क्या प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता है ?

प्रेम से ही जीवन में उल्हास आता हैं । उल्हास के बिना जीवन में  नाकारात्मक आती है । जो  जीवन को नरकं बना देता है ।यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये  विचारों को देखते हैं : -
जीवंत संस्कृति भारत की अनमोल निधि है l यही अनमोल रत्न राशि हमारे लोक जीवन को विपुल सौंदर्य एवं अपरिमित आनंद से अलंकृत करती आ रही है l
प्रेम एवं संस्कारों की शून्यता एक बीमार समाज की रचना करती है और यदि मानव समुदाय को इस बीमारी से छुटकारा दिलाना है तो प्रेम का रंग भरना ही होगा l 
प्रेम शब्द अपने आप में बहुत विस्तृत है l सच है जो सुंदर है, चाहें भाव, विचार, व्यक्ति, वस्तु स्वतः ही मन को अच्छी लगने वाली चीज मन मोह लेती है, प्रेम है l आगे इसकी बहुत विषद व्याख्या है l
 प्रेम ईश्वरीय सत्ता का अनुपम सौंदर्य है l प्रकृति ईश्वरीय सत्ता की उत्कृष्ट कृति है, किसे प्रकृति से प्रेम नहीं l प्रेम बिना तो ये जग सूना सूना लगता है l प्रेम हमें प्रेरणा देता है, हम अपने कर्तव्य पथ पर आरूढ़ होते है, जिससे जीवन में सौंदर्य की अनुभूति होती है l
प्रेम भारतीय संस्कृति में समाया है जहाँ इंसानियत, मानवता जैसे गुणों में मुखरित हो उठता है l प्रेम ही ईश्वर है l ईश्वर को पाना है तो सभी से हम प्रेम करें l प्रेम में दान ही है l प्रतिदान का महत्त्व नहीं l निःस्वार्थ भावना से किया गया प्रेम उत्कृष्ट है l उसमें जो सौंदर्य समाया है अनिवर्चनीय है l
क्या कृष्ण सुदामा की मित्रता और मीरा प्रेम -रस मीमांसा हमारे मानस पटल पर अंकित है?
     चलते चलते ---
1. नीर थोडो, नेह घणों तन दो एक ही जान l 
"तू पी तू पी "कहते हुए पंछी त्यागे प्राण ll
2. जारों जीवन प्रेम बिनु, जो जीवत निगुरे लोग l...
     - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
     प्रेम जीवन का अमूल्य चक्र हैं,  प्रेम भी अनेकों रुपों में विभक्त हैं, जिसने भी समय पूर्व प्रेम की परिभाषाओं को वृहद स्तर पर समझ लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देयेंगी। प्रेम में इतनी बड़ी शक्ति हैं, जिसके परिपेक्ष्य में सामने वाले को झुकना ही पड़ता हैं। प्रेम में अवलोकिता की झलक दिखाई देती हैं, जिसमें सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कायाकल्प बदल देता हैं और दिलचस्प भी पंसग प्रत्यक्ष रूप से उदाहरण परिदृश्यों में देखिए जीवन में सौंदर्य का मातृत्व बच्चों के प्रति मन मस्तिष्क में क्रियान्वित करने में सार्वभौमिकता की आवश्यकता से अधिक उत्साहित होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल होती हैं। जिसका प्रतिफल समय-समय पर हमेशा ही किसी न किसी रूप में घटनाएं घटित को रोकने में बल प्राप्त होता हैं प्राकृतिक संसाधनों को सर्व प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न प्रकार से मेहनत और मजदूरी के भी आठ घंटे में सामान्यतः जन जीवन प्रभावित होता हो ही जाता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
 प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता है। प्रेम के बिना मानव का जीवन अधूरा है ।बिना प्रेम का मानव जी ही नहीं पाएगा ।प्रेम ईश्वर है।
