क्या सभी को अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करना चाहिए ?

इच्छाओं का कोई अन्त नहीं होता है ।और सभी इच्छाओं की पूति भी सम्भव नहीं है । ऐसी स्थिति में इच्छाओं का गला भी नहीं घोटा जा सकता है । फिर इच्छाओं से कैसे निपटा जाऐं ? यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
हर किसी की इच्छाएं अनंत होती है, इसका होना भी जरूरी है, क्योंकि आपके जीवन में कुछ करने की इच्छा ही नहीं होगी तो आपका विकास कैसे हो सकता है। लेकिन यह भी सत्य है कि हर व्यक्ति को अपने इच्छाओं पर नियंत्रण रखना जरूरी है। जीवन में जो आप चाहते हैं। वह उससे उल्टा हो जाता है। आपके चाहने के उल्टा हो जाता है और हमारी पूरी जिंदगी इसी नियम से भरी हुई है। सुख चाहते हैं तो दुख मिलता है। सफलता चाहते हैं तो सब असफलता हाथ लगती है। जीतना चाहते हैं हार के सिवाय कुछ भी नहीं होता। हर जगह जो हम चाहते हैं उल्टा हुआ दिखाई पड़ता है फिर हम चीखते चिल्लाते हैं, रोते हैं और अपने किस्मत को कोसते हैं फिर परमात्मा को भी याद करते हैं कि हमसे क्या भूल हो गई। इस नियम को ठीक से समझें। जब भी आप अस्तित्व के सामने अपनी चाह रखते हैं तभी आप उसके विपरीत हो जाता हैं।अस्तित्व की मर्जी के खिलाफ आप कुछ भी नहीं कर सकेंगे।उसमें हारेंगे और टूटेंगे और सभी आपके खिलाफ हो जाएंगे। हमारा मन चंचल है जो मनमानी करता है और अति बलवान है। जिस तरह हवा को मुट्ठी में बंद नहीं किया जा सकता उसी तरह मन को पकड़ मैं नहीं लाया जा सकता। हमारी इंद्रियां भी मन के कहने पर ही काम करती हैं।जबकि मन रोकने पर भी कार्य करता है। मन को पूरी तरह अपने अनुरूप बनाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य की अलग-अलग रुचियां है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन मन को वैराग्य से ही नियंत्रण में किया जा सकता है। हमारे सारे पवित्र काम मन शरीर और बुद्धि के सहयोग से ही संपन्न होते हैं। संसार में न तो अच्छाई का अंत है और ना ही बुराई का। हमें इतनी ही चीज लेनी है जितनी की हमें आवश्यकता है। इस परिस्थिति में हम सभी को अपने इच्छाओं पर नियंत्रण रखना जरूरी है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
इच्छाएं अनंत होती हैं। दुनिया इतनी खूबसूरत है और इसमें इतना आकर्षण हैं कि हर कोई सब कुछ पा लेना चाहता है। चाहे कर्म से,चाहे भाग्य से, चाहे अन्य अच्छे- बुरे तरीके से। एक इच्छा पूरी होती है या नहीं भी होती परंतु नई इच्छा जरूर जुड़ जाती है। यह लालच भी है और  मोह भी है । यह क्रमिक हो,  योग्यता के अनुरूप हो, समय सीमा में तो  अनुचित नहीं होगा किंतु इनमें से किसी भी  शर्त, नियम या नीति को तोड़ता है तो  व्यवस्था को असंतुलित कर असंतोष को उकसाता है, जो टकराव और संघर्ष देता है, सामाजिक वातावरण को अशांत करता है।
अतः सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत सामंजस्य और सौहार्दता सरस बनाए रखने के लिए इच्छा पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी तो है ही उसके मापदंडों को समझना और उसके योग्य होना भी बहुत महत्वपूर्ण है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जी हाँ। इच्छाएँ अपनी हैं । उनको बढ़ाना या नियंत्रित करना अपने हाथ में है। आप जब जीवन की दौड़ में शामिल होते हैं, तो कई मुकाम सामने आते हैं। सभी चमक हमारे काम की नहीं होतीं । एक भूखे व्यक्ति को महल में बैठा दिया जाए तो उसकी भूख नहीं मिटेगी।
