क्या व्यक्ति की सफलता में भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर होता है
व्यक्ति की सफलता कर्म पर निर्भर करती है । बिना कर्म के सफलता सम्भव नहीं होती है । कर्म से दुनियां चलती है । यह प्राकृतिक का नियम है । बिना कर्म के जीवन सम्भव नहीं है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा आज की चर्चा का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि जीवन में कर्म ही प्रधान होता है। कर्मशीलता ही मनुष्य को सफलता के शिखर पर ले जाती है। सफलता में भाग्य की यदि कोई भूमिका होती भी है तो वह अप्रत्यक्ष होती है। जबकि मनुष्य द्वारा किये गये कर्म धरातल पर दृष्टिगत होते हैं। एक पिता की दो सन्तानों के जीवन स्तर में अंतर होने को मैं यही समझता हूँ कि निश्चित रूप से उनके कर्मों के कारण ही उनके स्तर में भिन्नता होती है।
हमारे आसपास ऐसे उदाहरण अक्सर दृष्टिगत होते हैं कि कर्मशीलता अपना पूरा प्रभाव नहीं दिखा पाती तब हम कह देते हैं कि इस व्यक्ति का भाग्य ठीक नहीं है। परन्तु मैं समझता हूं कि कर्म-दोष के कारण ही व्यक्ति को असफलता प्राप्त होती है।
सही समय पर सार्थक कर्म सदैव लाभकारी और सफलता प्रदान करते हैं।
निष्कर्षत: मैं यही कहूंगा कि व्यक्ति की सफलता में भाग्य से अधिक कर्म की निर्भरता अधिक होती है।
"कर्मशीलता के भाव ही सफलता दिलाते हैं,
उत्कृष्ट कर्म ही मानव भाग्य को जगाते हैं।
समय प्रवाह के साथ कर्मशील रहते हैं जो,
जीवन में वही मनुज सुरभित पुष्प पाते हैं।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
यहां मैं कहूंगी भाग्य विधि का विधान है और कर्म हमारा अपना विधान है! यदि कर्म करते हुए भी असफलता हाथ लगती है तो हम कहते हैं भाग्य खराब है किंतु इसके लिए हम कर्म करना तो नहीं छोड़ सकते! प्रभु कृष्ण ने भी कहा है कर्म करते जाओ फल की इच्छा मत करो! यदि हम कर्म करते रहें तो फल तो मिलना ही है! खेतों से प्राप्त फसल हमें ऐसे ही नहीं मिलती ...सब हमारे मेहनत का परिणाम होता है! बीज बोने से लेकर फसल काटने तक हम काम करते हैं! यह हमारे कर्म का विधान है! अच्छी फसल होने से भाग्य बन जाता है किंतु कठिन परिश्रम के बाद भी बारिश का न होना ,बाढ आना ,पाला पड़ जाना फसल नष्ट होने का कारण बनता है तो वह विधि का विधान है अर्थात हमारा भाग्य है!
समस्त जीव मात्र कर्म प्रधान है ...एक नवजात बच्चा भी अपनी क्षुधा शांत करने के लिए ,मां की छाती से दूध खींचने के लिए परिश्रम करता है! अपना मुंह चलाता है चाहे जानवर का हो या मनुष्य का!
