क्या सत्य से श्रेष्ठ कभी कुछ हो सकता है ?

सत्य तो सत्य होता है । सत्य से ऊपर कुछ नहीं होता है । सत्य के बिना जीवन सम्भव नहीं है । फिर भी सत्य को कभी हराया भी नहीं जा सकता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप
जाके हिरदय पाप है,  ताके हिरदय आप! 
हमें बचपन से सच बोलने की शिक्षा दी जाती है!  सत्य जीवन की कसौटी है! जीवन की अग्नि जैसी कसौटी को जो व्यक्ति पार कर लेता है वही खरा सोना बन निखरता है!   सत्य की राह पर चलना, सत्कर्म करने की प्रेरणा जब व्यक्ति को मिलती है तो उससे उसका नैतिक विकास भी बढ़ता है! सत्य के आगे सभी को झुकना पड़ता है! 
सत्यवान हरीश चंद्र की सत्यनिष्ठा के आगे विश्वामित्र को भी झुकना पड़ा था! गांधी जी की वाणी भी सत्य से अनुप्राणित होती थी! उनकी वाणी में सत्यता की वह शक्ति थी कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य जैसी शक्तिशाली सत्ता को भी हथियार डालने पर बाध्य कर दिया अतः हम कह सकते हैं सत्यमेव जयते! सच्चा व्यक्ति  अपने सत्य की छाप तो छोड़ ही जाता है! 
सत्य ही श्रेष्ठ ।
अध्यात्म की दृष्टि से भी हम देखें तो  मनुष्य जन्म से श्रेष्ठ कोई नहीं है इससे बड़ा सत्य और क्या होगा! मनुष्य में चेतन आत्मा ही परमात्मा है! कर्म का फल हमें अवश्य मिलता है! ईश्वर भी सन्मार्ग  पर चल सत्कर्म करने वालों को चाहते हैं! सत्य एक साधन है जो सरलता-पूर्वक हमें प्रभु के सम्मुख पहूंचाता  है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कबीरदास जी कहते हैं कि..... 
"साँच बराबर  तप नहीं, झूठ  बराबर  पाप।
जिस हिरदे में साँच है, ता हिरदै हरि आप।।"
निश्चित रूप से जब हृदय में जिस सत्य के बस जाने से हरि का वास हो जाता है तो उस सत्य की श्रेष्ठता से कौन इनकार कर सकता है। 
अक्सर हम यह सुनते हैं कि सत्य का मार्ग संघर्षों से भरा होता है। यह बात ठीक हो सकती है लेकिन सत्य की श्रेष्ठता इस बात से सिद्ध होती है कि अंततोगत्वा सत्य की जीत होती है। 
हर तरफ झूठों का बोलबाला है, यह बात पीड़ा तो देती है परन्तु कभी झूठ के परिणाम पर दृष्टिपात करें तो भय, कुंठा निराशा और पराजय ही मिलेगी। सत्य चाहे मिट्टी के कण में हो अथवा सिंहासन के मुकुट में जड़ा हो, उसे प्रत्येक स्थिति में सम्मान मिलता है क्योंकि सत्य में श्रेष्ठता का नैसर्गिक गुण विद्यमान रहता है जबकि झूठ की बुनियाद खोखली होती है फिर संतोषप्रद स्थायित्व कैसे मिलेगा।
सत्य, अनेक श्रेष्ठ गुणों यथा....ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, अडिगता, संघर्षशीलता और पारदर्शिता आदि को स्वयं में  समाहित किये होता है। फिर इसमें कोई सन्देह कहाँ रह जाता है कि सत्य सर्वश्रेष्ठ होता है।
इसीलिए कहता हूँ कि....... 