 इसलिए पहले अपनी इच्छाओं को अपनी जरूरत के मुताबिक पालना चाहिए। सीढ़ी से एक-एक पायदान चढ़ने पर गिरने का डर नहीं होता। कुछ इच्छाएँ आसमान से ऊँची होती हैं। लेकिन उसके लिए धरातल से प्रयत्न करना होता है। तभी मानव छोटे से गाँव से उठकर देश के शिखर पद को सुशोभित कर पाता है।
आगे कहना चाहूँगी कि इच्छाएँ सही दिशा में हों तो ही फलित हो पाती हैं। गलत सोच और इच्छाएँ हमेशा परिवार के लिए घातक होतीं हैं। इसलिए जब भी इच्छाएँ पनपती हैं तो पहले उन्हें अपने मन में तौलें किसी भी कुत्सित इच्छाओं का गला वहीं घोंट दें। मापदंड खुद से तय करना है। हम क्या करते हैं, क्यों करते हैं और उससे किस-किस पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ये सब सवाल मापदंड बनाने में सहायता करेंगे। व्यर्थ की इच्छाओं को पूरा करने में समय न गवाएँ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
     जिसने अपनी इंद्रियों को बस में कर लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं। पूर्व में ॠषि मुनियों को देखिये उनकी इंद्रियां वश में होती थी और जिसके परिपेक्ष्य में उन्होंने उच्चतम कार्यों को अंजाम दिया हैं। जिससे वशीभूत होकर जीवन यापन करने उन्हें किसी भी तरह की परेशानियों का सामना करना नहीं करना पड़ता हैं। वर्तमान परिदृश्य में गंभीरता पूर्वक विचार करियें किसी के भी अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं होने के कारण उन्हें अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं हो पाते और दूसरा संकुचित सोच में बदलाव की जगह नकारात्मक सोच में  
समय व्यतीत कर जीवन जी रहे हैं, इसलिए मानवता को चाहिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करें, जैसा कि लाँकडाऊन के दौरान देखने मिला था, सब अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, कर्मों में वशीभूत होकर जीवन यापन करने बाध्य हो गये थे।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
इच्छा  अंतः प्रेरणा है ।यह मानव का स्वभाव है । मन की इच्छा को कर्मों में ढाल कर ही सपनों की पूर्ति होती है । हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख शांति, धन दौलत, समृद्धि पाने की इच्छा रखता है। इच्छाओं को पूरा करने का ढंग नैतिक होना चाहिए, मर्यादित होना चाहिए । यह सही है कि हमारे ह्रदय में इच्छाएं पनपती हैं वह इसका स्वभाव है लेकिन इच्छाओं को अपने ऊपर ज्यादा हावी होना नहीं देना चाहिए। जिसके परिणाम स्वरूप हम उन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कोई गलत ,अनुचित कार्य कर बैठे । कई बार व्यक्ति के मन में लोभ की भावना पैदा हो जाती है। अत्यधिक लालची होने के कारण वह कम समय में ,शॉर्टकट रास्ता अपनाकर, विवेक हीन होकर कुछ भी पाने के लिए लालायित हो जाता है । लोभ और लालच से भरी इच्छा मनुष्य की बुद्धि नष्ट कर देती है । अत्यधिक इच्छाएं हमारे मन में अशांति पैदा करती है, जितनी ज्यादा इच्छाएं होंगी मन उतना ही अशांत रहेगा। आवश्यकतानुसार इच्छा पालना बुरी बात नहीं है लेकिन जब उनकी पूर्ति नहीं हो पाती तो दुख का भाव पैदा होता है । अतः इच्छाओं पर नियंत्रण भी आवश्यक है ।
-  शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
