क्या उपवास आत्मा की शुद्धि का उपकरण है ?

आजकल नवरात्र चल रहें हैं । जिस में उपवास रखा जाता है । यही उपवास आत्मा को भी शुद्ध करता है । ऐसा जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय में दिया गया है ।  अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
उपवास एक साधना है जिसके माध्यम से साधक अपने तन और मन को साधता है। 
प्राय: यह होता है कि हमारे शरीर की थकान तो हमें महसूस हो जाती है और हम उसे आराम भी देते हैं यही आराम तन का उपवास कहा जा सकता है। मगर अपनी आन्तरिक उर्जा के पुनर्निर्माण हेतु हमारे लिए जो उपवास अत्याधिक आवश्यक है उसकी हम अक्सर उपेक्षा करते हैं। जबकि उपवास से पाचन, श्वास और अन्य शारीरिक प्रणालियों को बल मिलता है। 
उपवास को संकल्प और नियमानुसार पूरा करने से मनुष्य की इन्द्रियों पर भी नियन्त्रण रहता है और उसके मनोविकारों और आवेशों को पनपने का अवसर नहीं मिलता। अपितु उसे सकारात्मकता प्राप्त होती है। 
उपवास करने से तन-मन और आत्मा में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है और मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और आध्यात्मिक रूप से लाभ होता है। 
उपवास में नियम-संयम की बहुत आवश्यकता होती है तभी उपवास की सार्थकता सिद्ध होती है। उपवास के लिए मनुष्य की संकल्प शक्ति का प्रबल होना अति आवश्यक है क्योंकि यह तो सर्वसिद्ध है कि संकल्प के बिना कोई लक्ष्य न तो पूर्ण होता है और न ही प्रभावी होता है। 
निष्कर्षत : उपवास आत्मा की शुद्धि का आवश्यक उपकरण है।
इसीलिए कहता हूँ कि...... 
तन-मन को मनु साधिए, जीवन है अनमोल। 
शक्ति हेतु उपवास रख, इसका नहिं कुछ तोल।। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
उपवास आत्मा की शुद्धि का उपकरण निश्चित ही हो  सकता है बशर्ते उपवास करने वाले अपनी आत्मा की शुद्धि पर ध्यान देकर उसे अपने जीवन का लक्ष्य बना ले। आत्मा की शुद्धि को उपवास से तभी जोड़ा जा सकता है जब उपवास का सही अर्थ समझा जाये- जो है प्रभु के ऐसे समीप होना कि भोजन की याद न आये, सिर्फ भूखे रहने को उपवास मान लेना गलत है।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
 उपवास आत्मा और शरीर दोनों की शुद्धि का उपकरण है। उपवास से जहाँ शरीर शुद्ध होता है वहीं आत्मा भी शुद्ध हो जाती है। पाचन शक्ति सुदृढ़ हो जाती है। और जब शरीर शुद्ध तो उसके वास करने वाली आत्मा बहु शुद्ध। उपवास की महत्ता हर धर्म में दिखायी देती है। हिन्दू धर्म में व्रत त्यौहार में उपवास , एकादशी व्रत में उपवास ये सभी शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धिकरण करती है। मुस्लिम धर्म में एक माह यानी रमज़ान के माह का रोज़ा यानी उपवास आत्मा और शरीर शुद्धि के लिए ही बनाया गया है।
             उपवास का शाब्दिक अर्थ यदि हम लगायें तो उप+वास यानी दूसरे का वास यानी उपवास रहने पर हमारे में परमात्मा का वास हो जाता है उस दिन के लिए जो हमारी आत्मा और शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है। उपवास में लोग परमात्मा को याद करते हैं कोई गलत कार्य नहीं करते। इससे साफ जाहिर हो जाता है कि उपवास से हमारा शरीर और हमारी आत्मा शुद्ध हो जाती है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
