क्या कामगारों ने लॉकडाउन के अंदेशे के चलते पलायन करना शुरू कर दिया है ?
कामगारों ने पिछला लॉकडाउन देखा है और अधिकतर ने सामना भी किया है । ऐसा तो हर बार हो । ऐसा जरूरी नहीं है । फिर कामगारों को जागरूक होना आवश्यक है ।यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
यह एक सच्चाई है कि किसी भी विपत्ति, आपदा या विषम परिस्थिति का सर्वाधिक प्रभाव गरीब मजदूर या कामगारों पर ही पड़ता है। अपनी रोजी- रोटी तथा गुजर-बसर के लिए बे बड़े शहरों व नगरों की ओर अपना रूख करते हैं लेकिन जब वहाँ रोजी-रोटी संकट में पड़ जाती है;सहारा खत्म होने लगता है तोघर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है ।आज की स्थिति में जब कोरोना का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है और कुछ राज्यों में जैसे महाराष्ट्र, दिल्ली आदि में लाॅकडाउन की स्थिति पैदा हो रही है तो इस कारण कामगार बहुत परेशानी महसूस कर रहे हैं ।आने बाली मुसीबत भरी स्थिति का पूर्वानुमान करते हुए कामगारों ने पलायन करना शुरू कर दिया है ।बे अपने-अपने राज्यों को लौट रहे हैं ।बडी संख्या में लौट रहे बिहार, बुन्देलखंड के कामगार इसके उदाहरण हैं ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया - मध्यप्रदेश
पिछले एक सप्ताह से कामगारों में फिर से अनिश्चितता की सुगबुगाहट आरंभ हो गई है। भारत के महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में कोविड 19 का प्रकोप फिर से बढ़ता जा रहा है। जिसके चलते रात्रि कर्फ्यू तथा अन्य गैर आवश्यक सेवाओं पर प्रतिबंध लगने लगे हैं। महाराष्ट्र में तो यह तीस अप्रैल तक बढ़ा दिए गए हैं। मुंबई में तो इस सप्तांत में पूर्ण कर्फ्यू लगा दिया गया।
ऐसी स्थिति में दैनिक कामगारों में घबराहट और अनिश्चितता की भावना का होना कुदरती है। महाराष्ट्र में बस अड्डों व रेल स्टेशनों पर भीड़ होनी आरंभ हो गई है। पिछले वर्ष पेंडामिक के चलते भारत में लॉकडाउन के कारण लगभग छह लाख कामगार घरों से बेघर होकर पलायनवाद से जूझे। जिसका सीधा प्रभाव उनके साथ साथ भारत की अर्थ व्यवस्था पर भी हुआ। अब जबकि करोना महामारी फिर से चरम सीमा की ओर अग्रसर है। वैक्सीन लगाने के जोरशोर से चल रहे मिशन के बावजूद संक्रमण के केस दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में फिर से लॉक डाउन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रेस की भी इस संबंधी अटकलें जारी हैं। ऐसे माहौल में कामगारों का अपनी रोज़ी रोटी के लिए चिंतित होना सही है। उन्हें अपने परिवारों की उत्तरजीविता हित प्लायनवाद के सिवा कोई चारा नहीं दीखता।
केंद्रीय तथा राज्य सरकारों को इस संबंधी निश्चित नीति व निर्णयों की घोषणा करनी चाहिए ताकि हमारे मज़दूर जिन पर काफ़ी हद तक हमारी अर्थ व्यवस्था तथा उत्पादकता टिकी है निर्भय हो सकें।
- डॉ नीलिमा डोगरा
नंगल - पंजाब
"पलायन करते मजदुरों में से मैंने एक से पूछा कि क्यों जा रहे हो अपने गांव इतना वोझ लेकर नंगे पांव,
वो बड़ी मासूमियत से बोला,
सरकार ही तो कह रही है,
स्टे होम स्टे फिट"।
कोरोना का कहर फिर से पूरे विश्व में दस्तक दे रहा है जिसे कोरोना की दुसरी लहर भी कहा जा रहा है,
कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए देश में फिर से लाकडाउन जारी होने जा रहा है कुछ प्रदेशों ने तो लाकडाउन जारी भी कर दिया है जिस के कारण कामगारों ने पलायान करने का मन बना लिया है,
तो आईये बात करते हैं कि क्या कारगारों ने लाकडाउन के अंदेश के चलते पलायान करना शूरू कर दिया है?