       अवश्य सभी को अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करना चाहिए। परन्तु स्मरण रहे कि उन्हीं निस्वार्थ एवं राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत इच्छाओं की पूर्ति हेतु निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। ताकि उन इच्छाओं की पूर्ति हेतु मृत्युलोक में आवागमन के चक्र से छुटकारा मिल सके।
       हिंदू संस्कृति में पवित्र ग्रंथ भागवत गीता स्पष्ट मार्गदर्शन करती है कि कर्म ही पूजा है और कर्म ही मुक्ति का द्वार खोलते हैं। इसलिए मुक्ति के मार्ग में बाधक काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार नामक पंचभूत के अंतर्गत अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करना अति आवश्यक एवं अनिवार्य है। 
       जबकि मानव कल्याण में उपजी सहानुभूतिपूर्ण व्यवहारिक इच्छाओं को नियंत्रित कदापि नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें सामाजिक बेड़ियों से "बंधनमुक्त" करते हुए तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए। जिससे अपने अनमोल जीवन की सार्थकता सिद्धि के साथ-साथ अपना लोक-परलोक सुधारते हुए परमधाम का रास्ता साफ हो सके।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हर इच्छा की पूर्ति जरूरी नहीं है तथा यह संभव भी नहीं है मनुष्य को अपनी जरूरत के अनुसार इच्छाओं की पूर्ति करना चाहिए और अनावश्यक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। मानवीय स्वभाव इच्छाओं से भरा होता है ,पर हर इच्छा की पूर्ति नहीं हो सकती। हर इच्छा पूरी करने योग्य भी नहीं होती। अतः इच्छाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। जिन इच्छाओं के बिना काम न चल सके केवल उन्हीं की पूर्ति करना आवश्यक होता है, हर इच्छा का नहीं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
इच्छा मन का वह भाव जो किसी ऐसी वस्तु,या बात आदि की ओर ले जाएं जिसके मिलने से सुखानुभूति हो।
जरुर नियंत्रण करना चाहिए इच्छाओं पर,यदि ऐसा नहीं कर पाते तो फिर ये इच्छा रुपी घोड़ा अनियंत्रित होकर सबकुछ अस्त व्यस्त करने में देर नहीं लगाएगा।
महाविद्वान, बलशाली रावण अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण ही अपना सबकुछ गंवाने के साथ ही,प्राण भी गवां बैठा था।
इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती।एक के बाद एक बढ़ती ही जाती है। वेदांत और  सांख्य  दर्शन में इच्छा को मन का धर्म माना गया है,किंतु न्याय और वैशेषिक दर्शन में इसे आत्मा का (गुण) धर्म या व्यापार माना गया है ।
अब जान लीजिए जब यह आत्मा का धर्म है तो उससे विलग हो नहीं सकती।जब तक किसी भी शरीर में आत्मा विद्यमान रहेगी, इच्छाएं भी रहेगी। यह समाप्त नहीं होती।
बस एक ही उपाय है कि इनको नियंत्रित करें हम।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर l
आशा तृष्णा न मरी, कह गये दास कबीर ll
हमारा मन बड़ा ही चंचल है जो मनमानी करता है, अतः एकाग्रचित्त होने के लिए इच्छाओं पर नियंत्रण आवश्यक है l
गीता में कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि इच्छाओं के नियंत्रण द्वारा मन, शरीर, बुद्धि के सहयोग से ही हम पवित्र कार्य कर सकते हैं l अतः निरर्थक व फालतू इच्छाओं को त्याग कर सार्थक इच्छाओं की पूर्ति हेतु पूर्ण मनोयोग से कार्य करें l इससे मन को काबू करने के लिए उन व्यवहारों को आत्मनियंत्रित करें तथा अपनी क्षमताओं के साथ आदर्शवादी बनें l जिन इच्छाओं को नियंत्रित करने हेतु संघर्षशील हैं उनका फिर से मूल्यांकन करें l अतिसंवेदनशीलता को कम करें l हर बात को अपने ऊपर लेना बंद करें l कैस्ट्रोफ़ाइजीना नेगेटिव विचारों के जाल से बाहर निकले l
