क्या आलस्य के सुख का परिणाम दुःख है ?
आलस्य के सुख कुछ मिनट का होता है । जिस का परिणाम दुःख से अधिक कुछ नहीं होता है । फिर आलस्य तो आलस्य होता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
सकल पदारथ हैं जग माहीं,
कर्म हीन नर पावत नाहीं "
हम सभी जानते हैं कि कर्म किये बिना कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं होती है । मानव ने हिमालय की एवरेस्ट चोटी से लेकर मंगल ग्रह तक की यात्रा अपनी लगन और मेहनत से ही प्राप्त की है ।
आलसी मनुष्य अपने आलस्य के कारण क्षणिक सुख तो पा सकता है लेकिन स्थायी सुख की प्राप्ति के लिए वह जीवन भर भटकता रहेगा और दारुण दु:ख का सामना करेगा ।
चींटी से लेकर चिड़ियाँ तक तिनका तिनका चुनकर अपना नीड़ बनाती हैं ।प्रवासी पक्षी हजारों मील की यात्रा कर अपने देश में आते हैं । हम इनसे सीख लेकर क्या आलस्य नहीं त्याग सकते यह विचारणीय प्रश्न है ।
- निहाल चन्द्र शिवहरे
झाँसी - उत्तर प्रदेश
इस प्रश्न पर मुझे मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां याद आती है
प्रभु ने तुमको कर दान किये
सब वांछित वस्तु विधान किये
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है किसका यह दोष कहो!
ईश्वर ने सभी को समान रूप से कर्म करने के लिए सब उपलब्ध किया है फिर आलस्य में हम क्यों सुख ढूढते हैं!
हमें पहले तो हमें संघर्ष कर सुख की प्राप्ति करना चाहिए!
सात्विक सुख ही सबसे श्रेष्ठ है! पहले तो हमें कष्ट होता है चूंकि संघर्ष कर जो सुख हम प्राप्त करते हैं उसमें हमें अपनी छोटी छोटी इच्छाओं को दबाना पड़ता है जो शायद हमें आनंदित कर सकती थी किंतु आलस्य, निद्रा का त्याग, अपनी इंद्रियों को वश में कर संघर्ष से प्राप्त सुख सदा स्थायी होता है एवं मन को शांति देता है... वहीं जो आलस्य, अत्यधिक निद्रा एवं अन्य व्यसनों से आनंदित हो सुख का अनुभव करते हैं वह क्षणिक होता है ! आलसी समय की महत्ता नहीं समझते! किसी भी कार्य को आजकल पर टालते हैं सही समय पर नहीं करने से वे बड़ी बड़ी उपलब्धियों से वंचित रह जाते हैं!
कर्म ही प्राधान्य है जो अपने सत्कर्म से सुख को प्राप्त करता है वह शाश्वत रहता है एवं जो इंद्रियों को वश में न कर आलस्य ,व्यसन का आनंद ले सुख प्राप्त करता है वह क्षणिक है!
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
आलस्य, जो क्षणिक आनन्द प्रदान करता है, उसे सुख समझने वाला व्यक्ति मूर्ख ही कहलायेगा।
कहते हैं कि विद्यार्थी को आलस्य का परित्याग करना चाहिए। क्योंकि उसे कोई सफल लक्ष्य प्राप्त करना होता है। मगर मैं समझता हूं कि मनुष्य जीवन भर विद्यार्थी ही रहता है क्योंकि उसके समक्ष एक के बाद दूसरा लक्ष्य खड़ा होता है। इसलिए व्यक्ति को जीवन के किसी भी पड़ाव पर आलस्य का शिकार तो होना ही नहीं चाहिए।
निष्कर्षत: जीवन-पथ को सरल, सुगम और सफल बनाना है तो आलस्य रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त करनी ही होगी अन्यथा इसका परिणाम दु:ख ही होगा।
इसीलिए कहता हूँ कि......