"रहती श्रेष्ठ सत्य डगर, मन को दे विश्वास । 
चलता इस पर जो मनुज, होता नहीं हताश।। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
"सत्यमेव जयते"
    "सत्य ही शिव है"
   "सत्य की हमेशा जीत 
        होती है"
सत्य अपने आपमें परिपूर्ण है । इसके अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता जो सत्य के मार्ग से अलग मार्ग का चयन करता है वह हमेशा मुश्किलों का सामना ही करता है अत: 
सत्य से इतर कोई मार्ग नहीं है ।
गडरिए की कहानी सबसे बड़ा उदाहरण है की असत्य  हमेशा मुसीबत ही उत्पन्न करता है।।
- ज्योति वधवा "रंजना "
बीकानेर - राजस्थान
     सत्य के लिए राजा हरिश्चंद्र का नाम सर्व प्रथम लिया जाता हैं, जिसके तारतम्य में आंशिक प्रबुद्ध वर्ग भी हैं, जिनके नाम लिया जाता हैं। लेकिन आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः सत्य के विपरित परिस्थितियों में दूर भागते नज़र आते हैं, उन्हें साहस का अभाव हैं, वे किसी भी तरह से किसी भी स्थिति में सामना नहीं करना पसंद नहीं करते और भविष्य में कोई दुष्परिणाम सामने आ जाते हैं। हम जीवन पर्यंत सत्य को श्रेष्ठ मानते हुए, कुछ करना चाहते हैं तो सफलता अवश्य मिलेगी और परिणाम सार्थक ही होंगे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को वृहद स्तर पर सत्य का ही साथ देने प्रेरित किया था, जिसका प्रतिफल अंतिम समय तक दिखाई 
देता रहा। 
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
यद्यपि सत्य श्रेष्ठ है तथापि सत्य से भी श्रेष्ठ परोपकार एवं कल्याण भाव है। सत्य वही श्रेष्ठ है जिसके पीछे मानवतावादी विचारधारा के अनुकूल भलाई का भाव छुपा हो। सत्य जब किसी को पीड़ा पहुंचाता है तब वह श्रेष्ठ की श्रेणी में नहीं माना जाना चाहिए। किसी की भलाई के लिए किया गया कार्य, किसी की जान को बचाने के लिए बोला गया झूठ ,सत्या से कहीं बेहतर है । सांसारिक सत्य की बात करें तो ईश्वर, जीवात्मा प्रकृति ,जन्म- मरण सत्य है। सांसारिक जीवन यापन करते हुए सत्य की महत्ता को परोपकार के आधार पर ही आंका जा सकता है। ईश्वर यदि सत्य है ,तो ईश्वर से जुड़ा हुआ धर्म भी सत्य है, लेकिन वह धर्म मानव मात्र के लिए कल्याणदायी होना चाहिए। सत्य ज्ञान का बखान भी करता है। ज्ञान भी वही श्रेष्ठ है जो मानव हितकारी है । अतः सत्य आपको वही श्रेष्ठ है जिसमें परोपकार की भावना निहित हो ,जो प्राणी मात्र के लिए सुखदायक हो, कल्याणकारी हो। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश
सत्यं शिवं सुंदरं। सत्य ही शिव है,शिव ही सुन्दर है,तो सत्य से बढ़कर कोई हो ही नहीं सकता। सत्यमेव जयते,यह सत्य था, है और रहेगा।
कबीरदास ने कहा- सांच बराबर तप नहीं। सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र की कीर्ति आज  युगों के बाद भी इस संसार में विद्यमान है। सच से बड़ा कुछ नहीं क्योंकि एक ही सच है और वह है ईश्वर और उसका नाम।
विगत वर्ष,एक तू सच्चा,तेरा नाम सच्चा मंत्र के 
देने बाबा फुलसंदे वालों जी का सान्निध्य मिला था। उनकी वहीं बात है जो आदि सृष्टि से सत्य है। गुरुनानक भी कहते हैं, एक संत ओंकार।
सच की महिमा से अनेकानेक ग्रंथ भरे पड़े हैं।
सत्य से बढ़कर कुछ नहीं,क्योंकि सत्य ही ईश्वर है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
सच्चाई बहुत जरूरी चीज होती है सच्चा व्यक्ति नजर से नजर मिला कर बात कर सकता है और जिसके मन में बुराई या चोर बसा होता है वह कभी किसी से नजर मिला कर बात नहीं कर सकता है उसकी नजर हमेशा नीचे झुकी होती है क्योंकि मन सब कुछ जानता है ,  झूठे का भेद बताता है हम अपने मन को मार कर ही झूठ बोलते हैं।