      मेरे विचारों से ज्ञान चर्चा, सतसंग आदि इच्छाओं को नियंत्रित करते हैं l उनकी तृप्ती नदी मन, स्वभाव ऐसा है कि वह पाशविक प्रवृतियों की तरफ दौड़ता है l अतः सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र द्वारा विचारों का परिमार्जन करें l बौद्ध ग्रंथ "उदान "में विचारों के नियंत्रण के प्रयासभगवान बुद्ध ने बताये हैं l
           चलते चलते ---
"ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या "के ध्येय वाक्य को अंगीकार करने पर ही इच्छाओं को नियंत्रित कर सकेंगे l
   - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
मानव और इच्छाओं का संग स्वाभाविक है। जीवन की प्रत्येक अवस्था में मनुष्य के मन-मस्तिष्क में अनेक इच्छायें जन्म लेती हैं। बालक, युवा, प्रौढ़ अथवा वृद्ध स्त्री-पुरुष अपनी आयु के अनुसार विभिन्न इच्छाओं के स्वामी होते हैं और अपनी सामर्थ्य से उनको पूरा करने के प्रयास भी करते हैं। 
परन्तु जब मनुष्य की इच्छायें उसकी क्षमता से अधिक पैर पसारने लगती हैं और उनकी पूर्ति के प्रयास विफल होने लगते हैं तो मनुष्य को निराशा घेर लेती है और वह अवसाद का शिकार हो सकता है। 
जीवन को गतिशीलता प्रदान करने के लिए मनुष्य के मन में इच्छायें होना अति आवश्यक है लेकिन इन इच्छाओं के वश में होकर जब मनुष्य लट्टु की भाँति घूमने लगता है तो जीवन नकारात्मक हो जाता है। इसलिए जीवन की सकारात्मकता और सार्थकता के लिए सभी को इन इच्छाओं पर अवश्य नियन्त्रण रखना चाहिए। 
इसीलिए कहता हूँ कि...... 
"समन्दर की हर लहर को किनारा मिले यह जरुरी तो नहीं, 
सभी को ऊँचाइयों का सहारा मिले यह जरुरी तो नहीं। 
अपनी इच्छाओं को संयम की डोरी से बाँधकर रखना, 
सभी को आसमान यह सारा मिले यह जरुरी तो नहीं।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
    अंतहीन समुद्र की लहरों की तरह इच्छाओं पर सवार मनुष्य जीवन सागर में भटकता रहता है जो उसकी आंतरिक चेतना को नष्ट कर देता है। अनियंत्रित इच्छाएं सभी बुराइयों की जड़ हैं। इस लिए सभी को अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करना चाहिए। 
       जितनी कम इच्छाएं होगी उतनी ही भटकन कम होगी।कम इच्छाओं की पूर्ति आसानी से हो जाती है और मनुष्य में आत्मविश्वास बढ़ता है। विवेक बना रहता है। मनुष्य के विकास और पतन में इच्छाओं का ही तो हाथ है। श्रेष्ठ और शुभ इच्छाएं विकास की ओर ले जाती हैं और विवेक शून्य इच्छाएं पतन की ओर ले जाती हैं। इस लिए मनुष्य को एक हद में रहकर इच्छाएं रखनी चाहिए। यह नहीं कि हमने इच्छाओं का त्याग करना है।इच्छाएं हमारी जीवन के विकास की नींव है।इच्छाएं जरूर रखनी चाहिए लेकिन हमारे नियन्त्रण में होनी चाहिए। हमें उनको पूरा करने के लिए नैतिक मूल्यों से समझौता न करना पड़े।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
अपनी इच्छाओं पर हर किसी को नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि इच्छाएँ अनन्त होती हैं। जो कभी भी पूर्ण नहीं होती हैं। एक इच्छा पूरी होने के बाद दूसरी इच्छा उत्पन्न हो जाती है। इसलिए इच्छाओं पर नियंत्रण जरूरी होता है। साथ-साथ दूसरी बात ये भी है कि अगर कोई भी इच्छा न हो तो जीवन का मजा ही कम हो जाता है। इसलिए इच्छा वही कीजिए जिसे लगे कि आप इसे पूर्ण कर सकते हैं। और यदि पूर्ण नहीं होता है तो मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी। आप वैसी इच्छाएँ रख सकते हैं जिसे पूर्ण करने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। लेकिन जिस इच्छा को पूर्ण करने की सामर्थ्य आप में हो और उसे आप पूर्ण न करें ये भी ठीक नहीं है। इच्छाओं पर इतना नियंत्रण रहें कि जिसे आप चाहे उसे पूर्ण करें जिसे न चाहे उसे पूर्ण न करें। यही होता है इच्छाओं पर नियंत्रण। जो कि सबको करना चाहिए।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