आलस है दुश्मन बड़ा, इसको दो तुम छोड़।
तन-मन को कुंठित करे, बीमारी सम कोढ़।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
आलसी व्यक्ति कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। आलसी सिर्फ वो नहीं जो काम नहीं करता बल्कि जो अपनी क्षमता से कम काम करता है वो आलसी है।आलसी व्यक्ति देह और दिमाग का कम उपयोग करता है।वह अपने शारीरिक आराम को देखता है।जिस से उसकी शारीरिक और मानसिक दोनों शक्ति क्षीण हो जाती हैं। वो अपने दायित्व को निभाने में असमर्थ हो जाता है वो शारीरिक सुख ही उसका दुख का कारण बन जाता है। ऐसा मनुष्य कहीं भी आदर सम्मान नहीं पाति।आलस्य के सुख का परिणाम दुख है।
- कैलाश ठाकुर
नंगल टाउनशिप - पंजाब
"हाथों की लकीरों से कोई फकीर नहीं होता,
आलसी कभी अमीर नहीं होता"।
जीवन में यदि कोई भंयकर बिमारी है तो वो है आलस्य
यह समस्त रोगों का राजा है
कुछ रोग मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं किन्तु उपचार करने पर ठीक हो जाते हैं, लेकिन आलस्य एक ऐसा रोग है जो मनुष्य के तन मन, धन, समृदि व बुद्दि सबको चौपट कर देता है,
इसके प्रभाव से क्रिया शक्ति कुंठित होने लगती है, शुरू शुरू में मनुष्य इसे सुख समझने लगता है कि वो आराम कि जिन्दगी व्यतीत कर रहा है किन्तु यह एक ऐसा मीठा जहर है जो धीरे धीरे मनुष्य की हिम्मत को खत्म करके उसे निकम्मा कर देता है जिसे मनुष्य आराम व ऐश की जिन्दगी समझता है वोही जिन्दगी आल्सय के कारण नरक बन के रह जाती है,
तो आईये बात करते हैं कि क्या आलस्य के सुख का परिणाम दुख है?
यह शत प्रतिशत सही है कि आलस्य के सुख का परिणाम दुख ही है,
देखा गया है कि आलसी सिर्फ कल्पना के पंख लगाकर उड़ता है क्योंकी आलस्य मनुष्य की समझने, बुझने, समाधान करने की शक्ति को नष्ट करता ही है साथ में आराम, सुख, और लालच देकर मनुष्य को वेकार बना देता है,
जीवन में असफलता, विघ्न
बाधा, कठिनाईयां आलस्य के प्रमुख त्यौहार हैं, इसके आक्रमण से मनुष्य की क्रिया शक्ति नष्ट हो जाती है तथा शरीर के समस्त अंग शिथिल हो जाते हैं इसलिए आलसी मनुष्य को जीवित होते हुए भी मृत के सामान समझा जाता है,
यह एक ऐसा अवगुण है जो व्यक्ति की सफलता का बाधक है,
अन्त में यही कहुंगा आलसी व्यक्ति का न वर्तमान होता है न भविष्य इसलिए इसके सुख का परिणाम केवल दुख ही है
आलसी व्यक्ति जीवन भर लक्ष्य से दूर भटकता रहता है
सच कहा है,
"आलसी को विद्दया कहां
बिना विद्दया धन कहां
बिना धन मित्र कहां और
बिना मित्र सुख कहां"
आलस्य से दरिद्रता आती है तथा उत्साह भी खत्म होता है, यह सच है कि आलस्य और प्रमाद से होने वाला सुख प्रारम्भ में मोहीत करने वाला होता है और ऐसा सुख को तामस माना गया है
यह सफलता प्राप्त करने का बहुत बड़ा बाधक है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए इसे अपने पास पनपने न दे और हर वक्त कुछ न कुछ करते रहने का अभ्यास करें केवल कल्पनाओं का सहारा न लें क्योंकी यह एक ऐसा रोग है जिसका कोई ईलाज नहीं है
यह ऐसा सुख है जिसका परिणाम केवल दुख है,
सच कहा है,
"कल्पनाओं की दूनिया में ऐसा खो गया हूं,
थोड़ा आलसी और थोड़ा निक्कमा हो गया हूं"।
- सुदर्शन कुमार शर्मा।
जम्मू - जम्मू कश्मीर
"भाग्य फलति सर्वत्र, न च विद्या न च पौरुषम l"
अर्थात इस व्यापक और व्यावहारिक जीवन में व्यक्ति भाग्य के भरोसे रहता है, कर्म करने में आलस्य करता है और उसकी विद्या,बुद्धि और पुरुषार्थ का उसके जीवन में महत्त्व नहीं होता l ये सुख उसे क्षणिक लाभ सुख दे सकते हैं l अंत में वह निकर्मन्य होकर दुःख ही भोगता है l