मेरा मानना है, कि कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए देश मे़ लगभग लाकडाउन कि स्थिति छा चुकी है जिसके डर से एकबार फिर से प्रयासी कामगारों, मजदूरों का पलायान जारी है ताकि वो अपने अपने घरो़ में पहुंच सकें कही़ पहले की तरह हजारों मील पैदल न चलना पड़े,
लेकिन इसबार केन्द्र सरकार ने कहा है कि प्रयासी मजदूरों पलायान रोकने के लिए सीमाएं सील करे सरकार उसके लिए राज्यों के मुख्य सचिवों, पुलिस महानिदेशकों के साथ विडियो कांन्फ्रेंस के दौरान बातचीत में कहा कि शहरों व राजमार्ग पर आवाजाही न हो
केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेश के प्रशासनोंसे लाकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों की आवाजाही को रोकने के लिए प्रभावी तरीके से राज्य और जिलों की सीमा को सील करने को कहा है,
फिर भी देश के कुछ हिस्सों में प्रयासी कामगारों की आवाजाही हो रही है लेकिन निर्देश जारी किए गए हैं कि, राज्यों और जिलों की सीमा को प्रभावी तरीके से सील करना चाहिए,
यही नहीं केन्द्रीय ग्रह मंत्रालय ने लाकडाउन दौरान प्रवासी कामगारों को राहत समग्री पहुंचाने के उपाय करने के लिए राज्य सरकारों को अधिकृत कर दिया है व कई निर्देश दिए हैं लेकिन मजदूरों का अपने अपने घरों में पलायन करना एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है फिर भी कामगारों का पलायन करना जारी है क्योंकी,
"सपनों को पीछे छोड़,
फिक्र उन्हें अपनों की थी,
बो मजबूर थे,
पैदल ही चल पड़े वो मजदूर थे"।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कुछ हद्द तक यह सही लग रहा है लोग पिछली तकलीफों को याद करते हुए परिवार को गांव लेकर जाने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं और कुछ मीडिया वालों की कृपा से यह बात अधिक दिखाई जा रही है!
पिछले साल अचानक कोरोना जैसी महामारी जो वैश्विक बन चुकी थी का सामना करने के लिए हम कतई तैयार नहीं थे ! वैक्सीन भी नहीं बनी थी अतः इस बढ़ती महामारी की चैन तोड़ने का एक ही उपाय था लॉकडाउन .....! इस लॉकडाउन का जुर्म सभी ने सहा किंतु चाबुक के मार के घाव रोज कमाने खाने वालों मजदूर पर असहनीय थे! उन्हें दोनों तरफ से मार पडी़.... क्या करोना से मरे या पेट की भूख से ! जब जान पर आती है तब इंसान में शक्ति आ जाती है वह और तेज भागता है यही इन कामगारों के गांव जाने की मजबूरी थी ! कुछ प्रशासन की भी भूल थी गांव से आये सभी मजदूरों को रजिस्टर्ड नहीं किया था! सालों से रहकर भी प्रवासी ही बने रहे किंतु आज..... 2020 की कोरोना महामारी ने हमें भविष्य में आनेवाले खतरों का कैसे सामना करना है सीखा दिया है ! वर्तमान में हमने भी बड़ी तैयारिया की है.... जो भूल हुई थी सरकार ने उसे सुधारा है! वैक्सीन भी आ गई है.... हमारा देश वसुद्धैव कुटुंबकम में मानता है तो मनमुटाव तो होते हैं ! सभी को मिलकर चलना है! मजदूर भगवान है और बिना भगवान के मंदिर कैसा? यदि व्यवसाय भगवान है तो मजदूर भक्त.... बिना भक्त भगवान कैसे खुश होंगे ... दोनों एक दूसरे के पूरक हैं!
लॉकडाउन होता भी है तो हमें पिछले सभी पन्नों को पलटना होगा और मानवता दिखाते हुए एक दूसरे की मदद करनी होगी!
अतः मेरे विचार में दहशत छोड़ मिलकर मुकाबला करें!
देश आर्थिक रुप से मजबूत होगा तो हमारा जीवन भी आगे सुखकर होगा!