हमारी इच्छायें हमारे जीवन को गति देती हैं । हमारी कुछ इच्छायें सार्थक होती हैं कुछ निर्थक । सार्थक इच्छायें हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं और निर्थक इच्छायें ( जिन इच्छाओं से समाज का  तथा स्वयं का पतन  होता है  ) हमें गर्त में  ढ़केलती हैं ।
इच्छा जिस वक्त जन्म लेती है, उसी समय हमें चुनाव करना पड़ेगा कि कौन सी इच्छा को हम बल दें कौन सी इच्छा का दमन करें ।कभी किसी बलवती इच्छा के लिए इन्सान चोरी करलेता है , लेकिन बदले में उसे दंड मिलता है । अनैतिक इच्छाओं पर हमें नियंत्रण रखना अति आवश्यक है । जीवन और समाज की बेहतरी के लिए इच्छा करना और उसे पूर्ण करना हमारा दाइत्व है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
सभी जीवधारियों में मानव श्रेष्ठ माना जाता है और वह चाहे किसी का गुलाम हो ना हो अपनी इच्छाओं का गुलाम अवश्य होता है ।
        उसकी एक इच्छा पूरी होती भी नहीं है और दूसरी सर उठा लेती है फिर तीसरी...... चौथी ........और यह क्रम ताउम्र चलता रहता है । इच्छाएं द्रौपदी का चीर बन जाती हैं ।
       जरूरी नहीं कि सभी इच्छाएं पूरी हों और जब पूरी नहीं होती तो हताशा छा जाती है । अथवा येनकेन प्रकारेण उसे पूरी करने का प्रयास किया जाता है । कई बार तो यह इच्छाएं   इतनी उग्र हो जाती है कि लोग अनैतिक कार्यों का सहारा लेने लगते हैं जिसका परिणाम सिर्फ पूरे जीवन की बर्बादी के साथ-साथ घर परिवार की बर्बादी ही होता है ।
         उचित यही है कि इच्छाओं  को सीमित रखा जाए । परिश्रम और लगन से उन्हें पूरा करने का प्रयास किया जाए फिर भी यदि पूरी ना हो तो संतोष रखना चाहिए । 
       जितनी लंबी चादर हो उतने ही पांव फैलाने चाहिए ।
       इच्छाएं  जितनी कम होंगी, उतना ही आराम होगा । बे-सिर पैर की इच्छाएं जिनके पूरी ना हो पाने पर भी जीवन चल सकता है, ऐसी इच्छाओं को तुरंत नियंत्रित किया जाना चाहिए ।
           - बसन्ती पंवार 
       जोधपुर - राजस्थान 
अवश्य करनी चाहिए! ब्रह्मा ने जिस सृष्टि की रचना की वह इच्छा और आंकाक्षाओं से प्रेरित है फिर इच्छा करना तो मनुष्य जाति का स्वभाव है! मनुष्य के मन में इच्छाओं का अनंत प्रवाह रहता है और मन भी बड़ा चंचल रहता है इसे बांधना मुश्किल  है इसलिए  तो अरस्तुने कहा है शत्रुओं पर विजय पाने की अपेक्षा इच्छाओं का दमन करने वाले अधिक साहसी होते हैं! 
मनुष्य को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना चाहिए ...मनुष्य  अधिकतर समृद्धिऔर यश के लिए भागता है और उसी की अधिक इच्छा रखता है! ठीक है किंतु हमे अधिक इच्छा भी नहीं रखनी चाहिए ! इच्छा अपनी हैसियत,  योग्यता के अनुसार होती है तो पूर्ण होने से मन आनंदित हो जाता है एवं मन को भी शांति होती है अन्यथा न होने पर मन अशांत हो जाता है! अतः हमें सार्थक और जरुरी इच्छा रख उसे पूरी करने की कोशिश करनी चाहिए उसमे विश्वास होता है कि इच्छा अवश्य पूर्ण होगी! 