उपवास आत्मा की शुद्धि का एक उपकरण माना जा सकता है। उपवास के करने से हमारी आत्मा शुद्ध होती है।जिस प्रकार हम अपने आराध्य देव को मनाने के लिए उपवास और पूजन करते हैं तो हमारी आत्मा संतुलित होती है। तथा जीवन में प्रगति के मार्ग खुलते हैं जीवन के विपरीत परिस्थितियों में एवं बाँधाओ में समय अनुसार खुशियों का आगमन होता है। उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है तथा जिंदगी में हम आगे आगे निरंतर बढ़ते रहते हैं। हमेशा जिंदगी में सकारात्मक ऊर्जा मिलती है हमें उपवास की एक समय अवधि पर ही उपवास करना चाहिए उपवास  हफ्ते में एक बार हो तो शरीर एवं स्वस्थ अनुकूलित रहता है ।पूजन की प्रक्रिया एवं प्रार्थना की प्रक्रिया निरंतर होनी चाहिए ।परंतु उपवास की प्रक्रिया में एकात्मक रूप होना चाहिए ।उपवास आत्मा की शुद्धि का उपकरण तो है ही जिंदगी को आगे बढ़ने का एक हौसला देता है उपवास से मन शांत और आत्मा तृप्त होती है। उपवास से सकारात्मक वचन निकलते हैं तथा सामने वाले के लिए प्रेरणास्रोत साबित होते हैं। उपवास जीवन की एक ऐसी कड़ी हैं जिसमें हम गोते लगाकर जिंदगी को शुद्धिकरण की तरह आगे ले जाते हैं। जो आत्मा की शुद्धि का उपकरण अगर पूजन के साथ उपवास को माना जा सकता है तो जिंदगी के हर एक पहलू में खुशियों का आगमन होता है ।उपवास आत्मा की शुद्धि का उपकरण के साथ साथ जीवन को एक गति प्रदान करता है तथा हमारी आत्मा में नकारात्मक सोच की वृद्धि नहीं होती है सकारात्मक सोच का समावेश होता है ।अतः उपवास आत्मा की शुद्धि करण का एक सर्वोत्तम उपाय है ।उपवास से जिंदगी की राहों में कठिनाइयां भी दूर होती है मां की उपासना करने से जिंदगी की जीवन शैली अति उत्तम तौर तरीके से गुजरती है धन्यवाद 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
     भारतीय संस्कृति में उपवास का अत्यधिक महत्व हैं, जहाँ विभिन्न पर्वों पर घर-परिवार-इष्ट-मित्रों, अनेकों वर्गों  सहित प्राथमिकता के आधार पर उपवास रख आत्मा की शुद्धि करते हैं। पूर्व में ॠषि मुनियों को देखिये, कितने वर्षों तक समस्त ऋतुओं में, बिना खायें-पियें, किस तरह से उपवास करके अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते थे। उपवास एक अलोकिक शक्तियों का भंडार हैं, जो झुकने पर मजबूर कर देता हैं और दिलचस्प भी पंसग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता हैं । लेकिन उपवास वर्तमान परिदृश्य में फैशन भी होता जा रहा हैं, क्योंकि कई-कई तरहों के व्यंजन, फल-फूलों पर केन्द्रित होकर आत्मा को तृप्त कर रहे हैं, उससे अच्छा तो भर पेट भोजन कर सकते थे। वैसे सप्ताह में एक बार उपवास रखने से शरीर को फुर्तिला बनाया जा सकता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
उपवास अपनी इंद्रियों को साधने के एक तरीका है। जिस तरह योग, ध्यान द्वारा हम शरीर की साधना करते हैं , उसी प्रकार उपवास द्वारा हम अपने मन को वश में करने का प्रयास करते हैं। 
फल व सात्विक आहार हमारे शरीर को शुद्ध करता है । इससे हमें शरीर के अंदर जमा हो गए अशुद्ध भोज्य पदार्थ से मुक्ति मिलती है। परन्तु मानसिक शुद्धि तो तब ही मिलेगी जब मन में सात्विक विचारों का प्रवेश होगा । अतः उपवास के साथ मानसिक विकारों का भी त्याग जरूरी है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार 
  उपवास आस्था का प्रतीक है। जिसे सर्वसाधारण मानवों ने ही नहीं बल्कि ऋषियों-मुनियों ने भी युगों-युगों से अपनाया हुआ है। जिसका संबंध शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिकता से होता है और आध्यात्मिक उपवास को आत्मा की शुद्धि का उपकरण माना गया है।
        दूसरे शब्दों में उपवास करने का अर्थ संकल्प लेना होता है और संकल्प यात्रा में आई कठिनाइयों से निकला पसीना शरीर की नस-नस को शुद्ध कर देता है। जब शरीर शुद्ध हो जाता है तो उससे मस्तिष्क भी शुद्ध हो जाता है और जब यह दोनों शुद्ध हो जाते हैं तो आत्मा की शुद्धि स्वयं ही हो जाती है। जिसे भूलोक में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
        अतः सर्वविदित है कि शुद्ध आत्मा ही परमात्मा में समा सकती है अर्थात मोक्ष प्राप्ति कर सकती है जिसका उपकरण उपवास है जो आत्मा की शुद्धि में अद्वितीय भूमिका निभाता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