 ईश्वर हर मनुष्य के  अंतर्मन में  ज्ञान स्वरूप में में विद्यमान है ।जो  आचरण स्वरूप में व्यक्त होता है। अतः हर मनुष्य के पास ज्ञान होता है अर्थात प्रेम होता है ।इसी प्रेम  को आधार मानकर जीवन में सुख शांति के साथ मनुष्य जीता है। सुख शांति से जीना ही मनुष्य की जीवन का सौंदर्य है। अतः यही कहा जा सकता है कि प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन में सौंदर्य  का कोई कल्पना नहीं की जा सकती।
 प्रेम के बिना जीवन अधूरा लगता है जीवन में प्रेम से ही सौंदर्य आता है।
-  उर्मिला सिदार  
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सौंदर्य दो प्रकार का होता है। एक बाह्य सौंदर्य एक आंतरिक सौंदर्य। बाह्य सौंदर्य में किसी व्यक्ति की सुंदरता चाहे वो लड़का हो या लड़की और प्राकृतिक सौंदर्यता। नदियाँ सागर झील जंगल पहाड़  इत्यादि की सौंदर्यता। लेकिन ये सभी ईश्वरीय दें होती है। इन सबको प्रेम से और बढ़ाया जा सकता है। इनका संरक्षण कर के। आंतरिक सौंदर्यता प्रेम पूर्वक विचारों से आती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि प्रेम से जीवन में सौंदर्य आ सकता है। यदि घर के सभी सदस्य प्रेम पूर्वक रहें, प्रेम से वार्तालाप करें,एक दूसरे का सहयोग करें तो सभी का जीवन सुखमय होगा। और इसे ही जीवन का सौंदर्य कहेंगे। लाख किसी में सुंदरता हो और उसके विचार चाल-चलन ठीक न हो तो जीवन नर्क बन जाता है। उसका सौंदर्य बेमानी हो जाता है। जहाँ कलह पूर्ण वातावरण को प्रेम से हँसी खुशी में बदल दिया जाता है वही जीवन में सौंदर्य लाता है। इस तरह से प्रेम से जीवन में सौंदर्य लाया जा सकता है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
जी बेशक प्रेम से जीवन मे सौंदर्य आता है ।
प्रेम तो सीमाओं से भी  परे है ।
 प्रेम से  तो ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है ।
,कहते हैं ,,ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय,
वाकई निष्काम एवं निसग्वार्थ प्रेम से सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है।प्रेम में तो परमात्मा का वास है ।प्रेम का परिष्कृत रूप श्रद्धा है ,परिमार्जित प्रेम ईश्वरप्रदत्त होता है ।
प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है ।दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आप हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते ,क्योंकि यह एक एहसास है और एहसास बेजुबान होता है उसकी कोई भाषा नहीं होती ।
जहां प्रेम है वहां समर्पण है जहां समर्पण है वहाँ अपनापन है जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है वही प्रेम का बीज अंकुरित होता है।
प्रेम ही रिश्तों की मजबूत डोर होता है ।माता पिता हो या भाई बहन या संतान सभी प्रेम की डोर से तो बंधे अपने रिश्ते को निभाते हैं ।दो दोस्त हो या दो अलग अलग परिवार में जन्मे पले जीवनसाथी प्रेम की अटूट डोर में  बंध सारा जीवन एक दुसरे को समर्पित रहते हैं। दो प्रेमी प्रेमिका जो अंजान अजनबी एक दूसरे के प्रेम समर्पित होकर अपने सगे सम्बन्धियो से भी अधिक भरोसा व परवाह करने लगते  हैं ये क्या है ...ये प्रेम ही तो है ।