आलसी होते हैं वे ही भाग्य पर निर्भर करते हैं !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन एक परिदृश्यों में विभक्त हैं, जो अपनी-अपनी सफलताओं के लिए, अपने-अपने तौर तरीकों से लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहता हैं,
बिना काम करने से उसे सफलता मिल जायें, अगर उसे असफलता अर्जित होती जाती हैं, तो कर्म को दोषी ठहराता हैं, इसीलिए जन चर्चित होकर रह जाता हैं, "जैसा कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल भोगेगा।" यह चरित्रार्थ हैं और प्रत्यक्ष-अप्रत्याशित रूप से घटनाओं को अंजाम देते हुए दिखाई देते हैं। आज वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जो भी हो रहा हैं, उसकी ही बुद्धि, विवेक, आत्म विश्वास, आत्म चिंतन, आत्म शक्ति के आधार पर सफलताओं को पग-पग पर विभिन्न प्रकार से वृहद स्तर पर क्रियान्वित करने में सार्वभौमिकता की आवश्यकता प्रतीत होती हैं और जिसके तारतम्य में आंशिक प्रबुद्ध वर्ग भी हैं, जो उसे सकारात्मक की ओर गौरवान्वित कर, भाग्यशाली बनाते हैं।
इसमें अमीरी-गरीबी भाग्य रेखा को दोष नहीं दे सकते, यह तो भाग्य रेखा अपने उतार-चढ़ाव के साथ ही साथ एकाग्रचित्त होकर एक तरंग उत्पन्न करती हैं, जो अपनी सफलता में भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर होता जाता हैं और हम ज्ञानइंद्रियों को यादगार बनाने प्रयत्नशील होकर रह जाते हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
सफलता भाग्य की अपेक्षा कर्म की लगन और परिश्रम पर अधिक निर्भर करती है lकहा गया है कि -
"सकल पदार्थ हैं जग माहिं
कर्महीन नर पावत नाहिं l "
लेकिन हमारी धार्मिक भावना भाग्य को भी कर्म से जोड़ देती है लेकिन भाग्य कर्म से ही जुडा है l शर्त ये है कि उचित समय पर किया गया कर्म ही सफलता प्रदान करता है l
कर्म करने से पूर्व उद्देश्य का निर्धारण, उपलब्ध संसाधनों का सही व समय पर उपयोग, बदलाव को स्वीकारें, विपरीत परिस्थिति में धैर्य से लड़ना सीखें क्योंकि" असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है l "हर अगला दिन हमारे लिए उम्मीद किरण लेकर आता है, सकारात्मक सोच के साथ कर्म करें l मेरे दृष्टिकोण में मन आपको प्रेरित करता है और कर्म सफलता को निर्धारित करता है अतः संतुलित मन से ही कर्म पथ पर आगे बढ़ें l मन के संतुलन के चार पक्ष हैं -
1. सतर्कता -सजगता
2. विचार प्रवाह (कल्पना )
3. कर्म (अभ्यास )
4. उत्साह
इन चारों का सुव्यवस्थित क्रम चलने से मनुष्य मानसिक दृष्टि से समर्थ एवं सफल बनता है l
चलते चलते ---
ख़ुशी का राज सफलता नहीं
सफलता का राज ख़ुशी है l
यदि हम अपने कर्म को "पूजा "
मानते हैं तो अवश्य सफल होंगे एक दिन l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
व्यक्ति की सफलता मेरे विचार से कर्म और भाग्य दोनों पर बराबर निर्भर करती है ।यदि भाग्य साथ ना दे तो कर्म फलीभूत नहीं हो सकते ।और यदि भाग्य मान लो पण्डित या किसी ज्योतिषी ने अच्छा भी कहा होगा किन्तु आप कर्म नहीं करोगे तो भी सफल होना मुश्किल है ।
शारान्श ये है कि सबसे पहली तरजीह तो कर्म को ही दी जानी चाहिये ।यदि पूरी मेहनत से किये गये कर्म का भी सफल प्रतिफल ना मिल पाये तो फिर इसे भाग्य पर छोड देना चाहिये के के शायद ये भाग्य में नहीं है ।
हम भाग्य को भगवान की मर्जी भी कह सकते हैं ।और हमें ये भी विस्वास रखना चाहिये की भगवान की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीँ हिल पाता है ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