उपवास का अर्थ त्याग होता है ।व्रती जितने देर के लिए ,कितनी भी चीजें छोड़ने का संकल्प ले । जब हमारी आत्मा में पवित्र विचारों की धारा बहती है तभी ,हम त्याग के लिए तैयार होते हैं । उपवास से हमारे शारिरिक तंत्र को कम काम करना पड़ता है । दिनचर्या में अंतर आ जाता है । हम परमात्मा के बारे में सोचते हैं । भजन किर्तन करते हैं जिसमें सुन्दर संदेश होते हैं । अतः उपवास अंतः करण के शुद्धि का रास्ता है । उपवास वाले दिन मन को एकदम स्वच्छ रखें ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
उपवास हम भोज्य पदार्थ अनाज का तो करते ही है साथ ही साथ ये भी संकल्प लेते हैं मन तन कर्म से हम पवित्र रहे,साफ शुद्ध फलाहारी करे ,वैसे ही मन कर्म से सात्विक विचार रखे और उसका पालन करे,ये नही की उपदेश हम नेक कर्म की दे और स्वयं लोभ से भरे हुए हो,उपवास हमे मन से स्वच्छ बनाता है हमारा मन मस्तिष्क स्वार्थ से परे हट कर,परोपकार की और बढ़ता है, परोपकार करना भी उपवास का एक हिस्सा हो सकता है, जिस तरह हम उपवास के लिए सोचते है कि हम गलत न खाए, न बोले,न करे,ये हमारा संकल्प होता है उसी तरह से हम नित्यप्रति अपने देनादिन के कार्य में एक ऐसे कार्य का संकल्प लें सकते है।
अतः यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं कि उपवास आत्मा की शुद्धि का उपकरण है।
- मंजुला ठाकुर 
 भोपाल - मध्यप्रदेश
 उपवास आत्मा की शुद्धि करण का उपकरण नहीं है ।उपवास भोजन कुछ निश्चित समय तक ना करने की क्रिया को कहा जाता है भोजन शरीर की आवश्यकता है। भोजन शरीर के लिए की जाती है ।कभी शरीर की संतुलन बनाने के लिए भोजन ग्रहण नहीं की जाती है इसी का नाम उपवास है। उपवास आत्मा की नहीं शरीर की शुद्धि करण का उपकरण है ।भोजन करने से कभी शरीर में विकार उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है। इसलिए शरीर की शुद्धिकरण के लिए उपवास रखा जाता है। आत्मा की शुद्धि करण ज्ञान है। सत्य ज्ञान की अनुभव से आत्मा शुद्ध रहती है ,क्योंकि आत्मा सत्य दृष्टा है और सत्य ईश्वर है। जो मनुष्य की अंतरात्मा में ज्ञान स्वरूप में विद्यमान है। आत्मा कभी अशुद्ध नहीं होती क्योंकि परमात्मा का अंश है ।मन अशुद्ध होती है सही ज्ञान की पहचान न होने से  मन भ्रमित होता है। मन भ्रमित होना ही अशुद्ध है। अंत में यही कहते बनता है कि उपवास आत्मा की शुद्धि करण नहीं शरीर की शुद्धि करना है।
- उर्मिला सिदार
 रायगढ़ -  छत्तीसगढ़
उप+वास अर्थात स्वयं के समीप वास करना ......स्वयं के समीप रहना । 
      यदि उपवास तन-मन से..... पवित्र विचारों के साथ किया जाता है तभी फलीभूत होता है  । सिर्फ खानपान का त्याग अथवा एक समय खाना ही उपवास नहीं है, मन भरे हुए ईर्ष्या .....द्वेष .......अहंकार ..... क्रोध आदि नकारात्मक दूषित विचारों का त्याग भी जरूरी है  ।
       उपर्युक्त उपवास एक दिन में संभव नहीं है, इसके दृढ़ प्रतिज्ञ होना पड़ता है ।
       कहने को तो उपवास किया जाता है परन्तु अनाज के स्थान पर अन्य फलाहारी वस्तुएं खाई जाती है जिससे उदरपूर्ति तो वैसे भी हो ही जाती है  । 
       फिर भी उपवास को कुछ प्रतिशत आत्मा की शुद्धि का उपकरण माना जा सकता है  । इसके साथ ही इससे पेट की सफाई हो जाती है जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है  ।
          - बसन्ती पंवार 
       जोधपुर -  राजस्थान 
उप+वास_ उपवास अर्थात आप स्वयं के पास रहें, हर दिन से कुछ अलग रहें. वास्तव में उपवास का अर्थ है आप स्वयं के इतने पास चले जाएं कि आपका ध्यान खाने की ओर जाये ही नहीं. इस दृष्टि से देखें तो कहा जा सकता है कि उपवास किया नहीं जाता, स्वत ही हो जाता है.