राधा कृष्ण का अमर प्रेम रिश्तों नातो के बन्धनों से परे अमर प्रेम बनकर संसार में अमर रहेगा मिसाल बनकर ।
 प्रेम ही जीवन की आधारशिला है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है जिसकी सहायता से सब कुछ संभव है ,तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी समझते हैं।
 सारे शब्दों के अर्थ जहां जाकर अर्थ रहित हो जाते हैं वहीं से प्रेम के बीज का प्रस्फुटन होता है ।
प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है।प्रेम ही ईश्वर है ।
कहते हैं कि प्रेम में बड़ी शक्ति होती  हैं जिससे कायनात तक झुक जाती है ।
 प्रेम की परिभाषा सदैव से पावन है और रहेगी भी ।प्रेम ही मनुष्य का सुंदर तम प्रगति पथ है ।
प्रेम एक भावना है ,एक एहसास है जिसे आचरण में देखा जा सकता है ।
आस्तिक होना भी प्रेम का परिचायक है ,पारिवारिक होना भी प्रेम का ही परिचायक है।
 देशभक्ति का जज्बा हो या मातृभूमि से प्रेम ,यह प्रेम का शाश्वत अति पवित्र रूप है ।
ईश्वर भक्ति प्रेम का सर्वोच्च स्वरूप है ।
 मात्र ,पित्र, गुरु भक्ति ,यह प्रेम का महान स्वरूप है ।
संतान के प्रति माता-पिता का प्रेम परमात्मा के प्रेम के समान विशुद्ध और निस्वार्थ भाव का द्योतक है। प्रेम जीवन को शांति पथ पर ले जाता है ।
समुद्र की गहराई को नापा जा सकता है परंतु प्रेम की गहराई तक पहुंचना ही असंभव।
 प्रेम में बदलाव की बड़ी ताकत छुपी रहती है ,निस्वार्थ प्रेम से  बुरा व्यक्ति भी अच्छा व्यक्ति बन जाता है।
 प्रेम केवल मानवीय संवेदना ही नहीं यह तो अन्य जीवधारियों में भी पाया जाता है ...देखो ना मां चाहे वह पशु पंछी हो किसी भी योनि में क्यों ना हो अपने बच्चे से कितना प्रेम करते हैं उसकी हिफाजत व परवरिश करती है यह प्रेम ही तो है... प्रेम का विशुद्ध स्वरूप है ।
 इंसानों की भाषा या आपस में पशु पंछी भी प्रेम की भाषा समझते हैं ।
प्रेम एक अवस्था है ,इबादत है, पूजा है, प्रार्थना है ,नशा है प्रेम...। जिसकी कोई भी सीमा नहीं,,न ही इसे नापा जा सकता है न  तोला ।
प्रेम तो सीमाओं से परे है ...।
प्रेम से दूसरे के विश्वास को जीता जा सकता है। किसी भी कार्य को आसान बनाया जा सकता है ।
प्रेम सौहार्द को जन्म देता है ,प्रेम से आपसी कटुता दूर की जा सकती है ।
प्रेमी स्वभाव का व्यक्ति समाज में इज्जत पाता है ।
मानव समाज  में व्याप्त राग, द्वेष, ईर्ष्या यहां तक कि शत्रुता मिटाने के लिए प्रेम पूर्ण व्यवहार श्रेष्ठतम औषधि की तरह होता है ।
 जीवन प्रेम के बिना व्यर्थ होता है, शुष्क है  ,नीरस होता है ।
 इसमें त्याग व समर्पण छिपा होता है ।
प्रेम से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।
-  सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
कबीरदास जी कहते हैं कि...... 
"कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आइ। 
अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराइ।।" 
अर्थात् – प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पडा  – जिससे अंतरात्मा  तक भीग गई, आस पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया – खुश हाल हो गया – यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है ! हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते ! 