आशावादी और सत्यवादी लोग हमेशा मुसीबत के समय भी सत्य के साथ खड़े रहते हैं और भगवान उनकी मदद करता है।
जीवन का कर्म फल को यहीं पर भोक्ता है उसका स्वर्ग नर्क यही है यह सब उसके कर्म के आधार पर होता है सच का रास्ता बहुत कठिन होता है और सच कड़वा भी होता है एक बार बुरा लगता है परंतु बाद में उस व्यक्ति को सब लोग समझ जाते हैं। एक विद्वान ने कहा है-
"संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं करती वह उसकी मूर्खता को दूर कर विवेक जागृत करती है उसमें सत्य का सिंचन करती है"मानो तो जन्मजात बुद्धि प्राप्त होती है अच्छे बुरे का भेद नहीं कर पाता यह ज्ञान उसको महापुरुष और सत्संग से ही आता है। तुलसीदास जी ने लिखा है,"बिनु सत्संग विवेक न होई"महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सत्य की राह में चलने की प्रेरणा उन्हें हरिश्चंद्र नाटक को देखकर मिली बाद में उन्होंने पूरी कथा पड़ी।तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस वे वेद व्यास रचित भगवद्गीता आपको जन जन के जीवन में सही मार्ग में चलने की प्रेरणा देती है।साहित्य न जाने कितने भटके को राह दिखाता है और यह कहना भी कठिन है संगत से जीवन समरता है और कुसंगति से विनाश एवं नष्ट होता है।
कबीर संगति साधु की, बैगि करियै जाई।
दुरमति दूरि गवाइइसौ, देसी सुमति बताई।।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं हो सकता है। दुनिया है ये सत्य है ये श्रेष्ठ है। माँ-बाप हैं ये सत्य है। दोनों श्रेष्ठ हैं। मृत्यु सत्य है ये भी श्रेष्ठ है। जिन्हें ज्यादा तकलीफ है। उससे छुटकारा मिलने वाला नहीं तो उनके लिए मृत्यु श्रेष्ठ है। पानी, हवा, पेड़ पौधे,नदियां जंगल सब सत्य हैं यानी सब श्रेष्ठ हैं। इनके बिना सृष्टि का चलना सम्भव ही नहीं है। जिनके-जिनके बिना सृष्टि का चलना सम्भव नहीं वो सभी सत्य हैं। और जो सत्य है वो श्रेष्ठ है। इस सत्य को बनानेवाला ईश्वर स्वयं सत्य है और श्रेष्ठ है।
              सत्यम शिवम सुंदरम में भी वही अर्थ निहित है। सत्य ही शिव है सुंदर है और जो सुंदर वो हर जगह  पर श्रेष्ठ है
इसलिए सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
जी बिल्कुल सत्य से  श्रेष्ठ इस संसार में कुछ भी नहीं।
 सत्य स्वयं में एक मूल्य है ,जिस पर अन्य मूल्य टिके हैं जैसे विश्वास ,ईमानदारी ,संवेदनशीलता, दया ,अपनत्व जिन पर संपूर्ण मानवता टिकी है ।
इस प्रकार सत्य एक तरह से मानव के अस्तित्व का आधार है।
 कहते हैं 
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदय सांच है ताके हिरदय आप ।
सत्य ही ईश्वर है ,इसीलिए जब कोई व्यक्ति इस दुनिया से जाता है तो कहा जाता है राम नाम सत्य है। 
आठ ईश्वर ही सत्य है बाकी सब झूठ है ।
सत्य की विजय इसीलिए सर्वदा से होती आयी है।
यूँ टी समय सबसे अधिक मूल्यवान माना जाता है किंतु सत्य उससे अधिक मूल्यवान है।
 सत्य क्या होता है सत्य शब्द संस्कृत के सत शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है वास्तविक या यथार्थ ।
सत्य वास्तव में एक नैतिक मूल्य होता है जिस पर संपूर्ण मानव समाज टिका होता है ।
सत्य एक साथ  साध्य एवम साधक दोनों है जिसको प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल से लोगों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है ।