गीता में भी लिखा गया है कि कर्म ही प्रधान होता है ,कर्म से हम समय को बदल सकते हैं ।
रामायण की चौपाई है ,
कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करहिं सो तस फल चाखा।
जाहिर है कि व्यक्ति को सफलता हासिल करने में भाग्य की अपेक्षा कर्म पर अधिक निर्भर होना पड़ता है ।कर्मयोग का पाठ तो श्रीमद्भगवद गीता के जरिये श्री कृष्ण ने संसार को यूं ही नही पढ़ाया वह पूरा प्रायोगिक न्यायसंगत एवम व्यवहारिक भी है जो अपने आप मे गूढ़ भी है सरल भी ।
यूँ तो कर्म या कर्तव्य के रास्ते मे विघ्न भी आना स्वाभाविक होता है लेकिन ईमानदारी से किये गए कार्य का परिणाम अच्छा और सम्मान योग्य होता है ।जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मसम्मान की भावना भी विकसित होती है ।
मक्कारी या हेराफेरी से किये गए कार्य सदैव निंदनीय होते हैं और खुद की नज़र में ही गिर जाता है बेईमानी से कार्य करने वाला व्यक्ति ।
समय और कर्म के अलावा भाग्य भी बहुत निर्णायक होता है ।कभी कभी कर्म भी पूरी मेहनत व सही समय पर कर कर लेने के बाबजूद सफलता हाथ नही लगती तब व्यक्ति भाग्य को दोष देते हुए सन्तोष कर लेता है ।
सब का समय एक बराबर नहीं रहता। जब समय खराब चल रहा हो तब भी कभी रुकना नहीं चाहिए ,कर्म करते रहना चाहिए।
विपरीत परिस्थितियों में कर्म करने से समय भी सुधर जाता है। समय बलवान भी है ,,,एवं कर्म महान भी है ,,,।
कर्म और समय में अंतर संबंध है, आप अच्छा कर्म करोगे भविष्य में अच्छा समय मिलेगा अच्छा नतीजा भी मिलेगा।
यह भी सत्य है कि सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व है। जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया ।
मनुष्य को समय के साथ चलना पड़ता है ।
जो समय के साथ नहीं चलते, पीछे रह जाते हैं ।
लेकिन समय के साथ चलने का मतलब कार्य करते रहने से है, रुकने से नहीं ।
हाथ पर हाथ धरकर बैठने से कुछ नहीं होने वाला ।
कर्म प्रधान संसार है इसमें कोई दो राय नही।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
भाग्य भी अच्छे-बुरे पूर्व कर्मों का ही फल माना जाता है। जिन्हें लेकर प्राणी जन्म लेता है और मानव हर प्राणी से श्रेष्ठ माना जाता है। जो कर्मों के आधार पर उन्नति और विकास करने में सक्षम होता है और जीवन की असफलताओं से प्रेरित होकर सफलताओं की संतुष्टि प्राप्त करता है।
उल्लेखनीय है कि जानवर भी शेर के आक्रमण से बचने के लिए दौड़ लगाता है और वही दौड़ कर्म कहलाती है। हालांकि हारने पर वह दौड़ जीवन की अंतिम दौड़ बन जाती है और जीतने पर शेर का भोजन बनने से निजात भी मिलते देखा गया है।
अब विचारणीय तथ्य यह है कि यदि उक्त जानवर शेर के आक्रमण पर खामोशी से वहीं खड़ा रहेगा तो शेर का सौभाग्य और जानवर का दुर्भाग्य बनना तय है। जबकि दौड़ लगाना वह शक्ति प्रदर्शन है जो सौभाग्य और दुर्भाग्य का निर्णय करता है।
वही शक्ति प्रदर्शन वास्तव में कर्म कहलाता है। जो भाग्यविधाता बनकर उभरता है और जीवन की सफलता/असफलता का निर्णय करता है। इसी तार्किक आधार पर सिद्ध होता है कि व्यक्ति की सफलता भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर होती है।