प्रेम के भाव प्रत्येक हृदय में बसे होते हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को प्रेम से श्रृंगारित करना चाहता है। हम स्वयं ऐसे व्यक्तियों के साथ सहज होते हैं जिनका व्यवहार प्रेमपूर्ण होता है। 
ईश्वर ने मानव कल्याण के लिए मनुष्य को प्रेम का उपहार दिया। प्रेम चाहे स्वयं से हो, रिश्तों से हो, अपने परिवार - समाज-देश से हो, प्रेम जहाँ भी होगा वहाँ पर शान्ति के सुरभित पुष्प मुस्करायेंगे। 
प्रेम! मनुष्य के मन-मस्तिष्क को सकारात्मक उर्जा प्रदान करते हुए उसे आत्मिक शक्ति प्रदान करता है। 
प्रेम! मधुरता की वह बेल है जो नफरत, द्वेष, घृणा के खरपतवारों को नष्ट करने की सामर्थ्य रखता है। 
प्रेम! जीवन धारा के प्रवाह को संतुलित और गतिशील रखने की योग्यता रखता है। 
निष्कर्षत: इसमें कोई दो मत नहीं कि प्रेम से जीवन में सौन्दर्य आता है। परन्तु खेद यही है कि कबीरदास जी के कथनानुसार....."हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते। "
इसीलिए कहता हूँ कि....... 
"रखो मधुर व्यवहार, सदा प्रेम राग गाओ।
मीठी वाणी बोल, सभी के मन बस जाओ।। 
सरल सुगम हो राह, कभी रुकना न पड़ेगा। 
पथ बाधा कर पार, मनुज सहज बढ़ पाओ।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
प्रेम किसी को कुछ देने में है, प्रेम किसी के लिए कुछ करने में है, प्रेम निस्वार्थ भाव से किसी का भला चाहने में है, प्रेम किसी के सुख का ध्यान रखने में है, प्रेम किसी की भावनाओं को समझने में है, प्रेम किसी पर दिल से विश्वास करने में है, प्रेम जरूरत के वक्त किसी के साथ होने में है, प्रेम किसी के विचलित होने पर उसे सहारा देने में है। अपने मनमाफिक प्रतिक्रिया की आस लगाए बिना यदि ये सब क्रियाएँ की जाये तो प्रेम से जीवन में सौंदर्य आना तय है।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
प्रेम से जीवन में सौन्दर्य आता ही है। प्रेम स्वयं में  अलौकिक सौंदर्य से युक्त भाव है तो इसके आने से, होने से सौंदर्य का आना स्वाभाविक है। प्रेम और सौंदर्य एक दूसरे के पूरक हैं। 
अब यह अपने अपने सौंदर्य बोध पर निर्भर करता है कि हम किसे सुंदर समझते हैं।किसी को काला रंग पसंद होता है,सुंदर लगता है और किसी को पसंद ही नहीं होता।
प्रेम भी कोई वस्तु नहीं, जिसे भौतिक  रुप से देख सकते हो। प्रेम एक भाव है, अहसास है,जिसे सिर्फ और सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है।
प्रेम से जीवन में सौंदर्य की अनुभूति होती है। छोड़िए सबको,स्वयं से प्रेम करके देखिए।जो खुद से प्रेम करते हैं, उनका सौंदर्य बोध कहीं अधिक होता है।जबकि स्वयं से नफ़रत करने वाले का सौंदर्य बोध शून्य रहता है।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जी हां प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता है.....लेकिन वह प्रेम निश्छलता के आधार पर होना चाहिए......निश्चल प्रेम में पवित्रता का भाव विद्यमान रहता है....,प्रेम का आधार लालच ,लोभ और स्वार्थ नहीं होना चाहिए ........ऐसा प्रेम जिसमें त्याग और समर्पण का भाव हो उसी से जीवन में सुख की अनुभूति होती है.......जीवन सौंदर्यवान बनता है। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
क्या प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता है?

