मनोज रत्नाकर सेवलकर से साक्षात्कार
नाम :- मनोज रत्नाकर सेवलकर
जन्म :- 15 अगस्त 1962 जबलपुर - मध्यप्रदेश
शिक्षा :- एम. ए. हिन्दी साहित्य
प्रकाशित कृति :- "मकड़जाल" लघुकथा संग्रह (2011)
लेखन :- बाल कहानियां, व्यंग्य लेख, कविताएं व
लघुकथाएं विगत चौदह-पन्द्रह वर्षों से ।
प्रकाशन :- अखिल भारतीय स्तर की विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित ।
कृति संपादन :- "पाठक-मंचों के समीक्षा-पटल पर
कृति"समकालीन सौ लघुकथाएं" " (2015)
संकलनों में :-
"काली माटी" व "बुजुर्ग जीवन की लघुकथाएं"
(संपादक श्री सुरेश शर्मा)
"निमाड़ी मा नानी वार्ताना"
( संपादक श्री जगदीश जोशीला)
"लघुकथा संसार : मां के आसपास"
(संपादक श्री प्रताप सिंह सोढ़ी)
संवाद सृजन
(संपादक श्री बी. एल.आच्छा)
"स्वर्ग में लाल झण्डा"
(संपादक श्री सूर्यकांत नागर)
"लघुकथा वर्तिका"
( संपादक श्रीमती उषा अग्रवाल "पारस")
संरचना-6
(संपादक श्री कमल चोपड़ा)
अनुवाद :-
पंजाबी में बचपन लघुकथा का अनुवाद।
सम्मान :-
भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा आयोजित आनलाईन कार्यक्रम में विभिन्न सम्मान प्राप्त किये ।
सम्प्रति :-
शिक्षक के पद पर कार्यरत एव निरंतर लेखन।
सम्पर्क :- 2892/ई सेक्टर सुदामा नगर, इन्दौर - मध्यप्रदेश
प्रश्न न.1 - लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ?
उत्तर - सशक्त कथ्य एवं संदेश तथा कथा के सागर को गागर में समाहित करने की क्षमता ।
प्रश्न न.2 - समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताओं ? जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ?
उत्तर - सर्वप्रथम मेरे परम पूज्य गुरू स्व. डॉ. सतीश दुबे जी, सदैव प्रोत्साहन देने वाले स्व. श्री सुरेश शर्मा जी, मार्गदर्शक श्री सतीश राठी जी , श्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल जी एवं आप श्री बीजेन्द्र जैमिनी जी । इन सभी की भूमिका मेरे लघुकथा लेखन में महत्वपूर्ण है ।
प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ?
उत्तर - सशक्त शुरुआत, रोचक कथ्य एवं प्रभावी अंत ।
प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म की बहुत ही महत्वपूर्ण है ?
उत्तर - भारतीय लघुकथा विकास मंच जैसे व्हाट्सएप समूह, फेसबुक, ब्लॉग जैसे लघुकथा.काम आदि ई - मीडिया साईड्स के प्लेटफार्म , लघुकथा साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं ।
प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?
उत्तर - साहित्य की सभी विधाऐं अपने आप में महत्वपूर्ण है। इनमें रुचि रखने वाले अपने अपने साहित्य को उच्च स्थान देते हैं। परन्तु वर्तमान समय में साहित्य में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली विधा "लघुकथा" है ।
प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?
उत्तर - जी हां । साहित्य में निरन्तर प्रयोगवाद होते रहते हैं । ऐसे में लघुकथा की वर्तमान स्थिति में भी निरन्तर विकास हो रहा है। वर्तमान स्थिति में कोई भी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएं लघुकथा के बिना अधूरी है ।
प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उत्तर - मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूं । मेरी कोई साहित्यिक पृष्ठभूमि नहीं है । घर में मराठी व हिंदी भाषा समानरूप से बोली जाती है । जब मेरी मुलाकात लघुकथा के जनक स्व. डॉ सतीश दुबे जी से हुई । तब से लघुकथा लेखन की ओर प्रेरित हुआ । आज जो कुछ भी लिख पा रहा हूं उनका ही आशीर्वाद रहा है । मैं शासकीय विद्यालय में शिक्षक हूं। मेरा सदैव प्रयास रहता है कि विद्यार्थियों में साहित्य के प्रति जागरूकता आए ।
प्रश्न न.8 - आप के लेखन में , आपके परिवार की भूमिका क्या है ?
उत्तर - मेरे लेखन की प्रथम पाठक मेरी अर्धांगिनी, पुत्री व पुत्र के साथ ही मित्रगण समीक्षक बन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में , आपके लेखन की क्या स्थिति है ?
उत्तर - लेखन में मेरी रूचि है । आजीविका हेतु नहीं । अपितु जब भी लघुकथा कहीं प्रकाशित होती है तब उत्साह चौगुना हो जाता है ।
प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ?
उत्तर - लघुकथा का भविष्य बहुत उज्जवल है ।
प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?
उत्तर - लघुकथा लेखन ने मुझे मान-सम्मान के साथ साहित्य जगत में एक पहचान प्रदान की । इसके लिए साहित्य जगत के सभी विद्वतजनों को मेरा शत शत नमन ।
Comments
Post a Comment