सत्य जानकर ही धरती पर अपने प्राकृतिक अधिकारों को प्राप्त कर समानता का जीवन जिया जा  सकता है ।
 कहा जाता है कि सत्य के रास्ते पर चलने वाले की जीत अवश्य होती है ।
इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं, पौराणिक कथाओं में रावण के खिलाफ राम की विजय हो या महाभारत में पांडवों की विजय या महात्मा गांधी द्वारा सत्याग्रह के हथियार का प्रयोग कर भारत को आजादी दिलवाना  हो ,सभी जगह सत्य की जीत हुई है ।
लेकिन सत्य का रास्ता इतना आसान नहीं होता ।
साधन के रूप में प्रयोग करने वालों को इसका अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है ।
परंतु फिर भी यही सत्य है सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं।
 सत्यमेव जयते,,,।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
       सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं हो सकता है। परंतु यह पूर्णतः नंगा होने के कारण हमेशा से शर्मसार होता आ रहा है। जबकि आवरण चढ़ा झूठ प्रायः आनंदमय रहता है और सर्वगुण सम्पन्न कहलाता है।
       वैसे घर-घर की कहानी बन चुका झगड़ों का आधार "सत्य" संभ्रांत परिवारों में भी भूख से बिलखता और अपमानित होता मैंने प्रायः देखा है। जहां हजारों रुपए मासिक पेंशन प्राप्त करने के बाद भी पेंशनभोगी दो समोसे नहीं खा पाता। जिसके पीछे का कारण वही "सत्य" होता है। जिसे पारिवारिक सदस्य भलीभांति जानते हुए भी असत्य का दोषी करार देते हैं और लोकतंत्र का बंटाधार करते हुए उसका दुरुपयोग करते हैं। चूंकि जिस ओर संख्या अधिक होती है वही विजयी और सच्चा माना जाता है।
       इसी आधार पर मुझे बिना मानसिक प्रमाणपत्र के "पागल" की पेंशन दी जा रही है। जिसका आदेश माननीय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों/न्यायमूर्तियों ने किया हुआ है और सत्य की श्रेष्ठता यह है कि गृहमंत्रालय के अधीन एसएसबी विभाग के क्रूरतम से क्रूरतम व भ्रष्ट से भ्रष्ट मेरे विभागीय अधिकारियों के साथ-साथ बड़े-बड़े तथाकथित विद्वान न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की उसी माननीय न्यायालय में बोलती बंद है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सत्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं है और सत्य वह चमकता सोना है जो असत्य के अंधकार को दूर करता है
सत्य की राह पर चलनेवाला सदा विजयी होता है ...ये अलग बात है की इस क्रिया में समय लग सकता है
इस प्रकार के विलम्ब की अवधी को झेल नहीं पाते और असत्य को सर्वोपरि समझने की गलती कर  बैठते हैं
अंततः जीत सत्य की ही होती है व सत्य की राह कठिन होती है किसी ने ठीक ही कहा है ......सच की होगी जीत सदा और झूठ सदा ही हारेगा
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
सत्यमेव जयते।सत्य की हमेशा विजय होती है सत्य श्रेष्ठ कहलाता है सत्यम शिवम सुंदरम जो सत्य है वही शिव है और वह सुंदर है सत्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं हो सकता जिंदगी तो मायावी जाल है सत्य को झूठ साबित करने के लिए तरह-तरह के कथनों का सहारा लेते हैं लेकिन सत्य कहीं न कहीं उभर कर सामने आ ही जाता। सत्यवादी मनुष्य के नजर में सत्यता रहती है नजर से नजर मिला कर बात करते हैं आंखों में एक आत्मविश्वास बना रहता है दुनिया से आप झूठ बोल सकते हैं अपने मन से झूठ नहीं बोल सकते झूठ बोलने के समय कहीं ना कहीं आंखें नजरें बचा ही लेती हैं सत्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सत्य ही सर्वश्रेष्ठ है बाकी बातें गौण हैं या यूं कहें कि असत्य हैं । सत्यमेव जयते यानि सत्य की सदा ही विजय होती है । असत्य की विजय कभी नहीं हो सकती है?सत्य वचन बोलने वाला कभी भयाक्रांत नहीं होता और असत्य बोलने वाला कभी भी भयमुक्त नहीं हो सकता उसे हमेशा असत्य का अपराध बोध रह्ता है जबकि सत्य बोलने वाला दृढ निश्चयी और कर्मठ होता है ।