माना इच्छा करना मनुष्य का स्वभाव है किंतु हमारी इच्छा हमपर इतनी हॉवी भी न हो जाए कि हमें अनैतिक कर्म करने और सोचने पर मजबूर कर दे अतः व्यक्ति को नैतिक पथ का अनुकरण करने के लिए इच्छा के अनंत प्रवाह को सकारात्मकता लाये ऐसी सही दिशा देनी होगी! 
             - चंद्रिका व्यास
           मुंबई - महाराष्ट्र
जी बिल्कुल सभी को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना ही चाहिए। महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि ,अर्जुन मन को बैराग्य  से ही नियंत्रण में रखा जा सकता है ,क्योंकि जितनी ज्यादा इच्छाएं होंगी उतनी ज्यादा अशांति भी हमारे मन में होगी, जितनी कम इच्छाएं होंगी  उतनी कम अशांति होगी और मन प्रसन्न रहेगा ।
इसलिए ऋषि मुनि जन सदियों से त्याग का संदेश देते आए हैं ।
कम इच्छाएं होने पर हम उन्हें शीघ्र ही प्राप्त कर सकते हैं। जिससे हमें  सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी और हमारे अंदर गजब का आत्मविश्वास पैदा होगा।
 जिससे हम खुश रहेंगे ।
हम अपनी स्वस्थ सोच से और निरर्थक फालतू इच्छाओं को त्याग कर सार्थक इच्छा को पूरा करने में ध्यान लगा पाएंगे और उन्हें बेहतर ढंग से पूरा कर पाएंगे ।इसके परिणाम स्वरूप हमारा जीवन सार्थक हो सकेगा।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हर चीज यदि सन्तुलित हो तो अतिसुंदर होती है। हमारी इच्छाएं अनन्त और असीम होती हैं। जीवन पर्यंत हमारी इच्छा निरन्तर हमारे साथ होती है। फिर यह अति आवश्यक है कि हम अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाए। यदि इच्छा पूरी हो जाती है तो हमें अत्यंत खुशी होती है परन्तु ठीक इसके विपरीत यदि इच्छा पूरी न हो तो व्यक्ति को क्षोभ होता है। इच्छा के प्रकार पर हमें सदैव ध्यान रखने की जरूरत है। यदि हम अपने आवश्यकता या हैसियत से, कुछ अलग इच्छा करते हैं,  फिर तो यह सही नहीं होगा। मानव स्वभाव से ही असीमित इच्छाओं को अपने में समेटे हुए रहता है जो कुछ तो पूरे हो जाते हैं, कुछ अधूरे भी रह जाते हैं।  यह भी एक सच्चाई है। इसीलिए सही व्यक्ति वही होता है जो अपनी इच्छा को अपने वश में रखना अच्छी तरह जानता है। इसलिए अगर हम अपनी इच्छा को अपने वश में रखने की क्षमता रखते हैं तो हमारे लिए यह अत्यन्त लाभदायक होगा।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
इच्छाएं अनंत है एक पूरा होती है कि दूसरी तीसरी जाग जाती है हर इच्छा पूरी करना जीवन में संभव ही नहीं है इस पर नियंत्रण करना हर व्यक्ति की एक आवश्यकता है जिसने अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीख लिया वाह अपने ऊपर नियंत्रण कर लिया।
अनंत इच्छा मनुष्य को पतन की ओर ले जाती है यथार्थ से दूर चकाचौंध में रहने की आदत बना देती है और हमेशा व्यक्ति को यह लगने लगता है यही सच्चाई है इसलिए जीवन के शुरुआती दौर से ही इच्छाओं पर नियंत्रण होना बहुत आवश्यक है संतुलित जीवन पद्धति अपनाना श्रेष्ठ है।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
"इच्छा पूरी नहीं होती  तो क्रोध वढ़़ जाता है, 
इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ जाता है"
देखा गया है  ज्यादातर  लोग मन की इच्छाओं के अधीन होते हैं, उनके पूरी होने पर लोभी हो जाते हैं और पूरी न होने पर लालची बन जाते हैं, 
कहने का भाव की इच्छाओं से ही  लोग  हर तरह से परेशान रहते हैं जितनी ज्यादा इच्छाएं इतनी ही ज्यादा परेशानी  तो क्यो़ न हम अपनी इच्छाओं पर निय़त्रण रखें, 
आईये आज की चर्चा इसी बात पर कपते है् कि क्या सभी को अपनी इच्छाओं पर निय़त्रण करना चाहिए? 