        प्रेम सबके भाग्य में नहीं होता और जिसके जीवन में प्रेम की वर्षा होती है। निस्संदेह वह सौभाग्यशाली होता है। क्योंकि प्रेम के कारण मन-मस्तिष्क से जो रसायनिक रस निकलते हैं। वह जीवन में उत्पन्न तनाव को कम करने में सहायक होते हैं। इसलिए विज्ञानिक भी मानते हैं कि प्रेम से सौंदर्य प्राप्त होता है।
        उल्लेखनीय है कि प्रेम मानव, जानवर, पक्षी से लेकर प्रकृति की विभिन्न ऋतुओं के साथ किया जाता है और वहां से भी हमें बदले में ढेर सारा प्यार मिलता है। सच कहें तो जीवन का आधार ही प्रेम है। 
        इसलिए ईश्वर की अनेकों अद्भुत एवं  अद्वितीय रचनाओं का साथ मिले तो जीवन स्वर्ग बन जाता है अन्यथा नरक धरती पर ही भोगना पड़ता है। चूंकि प्रेम से हमारा मूड बेहतर होता है। जिससे निकला रसायन हमारी शारीरिक एवं मानसिक कोशिकाओं को बेहतर पोष्टिक आहार उपलब्ध करवाता है। जिससे हम हष्ट-पुष्ट होते हैं और हष्ट-पुष्ट होना जीवन के सौंदर्य का प्रतीक है। जिससे प्रमाणित होता है कि प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
प्रेम इबादत है, प्रेम ईश्वर है। प्रेम वह सौन्दर्य है जो अन्तर्मन को सुन्दर बनाता है।  प्राणी की सुन्दरता उसके व्यवहार और विचारों से नापी जाती है जिसके व्यक्तित्व में सांस्कृतिकता की मानवता की प्रेम की महक आती हो वह वास्तविक सुन्दर है और वास्तविक सुन्दरता प्रेम में समाई है। कुछ प्राणी बहुत खूबसूरत होते हैं परन्तु दिल से कठोर व निष्ठुर होते हैं यह सुंदरता शारिरिक मात्र है जिसकी एक समय सीमा होती है परन्तु जिसके ह्रदय सभी के लिए प्रेम का बसेरा है वही वास्तविक और खूबसूरत प्राणी है। ।।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
जीवन की सुंदरता का मूल रहस्य ही प्रेम है। प्रेम मैं जीवन में सुंदरता अपने आप आ जाती है ।यह एक प्राकृतिक गुण है जिसमें कोई दिखावा नहीं कोई बनावटीपन नहीं ,रहता है केवल निश्छल प्रेम। सच्चे प्रेम को किसी धन दौलत की चाह नहीं होती केवल समर्पण भाव होता है ,जिससे सौंदर्य की सृष्टि होती है। निश्चित रूप से प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
हाँ प्रेम से जीवन में सौंदर्य आता हैं  प्रेम ही जीवन का सुखद सौंदर्य हैं।
प्रेम से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता प्रेम ही शास्वत है प्रेम ही दुनियां संसार है।प्रेम मे कायनात भी झुक जाता है प्रेम ही जग सार है।
जीवन के हर एक मोड़ पर हमें अपने अस्तित्व को आजमाने के लिए एक प्रेम एहसास की जरूरत होती है।परंतु प्रेम की परिभाषा हमेशा यादों में बेहद मार्मिक और पावन है। जिंदगी बहुत ही खूबसूरत और मार्मिकता के भाव में प्रेम हो जाते हैं।इस राह में एक हमसफ़र का साथ देना बेहद  जरूरी होता है । प्रेम ही है जो मानव जिंदगी को खूबसूरत प्रगति पथ पर ले जाते हैं प्रेम एहसासों का वचन है।एक डोर है जो आत्मा के रूपों तक पहुंच कर आपसी  तालमेल  में और सानिध्य को उजागर करती है। वासना के स्वभाव को प्रेम रूपी मेंहदी लगा करके तपस्या का दामन थाम भावनाओं को  संवेदनशील होने का संकेत देता है प्रेम। जब हम किसी की यादों में रहते हैं और प्रेम की परिभाषा ढूंढने लगते हैं तो निराकार की एक अद्भुत अस्तित्व  बनती है।