अतः मैं भी उपरोक्त आधार के अटलविश्वास पर अपने कर्महीन न्यायमित्र सहित अधिवक्ताओं/न्यायमूर्तियों द्वारा निर्मित दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने हेतु निरंतर कर्म पर कर्म करता चला आ रहा हूं और भलीभांति जानता हूं कि अंततः विजय मेरी ही होनी है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हर व्यक्ति की सफलता में भाग्य उसका साथ देता पर कर्मठ व्यक्ति को ही देता है, मेरा मानना है की भाग्य ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहियें कर्म ही भाग्य की रचना करते हैं, इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए, तभी भाग्य का साथ मिलता है। ... इसके विपरीत भाग्य बलवान है और कर्म अनुकूल नहीं है, तो भाग्य भी उसका अधिक साथ नहीं देता।
पर कभी कभी उल्टा होता है हमने बड़ों को कहते सुना है ।
अच्छे कर्मों का फल भी अच्छा होता है। लेकिन बहुधा ऐसा देखा गया है की हमें अपने सत्कर्मों का पूरा पूरा फल नहीं मिलता। किसी की मदद की तो बदनामी मिली
और कोई कुछ नहीं करता तब भी सब तारिफ़ करते है ।
भाग्य तो हर मानव का उसके साथ है पर कर्म से हम उसे निखार सकते है ।
भाग्य के भरोसे न रहकर कर्म करते रहना चाहिये कर्मों का फल मिलता है गीता में कर्मों को ही महत्व दिय है ।
भाग्य अच्छा और हम कर्म भी करते हैं तो सोने पर सुहागा हो जाता है ।
सिर्फ़ भाग्य के सहारे नहीं रह सकते ....कर्म ही सफलता की कूंजी है ।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
किसी भी व्यक्ति की सफलता में भाग्य और कर्म दोनों की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दोनों में से किसी भी एक की भूमिका को कम मानना बेमानी होगा। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है और उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति। यह फल ही तो भाग्य बन जाता है।भाग्य के अनुसार ही सफलता मिलती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने एक दोहे में कहा है, 'सकल पदारथ हैं जग माहीं। करमहीन नर पावत नाहीं। ' अर्थात इस दुनिया में सारी चीजें प्राप्त की जा सकती हैं लेकिन वे कर्महीन व्यक्ति को कभी नहीं मिलती हैं।
यानि कर्म करना होगा ही।
एक अन्य चौपाई -" काहू न कोऊ सुख-दुःख कर दाता, निज कृत करम भोग सब भ्राता”
अर्थात सब अपने कर्मों का ही फल भोगते हैं।
यही वह भोग है, जिसे हम भाग्य की संज्ञा देते हैं। जब यह सीध पर होता है तब गलत कदम भी सही राह पर भी ले जाते हैं।बुरे काम का भी अच्छा फल होता है।विश्व प्रसिद्ध पुस्तक पंचतंत्र (विष्णु शर्मा) में बुरे काम का अच्छा फल शीर्षक से ऐसी कथाएं है। अतः कर्म और भाग्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक के बिना दूसरे का महत्व नहीं।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
व्यक्ति की सफलता में भाग उसके साथ ही होता है। लेकिन भाग्य सब कुछ नहीं होता बल्कि इंसान के कर्म ही भाग्य की रचना करते हैं,इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए तभी भाग्य का साथ मिलता है कर्म और भाग्य दोनों एक दूसरे के पूरक है। कर्म किए बगैर भाग्य नहीं फैलता है और भाग्य के बगैर कर्म की कोई गति नहीं होती है। यदि मनुष्य के कर्म अच्छे हैं तो भाग्य उसके विमुख नहीं हो सकता। इसके ठीक विपरीत भाग्य बलवान है और कर्म अनुकूल नहीं है तो भाग्य भी उसका अधिक साथ नहीं देता। चाणक्य कहते हैं कि कुछ लोगों का मानना है कि जब भाग ही सब कुछ है तो मेहनत करना बेकार है वहीं अगर भाग्य में यह लिखा हो कि कोशिश करने पर ही मिलेगा तब क्या करोगे श्री भाग्य भरोसे बैठे रहने वालों को कुछ नहीं मिलता है, बल्कि जो कर्म करते हैं भाग्य उनका साथ देता ही है। साथ ही में भी अपने साथ की वजह से कई गुना लाभ प्राप्त करते हैं। किसी का भाग्य कमजोर भी हो तो व्यक्ति उसे अपने पुरुषार्थ यानी कर्म से पूरी तरह बदल सकता है। यह बात बिल्कुल ही सत्य है कि जीवन की सफलता में कर्म और भाग्य दोनों का योगदान रहता है लेकिन यदि सफलता कर्म से मिले तो आत्म संतुष्टि एवं आत्मविश्वास बढ़ाने वाली होती है।