प्रश्न उठता है कि यदि आपने उपवास का संकल्प नही लिया पर आप किसी की मदद करने में या परोपकार के कार्य में इतने लीन हो गये कि खाना नहीं खा पाये तो क्या यह उपवास होगा? मेरा मानना है कि यदि आपके भाव शुद्ध हैं तो यह भी तो उप+वास हुआ ना. उपवास यानि केवल भूखे रहना नहीं, उपवास करते हुए भी ध्यान खाने की ओर रखना नहीं वरन् उपवास को आत्मा की शुद्धि का उपकरण बनाना है, तभी इसकी सार्थकता है.
- सरोज जैन
खण्डवा - मध्यप्रदेश
निश्चित ही उपवास आत्मा की शुद्धि का शानदार उपकरण है। उपवास एक रूहानी चीज है ना कि केवल शारीरिक ।इसका रुख ईश्वर की तरफ़ होता है ।
उपवास से सोई हुई आत्मा, अंतरात्मा जाग उठती है। अध्यात्मिक उपवास एक ही आधार रखता है ,वह दिल की सफाई ।यदि यह एक दफा हो गई तो मरने तक कायम रह जाती है।
 वरना फांके का कोई दूसरा मकसद नहीं हो सकता।
 उपवास करने से मन अंतर्मुखी हो  जाता है । दृष्टि निर्मल हो जाती है। देह व रूह निर्मल  बनी रहती है ।
 महात्मा गांधी जी ने कहा था कि,, उपवास सत्याग्रह के शस्त्रागार में से एक महान शक्तिशाली अस्त्र है ,,।
ईश्वर मैं अगर जीती जागती श्रद्धा ना हो तो दूसरी योग्यताएं बिल्कुल निरूपयोगी हो जाती हैं ।
उपवास स्वयं की प्रेरणा से ही रखना सार्थक होता है।
 विचार रहित मनोदशा एवं व्यक्ति की अनुकरण वृत्ति से वह कभी नहीं रखना चाहिए ।
उपवास किसी के शरीर पर असर डालने के लिए नहीं किया जाता, वह तो दिल को छूता है ।
उपवास का असर टिकाऊ होता है। 
उपवास से प्रार्थना की तरफ तबीयत तेजी से आती है  जाहिर है कि उपवास एक रूहानी ताकत है ।
उपवास हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है ।इसका सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं शारीरिक रूप से भी बहुत महत्व है ।
उपवास दो शब्दों से बना है उप  यानी आत्मा वास यानी करीब अर्थात आत्मा के करीब होना।
 उपवास के द्वारा आत्मिक एवं शारीरिक फायदे होते हैं ।
उपवास और टहलने से स्वास्थ्य भी सही रहता है ,और उपवास और प्रार्थना से आत्मा स्वस्थ रहती है ।
टहलने से देह को व्यायाम मिलता है ,प्रार्थना से आत्मा को  व्यायाम मिलता है ।
उपवास  देह व रूह दोनों को शुद्ध करता है ।
अतः उपवास व्यक्ति पर निर्भर करता है ,कि उद्देश्य कितना सार्थक है ।
जब तक मन ,वचन और कर्म से आप शुद्ध  और  निश्छल नहीं होते तो यह सारे उपवास भी व्यर्थ हो जाते हैं ।
उपवास स्वप्रेरणा से ही रखने चाहिए जिनसे बेशक फायदा मिलता है दूसरों के दबाब से नही ।परंतु कुछ मामलों मे  उपवास रखना वर्जित होता है ।
कमजोर और बीमार व्यक्ति को उपवास नहीं रखना चाहिए ।इसके अलावा बच्चों ,बुजुर्ग और गर्भवती स्त्रियों को भी उपवास नहीं रखना चाहिए।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हां, उपवास भी एक तरह से आत्मा की शुद्धि करण में सहायक होता है। उपवास करते समय यदि निश्छल भाव से इंद्रियों को वश में रखते हुए ईश्वर अर्थात सृष्टि का रचयिता के ऊपर अपना ध्यान केंद्रित किया जाए तो वह इधर-उधर नहीं भटकता बल्कि एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है ।इसलिए उपवास को भी आत्म शुद्धि का एक घटक मान सकते हैं। चित्त की एकाग्रता एवं इंद्रियों का नियंत्रण  उपवास में जरूरी है तभी वह सार्थक होता है अन्यथा नहीं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
