संपादन- लघुकथा मंथन, बालकथा मंथन, चुनिंदा लघुकथाएं, मनोभावों की अभिव्यक्ति, मप्र की बाल कहानियाँ
उपलब्धि- 141 बालकहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन व अनेक कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित
प्रश्न न.1 - एक लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन-सा है?
उत्तर - यह थोड़ा मुश्किल प्रश्न है। ठीक उसी तरह जैसे यह पूछा जाए कि शरीर में महत्वपूर्ण अंग कौन-सा है? शरीर में प्रत्येक अंग में होता है। सभी का महत्व अपनी जगह होता है। बस, किसी का महत्व हम कम समझते हैं। किसी का महत्व ज्यादा समझते हैं। ठीक उसी तरह लघुकथा में सभी तत्व महत्वपूर्ण होते हैं। आप कहानी के कथानक पर लघुकथा को खड़ी नहीं कर सकते हैं। इसी तरह किसी लघुकथा में पंच लाइन कितनी भी महत्वपूर्ण हो सकती हैं, उसका आरंभिक भाग और उसमें कथातत्व का अभाव हो तो वह लघुकथा प्रभावहीन हो जाती है। लघुकथा का महत्व सभी तत्वों से मिलकर होता है। उसमें कथातत्व होना चाहिए। उचित संवाद या वर्णन के साथ बेहतरीन पंच पंक्ति ही लघुकथा को प्रभावी बनाती है।
प्रश्न न.2 - समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताओ ? जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण है ?
उत्तर - लघुकथा को इस मुकाम तक पहुंचाने में बहुत से रचनाकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हरेक रचनाकार का अपना नजरिया होता है। कोई किसे महत्वपूर्ण मानता है, कोई किसे? इसके अपने-अपने मापदंड हैं। हरेक रचनाकार उसी मापदंड पर कसकर लघुकथाकार की भूमिका को रेखांकित करता है। कई लघुकथाकार इस क्षेत्र में विवादित भी रहे हैं। कुछ ने लघुकथा को शार्ट स्टोरी, लघु कहानी, व्यंग्यकथा, तंजकथा, छोटी कहानी, मिनीकथा, बिना निदान वाली कहानी आदि अनेक नामों से नवाजा है। आज भी कुछ रचनाकार लघुकथा को लघु + कथा = लघुकथा मानते हैं। समकालीन लघुकथाकारों की बात की जाए तो अनेक नाम लिए जा सकते हैं। इन सभी लघुकथाकारों ने अपने-अपने क्षेत्रों में लघुकथा में महत्वपूर्ण काम किया है। इन सभी या समकालीनों में से किसी पांच लघुकथाकारों का नाम रेखांकित करना मुश्किल काम है। वैसे ही जैसे ओलंपिक में हॉकी की जीती हुई टीम से पांच नाम रेखांकित करना। इस तरह किसी पांच नाम को रेखांकित करके दूसरे के कार्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाना ठीक नहीं है। इसलिए मैं किसी पांच नाम को रेखांकित करना उचित नहीं समझता हूं। फिर भी जगदीश कश्यप, सतीशराज पुष्करणा, रामेश्वरलाल कांबोज, कमल चोपड़ा, सुकेश साहनी आदि की भूमिका लघुकथा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रही हैं।
प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन-कौन से मापदंड होना चाहिए?