निठल्ले और कामचोर लोग हो भाग्य का रोना रोते हैं केवल बातों के सहारे ही जीवन के सब सुख पा लेना चाहते हैं, पर ऐसा न तो कभी संभव हुआ और न ही हो सकता है l हाथ पाँव हिलाने से अथवा निरंतर कर्म करने से ही कुछ फल अवश्य मिलता है l निठल्ला अलसी व्यक्ति बैठा बैठा माथे की लकीरें पीटता रह जाता है l
चलते चलते ---
Bhagy"भाग्य फलति सर्वत्र, न च विद्या न च पौरुषम l"
अर्थात इस व्यापक और व्यावहारिक जीवन में व्यक्ति भाग्य के भरोसे रहता है, कर्म करने में आलस्य करता है और उसकी विद्या,बुद्धि और पुरुषार्थ का उसके जीवन में महत्त्व नहीं होता l ये सुख उसे क्षणिक लाभ सुख दे सकते हैं l अंत में वह निकर्मन्य होकर दुःख ही भोगता है l
निठल्ले और कामचोर लोग हो भाग्य का रोना रोते हैं केवल बातों के सहारे ही जीवन के सब सुख पा लेना चाहते हैं, पर ऐसा न तो कभी संभव हुआ और न ही हो सकता है l हाथ पाँव हिलाने से अथवा निरंतर कर्म करने से ही कुछ फल अवश्य मिलता है l निठल्ला अलसी व्यक्ति बैठा बैठा माथे की लकीरें पीटता रह जाता है l
भाग्य के माथे में मेख नहीं गाड़ सकते l खाने के लिए हाथ मुँह हिलना जरूरी है पर तभी जब वह खाना सामने रखा हो l अतः स्पष्ट है आलस्य से सुख का परिणाम दुःख ही है l
- छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आलसियों के लिये एक जो सबसे बड़ी विशेषता यह हैं, कि बिना कोई किसी भी तरह की ताकतों को प्रोत्साहित किये बिना उनका काम आराम से आनन्द पूर्वक हो जाता हैं, इसलिए उन्हें किसी भी तरह की कोई चिंता नहीं रहती और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते जाता हैं, लेकिन अचानक ही किसी न किसी रूप में घटनाएं घटित हो जाती हैं, तो आलसियों को अपने आलसी पन का चिठ्ठा सामने आ जाता हैं और अपने किये पर पछताने के सिवाय कुछ भी शेष नहीं रहता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं, आत्मग्लानी के शिकार भी हो जाते हैं तो समस्त प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में विफलताओं का सामना करना पड़ता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
आलस्य मनुष्य का परम शत्रु है। यह एक ऐसा भाव है जो मानव मन में नकारात्मकता भर देता है और कोई भी काम करने का मन नहीं करता । कई बार आलस्य मनुष्य को बुरे रास्ते पर चलने पर विवश कर देता है क्योंकि वह आराम से सब कुछ पाना चाहता है इसीलिए शॉर्टकट रास्ता अपनाकर गलत तरीके धन, और सभी सुख सुविधाएं पाना चाहता है आलसी मनुष्य अपना दुश्मन खुद ही बनाता है । आलसी मनुष्य के लिए श्रम का कोई महत्व नहीं है । आलस का प्रभाव असफलता और अवनति की ओर ले जाता है । आलसी मनुष्य अधिकतर भाग्यवादी होता है। भाग्य के सहारे जीवन काटता है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो पाता ।
अतः जीवन में सफलता पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को परिश्रम करना चाहिए । मेहनत पर विश्वास करना चाहिए ।
जीवन को खुशहाल ,निरोगी, ऊर्जावान बनाने के लिए आलस्य त्याग कर धैर्य पूर्वक श्रम के महत्व को जानना चाहिए। मानव जीवन की सफलता इसी में निहित है अन्यथा पशु तुल्य
जीवन बन जाता है।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जूनियर कक्षाओं में पढ़ा एक श्लोक स्मरण हो आया,
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम्॥
अर्थात,आलसी के लिए विद्या कहाँ, विद्याहीन के लिए धन कहाँ,निर्धन के मित्र कहाँ और बिना मित्रों के सुख कहाँ॥
स्पष्ट है आलस का परिणाम दुख होगा ही। आज के विषय से सहमति है मेरी ,और यही प्रकृति का नियम है। इस संदर्भ में एक और श्लोक याद आ रहा है-