मास्क पहने एवं कोरोना के सभी नियमों का पालन करें! राजनीति का खेल ना खेले
- चंद्रिका व्यास
खारघर नवी मुंबई - महाराष्ट्र
पिछले साल जो अघोषित आपातकाल कोरोना महामारी के दौरान जो भी घटनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दिखाई दिए थे, जिससे कामगारों के भविष्य की चिंताओं ने झंझोर कर दिया था, जैसे-तैसे स्थितियों को नियंत्रित करने में सफल हो ही रहें तो, पुनः पूर्व की भांति जस की तस स्थितियां निर्मित होने के फलस्वरूप आपातकाल के डर से, अपने-अपने तरीके से, घर की ओर जो भी संसाधनों के बीच जीवन को पुनः जीवित अवस्था में पहुँचाने, पहुँच रहे हैं, जितना दूसरी जगहों पर कमाया जा सका था, पुनः माथें पर चिंता की लकीरें उभर कर सामने आने लगी हैं। सरकार को अपने उत्थान, उम्मीदों को आतुर करने पूरी तरह से धन-बल-शक्तियों को झोंक दिया हैं, अगर औचित्यता से ध्यानाकर्षण किया जाता और उसकी जगह, बुद्धिमत्ता का परिचय दिया गया होता तो, वर्तमान परिदृश्य में इतिहास और ही कुछ होता? प्रश्न उत्पन्न होता हैं, धन-बल-शक्तिका क्या होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कोरोना की दूसरी लहर के चलते लॉकडाउन के अंदेशे से कुछ कामगारों ने पलायन करना शुरू कर दिया है .....लेकिन पहले जैसा अब नहीं दिख रहा है, लगता है लोगों ने कोरोना के साथ जीना सीख लिया है ।.....इसके अलावा वही कामगार पलायन करने में उत्तेजना दिखा रहे हैं ,जिन्हें अपने मूल स्थान/प्रदेश में काम मिल सकता है और रोजी रोटी का निर्वाह हो सकता है अनेक ऐसे विवश मजदूर हैं जिनके पास कोई चारा नहीं है सिवाय शहरों में काम करने के। कुछ राज्यों में कामगारों ने लॉकडाउन के अंदेशे के चलते अभी जल्दबाजी नहीं दिखाई है।.....कोरोना सी डरना नहीं उसको हराना है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
"दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है"। पिछले वर्ष के लाॅकडाउन का अनुभव अनेक कामगारों को आज भी पीड़ा देता होगा। कोरोना के बढ़ते कहर ने महानगरों में बसे कामगारों को फिर से भयभीत कर दिया है।
कल क्या हो, यह कोई नहीं जानता। परन्तु मनुष्य अपने भूतकाल में घटी घटनाओं के अनुसार वर्तमान में कार्य करता है।
जो पीड़ा गरीब कामगारों ने पिछले वर्ष भोगी है उसके फिर से शिकार होने का डर उन्हें पलायन को विवश कर रहा है। इसीलिए कामगारों ने, लाॅकडाउन के अंदेशे और उससे उत्पन्न दुर्दशा को महसूस करते हुए पलायन शुरू कर दिया है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार और समाज भी गरीब की पीड़ा को पूर्ण रूप से दूर नहीं कर पाता।
कामगारों की पीड़ा पर गत वर्ष मैंने कहा था कि......
लाचारी बनी कामगार की पर्यायवाची,
कसूर क्या जो झेली पलायन की त्रासदी।
हवाई वादों की भरमार देख रहे कामगार,
रोता है मन देख उसे जो सहे कामगार।
नंगे पांव मंजिल की तलाश कर रहा,
जीवन की आस में पल-पल मर रहा।
अपने ही कांधों पर लाश अपनी लेकर,
कामगार वर्ग सड़कों पर छटपटा रहा।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
लॉकडाउन के अंदेशे के चलते कामगारों ने पलायन शुरू कर दिया है जिससे दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्रभावित होगी l
दिहाड़ी मजदूरी वाले कामगारों की विकट समस्या होगी l ऐसे परिवेश में आमजन के प्रति नैतिक दायित्त्व तन, मन से निभायें और यदि धन की आवश्यकता हो तो भी पीछे न रहें l कामगारों की मुश्किलें कम करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता हो लेकिन कामगारों को अफवाहों से बचते हुए सही समय पर ही उचित निर्णय लेना चाहिए और व्यवस्थाओं को बनाये रखने में सहयोग करना चाहिए l
गाइड लाइन की पालना हमारा ध्येय होना चाहिए l
चलते चलते ---