शारान्श ये कि सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं ।।
  - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
'ततसत ' वही सत्य है l सत्य ही शिवम है, कल्याणकारी है जो सुंदर है l इसी लिए कहा है -'सत्यम शिवम सुंदरम' सच बोलना सबसे बड़ी और सहज सरल तपस्या है l सत्य बोलने, सच्चा व्यवहार करने और सत्य मार्ग पर चलने से बढ़कर कोई तप नहीं है l संत कबीर ने कहा है -
साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप l
जाके हृदय साँच है ताके हृदय आप ll
अर्थात जिसका आचरण, व्यवहार सत्य पर आधारित है उसके हृदय में प्रभु निवास करते हैं l
एक झूँठ छिपाने के लिए अनेक झूँठ बोलने पड़ते हैं l जिस प्रकार डॉक्टर के सामने हम झूँठ बोले तो सही इलाज़ नहीं हो सकता और व्यक्ति का शरीर नष्ट होता है l उसी प्रकार अपनी भूल स्वीकार कर सत्य बोले तो सुधार की संभावना रहती है l अतः सत्य के तप में तपकर कुंदन बनिये l सत्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं हो सकता l
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
सत्य से श्रेष्ठ और कोई  वस्तु नहीं है। सत्य है परम ईश्वर है इससे बड़ा और कोई नहीं है सत्य सर्वत्र व्याप्त है इसे मूल ऊर्जा भी कहा जाता है मूल ऊर्जा ज्ञान स्वरूप में सभी मानव के अंतर्मन में विद्यमान है अतः  परम सत्य है। ईश्वर का एक नाम  प्रेम है । जो सर्वस्त्र  स्वयं साम्य स्वरूप में
 विद्यमान है ।जो सर्वत्र फैला हुआ है। सत्य में सह अस्तित्व समाया हुआ है। इसी का अस्तित्व को हर मानव को पहचानने की आवश्यकता है। उसी का नाम ज्ञान है हर पल हर क्षण मानव ज्ञान को ही ढूंढता हुआ जिंदगी जीता है ताकि उसका जिंदगी भ्रम और कुंठा से मुक्त हो जाए। अतः अंत में यही कहते बनता है कि सत्य से श्रेष्ठ कभी कुछ नहीं हो सकता है यही परम सत्य है।
-  उर्मिला सिदार
 रायगढ़ -  छत्तीसगढ़
सत्य स्वयं में एक श्रेष्ठत्व है जिसे ईश्वर का नाम दिया जाता है इससे श्रेष्ठ  कुछ नहीं हो सकता। हां उसके नाम और रूप विभिन्न है। उस तक पहुंचने के रास्ते भी कई हैं। सबको सत्य का साक्षात्कार नहीं होता हम अपने ही छल, द्वेष  और दम्भ   के कारण उसे नहीं पहचान पाते।अशुभ और अनैतिक के फल को ही सत्य या श्रेष्ठ मान्यता हैं जबकि सत्य हमेशा शिव यानी कल्याणकारी होता है प्रकृति के विभिन्न रूपों में व्याप्त होकर यानी अपनी अभिव्यक्ति की अनंतता में विद्यमान रहता है। नदी, पर्वत, सूर्य, चंद्र, तारे, वनस्पति में उसका प्रकटीकरण विभिन्न तरह से हमें अपने प्रेम पाश में आबद्ध  करता है और अंत में सनातन सुंदर सत्य की अनुभूति कराता है देखा जाए तो यही सत्य है शिव है और सुंदर है इस अभिव्यंजना में ही जीवन का सत्य समाया हुआ है और इस से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
सत्य स्वयं मे संपूर्ण तथा बलिष्ठ हैं इसे बोलने व आचरण मे अंगीकृत करने के लिए अनावश्यक समय, श्रम एवं दिमाग की आवश्यकता नहीं होती है इसमे स्वयंमेव ही आचरण में समाहित होने की प्रवृत्ति निहित है  इसके विपरीत यदि झूठ पर दृष्टिपातपात करें तो अत्याधिक समय वह मानसिक श्रम की आवश्यकता होगी , फिर एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ वगैरह वगैरह --- ।