मेरा मानना है कि अगर हमें सुखी रहना है तो हमें अपनी इच्छाओं पर निय़त्रण रखना अत्यंत जरूरी है, 
हमें अपनी इच्छाओं के अधीन नहीं होना चाहिए तथा मन को अपने निय़त्रण में रखकर हर कार्य करना चाहिए जिससे हम कई बूरे कर्मों से बच सकते हैं तथा अपना जीवन सुख व सुखमय जी सकते हैं, 
इसलिए कोशीश यही होनी चाहिए कि हम बूरी इच्छाओं को दबाए रखें और अचछी इच्छाओं के साथ जीवन को आगे बढ़ाऐं, 
श्री कृष्ण भगवान जी ने भी महाभापत का प्रसंग सुनाते हुए कहा है कि हे अर्जुन मन को वैराग्य से ही नियंत्रण किया जा सकता है, 
प्रत्येक मनुष्य में अलग अलग रूचियां हैं लोकिन प्रभ का नाम ही ऐसा है,  जो सभी को  प्रिय है, और सारे पावित्र काम मन वुद्दी के सहयोग से होते हैं, हम पावित्र तभी हो सकते हैं जब हमारी इच्छाएं निय़त्रण में होगीं इसलिए प्रभु के गुणगाण के लिए भी मन ब वुद्दी का निय़त्रण जरूरी है, 
अन्त में यही कहुंगा की संसार में न ही अच्छाई का अन्त है न ही बुराई का  हमें उतनी ही चीज लेनी चाहिए जितनी की  हमें जरूरत होती है इसीसे हमारा मन साफ सुथरा ब शान्त भी रहता है, 
क्योंकी मनुष्य के विचार ही उसे दुखी ब सुखी बनाते हैं
इसलिए जिसके विचार नियंत्रण में हैं वोही सुखी है
यही नहीं आत्म नियंत्रण करने वाला व्यक्ति शीघ्र ही समझ जाता है कि विचार ही मनुष्य के शत्रु, मित्र, सबंधी अथवा भाग्य होतो हैं, 
इसलिए विचार बदलो विचारदारा बदल जाऐगी, 
कहने का भाव, जिस  मनुष्य के विचार उसके अनुकूल हैं वो सभी प्रकार के  लोगों को, परिस्थतियों और भाग्य को अपने अनुकूल पाता है, विचारों के दूषित हो जाने से वातावरण दूषित हो जाता है, तब मित्र शत्रु, सफलता विफलता बन जाती है, 
इसलिए हम सभी को अपनी इच्छाओं पर  निय़त्रण ऱखने की जरूरत है, इसके लिए हमें ज्ञान चर्चाओं में भाग लेना चाहिए इनमें से कुछ ऐसे रस मिलते हैं जिनसे हम अपनी इच्छाओं को निय़त्रण में रख सकते हैं, 
इसलिए हम सब को चाहिए कि हमें  मन, वुद्दी व चालचलन को निय़त्रण में रख कर ही हर कार्य करना चाहिए ताकी हम संतोषधन को प्राप्त कर सकें क्योंकी संतोषधन ही सबसे उतम धन माना गया है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में "  इच्छाओं पर नियंत्रण कर के ही आगे बढना चाहिए । तभी जीवन में विकास सम्भव है । यहीं जीवन का आधार है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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