स्वयं की मदद स्वयं करें l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बड़े शहरों में कोरोना की स्थिति और भीड़ भाड़ देखने से तो ऐसा ही लगता है कि कामगार सब पलायन करना शुरू कर दिए हैं। पिछले साल के लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए मजदूर वर्ग ये कदम उठा सकता है। पिछले साल तो ट्रेन बंद होने के कारण लोगों को पलायन करने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। ट्रेनें बन्द नहीं होगी। इसलिए कामगारों को पलायन करने में कोई असुविधा नहीं होगी। जैसा कि सुना जा रहा है कि अमुक राज्य में या जगह पर लॉकडाउन लगने वाला है इसलिए इसलिए कामगार पलायन शुरू कर रहे हैं कि लॉकडाउन में तो काम छूट जाएगा तो पिछले साल वाली स्थिति हो जाएगी। रास्ते में कष्ट सहना पड़ेगा या मरना पड़ेगा इससे अच्छा है पहले ही भाग चलो। क्योंकि लॉक डाउन के अंदर सबकी हालत बदतर हो जाती है इसलिए कामगारों का पलायन स्वाभाविक ही लगता है।
काम नहीं मिलने से रहना खाना पीना आना जाना सब चीजों की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में समय रहते सब सुरक्षित हो जाना चाहते हैं। शायद इसलिए समय रहते अपने-अपने घर पहुँच जाना चाहते हैं। इसके लिए एक मात्र रास्ता पलायन ही है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
मुंबई दिल्ली जैसे महानगरों के प्लेटफार्म पर बढ़ते भीड़ को देखकर निःसंदेह कह सकते हैं कि कामगार जल्द से जल्द वापस घर पहुंचना चाहते हैं। जिस तरह पिछले साल लंबी यात्रा पैदल चलकर भूखे-प्यासे कष्ट झेलते हुए कामगार अपने घर पहुंचे थे वह रोंगटे खड़े कर देने वाली स्थिति थी।
वैसी दुखद परिस्थिति से फिर न गुजरना पड़े इस कारण कामगार डर से लॉकडाउन के अंदेशे को महसूस कर जल्द से जल्द अपने घर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं।
लॉकडाउन होते ही शहरों में जहां जहां वे काम करते हैं वह सारे काम बंद हो जाने के कारण बेरोजगारी की स्थिति में उनकी स्थिति दयनीय हो जाती है। लोगों के दया पर आश्रित होना पड़े ऐसा कोई नहीं चाहता।
दूसरा कारण यह भी अभी गांव में गेहूं व रबी के फसलों की कटाई भी चल रही है। इस समय वे अपने खेतों के फसल का भी देखभाल कर लेंगे और साथ ही गांव में उन्हें बेहतर काम भी मिल जाएगा जिससे साल भर की उनकी आमदनी बनी रहेगी।
तीसरा कारण यह भी है कि शहरी क्षेत्रों में कोरोनावायरस का जो प्रकोप देखने के लिए मिल रहा है वह दूर-दराज के गांव में अभी बहुत कम है। जान है तो जहान है।
इन्हीं सब कारणों को समझते हुए कामगार सही समय पर अपने गंतव्य स्थल तक पहुंच रहे हैं
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
प्रवासी कामगार अन्य शहरों में आजीविका कमाने के लिए निकलते हैं। इनमें अनेक किस्म के कामगार होते हैं। यहां तक की फसलों की बुवाई और कटाई के लिए भी प्रवासी कामगार ही एक से दूसरे राज्य आते जाते रहते हैं। निश्चित कार्य हो जाने के बाद ये फिर लौट जाते हैं। अब भी यही बात है। हां, अनेक कामगार ऐसे होते हैं जो निर्माण गतिविधियों और कारखानों में काम करते हैं। पिछले बरस कोरोना के चलते स्थिति स्पष्ट नहीं थी और वे प्रवासी मजदूर जो यहां किराये पर रह रहे थे और उन पर कमरे खाली करने का दबाव था या वे किराया देने की स्थिति में नहीं थे तो वे किसी न किसी भांति अपने गांव पहुंचना चाहते थे और स्थिति पलायन की थी। वर्तमान में स्थिति भिन्न है। कामगार अब नियोजित ढंग से कार्य कर रहे हैं और पूर्वानुभाव के अनुसार अपने गांव लौट रहे हैं।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