और  तस्वीर जो निगाहों में बस कर आत्मा  रूहों तक जाती है कभी भी इसका अंदाजा हम शब्दों मे बाँध कर नही लगा सकते है।प्रेम की रूह को पहचान पाना बेहद मुश्किल होता है ,एहसासों के खुशबू में हवाओं के झोंकों के साथ सागर के तरंगों के साथ प्रेम मोती प्रेम शंख के रूप आकार में हमारे स्वरूप में हमारे मानसिक भाव में समाविष्ट होता है।निशानी है प्रेम जब इंसान किसी से प्रेम  में होता है  तो सब कुछ जीवन की डोर अच्छी और मधुर होती है और तपस्या से मनुष्य जीवन जीने की आरजू करता है अपने जज्बात को लिखकर शब्दों के माध्यम से कलमकार प्रेम की परिभाषा लिखने की कोशिश अवश्य करते हैं ।परंतु प्रेम का कोई आकार कोई परिभाषा नहीं होता  यह तो रग-रग और सच्चाई के कण-कण में विराजमान हैं।आस्तिक होना भी एक प्रेम का परिचायक होता है मानव जीवन में प्रीत निभाना बेहद कठिन होता है जिस तरह कली अपने अस्तित्व को बनाने के लिए अपने जीवन को काँटों के बीच मे समावेश हो कर खिलने का सूचकांक बनती है । उसी प्रकार प्रेम भाव परिश्रम से मानवीय संवेदनाओं को उजागर करता है । प्रेम जीवन को शांति मार्ग पथ निर्माण राहत सुकून देने का कार्य करता है हम कभी-कभी उलझन में प्रेम धागों को उलझा देते हैं ।परंतु इस अवस्था में उलझन भी एक मीठास पैदा करती है इसके स्वरूप निराले होते हैं आत्मा परमात्मा की एक छवि को हम अपने प्रेम भाव से पा सकते है। और अपने छवि को साबित करते हैं ।जिस प्रकार मां की ममता अपरंपार और अद्भुत होती है उसी प्रकार प्रेम बड़े ही ममता स्वभाव की परिधि होती है प्रेम बड़ा कठिन होता है परंतु सच्चाई विश्वास और आस्था से इसे  निभाया जा सकता है ।इसका रूप निराकार होता है इसे परिभाषित नहीं कर सकते परंतु इसके स्वरूप को एहसास महसूस जरूर कर सकते हैं। दुनिया में प्रेम मानवता को संवेदना देती है और मानवीय भावनाओं को प्रफुल्लित कर टुटे हृदय मे दीपक जलाती है।प्रेम को सीमाओं मे बाँध कर जोर जबरदस्ती से हासिल कतई नही कर सकते है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
"सभी फूलों का एक साथ खिल जाना, 
प्रकृति सिखाती है समझौते में सुकून पाना" । 
जीवन में प्रेम और सौंदर्य को महसूस करना है तो प्रकृति के साथ इस तरह प्रेम किजिए कि ईश्वर की रचनाओं का साथ मिले, इन रचनाओं में हमारे मूड़ को बेहतर करने का  रसायान है, 
प्रकृति के साथ सुकून का एहसास  होता है, सुकून आने से जीवन मे़ निखार आता है
तो आईये  आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या प्रेम से जीवन में    सौंदर्य आता है, 
यह सत्य है कि प्रेम से जीवन में  सौंदर्य आता है, वो प्रेम चाहे कुदरती नजारों का हो, बातचीत का हो, या कोई प्रेम रस हो, या भगवान की भक्ति का प्रेम हो इन सभी को झेलने से सौंदर्य ही झलकता है, 
यह सच है प्रकृति की रचनाओं के साथ सुकून का एहसास जुड़ा होता है, इनसे तनाव और चिन्तांए दूर होती हैं और हमारी सोच साकारात्मक होती है, मनुष्य प्रकृति का अंग है प्रकृति को जीवन में उतारने से आनंद अनुभव होता है क्योंकी प्रकृति सभी तत्वो़ से सौंदर्य है, 