"मजहब हम दोंनों को समझ नहीं पाया, 
कुछ यूं जुदा हमने मोहब्बत के अंदाज रखे हैं
उसके  हिस्से के रखे  हैं मैने रोजे, 
मेरे हिस्से के उसने उपवास रखे हैं"। 
बात उपवास, रोजे या व्रत की हो यह सब मानव कल्याण हेतु सुख की प्राप्ति तथा दुख की निवृति के लिए श्रेष्ठ तथा सुगम उपाय माने गए हैं, 
संसार में समस्त धर्मों ने  किसी न किसी उपवास को अलग अलग नामों से अपनाया है, 
लोग बड़ी श्रदा भाव से आज भी कई तरह के उपवास रखते आ रहे हैं
तो आईये बात करते हैं  कि उपवास व्रत  क्यों रखे जाते हैं
क्या उपवास आत्मा की शुद्दि का उपकरण है? 
यहां तक आत्मा शुद्दि की बात करें इसका अर्थ है स्वंय को शुद्द करना तथा उपवास करने से आत्मा को शुद्दि  जरूर  मिलती है, यही नहीं इससे शरीरिक, मानसिक और धार्मिक लाभ भी होता है
उपवास से शरीर  तोस्वस्थ रहता ही है किन्तु मन को भी शान्त रखता है। 
इसलिए इसे उपवास को आत्मा की शुद्दि का उपकरण भी कहा गया  है, 
ऋषि मुनियों ने मानव कल्याण हेतु, सुख की प्राप्ति हेतु,  व आत्मा की शुद्दि हेतु अनेक उपाय कहे हैं 
उन्हीं उपायों मे़ से उपवास तथा व्रत को श्रेष्ठ तथा सुगम माना गया है, 
उपवास को व्रत का एक प्रमुख अंग माना गया है, 
इसलिए अनेक स्थलों पर कहा गया है कि व्रत और उपवास  में परस्पर सबंध है, 
उपवास या व्रत को अपनाने से पापों का नाश पुण्य की प्राप्ति शरीर और मन की शुद्दि होती है, 
उपवास या व्रत रखने  के नियम दूनिया को हिन्दू धर्म की देन है इनको रखने के कई नियम हैं और इनका बहुत महत्व है, यह एक पावित्र कर्म है, 
उपवास  रखने से ग्रह नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचा जा सकता है, 
उपवास रखने का मूल मकसद होता है संकल्प को विकसित करना इससे सकारात्मकता दृढ़ता और निष्ठता बड़ती है
संकल्पवान ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता है। 
अन्त में यही कहुंगा कि धर्म और मान्यता अनुसार उपवास रखने से देवी देवता प्रसन्न होते हैं तथा कष्टों और परेशानियों को दूर करके मनोकामानाएं पूर्ण होती हैं, 
यही नहीं उपवास करने से कई  बिमारियां दूर होती हैं  तथा शरीर के विषेले तत्व भी दूर हो जाते हैं इसके साथ साथ मन में शुद्द विचार आते हैं  मन शान्त रहता है तथा आत्मा शुद्द होती है, 
इसलिए इसे आत्मा को शुद्द करने का उपकरण भी कहा गया है, 
सच कहा है, 
"इतने धोखे खा लिए, अब कुछ खाने को मन नहीं करता, 
इसलिए उपवास रख लेता हुं"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " उपवास शरीर को शुद्ध करने का साधन हो सकता है । शुद शरीर से आत्मा अवश्य शुद्ध होती है । ऐसा भारतीय सस्कृति का भी उद्देश्य रहा होगा । उपवास के भी अपने नियम है । जिस का पालन करना आवश्यक होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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