भाग्य में सफलता हो या ना हो मगर अथक प्रयासों एवं कर्मों से उसे हासिल किया जा सकता है। जीवन की सफलता में कर्म और भाग्य दोनों ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। एक बात यह भी है कि जीवन में योग के माध्यम से मनुष्य मानसिक शारीरिक आत्मिक और आध्यात्मिक स्तर पर स्वस्थ रहता है। वह अपने कर्मों और इंद्रियों को वश में कर सकता है, इसलिए कर्म योग में ईश्वर का ध्यान आवश्यक है और कर्म योग का मार्ग ध्यान मार्ग से ही होकर गुजरता है। योग का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है इससे मनुष्य अपने कर्मों को वश में करके प्रभु के बताए हुए रास्ते पर चलकर अपने भविष्य और परिवार के जीवन को खुशहाल एवं सुंदर बना सकता है। कहा जाता है कि भगवान हर जगह विद्यमान है यह सभी जानते हैं इस कारण व्यक्ति को ऐसे स्थान का चयन करना आवश्यक है जिससे कि अच्छे और बुरे कर्मों का अंतर समझ सके। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि कर्म और योग का मार्ग ध्यान योग सहित ग्राम का दाम होता है इसलिए कर्म युग में भगवान विधान का अत्यंत महत्व है। श्रीमद भगवत गीता के अध्याय 6 में कर्म योग की पद्धति की विशेष रूप से स्तुति की गई है भगवान इस बात पर बल देते हैं कि कर्म योग की प्रक्रिया भक्ति भाव है और किस भाग में किया गया कार्यक्रम होता है इस संसार में प्रत्येक मनुष्य अपने और अपने परिवार के पालन एवं देखभाल के लिए निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए अथवा निजी जिंदगी अथवा काम पूर्ति के लिए कर्म करता है। इसलिए व्यक्ति की सफलता में भाग्य और कर्म दोनों का ही स्थान होता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
इस संबंध में विद्वानों ने कर्म को ही प्रमुख माना है। कहा भी गया है ," विश्व प्रधान कर्म रचि राखा। को करतब मनावहि साखा।। " गीतोपदेश में भी यही समझाया गया है।
अतः इसे नकारा नहीं जा सकता और न ही नकारा जाना चाहिए। लेकिन इस सब के बीच भाग्य का होना भी निहित है। सौभाग्य और दुर्भाग्य दो ऐसे पहलू हैं जो संयोग बनाके कार्य की सफलता को प्रभावित करते हैं। याने कर्म के साथ भाग्य भी जुड़ा होता है। कभी-कभी सब कुछ अच्छा होने के बाद भी दुर्भाग्यवश काम में कोई बाधा उत्पन्न हो कार्य को असफल कर देती है और कभी- कभी जब भाग्य साथ देता है तो संयोग बनते चलते हैं और कार्य में सफलता मिल जाती है। ऐसा भी माना गया है कि हमारे अच्छे - बुरे कर्म ही हमारा भाग्य बनाते हैं। इसीलिए सदैव अच्छे कर्म करने को कहा जाता है ताकि हमें अपने कार्य में सफलता मिलती रहे। अतः सार यही कि हमारी सफलता में कर्म ही प्रधान है और इसी पर निर्भर है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कर्म से भाग्य का निर्माण होता है। हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल हमें मिलेगा। नकारात्मकता से पुष्ट कर्म कभी सफलता नहीं देते। यदि देते भी हैं तो वह भ्रामक और अस्थाई होते हैं।कहा भी गया है कि" छलनी में दुहो और भाग्य को टटोहो"। यहां कर्म को ही दोष देना पड़ेगा। अतः भाग्य की अपेक्षा कर्म ही प्रधान है।
हमारा प्रारब्ध भी अगले पिछले जन्मों के कर्मों पर ही बनता है; जिसका हमें ज्ञान नहीं होता। अतः जीवन में सफल होने के लिए लोकमंगल के हितार्थ सत्कर्म करते रहना चाहिए यही पुण्य कर्म है जिनको करने से हमें इसका फल कई गुना प्राप्त होता है। यही शास्त्रों का विधान है। तुलसी ने बलपूर्वक कर्म को महत्व दिया और कहा कि- "कर्म प्रधान विश्व रचि राखा जो जस करे सो तस फल चाखा।"