इसके साथ साथ प्रेम की भाषा बोलने से भी मन शान्त व खुश होता है जिससे चेहरे पर हर समय निखार बना रहता है, इसके साथ साथ शिक्षा के विस्तार से भी सौंदर्य बढ़ता है, 
वास्तविक में सौंदर्य हृदय की पावित्रता में है इसको सजावट की जरूरत नहीं होती, स्वस्थ स्वभाव से सौंदर्य मिलता है और मानसिक कमजोरी ही करूपता का कारण है, 
अन्त में यही कहुंगा कि सुंदरता, प्रसन्नता, मुस्कराहट, स्वास्थ जीवन, हर्ष और उल्लास मे छिपी है जो हमें कुदरती नजारों से मिल सकती है इसलिए हमें कुदरती नजारों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए व इन्हें बनाये रखना चाहिए, 
सौंदर्य महानता का चिन्ह है हिन्दूओं के देवी देवताओं के मुख से एक प्रकार का प्रकाश दिखाई देता है जिस से साफ झलकता है कि सौंदर्य हृदय कि पावित्रता में है, 
यही नहीं प्रेम में दया और ईमानदारी की सुन्दरता भरी है लोग उससे प्रभावित होते हैं, 
सुखद विचारों की भाव तरंगे सादगी के उपकरण के साथ मिलकर सौंदर्य का निर्माण करती हैं, प्रेम और कर्तव्य भावमा से सुन्दरता का निर्माण होता है, इन्सान के सुखद विचारों में सुन्दरता भरी है और सच्चा सौंदर्य मनुष्ष के सदगुणों में है
इसलिए अगर हम गुणवान बनें तेजस्वी बनें तो सौंदर्य हमारा साथ कभी नहीं छोड़ेगी। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
प्रेम सृष्टि का आधार  है! प्रेम सृष्टि के रचियेता ब्रह्मा का दिया उपहार है! ईश्वर ने जो प्रकृति की रचना की है वह इतनी सुंदर है कि हमें प्रेम होना स्वाभाविक है! 
मनुष्य स्वयं प्रकृति का एक अंग है इसलिए उसके द्वारा प्रकृति को भोगना, अहसास करना, जीवन में उसे पूर्णरूप से उतारना स्वाभाविक है! प्रकृति के समीप आने से ही तो उसका प्रभाव पड़ता है! यदि हमने फूलों से प्रेम नहीं किया, जानवरों से दया, करुणा नहीं दिखाई तो हमारे जीवन में सौंदर्य का अभाव तो होगा ही! 
जब हम किसी भी उपवन में जाते हैं तो हमारा मन शांति महसूस करता है, हम तनाव मुक्त हो जाते हैं, हमारी सारी थकान दूर हो जाती है, हममे नई उर्जा नई शक्ति भर देती है, मन में सुंदर ख्याल आने लगते हैं ऐसे अनेक मन को भाने वाले कारण उत्पन्न होते हैं ऐसा क्यों होता है..... चूंकि हमें प्रकृति के सौंदर्य का बोध होता है हम उसे पूर्णतः महसूस करते हैं यानीकि  मनुष्य जीवन में प्रकृति के सौंदर्य का स्थायी प्रभाव पड़ता है! 

प्रेम होंठों से नहीं 
आंखों से कहता है! 
प्रेम प्राण है प्रेम सुकून है 
प्रेम सहज निर्विकार है
प्रेम का कोई मोल नहीं
प्रेम अनमोल है! 
प्रेम की कोई परिभाषा नहीं है प्रेम किसी से भी हो जाए जीवन में सौंदर्य तो आना ही है! 
तनाव मुक्त और खुश रहने से हमारे जीवन में सौंदर्य आता है!
           - चंद्रिका व्यास
        खारघर नवी मुंबई - महाराष्ट्र


" मेरी दृष्टि में " जीवन में प्रेम का बहुत महत्व है । जिस से जीवन का महत्व बढ जाता है । जो संसार के लिए  बहुत आवश्यक है । जो प्राकृतिक नियम का संचालक होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

Comments

  1. प्रेम नही तो जीवन
    बिन फूलो रस समान
    नही भंवरे, नही गुनगुन
    नही ज्योत उजाले समान।।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?