जीवन की सार्थकता , आत्मोद्धार की प्रक्रिया , अद्भुत व्यक्तित्व , विश्वास के पराकाष्ठा , तनाव मुक्त  मन तथा स्वस्थ तन  आदि समस्त  श्रेष्ठ जीवनोमुख लक्षण सत्य पर ही आधारित हैं इसके बिना जीवन   
उस तेल विहिन  बीज के समान है जिसे घानी में पिरोते रहो किंतु कुछ भी हासिल नहीं है । अतः सत्य को श्रेष्ठ जीवन की संजीवनी कहा जाये तो को अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
- मीरा जैन
उज्जैन . - मध्यप्रदेश
"सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप, 
जाके हिरदय  सांच है, ताके हिरदय प्रभु आप, "। 
देखा जाए आत्मा अपनी श्रेष्ठता सत्य द्वारा ही प्रकट करता है और सत्य ही आत्मा का श्रेष्ठ गुण है तथा इस गुण कारण ही मनुष्य अपने सीमावर्ती लोगों से सदैव सत्य व्यवहार की ही अपेक्षा करता है और सभी सत्य के प्रति आदर भाव रखते हैं जिससे सपष्ट होता है कि सत्य ही आत्मा का अभिव्यक्ति है, 
तो आईये  आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि क्या सत्य से श्रैष्ठ कभी कुछ हो सकता है? 
मेरा मानना है कि सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं हो सकता
 क्योकीं मानव जीवन की सुव्यवस्था का आधार सत्य ही है हम सभी सत्यानुसरण की अपेक्षा रखते हैं, 
इसका  अर्थ यही हुआ कि लोगों की प्रसन्नता, आदरभाव स्वस्थ, चिन्ता परिपूर्णता और सुख की प्राप्ति सत्य से ही होती है
यही नहीं सत्यकर्म से नैतिक विकास होता है
सच्चे आदमी का नैतिक बल इतना होता है कि उसकी तुलना अगर दस हजार हाथियों के बल से भी की जाए तो तो जीत सत्य की होती  है
हरिचन्द्र सत्य बोलने के कारण ही सत्यवादी कहलाये उनके आगे विश्वामित्र जी को भी झुकना पड़ा यही नहीं महात्मा गांधीं जी ने सत्य के  मार्ग पर चलकर ही अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया जिससे पता चलता है कि सत्य में बहुत ताकत है, 
देखा जाए सत्य जीवन की कसौटी है इसमें तपाया हुआ मनुष्य सौने जैसा खरा निकल आता है, 
अन्त में यही कहुंगा कि सत्य से ही वाणी पावित्र होती है ब मानव जीवन सत्य की क्रांति से ही शोभामान होता है
सत्य को ही कंठ का आभूषण कहा गया है, जैसै स्नान करने से शरीर साबुन से वस्त्र सा़फ होते हैं वैसे ही सत्य  से वाणी  निर्मल होती है, 
इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं हो सकता, 
अगर हजार अश्वमेध यक्षों का पुण्य ़एक पलड़े में  रखा जाए और दुसरे में सिर्फ सत्य रखा जाए तो सत्य ही भारी पडेगा जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सत्य  से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है
सत्य के ईंट और गारे से बनी हुई जीवन की ईमारत तेज तुफानों में भी खड़ी रहती है, 
यहां तक बनावटीपन, डोंग, छल, कपट के झोंपड़े तो पल भर भी नहीं टिकते, 
सच कहा है, 
सच्चाई छुप नहीं सकती
बनावट के उसुलों से, 
खुशबू आ नहीं सकती कभी का़गज के फूलों से। 
सच्चाई ही परम धर्म है, इससे बड़ी ताकत दूनिया में कोई नहीं है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " सत्य अपने आप में सम्पूर्ण है । जो जीवन को शक्ति प्रदान करता है । सत्य के अतिरिक्त जीवन में सफलता भी अधूरी है । इस का मतलब सत्य के बिना सफलता का कोई अर्थ नहीं होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?