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
व्यक्ति की सफलता भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर है क्योंकि ईश्वर ने हमें कर्म करने के लिए ही ज्ञानेन्द्रियां दी हैं । पशु-पक्षी सभी को अपना-अपना कर्म करना पड़ता है । छोटे से छोटा जीव भी कर्म करता है, तभी उसे उसका भोजन मिलता है ।
संसार में कोई भी व्यक्ति कर्म किये बगैर नहीं रह सकता है । कहा भी है कि ' कोशिश करने वालों की हार नहीं होती '
कर्म के मार्ग में बाधाएं अवश्य आती है और कई बार सफलता दूर चली जाती है । ऐसे समय में भाग्य यदि साथ दे तो व्यक्ति को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता ।
कर्म और भाग्य साथ-साथ चलते हैं लेकिन जिनके होंसले बुलंद हैं वे भाग्य को बदलने की भी क्षमता रखते हैं ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
व्यक्ति की सफलता कर्म पर निर्भर करता है। भाग्य भरोसा बैठने से जीवन में सफलता नहीं मिलता, जब तक कर्म नहीँ करेंगे ।जो व्यक्ति सच्चे हृदय से जोश और जुनून के साथ सही दिशा में कर्म करता हैं , सफलता उसके कदम चूमती हैं।
नकारा लोग कर्म नहीं करेंगे, बैठे- बैठे चाहते है कि उन्हें भाग्य भरोसे सफलता मिल जाये। दिन- रात भाग्य को कोसते रहते हैं। भाग्य उन्ही लोगो का साथ देती हैं जो पूरी ईमानदारी से कर्म करते हैं।
- प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
"कर्म बिना पूछे और बिना बताये ही दस्तक देता है,
क्योंकी वो चेहरा और पता दोनों ही याद रखता है"।
इस बात को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता कि अकेले किस्मत के सहारे वैठना बेवकूफी है क्योंकी किस्मत भी उन का साथ देती है जो मेहनत करते हैं, बिना मेहनत सफलता नहीं मिलती, कहने का मतलब कर्म ही महान है,
तो आईये बात करते हैं कि क्या व्यक्ति की सफलता में भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर होता है?
मेरा तर्क है कि किसी भी काम की सफलता इंसान की मेहनत पर निर्भर करती है और किस्मत भी उनका साथ देती है जो मेहनत करते हैं बिना मेहनत सफलता असंभव है,
गीता में भी कहा गया है,
कर्म करो फल की चिंता मत करो,
यह एकदम सत्य है मेहनत सफलता की सर्वोतम कुन्जी है पर किस्मत से सफलता का समय निर्धाण होता है
जीवन में कर्म को ही महान समझा जाता है किन्तु इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि कर्म और भाग्य दोनों एक दुसरे के पूरक हैं क्योकी कर्म किए बिना भाग्य नहीं फलता और भाग्य के वगैर कर्म की गति नहीं होती,
यदि मनुष्य के कर्म अच्छे हैं तो भाग्य उसके विमुख नहीं हो सकता,
क्योकी अगर हमें जीवन में कुछ पाना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी,
महाभारत में भगवान कृष्ण जी ने अर्जुन को साफ साफ कहा है कि राज्य तुम्हारे भाग्य मे़ है या नहीं यह तो बाद की बात है पहले तुमे युद्द लड़ना पड़ेगा यानि कर्म करना पड़ेगा,
यह भी सच है कि भाग्य हमारी कड़ी मेहनत का ही परिणाम है , कर्म के बिना कुछ भी हासिल नहीं हो सकता और भाग्य भरोसे बैठने से जीवन नहीं चलता
इसलिए कर्मण्ठ लोग कर्म कर के ही भाग्य बनाते हैं,
अन्त में यही कहुंगा की जीवन की सफलता में कर्म और भाग्य दोनों का योगदान होता है,