लॉकडाउन के कारण बहुत सारे लोगों ने काम का छोड़ कर पलायन करना शुरू कर दिया है बढ़ती हुई कोरोना संक्रमण की संख्या ने पूरे देश को अपने चपेट में ले रखा है ।प्रतिदिन कोरोना से संक्रमित मरीज पाए जा रहे हैं तथा देश में चारों तरफ हाहाकार मची हुई है।पलायन की स्थिति को बढती जा रही हैं। सरकार ने परिस्थितियों को देखते हुए कामकारों को आदेश के साथ रात आठ बजे से सुबह छः बजे तक काम बंद करने का आदेश जारी किया है। लोग पलायन करने लगे हैं कामगारों जो बाहर रहते थे वो लोग भुखमरी की स्थिति में पलायन करने की सोच रहे हैं ।अपनी परिवार तथा अपने जीविका को चलाने के लिए वह अपने घर परिवार से दूर रहकर काम करते थे तथा ऐसे में लोग लाँकडाउन के आदेश का पालन करने हेतु वह पलायन कर रहे हैं ।वह अभी मार्मिकता और संवेदनशील स्थितियों से हमारा देश गुजर रहा है यहां एक एक गरीब हर रोज तड़प तड़प के मर रहे हैं ऐसे में सरकार को भी अपनी व्यवस्था को सुडौल करनी चाहिए तथा काम करो काम की व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि वह अपनी जीविका को अच्छी तरीके से चला सके । कोरोना ने इस अवस्था में लोगों के मरने की कगार पर ला खडा किया हैं।तथा कामगार ऐसे ही आदेश का पालन करके पलायन कर दे रहे हैं ।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
कामगार लोग सर पर मंडराते संकट को देखकर कोरोना के संक्रमण के चलते लॉक डाउन की आशंकाओं से पलायन करने को फिर से मजबूर हो गए हैं।
राज्यों के लिए यह जरूरी है कि वे कामगारों को दिलासा देने वाली जरूरी सूचनाएं उपलब्ध कराएं। और लॉक डाउन को लेकर असमंजस के माहौल को दूर करने में मदद को हाथ उठाएं ।
इस आशंका को कुछ मुख्यमंत्रियों की घोषणा ने बल दिया है ।
इससे मजबूर होकर मजदूर लोग लॉकडाउन का से बचने के लिए घर को जाने को मजबूर हो गए हैं।
कुछ राज्य सरकारों की ओर से अपने चुनिंदा शहरों में रात का कर्फ्यू और सप्ताहांत lock-down लगाए जाने के चलते लंबे लॉक डाउन की आशंका ने सिर उठा लिया है ।
इन घोषणाओं से विचलित मजदूरों में घबराहट का माहौल है।
अतः राज्यों को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
पिछले वर्ष अफरा-तफरी किस कदर फैली थी, कितने दारुण दुःख झेलते हुए तमाम कामगार पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर का सफर करने को मजबूर हुए थे। उस दौर का वह हृदय विदारक दृश्य कभी भुलाया नहीं जा सकता।
यह गम्भीर चिंता का विषय है ,इसके लिए सरकार को सकारात्मक समाधान निकालने चाहिए ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जी नहीं! कामगारों ने लाॅकडाउन के अंदेशे के चलते पलायन करना शुरू नहीं किया है? इस बार वह ऐसा कदापि नहीं करेंगे। चूंकि पहले ही वह एक बार धोखा खा चुके हैं और बार-बार मूर्ख बनने का किसी को भी शौक नहीं होता।
हां एक बात पक्की है कि काम बंद होने का डर अवश्य है कि यदि काम ही बंद हो जाएंगे तो उस परिस्थिति में खाना-पीना और किराया देना भारी पड़ेगा।
परंतु वह भली-भांति जानते हैं कि यदि वह पहले की भांति पलायन करते हैं तो वह ठीक धोबी का कुत्ता न घर का और ना घाट का बन कर रह जाएंगे। इसलिए वह अपने-अपने स्थान पर डटे हुए हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अभी तक तो कुछ खास नजर नहीं आ रहा है। कोरोना संक्रमण की वजह से लोगों ने सावधानियां बरतना चालू कर दी है और अपना काम जारी रख रहे हैं। घर परिवार चलाने के लिए बच्चों के लिए खर्च की आवश्यकता होती है ,पेट भरने के लिए अन्न की भी जरूरत होती है। घर पर बैठे रहने से काम नहीं चलता इसीलिए कामगार लोग सावधानी बरतते हुए काम कर रहे हैं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " कामगारों को जागरूक होना चाहिए । जिससे आई बीबत से बचा जा सके । विशेष रूप से घर जाने की समस्या का समाधान अवश्य होना चाहिए । फिर भी उम्मीद की जा रही है कि पिछला लॉकडाउन जैसी समस्या नहीं होगी ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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