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
अर्थात,जिस प्रकार सोते हुए सिंह के मुँह में
मृग स्वयं नहीं प्रवेश करता, उसी प्रकार केवल इच्छा करने से सफलता प्राप्त नहीं होती है| अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है |।
स्पष्ट है कि सुख पाने के लिए आलस को त्यागना ही पड़ेगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आलस्यम हिमनुष्याणं शरीरस्थो महारिपुम ।
अर्थात आलस्य को शरीर मे पालने का मतलब है शत्रु को पालना ।
आलस्य करने का मतलब अपने कर्तव्य से विमुख होना होता है, समय व्यर्थ करना होता है ।
आलस्य के कारण जो सुख बटोरने के चक्कर में काम को टालते रहते हैं तो उनको दुष्परिणाम तो भुगतने ही पड़ते हैं
यूँ तो आलस्य और परिश्रम दोनो ही भाव मनुष्य के अंदर होते हैं ।ये अपने आप पर निर्भर होता है कि हम कौन सा गुण अपनाते हैं ,
।
सोना या आराम करना आलस्य नही है यदि आप अपने सारे काम समय पर निपटाते हैं और करने योग्य कार्य टालते नही है ।
तो नहीं है यदि आप अपने सारे काम सही समय पर आराम करते हैं तो वह आलस्य नहीं है ।
आलस्य करने का मतलब अपने स्वास्थ्य को बरबाद करना होता है ।आलस्य ऐसा अवगुन है है जो अपने आप मे कई दुर्गुण समेटे है ,अतः इससे बचना चाहिए।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हाँ ! आलस्य के सुख का ही परिणाम दुःख है। यदि हम किसी भी काम में आलस्य करते हैं तो वो हमारा काम समय पर नहीं होता है और हम पिछड़ जाते हैं और वही दुःख का कारण बनता है। पढ़ाई के लिए सुबह चार बजे का समय अच्छा होता है यदि कोई विद्यार्थी नींद के आलस्य में सोया रहता है तो ठीक से पढ़ नहीं पाता है और क्लास में पिछड़ जाता है। बारिश के समय किसान धान का फसल लगाते हैं यदि बारिश के समय कोई किसान आलस करे तो वो खेती में पिछड़ जाएगा। सुर साल भर दुःखी होकर रहेगा। सुबह-सुबह टहलना स्वास्थ के लिए फायदेमंद होता है।लेकिन उस समय नींद भी बहुत अच्छी आती है यदि कोई व्यक्ति आलस के साथ सूर्योदय के बाद तक सोया रहेगा तो उसे कई बीमारियों का सामना करना पड़ेगा। इस तरह से हर कार्य में हम जब-जब आलस करेंगें तब-तब हमें दुखों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए ये बात एकदम सत्य है कि आलस्य के सुख का ही परिणाम दुःख है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
कलकत्ता - पं.बंगाल
आलस्य के सुख का परिणाम बेहद दुखी है। अतः हम जितना आलस्य करते हैं उतनी ही दर्द और दुख हमारे जीवन में प्रवेश करता है। सुख के लिए हम बेशक आलस्य के मार्ग को अपनाते हैं परंतु आने वाले समय में दुखों का एक बहुत बड़ा स्तंभ हमारे सामने उजागर होता है ।आलस्य जीवन नीरस हो जाता है जीवन के सारे समस्याओं का समाधान खत्म हो जाता है। इसमें सुख तो बहुत आता है परंतु इसके परिणाम बेहद दुखी करने वाले होते हैं अलग से जिंदगी हो जाती है जैसे कि अगर हम अलग करते हैं और कार्य को आजकल पर डालते हैं जाते हैं तो जिंदगी बेहद ही खराब होने लगती है और सुख परिचय दुख में बदल जाता है सुख का पूरा समावेश दुख में हो जाता है आलस्य मनुष्य दरिद्रता और अशांति का शिकार होता है। अगर हम सुबह सुबह करते हैं तो और दिन देर से उठते हैं तो हमारे पूरे दिन की शुरुआत से लेकर समाप्ति तक पूरा समय नींद और अलग से गुजरता है तथा अपने कार्य को अंजाम नहीं दे सकते हैं जिस कारण मंजिल हमसे रूठ जाती है और सफलता भी कोसों दूर हो जाती है सफलता को पाने के लिए आलस को त्याग कर के जीवन के हर एक रंग में आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए सुख के परिणाम के लिए दुख का आमंत्रण करना है।आलस्य में हम यह भूल जाते हैं कि इसके परिणाम बेहद घातक और दुखी होने वाले होते हैं सुख दुख ही है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