जीवन में सफलता तभी प्राप्त होगी जब हम कर्म करेंगे इसलिए जीवन की सफलता के लिए कर्म बेहद जरूरी है, भाग्य तो उसको सजाता संबारता है, भाग्य से कर्म को नहीं जीता जा सकता लेकिन कर्म से भाग्य को जीता जा सकता है यहां तक कि सफलता असफलता दोनों कर्म पर निर्भर करती हैं,
इसलिए व्यक्ति की सफलता में भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर होता है।
सच कहा है,
"कर्म करे किस्मत बने
जीवन का ये मर्म,
प्राणी तेरे भाग्य में तेरा अपना कर्म"।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
व्यक्ति की सफलता में भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर हैं। क्योंकि कर्म पर ही भाग्य का उदय होता हैऔर भाग्य के अनुसार फल परिणाम मिलता है। भाग्य का अर्थ है कर्म में भागीदारी करना। अगर कर्म अच्छा है तो उसमे भागीदारी अच्छी हुई है जिसके फलन में सफलता मिलती है ।कर्म से भागीदारी ,भागीदारी से भाग्य, और भाग्य के भागफल मे सफलता होता है अतः सही के अर्थ में भागीदारी होता है । तो भाग्य बनता है ।भाग्य सही होता है ,तो सफलता मिलती है।अतः कर्म, भागीदारी, भाग्य इन तीनों के संयुक्त अभिव्यक्ति से सफलता मिलती है। इस आधार पर कर्म ही श्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन कर्म से श्रेष्ठ विचार होता है। जो ज्ञान से प्राप्त होता है।
ज्ञान के प्रकाश मे समझकर कार्य करने से ही सफलता मिलती है।अतः सफलता कर्म से अधिक ज्ञान(समझ)पर निर्भर
है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ - छत्तीसगढ़
सफलता के लिए कर्म तो आवश्यक होता ही है पर कभी कभी पूर्ण प्रयास के बाद भी सफलता हासिल नहीं होती। तब उसे भाग्य का लिखा मान लिया जाता है। वैसे तो श्रम को ही प्राथमिकता दी जाती है। मेहनत से सफलता निश्चित मिलती है। कहा भी जाता है इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता अर्थात कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती है। हां यदि भाग्य में ही ना हो तो वह अपवाद हो जाता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
व्यक्ति की सफलता भाग्य से अधिक कर्म पर निर्भर है। कर्म करने से भाग्य संवर जाता है। मनुष्य मन चाहे फल की प्राप्ति कर लेता है।बिना कर्म किये तो आगे भोजन की पड़ी
थाली से पेट नहीं भरेगा।पेट तभी भरेगा जब हम हाथों के द्वारा ग्रास तोड़ कर मुंह में डालें गे अर्थात कर्म करें गे।
गीता में श्री कृष्ण जी ने भी कर्म पर बल देते हुए कहा है कि कर्म किये जा,फल की इच्छी मत कर रे इंसान, जैसा कर्म करेगा, वैसा फल देगा भगवान। कर्म पर ही भाग्य निर्भर है। जो भाग्य का सहारा लेकर हाथ पर हाथ धर कर बैठते हैं, वो जिंदगी में कभी भी कामयाब नहीं होते।ऐसे लोग हाथों से काम करने की बजाय हाथों में भाग्य की लकीरों पर विश्वास करते हैं और निठल्ले बन जाते हैं। जीवन भर अपने भाग्य को कोसते हैं। मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए। कर्म से ही भाग्य बनता है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
किसी व्यक्ति की सफलता में भाग्य और कर्म दोनों पर निर्भर करता है। लेकिन कहा जाता है कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। साथ -साथ ये भी कहा जाता है कि भाग्य ने साथ नहीं दिया या भाग्य में नहीं था। फिर ये भी कहा गया है कि कर्म प्रधान विश्व करी रखा,का करी तर्क बढावहीँ साखा। यानी बिना कर्म किये किसी को कुछ मिलने वाला नहीं। पहले पेड़ लगाएंगे तब ही फल की आशा कर सकते हैं। बिना पेड़ लगाए फल कैसे मिलेगा। सामने खाना रखा है जब तक उसे उठाकर मुँह में नहीं डालेंगे तबतक वह पेट में कैसे जाएगा। नौका पर चढ़ेंगे तब ही तो नदी पार करेंगें बिना नौका पर चढ़े नदी कैसे पर होंगे। इस तरह से हम देखते हैं कि बिना कर्म किये सफलता नहीं मिल सकती है। हाँ भाग्य साथ देता है तो थोड़ी सी मेहनत करने ,थोड़ा सा कर्म करने के बाद ही सफलता हासिल हो जाती है। अगर भाग्य साथ नहीं देता है तो सफलता जल्दी नहीं मिलती है।