उत्तर - लघुकथा और कहानी में एकमात्र अंतर यह है कि कहानी में समस्या का समाधान भी बताया जाता है। यह बात दूसरी है कि कभी-कभी उसमें निदान बताकर कहानी को समाप्त कर दिया जाता है। लघुकथा में कहानी की तरह विस्तार की संभावना नगण्य रहती है। आपको कम शब्दों में कसावट के साथ अपनी बात इस तरह रखनी होती है कि व्यक्ति ठगा सा खड़ा रह जाए। उसे लगे कि अरे! ऐसा नहीं होना चाहिए था। इसका अंत तो इस तरह कैसे हो गया? उसे तो इस तरह होना चाहिए था। यानी वह लघुकथा का अंत पढ़कर भौचक्का रह जाए। यहां उसे लगे कि नहीं इसके आगे ऐसा होना चाहिए था। तभी लघुकथा की सार्थकता है। इस हिसाब से देखें तो लघुकथा के मापदंड का सबसे पहला गुण उसमें कथातत्व की संक्षिप्त होना है। कम से कम शब्दों में कथा कही जाए। यह प्रयास अनिवार्य होना चाहिए। दूसरा तत्व उसका अनकहा तत्व है। जिस पर लघुकथा को कसौटी पर कहा जाता है। लघुकथा में 'कहे गए' कथन से ज्यादा महत्व उसमें 'अनकहे' कथन का होता है। यह लघुकथा के अंत में ध्वनित होना चाहिए। यही महत्वपूर्ण तत्व लघुकथा के प्राण होते हैं। इन्हीं दो महत्वपूर्ण तत्वों पर लघुकथा को कसा जा सकता है। संवाद यानी कथोपकथन इसका गौण तत्व है। इसकी पूर्ति वर्णन से हो सकती है। सीधे संवाद की जगह मनोभाव के वर्णन में कथोपकथन को सम्मिलित किया जा सकता है। इसलिए लघुकथा में दोनों ही महत्वपूर्ण तत्वों का समावेश किया जाना चाहिए।
प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन-कौन से प्लेटफार्म की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है?
उत्तर - सोशल मीडिया पर लघुकथाओं की भरमार है। जहां यहां-वहां नए-नए प्लेटफार्म कभी-न-कभी आते रहते हैं। ये सब लघुकथा के क्षेत्र में कोई ना कोई काम कर रहे हैं। इनके द्वारा एक ही काम महत्वपूर्ण तरीके से हो रहा है। वह है नए-नए व्यक्तियों को लघुकथा की ओर आकर्षित करना।
इसके फलस्वरूप नए-नए रचनाकार की क्षेत्र में आ रहे हैं। इससे सोशल मीडिया पर लघुकथाओं और इससे इतर कथाओं की भरमार हो रही है। इससे एक और नया प्रचलन भी इस सोशल मीडिया में चलने लगा है- तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाता हूं। इस से सोशल मीडिया का पाठक वर्ग भी भ्रमित हो रहा है। किसे अच्छी लघुकथा माना जाए, किसे नहीं ? यही वजह है कि लघुकथा के पैरोकार इन लघुकथाओं पर कुछ भी कहने से बचते हैं। फलत: लघुकथा पर उचित क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं मिल पाती हैं। इसके अलावा भी सोशल मीडिया पर कुछ प्लेटफार्म है जो लघुकथा के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। नया लेखन, लघुकथा के परिंदे, लघुकथा साहित्य, लघुकथा सृजन, भारतीय लघुकथा विकास मंच, लघुकथा के रँग, लघुकथा दुनिया, लघुकथा प्रांतर, लघुकथा लोक, जन लघुकथाएं, लघुकथा वर्कशॉप, लघुकथा वाटिका, लघुकथा अभिव्यक्ति, लघुकथा संवाद, प्रादेशिक लघुकथा मंच हिसार, चिकीर्षा, अभिधा मंच आदि ऐसे ही प्लेटफार्म है जो लघुकथा के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। इसके अलावा भी लघुकथा की अपनी वेबसाइट है। कुछ ब्लॉग भी इसमें अच्छा काम कर रहे हैं। इसमें लघुकथा डॉट कॉम, लघुकथा विश्वकोश, ओपन बुक्स ऑनलाइन आदि उम्दा प्लेटफार्म व साइड है, जो लघुकथा के क्षेत्र में बहुत बढ़िया काम कर रही हैं।
प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है?
