रहती है, इसलिए इसे हमेशा त्यागने का प्रयास करें,
अन्त में यही कहुंगा जब अंहकार बड़ा हो जाए तो उसे हम खुद महसूस करके शांत करने की कोशीश करनी चाहिए, इसके लिए हमें संजीदगी से काम करना चाहिए ब अपने चालचलन पर अपनी बातचीत पर मंथन करके चलना चाहिए,
इसके लिए शांत वातावरण बना कर रखना अति आवश्यक है ब सभी को आदरभाव से वर्ताव करने के साथ साथ अपने आप को भगवान का अंश समझकर दुसरों के साथ मन मुटाव नहीं करना चाहिए और यही सोच कर चलना चाहिए कि हर प्राणी उसी परम पिता भगवान द्वारा बनाये गये जीव जन्तु हैं और मुझे उनके परोपकार के लिए भेजा गया है जब ऐसे विचार मन मे़ उतपन्न होंगे तो हमारे पास शेष मात्र भी अंहकार नहीं बचेगा और हम परम पिता परमात्मा के अंश ही बन कर रह जाएंगे, इसलिए मुस्कराते रहिए ब सब को मुस्कराते देखते रहिए, सब को खुशी पहुंचाने की चाहत भी आपके अंहकार को खत्म कर सकती है,
सच कहा है,
"दुआ मांगते चलो सारे संसार की,
फसल काट दो अपने अंहकार की"।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अहंकार मनुष्य को गर्त में ले जाता है l हमारे बुद्धि के क्षेत्र में तर्क, ह्रदयस्थ प्रेम और करुणा ही अहंकार का शमन कर सकते हैं l
अपनी प्रतिभा के बल पर हम लोकप्रिय तो हो सकते हैं लेकिन अहंकार के रहते अशांत जरूर रहेंगे l अतः भ्रांत अहंकार को त्याग कर स्वाभिमानी बनिये l
अहंकार त्यागने से मन निर्मल होकर अज्ञान रहित हो जाता है और हम प्रभु के कृपा पात्र हो जाते हैं l या यों कहा जाए -
"जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय l
या आपा को डारि दे, दया करे सब कोय ll "
"ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय l
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ll"
भ्रांत अहंकार के वशीभूत अपमान करना किसी का स्वभाव हो सकता है पर सम्मान करना हमारा संस्कार होना चाहिए l
मेरे दृष्टिकोण में असंतोष, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध, अहंकार रूपी रोग के लक्षण है l यद्यपि इस चक्रव्यूह को भेदना आसान नहीं तथापि मन, प्राण से नम्रता, समर्पण त्याग की सीढ़ी है l इस रोग का उपचार है l
चलते चलते ----
मत करना अहंकार,अपने आप पर l रब ने न जाने कितने लोगों को मिट्टी से बनाकर मिट्टी में मिला डाला है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। मनुष्य कभी -कभी अहंकार से ग्रसित हो जाता है। अज्ञानतावश वह अपना हीं अहंकार के कारण सर्वनाश कर बैठता है जिसका साक्षात उदाहरण रावण है। इतना गुणी होने के बावजूद रावण अपने अहंकार के कारण सब कुछ खो कर मारा भी गया। सब यह जानते हैं कि खाली हाथ व्यक्ति आया है और खाली हाथ हीं जाना है , लेकिन उसके गुण अवगुण सदैव उसके साथ रहेगें फिर भी व्यक्ति गलतियां कर बैठता है। नश्वर शरीर और रूपये- पैसे किस चीज का अहंकार करना जब कुछ हमारे साथ अंत में नहीं रहेगा फिर किसलिए अहंकार जैसे अवगुण का खुद में समावेश होने दिया जाए। अहंकार का त्याग व्यक्ति विशेष पर संभव है। कहा गया है इच्छा शक्ति प्रबल होनी चाहिए फिर हम अवश्य अहंकार जैसे कुविचार का त्याग कर सकते हैं।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " अहंकार के बिना इस दुनियां में कोई नहीं हुआ है । बाकी उपदेशों का कोई अन्त नहीं है । यहीं सत्य है । संसार में तो आज तक अंहकार के बिना इस दुनियां से नहीं गया है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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