हां! यह कड़वा सच है कि आलस्य के सुख का परिणाम दुःख होता है। इसलिए कभी किसी कार्य में जानबूझकर विलम्ब या आलस्य नहीं करना चाहिए। वह कार्य चाहे अपने हित में हो या परहित में परन्तु यह तय है कि आलस्य के सुख का परिणाम दुःख ही होगा। जबकि सच यह भी है कि भविष्य में दूसरे के हित में किया गया आलस्य कहीं अधिक दुखदाई प्रमाणित होता है।
उदाहरणार्थ आप अधिवक्ता हैं और आप अपने क्लाइंट से फीस लेकर उसके कार्य में आलस्य करते हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि आपके क्लाइंट को उसका सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं हुआ। जिसके परिणामस्वरूप अवश्य ही वह क्लाइंट आपको कोसेगा और भद्दी-भद्दी व चुन-चुनकर गालियां देगा। उसके अलावा वह आपको बद्दुआएं भी देगा। जिससे आप मानों या न मानों पर आपका नुकसान चौतरफा होगा। जिसका आधार निसंदेह आलस्य है।
ऐसे में यदि वही क्लाइंट भटकता-भटकता एक दिन रोते-चिल्लाते उसी न्यायालय में अपने सम्पूर्ण न्याय हेतु स्वयं आ गया तो तब क्या होगा? उस परिस्थिति में वह विजयपथ की ओर अग्रसर होते हुए आपसे पूछेगा कि बताओ मेरी हार के क्या-क्या कारण थे? तब आपको आपके आलस्य का एहसास तो होगा ही। परंतु उस समय आपको चिल्लू भर पानी में डूब मरने के अलावा अपने बचाव के लिए कोई स्थान नहीं मिलेगा। चूंकि आपने न केवल अपने क्लाइंट से छल-कपट और धोखा किया था बल्कि आपने अपने व्यवसायिक धर्म का निर्वाह भी नहीं किया था अर्थात अधिवक्ता अधिनियम 1961 का भी स्पष्ट उल्लंघन किया गया था। जो निंदनीय के साथ-साथ दंडनीय भी है।
अतः निंदनीय एवं दंडनीय अपराधों से बचने हेतु जीवन में कदापि आलस्य का सुख नहीं भोगें। चूंकि आलस्य के सुख का परिणाम प्रायः भयंकर दुःख होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आलस्य सुख नहीं है क्योंकि आलस्य व्यक्ति श्रम नहीं कर पाता और बिना श्रम किए घर में समृद्धि नहीं आती और बिना समृद्धि की आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती आवश्यकता की पूर्ति ना होने से वस्तु का अभाव होना ही दुख का कारण है अतः आलस्य से सुख नहीं दुख ही मिलता है अतः मानव को आलस नहीं करना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर ही श्रम कर सकता है आलस्य शरीर नहीं आलस त्यागकर श्रम करने की वर्तमान में समीचीन आवश्यकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
निश्चित रूप से आलस्य के सुख का परिणाम दुख के रूप में ही निकलता है क्योंकि समय रहते व्यक्ति अपना कार्य नहीं कर पाता। कहीं न कही समस्या का सामना करना ही पड़ता है। कहा भी गया है "आलस्यम ही मनुष्याणां शरीरस्थोमहारिपः"।
अतः यदि कोई दुख तकलीफ ना हो तो बेवजह आलस्य करने से कोई फायदा नहीं होता। उस समय किया गया आलस्य दुख का कारण बन जाता है। इसलिए समय रहते कार्य करने में ही भलाई है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " आलस्य इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन साबित होता है ।आलसी इंसान जीवन में कभी तरक्की नहीं करता है । जो कुछ अपने पास होता है वह भी समाप्त हो जाता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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