इसलिए व्यक्ति की सफलता भाग्य से अधिक कर्म पर ही निर्भर होता है।
भाग्य का साथ मिल जाये तो सफलता आसानी से मिल जाती है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं. बंगाल
व्यक्ति का कर्म ही मनुष्य के भाग्य का निर्माण करता है जैसे अगर बबूल के काँटे बोयेंगे तो आम कहाँ से होगा ।अच्छा कर्म हमें सद् मार्ग दिखाते हैं और हम सफल होते हैं । सत्य बोलने वाला व्यक्ति अपनी बात को दृढ़ता से रखता है जब कि झूठ बोलने वाला अपना वक्तव्य कितनी बार बदलता है । क़र्म की परिभाषा वाला वयक्ति हमेशा प्रयास रत भी रहता है जिससे उसके ज्ञान के भंडार में निरंतर वृद्धि होती रहती है ।कहते हैं सफलता के लिए दिशा और दशा दोनों सही होनी चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
व्यक्ति की सफलता में भाग्य से अधिक कर्म ही निर्भर होता है भाग्य के भरोसे रहकर इंसान को अपने कर्म या नि अपने प्रयास को नहीं छोड़ना चाहिए ।
असफलता मिलने पर बार-बार प्रयास करते रहना चाहिए।
सफल होने के प्रयास से योग्यता हासिल होने पर इंसान अवश्य ही अपनी मेहनत को ही श्रेय देता है।
परंतु असफल इंसान अपने भाग्य को ही दोष देकर कर्म करना छोड़ देता है बल्कि उस कर्म करते रहना चाहिए।
कभी किसी इंसान को यह कहते नहीं सुना कि मेरे भाग्य में तो उच्च पद प्राप्त करना ही था ,मैंने कोई मेहनत नहीं की ।
अत:व्यक्ति की सफलता में ही भाग्य से अधिक कर्म का ही महत्व होता है।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कर्म ही सफलता की पूँजी है--भाग्य के भरोसे बैठना बेवकूफी है जीवन में कर्म ही सफलता का मूल मंत्र है। करमवा बैरी हो गए हमार। भाग न बाँचे कोय - - मैं इन पंक्तियों के साथ पहले भी सहमत नहीं थी आज भी नहीं। प्रारब्ध के नाम पर भाग्यवादिता को बढ़ावा देना गलत है
"कर्म प्रधान विश्व रचि राखा "
कर्म ना करके यदि कोई कहे कि--
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम
दास मलूका कह गये सब के दाता राम
तो यह अकर्मण्यता इंसान को ही नहीं संपूर्ण मानव जाति का समूल नाश कर देगी।
नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रवेशंति मुखेः मृगाः
शेर बूढ़ा भी हो जाए तो अपना शिकार खुद ढूँढता है
सोते शेर के मुँह में खुद शिकार नहीं आता।
तात्पर्य यही कि कर्म करें - - भाग्य के भरोसे कुछ नहीं होता।
कर्म की महिमा अपरंपार है।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
कहा गया है कि कर्म किये जा फल की चिन्ता मत कर ऐ इंसान जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान। यह बात बहुत हद तक सच है। सच में व्यक्ति के कर्म और कार्य पर हीं व्यक्ति की सफलता तय होती है। भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ प्रात नहीं होता है, उसके लिए कर्म करना अतिआवश्यक है। इस लिए व्यक्ति को भाग्य से ज्यादा अपने कर्म पर विश्वास करना चाहिए।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " भाग्य से कर्म सफल होता है । तभी सफलता मिलती है । व्यक्ति की सफलता भाग्य से होकर कर्म से मिलती है । यही सफलता का नियम होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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