उत्तर - एक समय था जब उपन्यास का बोलबाला था। सभी उपन्यास पढ़ने और लिखना पसंद करते थे। यही मनोरंजन का एकमात्र साधन था। एक व्यक्ति दो-तीन दिन में 500 या 600 पृष्ठ का उपन्यास पढ़ लिया करता था। तब भाई - बहनों में उसे पढ़ने के लिए लड़ाई होती थी। पहले मैं पढूंगा। पहले मैं पढूंगी। उस समय उपन्यास किराए पर मिलते थे। मगर तब एक पाठक खाना खा रहा होता था, मगर उपन्यास को कोई दूसरा पाठक पढ़ रहा होता था। यानी उपन्यास को कोई ना कोई रात-दिन पढ़ा करता था। उस समय उपन्यास खूब पढ़े लिखे जा रहे थे। फिर कहानी का दौर आया। आजकल लघुकथा का दौर है। आज सूचना की क्रांति का दौर है। मोबाइल हर हाथ में आ गए हैं। पल-पल की खबरें पल-पल में फैल जाती है। सूचना का इस तरह विस्फोट हो रहा है कि एक पल पहले घटी घटना दूसरे पल विश्व के हर एक कोने में पहुंच जाती है। इससे पाठक वर्ग मोबाइल के तिलस्म में कैद होकर रह गया है। मोबाइल धारक के पास अधिकांश समय काम नहीं होता है। मगर उसे फुरसत एक कोड़ी की नहीं मिलती है। वह बिना काम के मोबाइल में लगा रहता है। सूचना क्रांति, वीडियो गेम, नई-नई बातें, मोबाइल पर हर तरह की तस्वीरें, हर तरह के वीडियो ने उसे बहुत ही व्यस्त बना दिया है। आज के पाठक के पास समय नहीं है। इससे उसे ऐसा कथा साहित्य चाहिए जिसे 2-3 मिनट में पढ़ा जा सके। इसी समय की कमी ने उसे लघुकथा साहित्य की ओर मोड़ दिया है। इस समय साहित्य की जो सबसे चर्चित लोकप्रिय विधा है वह लघुकथा ही है। आज के परिवेश में लघुकथा ही परिवर्तन और बदलाव की रूपरेखा ला सकती है। इसी की स्थिति आज बहुत बेहतरीन है। सभी इसे पढ़ना चाहते हैं।
प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से आप संतुष्ट हैं?
उत्तर - यह एक पेचीदा सवाल है। लघुकथा की वर्तमान स्थिति का मापदंड हमें देखना पड़ेगा। हम किस संदर्भ में इसे देखना चाहते हैं। उस नजरिए को पकड़कर हम लघुकथा की वर्तमान स्थिति की बात कर सकते हैं। हरेक पाठक की अपनी रुचि होती है। उस की रुचि के विषय या लेखक को ही पढ़ता है। मैं स्वयं भी कुछ चुनिंदा लघुकथाकारों की लघुकथाएं ही ज्यादा पढ़ता हूं। ताकि उनसे कुछ सीख सकूं। इस स्थिति में हमें हम कह सकते हैं कि लघुकथा की वर्तमान स्थिति बहुत बढ़िया है। हर जगह बहुत बेहतरीन लघुकथाएं आ रही है।
प्रश्न न.7 - आप किस पृष्ठभूमि से आए हैं बताएं ? किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाए ?
उत्तर - पृष्ठभूमि की बात की जाए तो मेरे पिता एक शासकीय सेवक थे। पुलिस में रहते हुए उन्होंने कभी अनैतिक ढंग से रुपए नहीं कमाए। इस कारण बचपन से हमें कुछ न कुछ काम-धंधा यानी पार्ट टाइम कार्य करना पड़ा। इसी दौरान अध्ययन और मनन किया। इस कारण अभावों ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। इसी समय यानी पढ़ाई के दौरान धर्मयुग में कहानी लेखन महाविद्यालय अंबाला छावनी के कहानी-कला व लेख रचना के पाठ्यक्रम के बारे में पढ़ा। फिर वहां से यह कोर्स किया। लेखन शुरू हुआ। लघुकथा, लेख, बाल कहानियां खूब लिखी। इस कारण में बाल कहानियों में बहुत ज्यादा सफल रहा हूं। इस वजह से बाल साहित्यकार के रूप में ज्यादा पहचान बन पाई है। इसका मार्गदर्शन करने में ज्यादा मजा आता है। क्योंकि कहानियां बहुत लिखी और छपी हैं। इस कारण इसकी बारीकी से अच्छी तरह वाकिफ हूं।
प्रश्न न.8 - आपके लेखन में आपके परिवार की भूमिका क्या रही है?
उत्तर - मेरे परिवार में आज तक लेखन से कोई जुड़ा हुआ नहीं रहा है। मेरे पिताजी की धारणा थी कि लेखन एक बेकार चीज़ है। इससे आजीविका कमाई नहीं जा सकती है। उनका सोच था कि लेखन से रुपएपैसे नहीं मिलते हैं । मगर जब भास्कर व नईदुनिया में छपी कविता से ₹20 का मनीऑर्डर आया तो पिताजी की धारणा टूट गई। वे समझ गए कि लेखन का शौक अच्छा शौक है। मेरी पत्नी की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह कभी लिखते समय मुझे कभी नहीं टोकती थी। यही हाल बच्चों का है ।मेरे पुत्र राहुल ने मुझे मोबाइल पर फेसबुक चलाना सिखाया। पुत्री ने व्हाट्सएप से अवगत कराया। एक तरह से अप्रत्यक्ष रुप से मेरे परिवार ने मेरे लेखन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और कदम-कदम पर मेरा साथ दिया है।
प्रश्न न.9 - आपकी आजीविका में आपके लेखन की क्या स्थिति है ?
उत्तर - मेरी आजीविका में लेखन ने मेरी बहुत सहायता की है। क्योंकि मैं प्राथमिक कक्षा में शिक्षक हूं। बच्चों के संग-साथ उठता-बैठता, पढ़ता-पढ़ाता हूं। बाल मनोविज्ञान पढ़ चुका हूं। इससे बच्चों के मन के बहुत करीब रहता हूं। इसलिए बालकथा लिखना, बच्चों को सुनना- सुनाना, उनसे कथा-कहानी सुनना आदि से मेरा लेखन में बहुत सहायता मिली है।मेरा लेखन व मेरी जीविका के साधन- दोनों एक-दूसरे के पूरक होने से मुझे साहित्य के क्षेत्र में शीघ्र सफलता मिली है। तभी मैं बाल कहानीकार के रूप में स्थापित हो पाया हूं।
प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा?
उत्तर - हरेक कथा साहित्य अथवा साहित्य का भविष्य उज्जवल ही होता है। वह समय के साथ चलता है। यह बात दूसरी है कि समय किसी साहित्य की महत्ता को बढ़ा देता है। मगर कुछ साहित्यिक सदाबहार बने रहते हैं। कविता को ही लीजिए। इसका भविष्य सदाबहार रहा है और रहेगा।
वैसी ही स्थिति लघुकथा साहित्य की है। लघुकथा अलग रूप में पहले से ही विद्यमान रही है। यह स्वरूप बदल कर आज लघुकथा के रूप में हमारे सामने हैं। इसलिए लघु होने के कारण इस कथा का महत्व भविष्य में सब से बेहतर है और बेहतर ढंग से बढ़ेगा।
प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है?
उत्तर - साहित्य से रस की प्राप्ति होती है। यह रस यानी आनंद जीवन की अमूल्य निधि है। इसी रस के लिए व्यक्ति अनेक कार्य करता है। मुझे भी इस लघुकथा के साथ-साथ कथा-साहित्य में रस की प्राप्ति हुई है। साथ ही मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिली है। यही इस साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ी देन है।
बहुत सुन्दर साक्षात्कार... हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ 💐 💐
ReplyDelete